Masum Sapne in Hindi Philosophy by Pallavi Saxena books and stories PDF | मासूम सपने

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मासूम सपने

सरकारी स्कूल के बच्चों को मोबाइल के लिए लड़ते देख विज्ञान के मास्टर जी बोले चलो बच्चों आज हम विज्ञान के विषयों के बारे में चर्चा करेंगे। आज उसके अलावा और कुछ पढ़ाई नही होगी। यह सुनकर कक्षा के सभी छात्र बहुत खुश हुए कि चलो बाकी विषयों से तो निजात मिली। इन बच्चों में वह दो बच्चे भी शामिल थे जो अभी कुछ देर पहले मोबाइल के लिए आपस में लड़ रहे थे। मास्टर जी सभी बच्चों को साथ लेकर स्कूल के आंगन में पहुंचे और बोला आज यहीं होगी तुम सब की क्लास, सभी बच्चे अपनी अपनी जगह दरी पर बैठ गए।
अब मास्टर जी ने बच्चों से पूछना आरम्भ किया। अच्छा बच्चों यह बताओ कि तुम विज्ञान और उसके चमत्कारों के विषय में क्या-क्या जानते हो...? बच्चों ने आज तक जो कुछ किताब में पढ़ा था वह सब बता दिया कि बिजली कैसे बनी फिर बिजली के माध्यम से किन किन चीजों का अविष्कार हुआ इत्यादि। फिर मास्टर जी ने कहा अच्छा ठीक है, आज में तुम्हें कुछ बाते बताऊंगा साथ-साथ कुछ प्रश्न भी पूछुंगा तुम सब अपनी-अपनी समझ अनुसार उसका उत्तर देना। डरने की कोई बात नही है। मैं जवाब गलत होने पर भी किसी को कोई सजा नही दूंगा आज तुम लोगों को सजा भी माफ...बच्चों के चेहरे खिल गये।
हाँ तो बच्चों, बात ऐसी है कि यूँ तो विज्ञान ने आज बहुत तरक्की करली है। जैसा कि तुम सब जानते ही हो कि आज हम धरती से मंगल तक पहुंच गए हैं, जो कि हमारे लिए बहुत गर्व की बात है। लेकिन आज में पुराने जमाने में जाना चाहता हूँ। जब मैं बच्चा था तब मेरे जीवन में टीवी का आना मेरे लिए बहुत बड़ी उपलब्धि थी। टीवी के माध्यम से मैंने जाना कि हम जिन नेता, अभिनेता को करीब से देखना, सुनना चाहते है, उनके जलसों में शामिल होना चाहते है। उनको अब घर बैठे टीवी के माध्यम से देखना, सुनना कितना आसान हो गया। जिसके जरिये हम अपने उन पसंद दीदा इंसानो को अब सुनने के साथ-साथ देख भी सकते थे। क्योंकि सुन तो हम उन्हें रेडियो पर भी लिया करते थे। लेकिन टीवी आने से अब देख भी सकते थे। पर हम ठहरे इंसान लालच करना हमारा प्राकृतिक स्वभाव है। सो अब टीवी आने के बाद हमारे मन में एक लालच ने जन्म लिया कि भईया टीवी तो ठीक है मगर इसमें यदि रंग भी दिखाई दे सकते तो कितना अच्छा होता। यह श्वेत श्याम में तो पता ही नही चलता कि किसने कौन सा रंग पहना हुआ है। यदि रंग होते तो मधुबाला की खूबसूरती में और चांद लग जाते और दिलीपकुमार के अंदाज के तो क्या कहने मजा ही आजाता कसम से...तो उस वक्त हमें ऐसा लगा कि मानो ऊपर वाले ने हमारी सुनली और कुछ ही समय बाद हमारे जीवन में रंगीन टीवी का आगमन हुआ। जिस पर रामायण और महाभारत जैसे धारावाहिकों ने हर आयु वर्ग का मन मोह लिया। फिर आया दूरसंचार, दूरसंचार? यह क्या होता है मास्टर जी, एक छात्र ने बड़ी उत्सुकता के साथ पूछा तो मास्टर जी हंसते हुए बोले दूरसंचार अर्थात (टेलीफोन) तो छात्र बोला परन्तु मास्टरजी टेलीफोन तो अंग्रजों के जमाने में ही निजात हो गया था ना ? फिर आपको इस विषय में इतनी देर से जानकारी क्यूँ मिली। हाँ यूँ तो टेलीफोन बहुत पहले ही आ गया था। लेकिन तब घर घर में नही हुआ करता था ना, कुछ खास जगहों पर या फिर बड़े लोगों के घर में ही होता था, टीवी की तरह। टीवी भी एकदम से सभी के घरों में नही आया था। ऐसी सब चीजें अधिकतर पैसे वाले लोगों के घरों में पहले आती है। फिर वहां से हम तुम जैसी आम जनता को लालच लगता था काश हमारे घर में भी यह सब होता। फिर हम भी पैसे बचा-बचाकर उस चीज को अपनी जीवन शैली में ले आते थे। फिर वही चीज हमारे रोजमर्रा की जिंदगी का हिस्सा बन जाती थी। जिसके बगैर रहना हमारे लिए नाकाबिले बरदाश हो जाता था। जैसे आजकल तुम लोगों के जीवन में यह मोबाइल फोन।
खैर मैं बात कर रहा था दूरसंचार की ऐसा ही धीरे-धीरे दूरसंचार भी मेरी जिंदगी में आया। पहले पड़ोसी के घर फिर होस्टल में बात करने के लिए घंटो-घंटो का इंतज़ार लंबी कतार, तब कहीं जाकर बात हो पाती थी किसी से , लेकिन हाँ दूरसंचार ने अब हमारे दूर बैठे नाते रिश्तेदारों के और हमारे बीच की दूरी को काफी हदतक कम कर दिया था। अब पहले की तरह तार, और पत्र व्यवहार का दिनों दिनों इंतजार करने की ज़रूरत नही पड़ती थी। हालाँकि उन दिनों पत्र व्यवहार का भी अपना ही मजा हुआ करता था। लेकिन सिर्फ तब जब बात खुशी की हो, पर जब कोई दुःख का संदेश होता तो बहुत अखरता था। इस जटिल समस्या का ठोस हल थी यह दूरसंचार की सेवा।
लेकिन जैसा के मैंने कहा इतने में भी इंसान संतुष्ट कहाँ होता है। फिर हमारे मन में नये लालच ने जन्म लिया कि काश कोई ऐसा फोन बने, जिसे अपने साथ लेकर घुमा जा सके ताकि यदि अकेले में किसी व्यक्ति से बात करनी हो तो सबकी आंखों का सामना ना करना पड़े। "क्यों वह तो अब दूरसंचार के माध्यम से भी कर ही सकते थे ना उसके लिए एक अलग फोन की क्या आवश्यकता थी"। फिर एक छात्र ने पूछा। सही प्रश किया है तुम ने शाबाश...! लेकिन ऐसा संभव नही हो सकता था बच्चे...घर के सारे सदस्यों के बीच केवल एक ही फोन हुआ करता था। जिस पर जब भी किसी का फोन आता, सभी लोग एक जगह एकत्रित होकर बड़ी उत्सुकता से क्या बात हो रही है, किस से बात हो रही है, जानने की कोशशि में बात करने वाले को निहारते रहते। जब वह यह बता देता की फलां का फोन है, तब भी सब क्या बात हो रही है, सुनते रहते और अपनी बारी आने का इंतज़ार करते। क्योंकि उन दिनों यह सेवा बहुत महंगी हुआ करती थी। इसलिए हर कोई बस काम की बात करके फटाक से फोन रख दिया करता था। इसलिए तो धीरे-धीरे यह लालच उत्पन्न हुआ कि काश ऐसा कोई फोन बने जिस से बाकी सब से अलग लेजाकर बात की जा सके। अब तुम लोग तो जानते समझते होंगे ही, कि मित्रों की बातों में किसी बड़े व्यक्ति का दखल कितना अखरता है। क्यों बच्चों है कि नही....! सारे बच्चे मास्टर जी की बात सुनकर खिलखिला रहे हैं ...हाँ यह बात तो आपने एकदम सही कही। एक छात्र बोल पड़ा। सारी क्लास चुप हो गयी। सभी की हंसी बंद हो गयी। सबको लगा अब मास्टर जी भड़क जाएंगे। मास्टर जी भी एकदम चुप...हो उस बच्चे को घूरे जा रहे थे। मानो अभी उसका कान उमेठेंगे और कहेंगे अच्छा बच्च चू....! तो यह बात है। इसलिए तुम्हारा मन नही लगता पढ़ाई लिखाई में, यह सोचकर जरा देर के लिए सन्नाटा छा गया था। वह बच्चा भी डर से कांप गया था कि मास्टर जी फिर हंस दिए और बोले अरे घबराओ नही। आज सजा नही मिलेगी। खुलकर कहो जिसको जो कहना है। तब कहीं जाकर सब हंसे और माहौल फिर से खुशनुमा हो उठा।
फिर क्या हुआ मास्टर जी ? फिर होना क्या था? फिर पैसे वाले लोगों के पास मोबाइल आ गया। जिसका दिखावा वो ऐसे करने लगे मानो यह कोई ऐसा यंत्र है जो उनके अलावा और किसी दूसरे के पास हो ही नही सकता। लेकिन मास्टर जी मैन तो कवर्ड् लेस फोन के विषय में भी सुन रखा है। वह क्या होते थे ? अरे हाँ में तो भूल ही गया था। मोबाइल आने से पहले कवर्ड् लेस फोन का भी दौर आया था। जिसमें तार नही होता था। उसे हम कहीं भी लेजाकर बात कर सकते थे। लेकिन उसका दायर तब सीमित हुआ करता था। उसके बाहर वो काम नही करता था। दायर कैसा दायर मास्टर जी ? एक छात्र ने पूछा। दायर मतलब एक निश्चित सीमा जैसे सिर्फ घर के अंदर कहीं भी चलता था। किंतु घर के बाहर उस पर बात हो पाना सम्भव नही हो पाता था। फिर मोबाइल आने से यह समस्या भी सुलझ गयी है ना??? एक और छात्र ने मुस्कुराते हुए कहा।
हाँ लेकिन अभी मोबाइल भी इतने सस्ते नही हुए थे कि हर कोई उनका मालिक बन सकता। पर अभी तो मोबाइल दूर की बात है। अब तो ज़माना था कम्प्यूटर का सभी आफिस और होटलों में बुकिंग के नाम पर कॉम्प्यूटर आ गये थे। जिस से टाइपिस्ट की नॉकरी खतरे में पड़ गयी। और धीरे-धीरे टाइपिंग जानने वाले लोग बेरोजगार होते चले गए। किन्तु समय की मांग को देखते हुए बड़े और प्राइवेट स्कूलों ने अपने यहां बच्चों को कंप्यूयर पढ़ना प्रारंभ कर दिया। क्या करते अब हॉस्पिटल से लेकर बैंकों तक मे सभी फाइलों का लेख जोखा अब कम्प्यूटर में जो रखा जाने लगा था। इसलिए आने वाली पीढ़ी के लिए कंप्यूयर सीखना अनिवार्य हो गया था। यहाँ तक कि एक कंप्यूटर इंजीनियर को लड़की भी कंप्यूटर सीखी हुई ही चाहिए होती थी, तभी वह उससे ब्याह करता अथवा नही। कम्प्यूटर ने आम लोगों की जिंदगी में ऐसा कदम जमाया कि आज तक उसे कोई हिला ना पाया।
अब मोबाइल फोन को ही देख लो उसमें भी तो एक छोटा सा कंप्यूटर ही फिट है। हैं....! बच्चों ने बड़े आश्चर्य भाव से पूछा। हाँ और क्या आज के ज़माने में हर चीज में कंप्यूटर है बच्चों, बस ज़रूरत के हिसाब से उसका आकार प्रकार बदलता रहता है।
जैसे मोबाइल फोन हो गये, घड़ियाँ हो गयी, लैपटॉप हो गया। अब वो बड़े बड़े टीवी जैसे कंप्यूटर का ज़माना नही रहा और कम्प्यूटर की सेवा का हर कोई लाभ ले सके इसलिए ही तो यह मोबाइल फोन बनाया गया। अच्छा... सच्ची....! बच्चों को जैसे यकीन नही हो रहा था क्योंकि यह वो बच्चे थे, जिन्होंने कभी वो बड़े टीवी जैसे भारी भरकम कम्प्यूटर देखे ही नही थे कभी, उन्होंने तो बस मोबाइल ही जाना था वह भी केवल गेम खेलने के लिए या टिकटोक पर वीडियो देखने के लिए।
फिर धीरे-धीरे समय बदला और यह स्मार्ट फोन आने लग गये जिसके पीछे अभी तुम दिनों पागल हुए पड़े थे। एक ठंडी आह...! भरते हुए मास्टर जी ज़रा हताश से हो गए। ऐसा क्यों मास्टर जी क्या क्यूँ ?अभी तक तो आप सब कुछ बड़े मजे लेकर बता रहे थे। फिर यह मोबाइल फोन की बात आते ही आप एकदम से खामोश क्यों हो गए ? आह...अब तुम्हें क्या बताऊँ बच्चों....! यह मोबाइल फोन यदि इंसान की ज़रूरतों तक ही सीमित रहता तो अच्छा होता। लेकिन यह फोन इंसान की जिंदगी बन गया। जिनके बिना जीना इंसान को नागवार हो गया।
आज इंसान को अपनी जान से भी ज्यादा यह मोबाइल प्यार हो गया है। इस मोबाइल ने हमारे सारे रिश्ते छीन लिए, हम से हमारे दोस्त यार छीन लिए, बच्चों से उनका बचपन छीन लिया, युवाओं से उनका जोश छीन लिया। बुजुर्गों से उनका समय छीन लिया।
कुल मिलाकर इस मोबाइल ने इंसान से इंसान होने का हक छीन लिया। जो सही नही हुआ। आज तुम लोग भी तो इसी बेजान चीज के लिए लड़ रहे थे। विनोद कल तुमने अपनी माँ से जिद की थी कि तुम्हें भी ऐसा ही फोन चाहिए जैसा अनिल के पास है। नही तो तुम अपनी मां का कहा नही मानोगे। क्या तुम्हें पता है, तुम्हारी माँ को ऐसा मोबाइल तुम्हें दिलाने के लिए कितना कुछ करना होगा। तब कही जाकर वह अपनी जरूरतों को मारकर तुम्हारी खुशी के लिए ऐसे मोबाइल के लिए पैसा जमकर पायेगी, ताकि तुम खुश हो सको। क्या तुम्हें नही लगता यह गलत बात है ? और विनोद तुम, तुम्हारे पापा के पास भी इतना पैसा नही है कि वह दो दो मोबाइल मेंटेन कर सकें। पर फिर भी उन्होंने तुम्हें यह मोबाइल यहां स्कूल लाने दिया। यह गलत बात है बेटा और नियम के खिलाफ भी है।
तुम सबके माता-पिता तुम्हारी खुशी के लिए हर वो कार्य करने को तैयार रहते है जो कभी-कभी उनके वश में नही होता। लेकिन फिर भी वह तुम्हारे चेहरे पर मुस्कान देखने के लिए वो सब करते है, जो शायद उन्हें नही करना चाहिए। ऐसे में तुम्हारा फ़र्ज़ बनता है कि तुम सब पढ़ लिखकर एक अच्छे इंसान बनो और अपनी समझदारी से अपनी दम पर उन चेजो का उपभोग करो जिनकी तुम्हे चाहत है। लेकिन उन ज़रूरतों को अपनी ज़िंदगी मत बनने दो।
खैर छोड़ो यह बताओ कि यदि तुम लोगों को ऐसा कुछ विज्ञान का चमत्कार करने को मिले तो तुम लोग क्या बनाना पंसद करोगे। कौन बतायेगा सबसे पहले उम्म....राकेश तुम बताओ मास्टर जी मैं ना (टाइम मशीन) बनाना चाहूंगा, ताकि मैं आज के समय को मात देकर बहुत आगे जा सकूँ, और इतना धन कमा सकूँ कि सबको मुझसे जलन हो। इसी तरह किसी ने कहा मैं (उड़ने वाली कार) बनाना चाहूंगा, तो कोई बोली में (पहियों पर चलने वाला घर) बनाना चाहूंगी कोई (चाँद पे रहना चाहता था) कोई (सारी धरती घूमना चाहता था) नन्ही सी आँखों मे बड़े बड़े मासूम सपने थे। कोई तो घर में ही (पैसों का पेड़) लगाना चाहता था।
किन्तु उन सब में एक ने कहा मास्टर जी मैं एक ऐसी मशीन बनाना चाहती हूं। जिससे पहन ने के बाद इंसान को भूख ना लगे। ताकि मेरे बाउजी की तरह कोई और किसान खेती के नाम पर कर्जा लेकर, उसे ना चुका पाने के गम में आत्महत्या ना करे। क्योंकि जब इंसान को भूख ही नही लगेगी तो अन्न उत्पादन की वजह ही नही रह जाएगी। तो कोई खेती ही नही करेगा, तो किसी को कर्जा भी नही लेना पड़ेगा। फिर कोई आत्महत्या भी नही करेगा और फिर सब ठीक हो जायेगा। बच्चे के चहरे पर जैसे हजारों प्रश्न चिन्ह दिखाई दे रहे थे।
तब उसकी बातों को सुनकर मास्टर जी आँख भर आयी और उन्होंने उसके सर पर हाथ रखते हुए कहा। बेटा इंसान चाहे कितना भी अमीर क्यों न हो जाये। खाने के लिए उसे अन्न ही चाहिए। पैसे खाकर वह जीवित नही रह सकता। शायद इसलिए भगवान ने इंसान को ऐसा शरीर दिया है, ताकि वह मेहनत कर के खाये और दूसरों को भी खिलाये। तभी तो हमारे शरीर के सारे अंग पेट से जुड़े है। यदि हम भोजन न करें, तो हमारे शरीर के बाकी हिस्से भी काम नही करेंगे। तुम्हरे बाबा तो अन्न दाता थे। "मांगने वाले से हमेशा देने वाला बड़ा होता है"। उनको मेरा शत शत नमन और इस तरह आज की क्लास खत्म हुई और सभी बच्चे अपने अपने घरों को रवाना हो गए।