Sach luchh aur tha in Hindi Moral Stories by Sudha Om Dhingra books and stories PDF | सच कुछ और था......

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सच कुछ और था......

सच कुछ और था......

सुधा ओम ढींगरा

यह कहानी मैंने लिखी नहीं, इस कहानी ने मुझे से स्वयं को लिखवाया है। ताज्जुब की बात है, पता नहीं कहाँ से यह मेरी कलम पर आ बैठी है..... और पहुँच गई है एक वृद्ध दंपति के घर में और लगी है ताँक-झाँक करने उनके घर के भीतरी कमरों में ......अजी, आप ऐसा क्यों सोचते हैं कि, मैंने मना नहीं किया। बहुत मना किया। मेरी सुने तो! वास्ता दिया किसी के घर में झाँकना गलत है, इस देश में तो कानूनन अपराध है, पर कहाँ मानी....

सुबह-सुबह उस वृद्ध दंपति के घर का दृश्य देख रही है.... उस वृद्ध दंपति का नाम है निखिल और रिया, पर रिया को सभी आदर से रिया जी कहते हैं; यहाँ तक कि उनके पति निखिल सभरवाल भी।

सुबह उठते ही रिया जी ने समाचारों के लिए टीवी ऑन किया है। रोज़ की दिनचर्या और आदत के अनुसार रसोई से चाय का कप लेकर 'मीट यू ऑल द वे' गाना गुनगुनातीं, ख़बरें सुनने, वे उस कमरे में आईं, जहाँ उन्होंने कुछ पल पहले टीवी ऑन किया है। हर रोज़ सुबह गीत गुनगुनाना भी उनकी आदत में शुमार है और वह भी अलग-अलग तरह के गीत। कभी हिन्दी ,कभी पंजाबी और कभी अंग्रेज़ी। आज अंग्रेज़ी गाने 'मीट यू ऑल द वे' की बारी है।

चाय की चुस्कियों के साथ समाचार सुनने में उन्हें बहुत आनंद आता है। घटना, दुर्घटना की ख़बरों को वे चाय की चुस्कियों और बिस्कुटों के साथ गटक जाती हैं।

पर अभी वे सामने टीवी स्क्रीन को देखते ही ठिठक गई हैं। समाचार वाचक जिस महिला की तस्वीर दिखाकर कह रहा है कि इसने अपने पति को गोली मारी है.....और गोली मारने के बाद स्वयं ही पुलिस को फ़ोन किया है। उसे देखकर वे स्तब्ध है। स्क्रीन पर उस महिला की तस्वीर बार-बार उभर रही है। वे एकटक उसे तकती जा रही हैं, शरीर हिलडुल नहीं रहा। जैसे पत्थर हो गया है।

समाचार वाचक का बार-बार उस तस्वीर को स्क्रीन पर उभारना और तस्वीर की ओर देख कर यह कहना कि इसने अपने पति को गोली मारी है, उन्हें चुभ रहा है। कुछ क्षणों तक वे इस समाचार के झटके में रहीं फिर उन्होंने स्वयं को सँभाला। उनके शरीर में हलचल हुई, वे बुदबुदाईं.... यह तो लिंडा है...... लिंडा ऐसा नहीं कर सकती.....

तभी उनके पति निखिल बदहवास से उनके पास आए और बोले-

'रिया जी, आप यहाँ क्या देख रहीं हैं ? बाहर चलें, देखें......... ?' वे यह सुनते ही उनके साथ बाहर की ओर चल पड़ीं और मुख्य द्वार खोल कर वे दोनों बाहर आ कर अपने बगीचे में खड़े हो गए हैं।

उनके घर के सामने वाले घर में लिंडा और उसके पति महेन्द्र रॉव रहते हैं। चारों ओर पुलिस कर्मी खड़े हैं, प्रैस के रिपोर्टर और टीवी कैमरे लिए कैमरा मैन कवरेज कर रहे हैं। लिंडा ने ऐसा क्या कर दिया जो इतनी भीड़ इकट्ठी हो गई? अड़ोसी-पड़ोसी सब अपने घरों से बाहर खड़े हैं। यह तो सबका अपने-अपने काम पर जाने का समय है। जॉगिंग करते हुए उनके घरों से आगे निकलते हुए लोग, सैर करते हुए, कुत्तों को घुमाते हुए अनगिनत लोग वहाँ रुक गए हैं। निखिल और रिया जी को कुछ समझ में नहीं आ रहा।

उन्होंने पचास वर्ष से अधिक समय इस देश में गुज़ारा है। किसी भी तरह की दुर्धटना के समय लोग कभी भीड़ नहीं जुटने देते। अक्सर एक दो लोग रुकते हैं, पुलिस को बुलाते हैं। पुलिस और एम्बुलेंस के आने तक प्राथमिक सहायता भी करते हैं, फिर अपनी राह हो लेते है। मदद करने के लिए हमेशा तैयार रहते हैं।

आज तो स्वदेश लग रहा है। कभी वहाँ की तरह यहाँ भीड़ व तमाशबीन नहीं दिखे। पर आज भीड़ भी है और तमाशबीन भी।

कई लोग उनकी ओर देख कर एक दूसरे के कानों में कुछ कह रहे हैं। रिया जी नर्वस हो रही हैं। उन्होंने निखिल की बाज़ू को कस कर पकड़ लिया है।

लिंडा ने गोली घर के अंदर मारी है, बाहर एक दम इतनी भीड़ कैसे इकट्ठी हो गई? प्रैस और टीवी वालों को कैसे पता चल गया? कुछ और हुआ है जो उन्हें पता नहीं। वे दोनों खोए -खोए चारों ओर देख रहे हैं.....वे पूछें भी तो किस से? अजीब सा माहौल बना हुआ है..... वैसे उनकी पूछने की हिम्मत भी नहीं हो रही.....

पुलिस और वहाँ खड़े लोगों, जिनमें प्रैस और टीवी के रिपोर्टर अधिक हैं, में हलचल हुई। ऐसा लगा वे अपना-अपना स्थान ग्रहण कर रहें हैं। धीरे से लिंडा और महेन्द्र रॉव के घर का द्वार खुला। कैमरे ऑन हो गए, टीवी संवाददाता बोलने लगे......

लिंडा दो महिला पुलिस कर्मियों से घिरी हाथों में हथकड़ी पहने बाहर आई। उनके साथ-साथ चल रहे एक पुलिस ऑफिसर के हाथ में पारदर्शी प्लास्टिक बैग में एक पिस्तौल है; जो उसने बिना बोले वहाँ खड़े लोगों को दिखाई, जिनमें प्रैस और टीवी रिपोर्टर भी हैं और राह चलते राहगीर भी।

उनके ड्राइवे पर एक टीवी रिपोर्टर अपने कैमरा मैन के साथ खड़ी है; निखिल और रिया जी ने उसकी ओर देखा नहीं, वे अपने-आप में खोये हुए वहाँ खड़े हैं। लिंडा को देखते ही वह अपने हाथ में पकड़े माइक्रोफ़ोन पर बोलने लगी और उसके कैमरा मैन ने कैमरा ऑन कर दिया..... उन्हें तब उसके वहाँ होने का एहसास हुआ....

'अन्ततः लिंडा घर से बाहर आ रही है। आप देख सकते हैं, वह कैसे लोगों को देख रही है? उसकी आँखों में कोई शर्मिंदगी नहीं। उसने अपने पति की गोली मार कर हत्या कर दी है। फेसबुक पर उसने लिखा था......' उसके बाद वह चुप हो जाती है..... उसके कान में लगे ध्वनि यंत्र में कुछ कहा गया। शायद टीवी पर लिंडा की फेसबुक की वॉल पर जो लिखा था, दिखाया जा रहा है....

रिया जी ने निखिल के करीब हो कर कहा,'ओह.... तो तभी इतनी भीड़ इकट्ठी है, लिंडा ने फेसबुक पर कुछ लिखा है।'

रिपोर्टर बोल रही है, 'सोशल साइट्स पर इसकी चर्चा है। यहाँ इकट्ठी भीड़ को आप देख सकते हैं। सब लोग आपस में यही बात कर रहे हैं कि लिंडा ने अपने भारतीय पति को गोली मार दी है और उससे पहले इसने अपनी फेसबुक की वॉल पर लिखा था, जो आप देख चुके हैं। यह अपने सनकी भारतीय पति से तंग आ चुकी थी। बढ़ती उम्र के साथ उसकी सनक बढ़ रही थी। उसने तलाक लेना चाहा, महेन्द्र, लिंडा का पति उसे तलाक देना नहीं चाहता था। वह उससे बेज़ार हो चुकी थी। लीजिये! देखिए! लिंडा, पुलिस वैन में बैठ गई है। उसके कैमरा मैन ने कमरा उस ओर घुमा दिया। लिंडा ने अपने भारतीय पति को गोली क्यों मारी? क्या वही कारण गोली मारने के हैं, जो लिंडा ने फेसबुक पर लिखे या उसके इतर कुछ और भी चल रहा था? अभी इसके बारे में कुछ भी जानकारी नहीं मिली और न ही उसके फेसबुक के कथन की पुष्टि हुई है।' उसके कान में फिर कोई सन्देश आया....

वह रिया जी और निखिल की ओर माइक्रोफ़ोन लेकर मुड़ने लगी तो दोनों ने बेरुखी से मुँह फेर लिया। उसने त्वरित सामने खड़े पड़ोसी रॉबर्ट की ओर अपना माइक्रोफ़ोन मोड़ दिया-

'व्हॉट डू यू थिंक अबाउट लिंडा? व्हाई शी किल्ड हर हस्बैंड?'

'शी डिड नोट टेल मीं' कन्धे झटकता झिखा-सा वह वहाँ से चला गया।

उसने माइक्रोफ़ोन अपने मुँह के आगे किया और बोलने लगी-'लगता है अभी सभी सकते में हैं, कोई कुछ बोलना नहीं चाहता।' इसके बाद उसने कट कर दिया। कैमरा मैन और वह अपना सामान समेटने लगे। अन्य रिपोर्टर भी वही कर रहे हैं।

रिया जी और निखिल भी अपने घर के अंदर जाने को मुड़े; तभी अचनाक निखिल पीछे घूम गए और उस लड़की के सामने जा खड़े हुए -

'आप किस चैनल की रिपोर्टर हैं?'

'आप क्यों पूछ रहे हैं?'

'आप ज़रूर किसी देसी चैनल की होंगी, जो भारतीय पति बार-बार कह कर ज़ोर दे रही थीं ताकि कॉन्ट्रोवर्सी पैदा हो। पति-पत्नी सिर्फ पति-पत्नी होते हैं। उनमें कोई नस्ल- भेद, रंग-भेद नहीं होता, जैसे की आप कह कर पैदा कर रही हैं.... एक अमेरिकन पत्नी ने भारतीय पति को मार डाला।'

'एक अमेरिकन पत्नी ने भारतीय पति को मारा नहीं? क्या यह झूठ है?'

'मैं सिर्फ़ आपकी रिपोर्टिंग की बात कर रहा हूँ.....'निखिल की आवाज़ ऊँची होती सुन रिया जी तेज़ क़दमों से निखिल के पास पहुँचती हैं और उस रिपोर्टर से कहती हैं -'सॉरी, मैम! महेन्द्र इनका दोस्त था। ये अपने आप में नहीं। इनके कहने का बुरा नहीं मानना।' वे निखिल को बाज़ू से खींचती हुई अंदर ले गईं।

अंदर आकर वे दोनों निढाल-से सोफे पर बैठ गए।

'हम चारों इतने अच्छे दोस्त हैं और लिंडा के भीतर का ज्वालामुखी हम पहचान ही नहीं पाए।' निखिल रुआँसी आवाज़ में बोले और उठकर उन्होंने अपना कम्प्यूटर खोला। कम्प्यूटर खुलने में कुछ क्षण लगे रहे है.... उनकी बेचैनी बढ़ रही है..... कम्प्यूटर खुलते ही बोले-

'देखूँ.... क्या लिखा है। ' वे लिंडा की वॉल पर गए....

'अरे यह क्या? कल रात ही इसने यह पोस्ट डाली, और कल रात ही मैंने अपना कम्प्यूटर नहीं खोला और मोबाइल बंद कर दिया था। काश! मैंने ऐसा नहीं किया होता। महेन्द्र बच जाता।' उनकी रुलाई छूट गई।

'कल आपके सिर में दर्द था, तभी आपने बच्चों से बात करने के बाद मोबाइल बंद कर दिया था। निखिल सँभालें अपने आप को।' वे उनके पास सरक गई हैं और प्यार से उनके कन्धों पर हाथ फेरने लगीं। निखिल ने बिलखते हुए अपना सिर रिया जी के कन्धे पर रख दिया.....

'मेरा दोस्त बच सकता था। अगर मैंने लिंडा का स्टेट्स पढ़ लिया होता, महेंद्र को बचा लेता। अफ़्सोस जिन्होंने पढ़ा, उन्होंने कोई एक्शन नहीं लिया। मेरा दोस्त बच सकता था...... रिया जी, मेरा दोस्त बच सकता था.....।' उन्होंने रिया की ओर देख कर बच्चों की तरह ज़ार-ज़ार रोना शुरू कर दिया।

रोते हुए बोले-और लिखती है, 'वह सनकी है, मैं उसकी सनक से तंग आ गई हूँ, मैं तलाक देना चाहती हूँ, वह तलाक के लिए मान नहीं रहा। दिल करता है उसे गोली मार दूँ। तभी उससे छुटकारा ले सकती हूँ।'

यह सुन कर रिया जी की आँखें भी बह निकली......

'सब उसे तलाक लेने के तरीके बताने लगे हैं, किसी ने उसके गोली मार दूँ की ओर ध्यान नहीं दिया और उसने महेन्द्र को गोली मार दी......। और महेन्द्र सनकी कब से हुआ! और वह तलाक चाहती थी! सब बड़ा अजीब लग रहा है।' वे आँसू पोंछते हुए बोले।

'हमें नहीं मालूम, हो सकता है, वह अवसाद में हो। और कल उन्हीं क्षणों में यह सब लिख दिया हो।' रिया बोली।

'तो इलाज करवाती, मेरे दोस्त को जान से मारने की क्या तुक थी? अवसाद वाले क्या गोलियाँ चलाते फिरते हैं। कभी-कभी आप भी रिया जी ऐसी बात कर देती हैं, हैरानी होती है?' निखिल तल्ख़ी से बोले।

'हाँ मारते हैं.... आप नहीं जानते क्या? निराशा में भून डालते हैं.... कभी बच्चों को और कभी बड़ों को। निखिल मैं आपकी तल्ख़ी समझती हूँ, पर हम दोनों परिस्थितियों और परिणाम का अंदाज़ा लगा रहे हैं, सच हमें नहीं पता।'

'दुःख तो इसी बात का है, कॉलेज के समय का मित्र हो और मित्र के जीवन में क्या चल रहा है! गहरे मित्र को ही पता नहीं चला। रिया जी, हम तीनों दिल्ली यूनिवर्सिटी के क्लासमेट्स हैं। ढलती उम्र तक का साथ है। हमारे बच्चे, पोते-पोतियाँ आपस में परिवार की तरह मिलते हैं।' उनकी आवाज़ में उतर आई निराशा को रिया महसूस कर रही हैं।

'महेन्द्र ने कभी बताया नहीं लिंडा तलाक़ चाहती है। लिंडा ने कभी महसूस नहीं होने दिया कि वह महेन्द्र को सनकी समझती है। फिर यह फेसबुक पर क्या लिखा गया है।' निखिल लिंडा के स्टेट्स को देख कर परेशान हो गए हैं।

दुखी स्वर में बोले-'रिया जी, दोस्त होकर भी मैं उन दोनों के इस हिस्से से अंजान रहा? उनकी समस्या को जान नहीं पाया! महेन्द्र के दर्द को पहचान नहीं पाया! कैसा दोस्त हूँ मैं। लानत है ऐसी दोस्ती पर।'

'निखिल आप ख़ामख़ाह अपने पर कठोर हो रहें हैं। महेन्द्र तो शुरू से ही बहुत पर्सनल और प्राईवेट क़िस्म का व्यक्ति था। भूल गए आप! लंगोटिया यार थे आप, पर क्या अर्चना और महेन्द्र के प्रेम का पता चला आपको। आख़िरकार मैंने ही बताया था, महेन्द्र तो कभी बताने वाला नहीं था।' तभी फ़ोन की घंटी बजने लगी........, निखिल फ़ोन उठाने चले गए हैं, उनकी बात अधूरी छूट गई......

फ़ोन लिंडा और महेन्द्र के बड़े बेटे का है। उसने टीवी पर समाचार सुना और उसे यकीन नहीं हुआ। तब उसने घर पर फ़ोन किया। घर पर जब किसी ने फ़ोन नहीं उठाया तो निखिल को फ़ोन किया। रिया जी फ़ोन वार्तालाप से समझ रही हैं.... निखिल उनसे बातें करने लगे हैं.....

रिया जी की आँखें बह रही हैं...... महेन्द्र उनका भी तो दोस्त था.....।

जुलाई का महीना है, गर्मी अपने यौवन पर कहर बरपा रही है पर रिया जी को ठण्ड लग रही है........उनके हाथ-पाँव ठन्डे हो रहे हैं.....अथाह मानसिक तनाव में अक्सर उनके साथ ऐसा हो जाता है। उन्होंने अपने हाथ-पाँव समेटे और सोफे पर लुढ़क गईअतीत का कम्बल ओढ़कर वह यादों की गर्मी लेने लगीं.....

यादें दृश्य लेकर उभर रहीं हैं......लो, कहानी यहाँ भी पहुँच गई.... अरे भाई, रिया जी, युवा अवस्था में लौट रही हैं, उन्हें उसका आनंद लेने दो। इस उम्र में पुरानी सुखद यादें बहुत ताज़गी देती हैं।

सिक्सटीज़-सेवेंटीज़ की दिल्ली नज़र आ रही है....

दिल्ली कितनी खूबसूरत है..... कारों का रेला-पेला नहीं, प्रदुषण की घुटन नहीं, कोहरे के बादल नहीं। ओफ्फ़.... कहाँ आज की दिल्ली..... उन दिनों की दिल्ली सचमुच बहुत सुन्दर है और सुरक्षित भी। लड़के-लड़कियाँ बेफ़िक्री से घूम-फिर रहे हैं।

सुहावने दिन कभी भुलाए नहीं जा सकते...... बड़ी बेफ़िक्री से युवा रिया अपनी सहेलियाँ के साथ दिल्ली यूनिवर्सिटी के एक विभाग से दूसरे विभाग में जा रही है, सामने से लड़कों का एक झुण्ड आ रहा है, जिन्हें दूसरी दिशा में जाना है। अर्चना ने धीरे से उसके कान में कहा है ,'वह नीली शर्ट वाला महेन्द्र है।' और उसने पहली बार महेन्द्र के साथ निखिल को देखा........

महेन्द्र एक खूबसूरत और आकर्षित नौजवान है और वह जानती है लड़कियों में काफी लोकप्रिय भी है...... अर्चना और उसकी दूसरी सहेलियाँ महेन्द्र के बारे में खूब बातें करतीं हैं, उसने सुनी हैं वे बातें। रिया ने उसे पहली बार देखा.....

अर्चना ने फिर धीरे से कहा, 'यह है सब लड़कियों के सपनों का राज कुमार। तुम भी इसके सपने ले सकती हो। मिलेगा किसे? यह तो पता नहीं!'

पर रिया महेन्द्र को नहीं, निखिल को देख रही है। उसकी हँसी, उसका बात करने का तरीका उसे बहुत लुभावना लगा। महेन्द्र से अधिक उसे वह पसन्द आया।

'महेन्द्र एल्विस प्रेसिलेय की तरह लग रहा है।' बस इतना ही बोली वह।

सभी सहेलियाँ एक साथ बोल पड़ीं, 'हाय! तभी तो सब उस पर फ़िदा हैं....।'

एक और दृश्य उभरता है......

कैमिस्टरी क्लास में सब हैरान रह गए हैं......अर्चना, रिया, निखिल और महेन्द्र सब एक साथ एक क्लास में हैं। अर्चना महेन्द्र को देखकर खिल उठी है और उसने आगे होकर सबको एक दूसरे से मिलवाया। बस मिलते ही चारों का ग्रुप बन गया और उमेश चंद्र तथा सुकेश मेहरा भी उनके साथ आ मिले।

अब यूनिवर्सिटी में हर जगह वे सब इकट्ठे जाते हैं।

यूनिवर्सिटी के कॉफ़ी हॉउस में बहुत शोर है। इसलिए बाहर एक रेस्टोरेंट में सब बैठे चाय पी रहें हैं, उमेश चंद्र मुकेश का गीत गा रहा है-

'कोई जब तुम्हारा हृदय तोड़ दे,

तड़पता हुआ जब कोई छोड़ दे.....'

सभी मग्न हो कर उसे सुन रहें हैं। ऐसा लगता है, मुकेश गा रहे हैं। महेन्द्र एकदम उठकर चल देता है, यह कह कर अभी आता हूँ..... सभी बैठे इंतज़ार कर रहे हैं.... हार कर सब उठकर चले गए।

'महेन्द्र, कल तुम कहाँ चले गए थे? लौटकर आए नहीं, हम इंतज़ार करते रहे।'सब पूछ रहे हैं तो वह हँस कर कह रहा है-'यार घर जाकर सो गया था। ज़ोर की नींद आई थी।' सब एक दूसरे का चेहरा देख रहें हैं। रिया जी की आँखों के सामने चलचित्र-सा सब घूम रहा है।

रिया को महेंद्र की बात का यकीन नहीं आ रहा। उसने पहले भी कई बार ऐसा किया है। उसे महेन्द्र एक रहस्य मय व्यक्तित्व लगता है।

वे सोफे पर निढाल-सी पड़ी हैं। समय भाग रहा है, वह अधखुली आँखों से महसूस कर रही हैं...... वक़्त के साथ वे भी भाग रहे हैं। एम एस सी के दो साल समाप्त होने को हैं..... दो साल उन्होंने साथ बिताए हैं, इसके बावजूद महेन्द्र ने किसी को भनक भी नहीं लगने दी कि, वह अर्चना को पसंद करता है और उन दोनों का अफ़ेयर है........

दृश्य ओझल हो जाता है......

रिया जी सोच रही हैं..... वह कौन सा पल था, कौन सा कारण या किस दिन उन्हें अर्चना और महेन्द्र की दोस्ती का पता चला था। बहुत ज़ोर देकर सोचने के बाद भी उन्हें कुछ याद नहीं आ रहा....

कभी-कभी मस्तिष्क अपने तरीके से कार्य करता है। उसकी अपनी कार्य-प्रणाली है। बड़े सुलझे और सुघड़ तरीके से जो वह याद रखना चाहता है उसे आगे के खांचे में रखता है, जो उसे भूलना होता है कहीं दूर किसी खांचे में डाल देता है, कम्प्यूटर की फ़ाइलों की तरह, फिर जब चाहो निकाल लो।

रिया जी खीज रही हैं..... आज उन्हें कुछ भी याद क्यों नहीं आ रहा? उनके कम्प्यूटर की फ़ाइल कहाँ दब गई है। शायद बेहद तनाव और उलझन से मस्तिष्क के स्नायु तन गए हैं, वे उन यादों को निकाल नहीं पा रहीं। हाँ, उन्हें यह याद आ रहा है, कॉलेज में सभी महेन्द्र को घुन्ना कहते थे, जो सबके बारे में सब कुछ पूछ लेता था, पूरी जानकारी होती थी उसे सारे डिपार्मेंट की, पर उसके बारे में किसी को कुछ पता नहीं होता था।

अरे अब कौन सा उन्हें पता चला! लिंडा और महेन्द्र के बीच क्या चल रहा है.... और खुशफ़हमी है कि इतने वर्षों की दोस्ती है....।

रिया जी बस यादों को कुरेद रही हैं......

उन्होंने एक बार बस यूँ ही अर्चना के साथ अपनी सोच साझी की थी और कह दिया था-

'महेन्द्र धरातल पर जीने वाला मनुष्य नहीं है, हर बात को बढ़ा-चढ़कर पेश करने वाला शोमैन है वह और इसलिए दिल्ली यूनिवर्सिटी के लड़के-लड़कियों में बेहद सराहा जाता है। काश ! मित्र लोग उसके सच को समझ सकें, उस महेन्द्र को जान पाएँ, जो वह है।'

'वह तुम्हारी ओर ध्यान नहीं देता, इसलिए तुम ऐसा कह रही हो।' अर्चना ने बड़ी रुखाई से उत्तर दिया।

रिया जी की आँख से एक मोती गिरा, उन्होंने पास पड़े नेपकिन में समेट लिया.......

चारित्रिक विश्लेषण का एक द्वंद्व उनके भीतर वर्षों से चल रहा है। आज फिर वह द्वंद्व उठ खड़ा हुआ है। रिया जी वर्तमान में लौट आईं हैं। निखिल मूलतः एक सच्चे इंसान हैं। सरल-सादे और ईमानदार। उनका यह स्वभाव रिश्तों में भी झलकता है। महेन्द्र के प्रति दोस्ती निभाना उसी स्वभाव की देन है। हालाँकि महेन्द्र ने हमेशा उनसे हर बात छुपाई। कभी खुल कर कुछ नहीं बता पाया जैसे निखिल उनसे उन्मुक्त होकर, एक दोस्त से दिल की बातें करते रहे हैं। दोस्ती में और दोस्त के लिए बस एक अच्छा काम महेन्द्र ने किया। महेन्द्र ने एम एस सी के दौरान अमेरिकन यूनिवर्सिटी में पीऍच.डी प्रोग्राम के लिए निवेदन पत्र भेजा था, जो स्वीकृत हुआ और महेन्द्र एम एस सी के बाद छात्रवृत्ति लेकर कैलिफ़ोर्निया विश्वविद्यालय पीऍच.डी करने के लिए आ गया। पहली बार यह सारी जानकारी उसने निखिल को दी और साल भर बाद निखिल भी वहीं आ गए। महेन्द्र की इसी अदा के सदके निखिल उनके हर गुनाह को माफ़ करते गए।

रिया जी आज निखिल की अदाओं के लिए चिंतित हैं। निखिल यह सोचते हैं कि महेन्द्र उनके सच्चे मन की और उनकी अच्छाई की क़द्र करते हैं, एक तरह से उनकी दृढ़ इच्छाशक्ति और स्पष्टवादिता के प्रशंसक हैं, तभी उन्हें महेन्द्र ने इस देश में बुलाया था।

वे उन्हें यह कभी नहीं कह पाईं कि महेन्द्र निखिल के निश्छल व्यक्तित्व, बुद्धिमता से कुण्ठित हैं। निखिल दिल्ली यूनिवर्सिटी के गोल्ड मेडलिस्ट हैं और महेन्द्र एक साधारण विद्यार्थी। इसीलिए साथ रहते हुए भी एक दूरी बना कर रहते हैं। अब शायद यह कभी कह भी नहीं पाएँगी कि महेन्द्र की उनके प्रति इन भावनाओं को उसे लिंडा और अर्चना ने बताया था। महेन्द्र जा चुके हैं और निखिल एक दोस्त खोकर टूट चुके हैं।

रिया जी ने कई बार अपने आप से यह सवाल किया है कि अगर लिंडा और अर्चना सही हैं तो फिर महेन्द्र ने उन्हें यहाँ बुलाया क्यों ? बहुत आत्ममंथन के बाद वे इस निर्णय पर पहुँची हैं कि लिंडा, अर्चना और महेन्द्र सभी सही हो सकते हैं; क्योंकि प्रशंसा और ईर्ष्या अक्सर दोनों साथ-साथ चलती हैं।

रिया जी की आँखों से मोती झरने लगे....... उनकी सबसे बड़ी समस्या है कि सुखद और दुखद क्षणों में उनकी आँखें बहुत व्ययाम करती हैं।

आज अतीत भी ज़िद्दी हो गया है, बार-बार उनके सामने आ खड़ा होता है और घसीट ले जाता है उन्हें युवावस्था के समय में। वे भी आज शायद युवाकाल में विचरण करना चाहती हैं। वर्तमान की वेदना को वह भावनात्मकता का सम्बल दे रहा है।

उन्होंने अतीत का कम्बल फिर से ओढ़ लिया.......

कहानी उनसे अधिक उनके अतीत में रूचि ले रही है। अर्चना के बारे में जानने को बेहद उत्सुक है।

मस्तिष्क के कम्प्यूटर की वह फ़ाइल जो कुछ क्षण पहले वह खोल नहीं पा रही थीं, अचनाक खुल गई और बेतहाशा यादें उनके मन मस्तिष्क को भारी कर रहीं हैं।

नैतिक-अनैतिक के तर्क-वितर्क में वे उलझ गई हैं। कहते हैं जाने वाले की अच्छी बातें याद करते हैं, बुरी नहीं। पर यहाँ तो सुधियों के पन्ने पर पन्ने खुल गए हैं, जिनमें कुछ भी अच्छा नहीं सिमटा हुआ। वे क्या करें? ऐसे में उनका मन उन्हें समर्पण करने को कह रहा है..... उन्होंने स्वयं को ढीला छोड़ दिया है और अच्छी-बुरी, मीठी-कड़वी और कसैली सुधियाँ उभरने लगी हैं.....

बार-बार एक ही बात सोचों में उभर रही है, वे अर्चना को फ़ोन करें या नहीं। अंततः अर्चना की बद् दुआ महेन्द्र को लग गई।

उसने कहा था-'महेन्द्र, तुमने मेरे साथ जो किया। भगवान् उसकी तुम्हें सज़ा देगा। जिस लिंडा के लिए तुमने मुझे ठुकराया वही तेरी मौत का कारण बनेगी।' हे भगवान्! अर्चना की बद् दुआ महेन्द्र को उम्र के इस पड़ाव में आकर लगी।

गीता का दर्शन बहुत याद आ रहा है। हरेक को अपने कर्मों की सज़ा यहीं मिलती है, इसी जन्म में। पर मनुष्य समझता कहाँ है?

महेन्द्र भी कहाँ समझा था? शायद वह समझना चाहता ही नहीं था। अर्चना की गोद में उसका बच्चा था, जब उसने अर्चना को ठुकरा कर लिंडा से शादी कर ली थी।

रिया जी उस अप्रैल की वह दोपहरी भी नहीं भूल सकतीं, जब एम एस सी की परीक्षाओं और प्रेक्टिकल के बाद वे गर्मीं में भी राहत की साँस ले रही थीं। उनकी मौसेरी बहनें अजमेर से आई हुईं थीं। युवा रिया इठलाती, इतराती अपनी मौसेरी बहनों को घुमाने बुद्धा गार्डन ले गई। कई प्रेमी युगल वहाँ घूम रहे थे और कई वृक्षों के नीचे बैठे अपने प्रेम का इज़हार कर रहे थे। एक वृक्ष के नीचे महेन्द्र अर्चना को अपनी बाहों में लपेटे बैठा था। वह दूर से ही पलट गई थी और साथ ही पलट गई थीं उसकी मौसेरी बहनें। उसके बाद कुतुबमीनार, कनॉटप्लेस और कई स्थलों पर उसने उन्हें घूमते देखा। वह अपनी बहनों के साथ होती थी और वे दोनों बाँहों में बाहें डाले दुनिया से बेखबर घूम रहे होते थे।

उस समय सामाजिक परिवेश में संस्कारों की धूप-छाँव युवावर्ग पर थी। पश्चिमी सभ्यता ने अभी इतने पाँव नहीं पसारे थे। कुछ परिवारों को छोड़कर आम जनता भारतीयता की चुनरी ओढ़े थी। संबंधों में महेन्द्र और अर्चना हर बंधन और सीमा तोड़ चुके थे। इससे निखिल और बाकी क्लासमेट्स बेख़बर थे। रिया जानकार भी ख़ामोश हो गई थी। उसकी अंतरात्मा ने समय से पहले बोलने से उसे मना कर दिया था।

सुधियों के समंदर में तैरते हुए रिया जी मुस्कराने लगीं.... युवावस्था की रिया जहाँ चंचल-शोख थी वहीं बेहद डरपोक भी थी।

निखिल का एक पत्र उसके पिता जी के पास आया था.... वह सिहर गई थी। उसके पिता जी अब उसे ज़िंदा नहीं छोड़ेंगे। निखिल ने यह क्या किया ?

निखिल का पत्र पढ़कर पिता जी इतने अधिक प्रभावित हुए कि उन्होंने यह घोषणा कर दी कि वे दोनों की शादी निखिल के परिवार के साथ पक्की करने जा रहे हैं, उन्हें ऐसे ही दामाद की तलाश थी।

डरी सहमी रिया ने पिता जी से चोरी वह पत्र पढ़ा। दोनों का प्रेम मूक था, इज़हार मूक था, इसरार मूक था, अभिव्यक्ति मूक थी, स्वीकृति मूक थी। मूकता की दीवार दोनों में पसरी रही थी, उन्होंने उसे कभी हटाने की कोशिश नहीं की थी। किसी ने पहल नहीं की थी। इस मूकता को निखिल ने कितनी सुघड़ता से, परिपक्वता से सुन्दर शब्दों का बाना पहना कर सजीव किया था, वह पत्र पढ़कर स्वयं हैरान रह गई थी।

कुछ ही दिन बाद वह रिया से निखिल की दुल्हन रिया जी बन कर इस देश में आ गई।

यादों के समंदर में तैरती वे काफी आगे निकल गईं..... इस देश की लहर को छू लिया उन्होंने। कहानी भी उनके साथ तैरती इस देश की लहरों में आ गई।

रिया जी के यहाँ आने के दो तीन दिन बाद महेन्द्र बहुत गुस्से में उनके घर आया और निखिल पर बसर पड़ा-

'तुम बेवकूफ़ थे और उम्र भर रहोगे। तुम्हें 'स्पेशल' बनाना चाहता था, इसलिए इस देश में बुलाया था। पर नहीं इस रिया से शादी करके इसे यहाँ ले आए और देसी के देसी रहे ? अरे अमेरिकन लड़की ढ़ूँढ़ते, अपना स्टैण्डर्ड हाई करते। मिडिल क्लास सोच से उभर नहीं पाए तुम।'

'महेन्द्र, तमीज़ से बात करो। रिया जी मेरी पत्नी हैं।' निखिल शांत स्वर में बोले।

'मुझे तुम्हें बुलाना ही नहीं चाहिए था, तुम नहीं बदल सकते। तुम्हारे अफ़ेयर का मुझे पता था। सोचता था, इतने समझदार तो होगे कि प्यार तो किसी से भी किया जा सकता है, लेकिन शादी सोच-समझ कर की जाती है।' महेन्द्र उसी रौ में बोलता गया, जैसे वह रिया को पसंद नहीं करता और किसी बात की खुंदक निकाल रहा था।

'महेन्द्र, जब हमारा अफ़ेयर था ही नहीं तो तुम्हें कैसे पता चल गया? बुद्धा गार्डन, कुतुबमीनार, कनॉटप्लेस में तो तुम और अर्चना बाहों में बाहें डाले घूमते फिरते थे, और अफ़ेयर हमारा था। मैंने स्वयं अपनी आँखों से देखा था तुम दोनों को। वाह....... महेन्द्र वाह.....क्या पासा फैंका है। चित्त भी मेरी और पट भी मेरी।'रिया जी गुस्से में बोलीं।

'व्हॉट रब्बिश,' कह कर महेन्द्र ने सिगरेट सुलगाया।

'महेन्द्र तुम्हारे लिए प्रेम मज़ाक है और तुमने अर्चना के साथ कॉलेज के दिनों में रज कर मौज-मस्ती की और अब इस देश में आकर उसके किसी भी पत्र का उत्तर नहीं दे रहे। उसने रो-रो कर मुझे वह सब भी बता दिया जो उसे नहीं बताना चाहिए था। हमारे लिए प्रेम इबादत है। हमने अपने मूक प्रेम को नाम दिया है, सम्मान दिया है, परिभाषा दी है और उसे रिश्ते में बाँधा है। हमारे रिश्ते को कभी गन्दी नज़र से नहीं देखना, वरना मैं तुम्हारे चेहरे पर ऐसा करारा थप्पड़ रसीद करूँगी कि तुम आईने में अपनी सूरत नहीं देख पाओगे। मैं तुम्हारे दोहरे चरित्र को वर्षों से जानती हूँ, पर निखिल को कभी कुछ नहीं बताया ताकि तुम दोनों की दोस्ती बनी रहे।' रिया जी का गुस्सा शांत नहीं हुआ था।

उसने बिना शर्मिन्दा हुए निखिल की ओर मुँह करके कहा-'सारे क्लासमेट्स को बुलाने की क्या ज़रूरत थी।'

'कुछेक आएँ हैं। अगर हम आ सकते हैं तो वे क्यों नहीं? जिसमें जितनी प्रतिभा होगी वह उतना आगे निकल जाएगा। परेशान होने की क्या बात है? अच्छा है विदेश में हम सब इकट्ठे हो गए।'निखिल ने उसी तरह शान्त लहजे में कहा।

'इस तरह तो तुम ज़िन्दगी में कुछ नहीं कर पाओगे। कुछ बनने के लिए बहुत कुछ छोड़ना पड़ता है। देखते रहना.... मैं कहाँ पहुँचता हूँ और तुम कहाँ होंगे।' कह कर महेन्द्र उठ कर चला गया था।

महेन्द्र के जाने के बाद निखिल ने हैरानी से पूछा था।' यह महेन्द्र और अर्चना की क्या बात है?'

रिया जी ने पहली बार अपनी आँखों देखा और कानों सुना जो अर्चना ने बताया था, निखिल को बता दिया। उस दिन रिया जी ने निखिल को महेन्द्र के प्रति अपने संदेह, अपनी छठी इन्द्री के अंदेशे बताए जो पूरी एम एस सी में उन्हें महेन्द्र के प्रति रहे।

निखिल महेन्द्र के इन चारित्रिक अवगुणों से परिचित हो गए थे, पर इस देश में उसने उन्हें बुलाया था, उम्र भर वे उस बात को भूल नहीं पाए। और फिर बचपन के दोस्त थे, गुण-अवगुणों के साथ स्वीकार किया था। निखिल ऐसा सोचते हैं।

महेन्द्र ने उस दिन के बाद निखिल और रिया जी से बात नहीं की। हालाँकि तीनों एक ही शहर में रहते थे। यूनिवर्सिटी भी एक थी पर गाइड अलग-अलग थे।

महेन्द्र ने तीन साल बाद और निखिल तथा रिया जी ने चार साल बाद पीऍच.डी समाप्त की। महेन्द्र एक साल पहले आए थे और निखिल और रिया जी बाद में। बाकी सारे कलास्मेट्स अलग-अलग शहरों से पीऍच. डी कर रहे थे।

निखिल और रिया जी पोस्ट डॉक्ट्रेट करने न्यूयार्क चले गए और महेन्द्र शिकागो। इसके एक वर्ष बाद एक दिन अर्चना का बेहद परेशान हालत में फ़ोन आया था-

'रिया महेन्द्र ने मुझे धोखा दिया। वह मुझे छोड़कर लिंडा से शादी कर रहा है।'

'वह तो तुम्हें वर्षों पहले छोड़ आया था। अब क्यों परेशान होना!' रिया जी ने उसे सांत्वना देते हुए कहा था।

'नहीं रिया, वह हर वर्ष भारत आ रहा था। हम लोग मिल रहे थे। देश के कई रमणीक स्थलों पर हम इकट्ठे घूमे। मैं हिन्दू कॉलेज में ही प्रोफ़ेसर लग गई हूँ, अपने ही विभाग में; जहाँ हम लोग पढ़ा करते थे। महेन्द्र ने मुझे घर बनवा दिया है। कार ले दी है। उसका देसी मन अमेरिका में नहीं लग रहा। वह तो लौट आना चाहता है।' अर्चना महेन्द्र का पक्ष लेते हुए बोल रही थी।

'महेन्द्र और देसी मन.... वह लौट आना चाहता है? इज़ इट ए जोक? जिसका मन अपने देस में देसी नहीं था, वह विदेश में आकर देसी कैसे हो गया, बदल कैसे गया? कितना विरोधाभास है। तुझे अजीब नहीं लगा और तुमने विश्वास कर लिया। अर्चना तुम स्वयं को छल रही हो या तुम्हें छले जाने में आनन्द आ रहा है, मैं समझ नहीं पा रही। पहले भी रो-रो कर तुमने अपना दर्द बाँटा था। महेन्द्र तुम्हारी चिट्ठियों का उत्तर नहीं देता था। फिर तुमने उस पर विश्वास कैसे कर लिया? अर्चना, अगर उसे लौटना था तो वह लिंडा से शादी क्यों कर रहा है?' रिया जी ने तंज कसा।

'रिया, मैं जानती हूँ, तुमने मुझे महेन्द्र के प्रति सचेत किया था। मैंने तुम्हारे कहे पर ध्यान नहीं दिया था, उल्टा तुम्हीं पर वार किया था। क्या करती! मैं महेन्द्र पर कॉलेज के दिनों से ही फ़िदा हूँ। मैं उसे अपना सब कुछ मान चुकी हूँ। मुझे उसका प्रेमी के अलावा कोई और रूप नज़र ही नहीं आता। अब तुम्हीं बताओ, दिल से मजबूर प्रेमिका क्या करे ? अब तो मैं उसके बच्चे की माँ भी बनने वाली हूँ।' अर्चना फ़ोन पर बिखर गई।

'अर्चना, यह तूने क्या किया? क्या प्रेम सचमुच इतना अँधा होता है, जो भला-बुरा तक नहीं परख पाता। महेन्द्र को बताया?' रिया जी परेशान हो गई थीं।

'हाँ, मैंने जब उसे बताया तो वह मुझ पर चिल्ला पड़ा। मुझे दोषी ठहराने लगा।'

'क्यों?'

'कहने लगा मैंने उसे धोखा दिया है। यह बच्चा उसका नहीं किसी और का है और यह कह कर उसने मेरा फ़ोन काट दिया। उसके बाद अब फ़ोन नहीं उठा रहा। आज ही सुकेश ने बताया कि वह लिंडा से शादी कर रहा है।'वेदना से लिपटी उसकी आवाज़ टूट रही थी।

'अर्चना, यह है महेन्द्र, गलती स्वयं करेगा और दोष दूसरों पर मढ़ेगा। इसमें हम भी कुछ नहीं कर सकते। महेन्द्र, बहुत बदल गया है, वह हमसे बात नहीं करता। वैसे शादी तो उसने किसी अमेरिकन लड़की से ही करनी थी। खुद को अमेरिकन जो शो करना है। अर्चना महेन्द्र जो है, उसका वह किसी को पता नहीं चलने देता, जो नहीं है, वह स्वयं को प्रस्तुत करता है। उसमें हीन भावना थी, वह जान गया था। चाहता तो उससे निकल सकता था। पर उससे निकलने की बजाय, उसने दूसरा रास्ता अपनाया। वह अपने आपको सुपीरियर और अलग दिखाने के चक्कर में पड़ गया। जिससे वह कुण्ठित होता गया और उसे पता भी नहीं चला। महेन्द्र निखिल की भावनाओं से खेल सकता है, मेरी नज़रों से बच नहीं सकता।' रिया जी बहुत बेबाकी से बोली थीं।

फ़ोन कट गया और उसके बाद कई दिनों तक लाइनें नहीं मिली।

'उन दिनों फ़ोन की भी इतनी सुविधा नहीं होती थी, जितनी आजकल है।' रिया जी स्वयं से ही बात कर रही हैं। सुधियों के समंदर से वे निकलने की कोशिश कर रही हैं, तभी अर्चना का पत्र याद आ गया, जिसमें उसने महेन्द्र को बद् दुआ दी थी और साथ ही यह कहा था कि उसने महेन्द्र से प्यार किया है, वह अपने प्यार की सौग़ात को इस दुनिया में ज़रूर लाएगी और बहुत प्रेम से पालेगी। उसे उसके जीवन के अर्थ मिल गए हैं।

इसके बाद मैंने कहानी को वहाँ से चलने को कहा, पर वह टस से मस नहीं हुई। पता नहीं उसे वहाँ क्या दिखाई दे रहा था, जो मुझे नहीं दिख रहा था। वहीं टिक गई।

इतिहास स्वयं को दोहराता है। इसका उदाहरण उस दिन के दृश्य में मिल गया। कहानी की भी रूचि बढ़ गई। मुझे नहीं पता था, कहानी को कान रस और दृश्य रस दोनों का स्वाद पड़ा हुआ है।

रिया जी और निखिल के दोनों बच्चे घर के बाहर खेल रहे हैं। रिया जी और निखिल घर के कामों को निपटाने में लगे हुए हैं। छुट्टी वाले दिन उनकी यही दिनचर्या होती है। निखिल बगीचे और फूलों की देखभाल करते हैं और रिया जी घर की सफाई करती हैं।

उनका सब-डिवीज़न नया बना है और अभी अधिक परिवार वहाँ आए नहीं, पर जो हैं उनके छोटे बच्चे हैं, निखिल और रिया जी के बच्चों की उम्र के। सभी इकट्ठे बाहर खेल रहे हैं।

थोड़ी देर बाद ही उनके बच्चे पारुल और पुरु भागते हुए अंदर आते हैं और बहुत उत्साहित होकर कहते हैं-

'मॉम, सामने वाले घर में नए पड़ोसी आए हैं। उनके बच्चे हमारी ऐज के हैं और उनके ग्रैंड पा और ग्रैंड माँ भी हैं। '

वे दोनों अपना काम छोड़कर मुख्य दरवाज़ा खोल कर बाहर आते हैं और आने के साथ ही उन्होंने देखा..... सामने के घर के ड्राइवे पर महेन्द्र, लिंडा, उनके बच्चे और महेन्द्र के माँ-बाप खड़े हैं।

निखिल और महेन्द्र का परिवार दिल्ली में आर के पुरम के सरकारी क्वाटरों में उस समय तक आमने-सामने रह रहे थे, जिन दिनों का यह दृश्य है। दोनों के जन्म से पहले की उनकी दोस्ती थी, तभी तो निखिल और महेन्द्र बचपन के साथी हैं।

इस तरह आमने-सामने एक दूसरे को देखकर सब हैरान हैं। कुदरत का करिश्मा है या समय का खेल, अब यहाँ भी दोनों के घर आमने-सामने हो गए हैं। भविष्य के गर्भ में क्या छुपा है, रिया जी को कुछ समझ में नहीं आ रहा। विचार शून्य हो गई हैं। दोनों परिवार निशब्द हैं। महेन्द्र के चेहरे के भाव बदल रहे हैं।

अचानक निखिल उनकी ओर बढ़े और महेन्द्र के माँ-बाप को चाचा जी, चाची जी कह कर उनकी चरण वंदना करते हुए उनसे लिपट गए। तब तक महेन्द्र सँभल गए और उन्होंने निखिल को बाँहों में ले लिया और लिंडा से मिलवाया। रिया जी भी वहाँ चली गई हैं, उन्होंने ने भी उनकी चरण-वंदना की। वर्षों की जमीं बर्फ निखिल की गर्मजोशी, आत्मीयता और सद्भावना की बौछारों से पिघलनी शुरू हो गई।

'आप सभी अपने दूसरे घर में आ जाएँ, अभी तो बैठने की भी जगह नहीं होगी घर में, मूवर्ज़ सामान रख रहे हैं।' रिया जी ने जब बहुत सम्मान से कहा तो सभी उनके घर आ गए। बच्चों की उसी समय से शुरू हुई दोस्ती आज तक कायम है। रिया जी यादों से छूट कहाँ पा रही हैं। उन्हें याद आ रहा है, उनकी और लिंडा की भी तो तभी दोस्ती आरम्भ हुई।

लिंडा उन्हें बता रही है-'यहाँ घर लेना एक संयोग है, अनजाने में हुआ। पर अब लगता है, जो हुआ अच्छा हुआ। दो पुराने साथी मिल गए। दो बिछड़े परिवार मिल गए। उन दोनों ने ट्राईएंगल पार्क की एक दवाइयों की कम्पनी में नौकरी ज्वॉइन की है और वे इस शहर में कुछ दिन पहले ही आए हैं।'

लिंडा हिन्दी में बात कर रही है, रिया जी लिंडा को वह भाषा बोलते देख रही हैं, जिसे बोलने से महेन्द्र का स्तर घटता था। दिल्ली यूनिवर्सिटी में वह सिर्फ़ अंग्रेज़ी बोलता था। वह हिन्दी को पढ़े-लिखों की भाषा नहीं मानता था। मॉडर्न कपड़े पहनने वाले और अंग्रेज़ी बोलने वाले लोग ही उसे पसंद थे। तभी रिया की उसकी बनती नहीं थी। उसे महेन्द्र कृत्रिम लगता था और महेन्द्र को वह हिन्दी पट्टी वाली बैकवर्ड लड़की लगती थी। कॉलेज के दिनों में दोनों की एक दूसरे के प्रति मौन अस्वीकृति थी। कहाँ गई महेन्द्र की अंग्रेज़ियत और अमेरिकेनिज़्म। लिंडा दिखने में भी डोसाइल, घरेलू सी लगती है। महेन्द्र को तो डोसाइल लड़कियाँ-महिलाएँ पसंद नहीं थीं।

रिया जी उहापोह में हैं, महेन्द्र ने कितने मुखौटे चढ़ाए हुए हैं,कितने नकाब ओढ़े हुए हैं।

महेन्द्र और निखिल के माँ-बाप पंचतत्व में विलीन होने से पहले हर वर्ष भारत से आते रहे हैं और दोनों परिवार मिलकर उनकी सेवा करते रहे हैं।

'रिया जी....।' निखिल की कांपती आवाज़ ने उनका ध्यान तोड़ा। इसका मतलब उदय, महेन्द्र और लिंडा के बड़े बेटे से उनका फ़ोन संवाद समाप्त हो गया है। वे अतीत के समंदर से तट पर आ गईं। सब यादें झाड़ दीं।

'रिया जी, यहाँ तो कहानी कुछ और निकली।' कहानी की जिज्ञासा बढ़ गई। लगा दिए उसने अपने कान उनकी बातें सुनने के लिए।

'क्यों क्या हुआ?'

'उदय बता रहा था, लिंडा घोर निराशा में थी। उसका इलाज चल रहा था। रिया जी आपने लिंडा के बारे में सही कहा था। पर महेन्द्र ने उसे सख्त हिदायत थी कि उसकी बीमारी का हमें पता नहीं चलना चाहिए।'

'पर क्यों? हम उसकी मदद करते।'

'मदद करते तो उसे वह सब बताना पड़ता, जो महेन्द्र हम सबसे छुपाए हुए थे। उसके राज़ खुल जाते। साला झूठा, फ़रेबी, धोखेबाज़, चालबाज़, भीतरघाती।'

'निखिल, महेन्द्र इस दुनिया से जा चुका है। आप उसे इतनी गालियाँ क्यों निकाल रहे हैं।'

'अभी उसका दाह-संस्कार नहीं हुआ। उसकी आत्मा को मुक्ति नहीं मिली है। मैं चाहता हूँ जाते-जाते सुन ले। कितने चेहरे लगा कर घूम रहा था। सबका मुझे पता चल गया है। '

'निखिल अब इस उम्र में आकर मैंने महसूस किया है, हम सब कितने रूप धरते हैं, कितना अभिनय करते हैं। सब कुछ जानते हुए भी मैं महेन्द्र के साथ निभा गई। जानते हैं क्यों? आप की ख़ातिर, परिवारों की ख़ातिर, बच्चों की ख़ातिर। यह भी तो एक अभिनय था। हाँ, यह अभिनय मैंने दिल से किया, महेन्द्र की तरह खोट नहीं रखी। ' रिया जी उन्हें शान्त करना चाहती हैं। वे बहुत उत्तेजित हैं।

'अँग्रेज़ बना फिरता था। अंदर का हिंदुस्तानी मन नहीं बदल पाया। सोच नहीं बदल पाया। संस्कार नहीं बदल पाया। लिंडा से शादी की उसके खुले स्वभाव और गोरी चमड़ी के लिए। दुनिया को बताने के लिए कि अमेरिकन बीवी है उसकी। उम्र भर उसे भीतर ही भीतर भारतीयता के रंग में रंगता रहा और वह प्रेम दीवानी ढलती रही उसके रंग में, बदलती रही अपने आप को। महेन्द्र ने मार डाला उसकी होंद को, कुचल डाला उसके स्वाभिमान को। उसे बदलने के फ़ितूर में उसने लिंडा के अस्तित्व तक को छीज डाला।'

'निखिल, वह अपने देश की गोरी लड़की से शादी करके सुख से रह सकता था।'

'रिया जी, महेन्द्र की दोहरी मानसिकता और दोहरे चरित्रों की अलग-अलग मांगें थीं। लिंडा से शादी करके उसके एक अहम् की पुष्टि हुई, तो उसे भारतीयता के रंग में रंग कर दूसरे अहम् की तुष्टि हुई। पता नहीं क्या-क्या भ्रम पाले हुए था। कुण्ठाओं से ग्रसित हो गया था। बस उम्र भर यही सोचता रहा, लोग कहें, देखो महेंद्र कितना स्मार्ट है! अमेरिकन बीवी है पर उसे कितना कंट्रोल में रखता है। उसे अपने रंग में रंग लिया। लिंडा को बीमार कर दिया.....। खुद को भी धोखा देता रहा और मुझे भी छला। ' निखिल बहुत आवेश में हैं।

'निखिल आप कहना क्या चाहते हैं? सीधे मुद्दे पर आएँ। मैं कुछ समझ नहीं पाई। '

'रिया जी, उसने मुझे दोस्ती में नहीं इस देश में बुलाया था, आप से दूर करने के लिए बुलाया था। वह आप से चिढ़ता था। आपकी दृढ़ता से घबराता था। आपकी दृष्टि ने उसे अंदर-बाहर से भाँप लिया था। वह जान गया था, आप उसके दोहरे व्यक्तित्व को पहचान गई हैं। आपकी शारीरिक भाषा, व्यवहार और संकेत पल-पल उसे इस बात का एहसास दिलाते थे। उससे बर्दाश्त नहीं होता था, उसके अहम् पर थप्पड़ पड़ते थे। जिस शोवनिस्ट के पीछे सुन्दर लड़कियों की कतार थी, एक साधारण सी लड़की उसकी परवाह नहीं करती थी, पता है इससे उसे कितना कॉम्प्लेक्स आया। उसमें बदले की भावना आ गई। मुझे बुलाना आप से बदला लेना था।'

'तभी वह हमसे हमारी शादी के बाद आकर लड़ा था। और उसके बाद कई सालों तक हमसे बात नहीं की।'

'मैं शादी करवाने तो भारत गया नहीं था। पर आनन-फानन में शादी हो गई। उसे बता भी नहीं पाया। प्यार मूक था तो शादी भी मूक हुई। दो परिवारों के साथ सादा सा विवाह। उसे जब पता चला तो बहुत बड़ा झटका लगा उसे। '

'अगर इतनी चिढ़ थी तो वर्षों हमारे घर के सामने क्यों रहता रहा। किसी भी बहाने से घर बदल सकता था।'

'बड़ी बार बदलना चाहा, नहीं बदल सका, बच्चों और लिंडा का विरोध था। वे इस घर को छोड़ना नहीं चाहते थे। उनका बचपन जुड़ा है इस घर से।'

'बच्चों के कॉलेज जाने के बाद बदल सकता था।'

'बच्चे इस घर को बेचने के लिए अभी तक नहीं मान रहे। वह उन्हें कारण नहीं बता सका, असली महेन्द्र सामने आ जाता। जो किसी को दिखता नहीं। वह सोचता था, आपसे और मुझे से वह आगे निकल जाएगा और फिर हमें एहसास दिलवाएगा, देखा! कहा था कुछ नहीं कर पाओगे। नॉउ लुक एट मीं, मैं कहाँ पहुँच गया। वह मुझे यह भी महसूस करवाना चाहता था, मैंने आपसे शादी करके गलती की है। पर ऐसा हो नहीं सका। वह और लिंडा रिसर्च स्पेशलिस्ट पद से आगे नहीं बढ़ पाए और मैं अपनी कम्पनी का सी ई ओ बन गया और आप यूनिवर्सिटी में फुल प्रोफ़ेसर बन गईं। वह ऊपर से ख़ुशी ज़ाहिर करता था, पर भीतर ही भीतर जलता-भुनता रहता था। हमारे प्यार, तालमेल, सामंजस्य और दोस्ती को देखकर वह कुढ़ता रहता था। उसकी ईर्ष्या उसे घुन की तरह खा रही थी। दरअसल इलाज की उसे ज़रूरत थी। वह बीमार था। कन्ट्रोल फ़्रीक, पुरुषसत्ता से पीड़ित था। '

'मैं जानती हूँ, यह सब आपको उदय ने बताया है पर उसे यह सब कैसे पता चला?'

'महेन्द्र चोरी-छुपे डायरी लिखता था और उन्हें गुप्त स्थान पर रखता था।'

'क्या महेन्द्र डायरी भी लिखता था? वैरी स्ट्रेंज।'

'एक दिन वे डायरियाँ लिंडा के हाथ लग गईं। उसने पढ़ीं और उदय से बात की। वह पिछले एक साल से उदय को सब बता रही थी। अर्चना का भी उसे उन्हीं डायरियों से पता चला।'

'ओफ़्फ़, पुअर लिंडा। ' रिया जी ने गहरी साँस ली।

'इस गधे के साथ इतनी सुलझी हुई महिला रह रही थी, इसने उसकी कदर नहीं की। लिंडा ने अर्चना को फ़ोन करके कहा था कि वह उसकी बेटी का हक़ दिलवाएगी। अर्चना ने मना कर दिया और कहा कि उसकी बेटी डॉक्टर बन गई है, उसे कुछ नहीं चाहिए। उसकी बेटी अपने बाप से कोई रिश्ता नहीं रखना चाहती। लिंडा महेन्द्र से तलाक चाहती थी। पर वह देना नहीं चाहता था।' यह कह कर निखिल सोफे पर ढीले होकर बैठ गए।

'वह सोचता होगा, तलाक देगा तो लोग कहेंगे महेन्द्र असफल प्रेमी है, असफल पति है। अपनी अमेरिकन बीवी सँभाल नहीं पाया। बस लोग उसके बारे में क्या कहते हैं?, लोग क्या कहेंगे?, लोग उसके बारे में यह कहें , वह कहें, ऐसा सोचें , वैसा सोचें। फलाँ को प्रभावित करो, ढिमकां को यूँ कहो। इन्हीं कुण्ठाओं में, इन्हीं ग्रंथियों में, सारी उम्र गुज़ार दी। सच्ची, साफ़- सुथरी ज़िंदगी जी ही नहीं पाया और बेचारी लिंडा ने स्वयं को भूल कर उसकी ख़ातिर दूसरे कल्चर में पूरी तरह अपने आपको ढाल दिया था। उसकी क़ुर्बानी और अच्छाई का उसे क्या सिला मिला! जेल की दीवारें......।' इसके साथ ही रिया जी की सिसकी निकली......

'रिया जी, उदय और मीनल उसकी बहन भी फ़ोन पर आ गई थी, दोनों इस बात पर रो रहे थे, पूरे एक साल से लिंडा उन्हें सब कुछ बता रही थी। परसों रात ही लिंडा ने उन्हें बताया था कि महेन्द्र अपना बुढ़ापा अपने देश में बिताना चाहता था और लिंडा जाना नहीं चाहती थी, वह यहाँ रह कर बच्चों के साथ बूढ़ा होना चाहती थी। दोनों में तनाव इतना बढ़ गया था कि लिंडा ने तलाक के लिए वकील से बात कर ली थी पर महेन्द्र ने उसे साफ़ कह दिया था वह उसे तलाक नहीं देगा और उसे उसके साथ भारत जाना होगा, उसे अपना पत्नी धर्म निभाना ही पड़ेगा। '

'हे भगवान् ! बच्चे यहाँ और वह भारत रहना चाहता था। सारी उम्र तो यहाँ बिता दी। अब उसका वहाँ है भी कौन ? सारा परिवार तो इस देश में है।'

'बच्चों ने उससे बात की और वह यहीं रहने के लिए मान भी गया। वह उनके साथ ऐसा ही व्यवहार करता था। उनकी बात कभी नहीं टालता था। '

'लगता है उसके बाद उसने लिंडा को बेहद मानसिक संताप दिया होगा, जो उसने पिस्तौल उठा ली। काश! लिंडा ने महेन्द्र को नज़रअंदाज़ किया होता! हमें अपनी पीड़ा बताई होती। अपना दर्द साझा किया होता तो अंत यूँ नहीं होता....मैं तो लिंडा की दोस्त थी.....।' वे सोफे के दूसरे कोने में अपनी रुलाई को काबू में करती बैठ गईं।

कहानी की आँख से एक क़तरा गिरा और वह वापिस मेरी कलम पर आ कर बैठ गई......

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