Satya - 22 in Hindi Fiction Stories by KAMAL KANT LAL books and stories PDF | सत्या - 22

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सत्या - 22

सत्या 22

बरामदे की खटिया पर चादर ओढ़ कर बैठा शंकर अपने नाख़ून कुतर रहा था. औरतों का जमघट लगा था. कोई जमीन पर बैठी थी तो कई खड़ी थीं.

सत्या उनके बीच आते ही बोला, “और मीरा देवी आपकी पढ़ाई का क्या विचार है? मैट्रिक का एक्ज़ाम लिखना है न? नई किताबों पर धूल जम रही है.”

मीरा, “ये सब झंझट आ गया था इसीलिए. बस कल से शुरू करते हैं.”

सत्या ने समझाया, “रोज़ ही कोई न कोई बात होगी. लेकिन पढ़ाई हमको जारी रखनी है. हम तो बोलते हैं कल कभी नहीं आता. आज ही से शुरू करें. एक पन्ना ही सही लेकिन शुरूआत आज ही करें.”

सविता मीरा के बचाव में आगे आई, “पढ़ेगी-पढ़ेगी सत्या बाबू. हम ज़िम्मेदारी लिए हैं. बस अभी मीटिंग के बाद हमलोग पढ़ने बैठते हैं न.”

सत्या, “हाँ, आज की ये मीटिंग क्यों बुलाई है?”

अचानक दूर से ऊँचे स्वर में किसी की गाली-गलौज करने की आवाज़ आने लगी. सब लोग ख़ामोश होकर सुनने लगे. अंत में सविता ने कहा, “इसी समस्या के लिए सत्या बाबू. अब देखिए चँदू दारू पीकर बेवज़ह अपनी औरत से झगड़ रहा है. शराब की दुकान तो हट गई लेकिन समस्या वहीं की वहीं है. अब तो ये सारे मर्द पहले से भी ज़्यादा पीने और झगड़ने लगे हैं.”

सत्या ने चिंतित होकर कहा, “बात सही है. मैंने तो आगाह किया था कि शराब की दुकान हटने के बाद ये लोग रिवेन्जफुल हो जाएँगे. कुछ ज़्यादा ही बखेड़ा करेंगे. इन दिनों तो हर शाम कई लोग शोर करने लगते हैं. बच्चों की पढ़ाई में डिस्टरबेंस होने लगी है.”

सविता ने हताश होकर कहा, “हमारा पाँसा उलटा पड़ गया. अब क्या किया जाए, कुछ उपाय सोचिए सत्या बाबू. बस्ती की औरतों पर अब ज़्यादा ज़ुल्म होने लगा है.”

“मुखिया को बोलते हैं. वही इनको समझा सकता है.”

गोमती, “मुखिया भाई तो अपने खार खाया हुआ है. बोलता है जो किया है, उसको तो भुगतना पड़ेगा. वो कोई मदत नेहीं करेगा.”

सत्या ने कहा, “तो किया क्या जाए गोमती जी? कब तक हमारी औरतें दुख सहेंगी?”

गोमती, “बस्ती का औरत लोग के लिए कोई नया बात तो है नेहीं. थोड़ा दिन दो डंडा

जादा खाएगा. फिर मरद लोग थक कर अपना-अपना काम में लग जाएगा तो सब पहले जैसे हो जाएगा... तबतक माँ चंडी रॉख्खा करेगा.”

सब लोगों ने निराशा में सिर हिलाया. वरुण दौड़ता हुआ वहाँ पहुँचा.

वरुण, “माँ चंडी आई है. माँ चंडी आई है. सरसती मौसी के ऊपर माँ चंडी आई है.”

गोमती कमर में साड़ी का पल्लू खोंसती हुई चल पड़ी, “अरे चलो रे, माँ चंडी आई है. लोटा में पानी, आम पत्ता, सिंदूर और आलता ले के आओ. हम आगे जाते हैं.”

सारी औरतों के साथ वरुण भी चला गया. सत्या, मीरा और सविता वहीं रह गए. सत्या ने जिज्ञासावश पूछा, “यह सब क्या है?”

“चँदू की पत्नी सरस्वति पर माँ चंडी सवार हुई है. चलो हम लोग को भी चलना चाहिए, माँ की आगवानी के लिए,” कहती हुई सविता मीरा को साथ लेकर चली गई. कौतुहलवश सत्या भी उनके पीछे हो लिया.

सरस्वती बाल बिखराए, मुँह से गुर्राहट की आवाज़ निकालती हुई झूम-झूम कर नाच रही थी. औरत, मर्द और बच्चों की भीड़ लगी थी. लोटे के पानी में आम के पत्तों पर सिंदूर लगा कर सामने रखा हुआ था. कुछ औरतों ने उसे पकड़कर ज़मीन पर बैठाया. उसके पैरों में आलता और माथे पर सिंदूर लगाई. सभी रह-रह कर गुहार लगा रहे थे, “माँ चंडी, रॉख्खा कॉरो माँ. हे चंडी माँ रक्षा करो.. रॉख्खा कॉरो ... रक्षा करो ओ माँ.”

चँदू खिसियाया हुआ था. बोला, “इसको माता-वाता कुछ नहीं आया है. नौटंकी कर रही है साली.”

“सरस्वती का झूमना और तेज हो गया. वह बुरी तरह सिर धुनने लगी. अचानक वह उठ कर खड़ी हो गई और चँदू के इर्द-गिर्द चक्कर काटते हुए नाचने लगी.

सरस्वती, “भाग जा सैतान. भाग यहाँ से. भाग जा,” सरस्वती किसी के काबू में नहीं आ रही थी. वह चँदू पर चढ़ दौड़ी. औरतों ने बड़ी मुश्किल से उसे वापस बैठाया. तुलसी ने अनिता के कान में कहा, “चंडी माँ आज बहुत गुस्सा में है. आज बहुत दिन बाद माँ आई है बस्ती में. हमको एक बात पूछना था माँ से, पूछें क्या?”

अनिता, “अरे पूछ ना.. अभी तो मौका है.”

तुलसी ने सरस्वति के आगे जमीन पर लेटकर प्रणाम किया और कहने लगी, “माँ, माँ, क्या हुआ माँ. गुस्सा शांत करो माँ. माँ, बोलो माँ, हमको बच्चा नहीं हो रहा है,

कब होगा माँ?”

“नहीं होगा, जबतक तेरा मरद दारू नहीं छोड़ेगा, नहीं होगा बच्चा. उसको दारू छोड़ने का कसम खाने को बोल, बच्चा जरूर होगा. दारू पिया तो बच्चा नास हो जाएगा.”

तुलसी, “आज से नहीं पिएगा माँ.” उसने अपने पति लक्षमण को बुलाया, “अरे आ ना.. खा ले माँ के सामने कसम कि कभी दारू नहीं पिएगा.”

कई लोगों ने लक्षमण को आगे ठेला. वह जाना नहीं चाहता था. उसने विरोध किया, “अरे हम तो कभी दारू पीकर हंगामा नहीं करते हैं. चुचाप सो जाते हैं. हम क्यों कसम खाएँ?”

मुखिया ने उसे ज़ोर से डपटा, “खाता क्यों नहीं कसम? माता का आदेस का पालन नहीं किया तो भारी बिपदा आएगा.”

तुलसी, “माँ बोली ना कि बच्चा होगा. बच्चा नहीं चाहिए? चल खा कसम.”

लोगों के ज़ोर देने पर लक्षमण ने माँ के पैरों पर झुककर कसम खाई, “कसम खाते हैं माँ, अब दारू को हाथ भी नहीं लगाएँगे.”

गोमती, “अब सांत हो जाओ माँ. सांत हो जाओ.”

सरस्वती फिर से उठकर तांडव करने लगी, “इस घर में मेरा बास है. कोई घर में दारू पीकर आएगा तो हम उसका खून पी जाएगा. भगाओ इस दारूबाज को बस्ती से... चल भाग जा यहाँ से. दारू का नसा उतरेगा तब आना.”

चँदू गिड़गिड़ाने लगा, “ऐसा मत बोलो माँ. हम कहाँ जाएँगे?”

“चल भाग जल्दी. नहीं तो सराप पड़ेगा पूरा बस्ती पर.”

भीड़ मे खलबली मच गई. सब सम्मिलित स्वर में उसे जाने के लिए कहने लगे. मुखिया ने चँदू का हाथ पकड़ कर खींचा, “अरे जा ना चँदू, आज रात बस्ती के बाहर बड़ गाछ का चबूतरा पर सो जा.”

“अरे मुखिया जी बहुत ठंडा है. मेरा तो कुल्फी जम जाएगा.”

रमेश ने मज़ाकिया अंदाज़ में कहा, “एक पऊआ मार लेना. सब ठंडा भाग जाएगा.”

चँदू ने उसे दोस्ती का वास्ता दिया, “तू भी चल ना. आज साथ नहीं देगा?”

“तेरे ऊपर माँ का किरपा हुआ है. हम जाएँगे तो माँ गुस्सा हो जाएगी,” बोलकर उसने

ज़ोर का अट्टहास किया.

उसके साथ कई लोग हँस पड़े. सरस्वती उसको वहाँ से जाने की रट लगाए झूम रही थी. कोई रास्ता न देख चँदू बेमन से घर के अंदर गया और चादर-कंबल लेकर वहाँ से चला गया.

सरस्वती का गुस्सा अभी भी शांत नहीं हुआ था. गोमती ने सबसे पूछा, “और किसी को कुछ पूछना है माँ से तो पूछ लो. नहीं तो हम तुलसी पानी डाल रहे हैं.”

भीड़ में से बसंती दौड़कर आई और सरस्वती के पैरों पर गिर गई. उसकी गोद में उसका एक साल का मरियल सा बच्चा भी था. बच्चे को माँ के पैरों पर डालकर उसने गुहार लगाई, “माँ, मेरा बच्चा को ठीक कर दो माँ. बहोत एलाज कराये. ठीक ही नहीं हो रहा माँ.”

सरस्वती, “सनातन डाक्टर से इलाज करा. बच्चा ठीक हो जाएगा.”

“बाप रे, उसका तो बहोत फीस है. हम एलाज नहीं करा पाएँगे माँ. हर मंगलबार हम आपका पूजा करेंगे. आप ही आसिरबाद दे दो माँ.”

“तेरा मरद के पास रोज-रोज दारू पीने को पैसा है, इलाज के लिए नहीं?”

सरस्वती प्रणाम करके उठते हुए बोली, “ओ दारू नहीं छोड़ेगा. हम एलाज नहीं कराने को सकेगा. माँ, मेरा बच्चा को अपने पास बुला लो. इसको और कष्ट नेहीं सहने को दो. माँ इसको अपने पास...”

“अरे गनेस, माँ बोल रही है तो दारू काहे नहीं छोड़ देता है?” मुखिया ने डाँट लगाई.

गणेश भी तैश में बोला, “माँ कब बोली दारू छोड़ने को?” फिर वह माँ के पैरों पर गिरकर बोला, “हम इलाज कराएँगे माँ. चाहे कुछ भी हो, इलाज कराएँगे.”

सरस्वती सिर धुनते-धुनते ज़मीन पर लोट गई. गोमती ने फिर पूछा कि किसी को कुछ पूछना हो तो पूछो. कोई सामने नहीं आया. उसने लोटे में रखा तुलसी जल आम के पत्तों से निकाल-निकाल कर सरस्वति पर छिड़का. सरस्वती स्थिर हो गई. कपड़े अस्त-व्यस्त. औरतों ने जल्दी से कपड़े ठीक किये. उसके गाल थपथपाए. थोड़ी देर में वह उठकर बैठ गई. आँखें फाड़ कर इधर-उधर देखने लगी, “क्या हुआ? हम यहाँ कैसे आया?”

जानकी, “माँ चंडी आई थी तुमपर.”

सरस्वती अपने बाल समेटती हुई भीड़ में किसी को खोजने लगी, “हम तो माँ चंडी

का पूजा कर रहा था. गुड़िया का पापा दारू पीकर आया था. हल्ला कर रहा था. और

हमको कुछ भी याद नहीं है. कहाँ है गुड़िया का पापा?”

गोमती, “पूजा में बिघन डाल रहा था. उसको माँ बस्ती से बाहर भगा दिया है. दारू जब तक नेहीं उतरेगा बस्ती में नेहीं आने को सकेगा.”

सरस्वती बेचैन हो गई. वह बदहवास सी उठकर भागी, “ओ माँ ... हम भी उसके पास जाएँगे. बस्ती में नहीं सोएँगे.”

वह भागती हुई गली से बाहर आई. रतन सेठ ने अपनी दुकान पर से दिलचस्पी से सरस्वती के पीछे लोगों की भीड़ को आते देखा. चँदू कंबल लपेटे पेड़ के नीचे चबूतरे पर बैठा था. सरस्वती भागकर उसके चरणों पर गिर गई, “हमको माफी दे दो. चलो घर चलो. हम माँ को मना लेंगे.”

भीड़ में से कई लोग एक साथ चिल्लाए, “नहीं-नहीं, अभी नहीं जाएगा. माँ गुस्सा हो जाएगी.”

मुखिया, “आज कैसे भी करके यहीं रह जाओ. माँ का गुस्सा सांत होने दो, नहीं तो साप पड़ेगा बस्ती पर.”

सत्या के चेहरे पर चौड़ी सी मुस्कान थी. उसने भीड़ में से ढूँढकर खुशी और रोहन के हाथ पकड़े और उन्हें घर की तरफ ले चला.

सत्या, “चलो अब, बहुत पढ़ना है आज. होमवर्क नहीं पूरा किया तो माँ चंडी नाराज़ हो जाएगी.”

दुसरे दिन काम पर निकलते समय सत्या को सविता घर की गेट पर ही मिल गई. उसने पूछा, “कल रात माँ चंडी वाला किस्सा ठीक से मेरी समझ में नहीं आया. मीरा बता रही थी कि अक्सर किसी न किसी पर माँ आकर सवार हो जाती है. सच्चाई क्या है?”

“हाँ, जबसे ब्याह कर हम इस बस्ती में आए हैं, कई बार माँ चंडी को सवार होते देखे हैं,” सविता ने सहज सा जवाब दिया.

“तुमपर कभी माँ चंडी सवार हुई कि नहीं?”

“हमपर? नहीं तो... क्यों पूछा आपने?” सविता सोच में पड़ गई.

“नहीं, बस यूँ ही. हम कल देखें कि माँ चंडी का आदेश सभी मानते हैं. बहुत पावरफुल हैं चंडी माँ. अगर माँ चंडी चाहेगी तो बस्ती के मर्द शराब पीकर अपनी औरतों पर ज़ुल्म करना बँद कर देंगे,” बोलकर सत्या साईकिल पर सवार होकर चल दिया. सविता गहरी सोच में डूबी उसको जाते हुए देखती रही. पता नहीं उसे देख रही थी भी या नहीं, क्योंकि सत्या के आँखों से ओझल होने के बाद भी वह बड़ी देर तक उसी रास्ते पर नज़र गड़ाए वहीं खड़ी रही.