Vivek aur 41 Minutes - 4 in Hindi Detective stories by S Bhagyam Sharma books and stories PDF | विवेक और 41 मिनिट - 4

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विवेक और 41 मिनिट - 4

विवेक और 41 मिनिट..........

तमिल लेखक राजेश कुमार

हिन्दी अनुवादक एस. भाग्यम शर्मा

संपादक रितु वर्मा

अध्याय 4

शोखरम |

विवेक बाईपास रोड में तेजी से कार को दौड़ाता हुआ सुनसान जगह जहां कुछ कांटेदार झाड़ियाँ थी उसकी ओर गया |

“बॉस..........” विष्णु ने बुलाया |

“हाँ...............”

“कहाँ जा रहे हैं............... क्यों जा रहे हैं मुझे बताना नहीं चाहिए क्या............. आजकल आप बहुत ही रहस्यमय योगी हो गए हो |”

“FIRE ARMS” को पढ़ लिया............?”

“पढ़ लिया..............”

“ठीक है सुनसान जगह के बाईं ओर थोड़ा मुड कर देखो...........”

विष्णु ने मुड़ कर देखा |

दो सौ मीटर की दूरी पर एक एस्बेस्टेस की छत दिखाई दी, पास में दो पुलिस पेट्रोलिंग कार थी, एक पुलिस जीप, एक सफ़ेद एम्बेसडर कार दिखी |

“क्या बात है बॉस.............?”

“केस................! कमिश्नर ने एक घंटे के पहले ही मुझे फोन करके बताया था |”

“मर्डर..............?”

“फिर पिक पॉकेट के केस के लिए इतनी दूर आएंगे क्या ?”

“मर्डर हुआ वह आदमी या औरत बॉस..........?”

“यही तो असमंजस है |”

“ऐसा बोले तो नो |”

“अरे.............”

“सॉरी बॉस..........”

कार उस भीड़ की तरफ गई | पास जाते जाते एस्बेस्टस की छत के पास गड़ा हुआ एक बड़ा बोर्ड दिखाई दिया |

“टू डे सोल्यूशन्स”

दी कम्प्यूटर प्यूप्ल् |

बोर्ड के पास जाकर कार खड़ी हुई | विवेक और विष्णु कार से उतर ही रहेथे तब ही एक इंस्पेक्टर ने आकर सेल्यूट के साथ उनका स्वागत किया |

“कमिश्नर आपका इंतजार कर रहे हैं साहब |”

विवेक इंस्पेक्टर के पीछे ही चल दिया | चुपचाप खडे़ लोगों के बीच खड़े होकर किसी को भी सुनाई न दे उस धीमी आवाज में बात कर रहे पराकुशम विवेक को देख कर मोबाइल को बंद कर जेब में डाल कर उनके सामने आए |

“आइएगा………………. विवेक.............”

“सॉरी सर.............. रास्ते में थोड़ा ट्रेफिक........ इसलिए लेट............”

“नो प्रोब्लम.............. प्लीज कम.........” कमिश्नर पराकुशम बात करते हुए चलते रहे |

“टुडे सेल्यूशन्स बताने वाले ये कम्प्यूटर कंपनी टाइटल को देखेँ जैसे एक बड़े कम्प्यूटर नगर बसाने जैसा काम शुरू किया ही था | एक जगह नींव खोदते समय स्कल् (खोपड़ी) मिला |”

“सिर्फ स्कल् ही मिला............?”

“यस............! स्कल् के अंदर पाइंज बंदूक जिसे छूओ तो ऐसा ही है............. उसको अभी तक बाहर नहीं निकाला है | आप आकर इसे देखोगे उसके बाद में ही इसे रिमूव करेंगे ऐसा मैंने बोल दिया........! प्लीज कम दिस साइड विवेक..............”

कमिश्नर ने जहां नींव की खुदाई हुई गड्ढे के बीच चलकर जाकर एक मिट्टी के ढेर के ऊपर रखे खोपड़ी के कंकाल को निकाल कर दिखाया |

विवेक ने उस खोपड़ी के कंकाल को लेकर देखा | ऐसा लगा दांत दिखाकर हंस रहे उस खोपड़ी के कंकाल में मांस का टुकड़ा भी नहीं होने से बिल्कुल साफ था | खोपड़ी के पीछे की तरफ हल्की दरार दिखी, उस दरार को छूओ तो अंदर की तरफ अपना स्वरूप दिखाया |

विवेक पास खड़े इंस्पेक्टर से पूछा “ये स्कल् को खोद कर निकालने वाली जगह कौन सी है..............?”

इंस्पेक्टर पास के गड्ढे को दिखाया तो विवेक ने वहां झुक कर देखा |

मिट्टी को निकालने के बाद वह गड्ढा चार फीट अंदर था |

“इस खोपड़ी के सिवाए कोई और हड्डी नहीं मिली क्या ?”

“नहीं मिली साहब”

“ये कितने गहराई पर मिली...........?”

“दो फीट के खोदते ही ये मिल गया साहब फिर दो फीट और खोदकर देखा | कुछ नहीं मिला |”

“डॉक्टर रेयन् को खबर कर दिया क्या ?”

“दे दिया साहब | टॉक सिसर भी आ रहे हैं |”

“स्पाट फोरेंसिक (मौके पर फोरेंसिक) रिपोर्ट क्या है ?”

“इस खोपड़ी को यहाँ गाड़े एक साल हो गया होगा | चीफ एफ ने कह दिया साहब | यह खोपड़ी आदमी की है या महिला की | मालूम करने के लिए लेब में ले जाकर टेस्ट करेंगे तो ही पता चलेगा ऐसा बोला |”

इंस्पेक्टर के बोलते समय ही चीफ फोरेंसिक ऑफिसर विवेक के पास आए |

“साहब.......... इस खोपड़ी में से गोली को निकाल कर देखें क्या ?”

“प्लीज |”

विवेक के हाथ में जो खोपड़ी का कंकाल था उसे चीफ फोरेंसिक ऑफिसर को दिया..... वो उसे ले एक ओर चले गए |

एक वैन दिखाई दी | विष्णु पीठ के पीछे बोला “बॉस टॉक आ गया..........”

“विष्णु..........” विवेक ने धीरे से बुलाया |

“बॉस..........”

“सीन ऑफ क्राइम देखो...............”

“बॉस............! ये एक साल पहले दफनाया है | सीन ऑफ क्राइम कुछ नहीं पता चलेगा बॉस.........”

“अच्छी तरह देखो..........! मिलेगा | मैंने एक बात नोट कर लिया |”

“नोट कर लिया क्या............? वह क्या ?”

“सिर पर लाल गमछा बांधा है उसे देख.........”

“हाँ.............! इस गड्ढे को खोदने वाला आदमी |”

“वह ठीक नहीं |”

“कैसे बोल रहे हो बॉस ?”

“उसकी कोई गलती है | पसीने से भीग रहा है | पुलिस अधिकारियों को देख बड़े मुश्किल से थूक को निगल रहा है | सीधे हाथ को बार-बार अपने कमर पर ले जा रहा है |”

“अरे.......... हाँ........... बॉस...........”

जा उसकी खबर ले................”

विष्णु विवेक से दूर जाकर उस पेड़ के नीचे खड़े कुली की तरफ गया | उसके पास खड़ा हो कहीं और देख कर बात करना शुरू किया |

“तुम्हारा नाम क्या है.............?”

कुली ने अपने सिर पर बांधे लाल गमछे को स्लो मोशन में उतार कर हाथ में लेकर “मारअप्पन साहब” बोला |

“गड्ढे को खोदने वाले तुम ही थे ना ?”

“हाँ............... जी.......... हाँ..............”

“खोपड़ी के कंकाल को सबसे पहले देख कर सूचना देने वाले तुम ही हो.................?”

“हाँ............ सा... हब |”

“तुम कभी पुलिस स्टेशन गए हो क्या ?”

“न............ नहीं............. साहब...........”

“ठीक है.......... चलो............. चलते है...........”

“क्यों........... साहब..............|”

“तुमने क्या गलती की है मुझे पता है | औरों को तुम धोखा देसकते हो मुझे नहीं |”

“सा........... साहब..........”

“तुम्हारे चेहरे पर दो आँखें है | पुलिस वालों के तो पूरे शरीर पर आँखें है…………. चलो.............. स्टेशन जा कर बात करते है |”

“नहीं…………… नहीं साहब.................. मैं गड्ढे में से जो निकाला उसे दे देता हूँ साहब..........” दोनों हाथों को सिर के ऊपर ले जाकर माफी मांग मारअप्पन ने अपने कमर की धोती को ढीला कर उसे बाहर निकाला |

***