फूल खिला है उस महक से जान लेते हैं।
कदमों की आहट से कहाँ अन्जान रहते हैं।
जबसे तेरा अक्स दिल में उतर आया है ,
आंखें बंद हो तो भी तुम्हें पहचान लेते हैं।
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तुमने देखा इस तरह शरमा गए हम ।
ज़रा नज़दीक आए तो घबरा गए हम ।
सोचा था इस प्यार का राज़ न खुले,
नहीं मालूम कैसे चर्चा में आ गए हम।
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तुम्हारे पास सुंदरता का खज़ाना है।
खिलते फूल सा तेरा मुस्कुराना है।
हाथों में हाथ ज़रा थाम कर देखो,
पूरी जिंदगी तुम्हारे साथ बिताना है।
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फूलों सी कोमल, तितली सी चंचल।
तुम्हारे पास है एक भोला सा दिल।
ठंड़े झोंके का एहसास हो जाता है,
जब गुज़ारतें हैं तुम्हारे साथ हर पल।
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जिंदगी में उजाला बन गए सितारों का।
मैं महकने लगी ज्यों फूल हो बहारों का।
अब ढूबने का ज़रा भी डर नहीं है मुझे,
यकीं है कश्ती साथ पा लेगी किनारों का ।
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तुम्हें देखने जागे रहतें हैं सितारे।
मिलने बेचैन रहा करतें हैं नज़ारे।
हसरत है पास से छू लूं मैं भी तुम्हें,
झांक लूं आंखों में ख्याब तुम्हारे।
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आज मन ज्यादा खिला - खिला है।
प्रियतम का सामीप्य जो मिला है।
मयूर की तरह नाचना चाहतीं हूँ,
बारिश में भीग जाना चाहतीं हूँ।
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बता नहीं पा रहे हैं दिल का हाल।
हरदम बसा रहता है उनका ख्याल।
आंखों में झांकता है अजीब सा नशा,
खिलता है चेहरा, हो जाते गाल लाल।
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समन्दर की तरह फैला हुआ प्यार है।
हमेशा मेरी नज़रें करती तेरा दीदार है।
तुझमें मैं समाया , मुझमें तू बसी हुई है,
हम दोनों में सिमट गया सारा संसार है।
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दिल को ज़ख्मी करके तू दूरी न बना।
न आने का बहाना मजबूरी में न बना।
जो कहना था वो एक बार कह तो देती,
चुप रह कर मेरी जिंदगीें अधूरी न बना।
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सुनहरी शाम रंग भरने लगी है।
जिंदगी खूबसूरत लगने लगी है।
इसी रास्ते से ही वो आने वाले हैं,
चाह दिल में करवट लेने लगीं हैं।
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बूंदे खिड़की से फिसली , तुम याद आए।
बारिश के बाद धूप खिली, तुम याद आए।
पवन फूल से कानों में कुछ कहने लगीं,
नभ में चमक उठी बिजली, तुम याद आए।
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बैठे हैं हम सोलह सिंगार करके।
थक गए हैं कबसे इंतज़ार करके।
रात भी रोशनी से जगमगा गई है,
ख्याल चुप हो गए पुकार करके।
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गीली रेत पर कदमों के निशानों से।
तुम्हे ढूँढ ही लेंगे कहीं दूर जाने से।
मै भी हवा बनकर तुम्हारे साथ हूँ,
छोड़ नहीं सकते किसी बहाने से।
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तुम्हारी आंखों में जब भी देखा है।
काजल से भरी चमकती रेखा है ।
भोलेपन और सादगी का मेल हो,
दिल ऐसी खुमारी से तो बहका है।
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नदिया तट पर गुमसुम बैठे शाम घिर आई ।
अब जल्दी से दर्शन दे दो मेरे कृष्ण-कन्हाई ।
तुम बिन चैन नहीं एक पल जबसे प्रीत लगाई,
जल में खुद को देखूं तो दिखे तुम्हारी परछाईं ।
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खामोश हो गए क्यों यूं तस्वीर की तरह ।
चुभने लगे थे पल घाव की पीर की तरह।
अब जो कुछ बुरा हुआ है उसे जाने भी दो,
इम्तिहान मत लेना हमारा धीर की तरह ।
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दर्शन होंगे पिया के जब वह घूंघट खोलेगी।
होठों पर कंपन होगा बस आंखों से बोलेगी।
नया जुड़ा है रिश्ता मन में है संकोच भरा,
समय लगेगा थोड़ा फिर वह उनकी हो लेगी।
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अब जाकर उदासी का सबब जान पाया।
तुमसे बात नहीं होने से था मन घबराया।
पल-पल की बेचैनी ने दिल को तोड़ दिया,
मैं नहीं जानता कि मैने उसे कैसे समझाया।
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आज जब मैंने कलम हाथ में थामीं है।
कागज़ पर हाल - ए - दिल बयानी है।
तुम्हारे इंतज़ार में पल साल से लगते,
शमा की तरह से जलती जिंदगानी है।
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सांसों में बसे हो इसका दीदार करो।
बातों के तंज से दिल पे वार न करो।
मेरे लिए चाहत को क्यों बताते नहीं,
इश्क करते हो तो मुझसे इकरार करो।
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ये सच सबसे छुपाया न जाएगा।
आखिरकार सबके सामने आएगा।
मेरी आंखों के आइने में जब बसे हो,
तुम्हे ंं वहां अपना चेहरा नज़र आएगा।
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आज बारिश की फुहारें बरसायीं।
तुम्हारी यादें संग संग लेकर आयीं।
पिछले सावन में तुम मेरे करीब थे,
अबकी इस मौसम में उदासी छायी।
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खनकती हंसी धड़कने ंं बढ़ा देती है।
झील सी आंखें ख्याब सजा देती है।
मैं खो जाता हूँ जाने किस दुनिया में,
जब वो मुझे आवाज़ देकर बुलाती है।
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कितने खूबसूरत हैं सुबह के नज़ारे।
हवा ठंडक बिखेरतें नदी के किनारे।
सपनों के घरोंदे बनाते मुस्कुराते हुए,
चले जा रहे हैं बाहों में बाहों में डाले।
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कितने दिन हो गए मुलाकात किए।
रास्ते में बैठें हैं जलाए दिल के दिए।
तुम्हारी आवाज़ सुनने को तरसते हैं,
बादल भी तो एक दिन तो बरसते हैं।
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अकेलेपन के हो मीत हो तुम धवल कपोत।
मूक होकर भी समझ पाते हो मन की चोट।
अब जब प्रियतम चले गए हैं रहने को परदेस।
बहुत दिन बीते उनका आया नहीं कोई संदेस।
मन है मैं उनसे जाकर मिल कर आ जाती,
तुम ही उड़कर पहुंचा दो उन तक मेरी पाती।
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स्वर्णिम आभा से रंगा है गगन।
जाने क्यों छेड़ रही है मुझे पवन।
नदिया किनारे बैठी हुई गुमसुम।
जबसे ह्रदय बसाए हैं प्रियतम।
जल में जब भी खुद को देखती,
सिर्फ दिखता है तुम्हारा प्रतिबिंब।
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सामने आते हैं मगर पास नहीं।
थोड़ी सी दूरी भी मुझे रास नहीं।
मन में जो है वो अब कह डालो,
मेरी बेचैनी का तुम्हें एहसास नहीं।
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अंधेरे में जो परछाईं उभरती है।
तेरी सूरत से मिलती जुलती है।
गर रोशनी दूर से चल कर ठहरे,
मेरी परछाईं भी तेरे संग चलती है।
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कोई पल जाता नहीं याद के बिना ।
कमी महसूस होती है साथ के बिना।
मैं जी नहीं सकती तुमसे दूर होकर,
फूल खिल नहीं सकता शाख के बिना।
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उजाला बन जाओ सितारों का।
फूल बन महक जाओ बहारों का।
किश्ती को किनारे पर ले जाना है,
बहाव कितना ही तेज हो धारों का।
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ज़रा अपनी आप से मुलाकात कर लूं।
कबसे बात नहीं हुई, थोड़ी बात कर लूं।
हर दिन ज़माने भर की उलझने ढोना है,
आज फुर्सत में बैठ, सारे ज़ज़्बात पढ़ लूं
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बहुत कुछ कहना चाहते थे तुमसे।
पर सामने देखकर हो गए चुप से।
मेरा मौन अब मेरी जु़बान बन गयी,
वो शब्द दिल में बैठे कहीं छुप के ।
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रचियता
डॉ अमृता शुक्ला
सी /9 /4, हर्षित रत्ना
गुरूदा्रे के पीछे, अग्रसेन भवन के पास
टाटीबंध रायपुर छत्तीसगढ़
492099ओ