Jawaani jaaneman - Film review in Hindi Film Reviews by Mayur Patel books and stories PDF | ‘जवानी जानेमन’- फिल्म रिव्यू - जवानी का रंग बॉक्सऑफिस पर चढेगा..?    

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‘जवानी जानेमन’- फिल्म रिव्यू - जवानी का रंग बॉक्सऑफिस पर चढेगा..?    

‘जवानी जानेमन’कहानी है लंडन में रहेनेवाले बेचलर फोरएवर जसविंदर सिंह उर्फ जैज (सैफ अली खान) की. 40 साल के होने के बावजूद वो अविवाहित है क्योंकी उसे बीवी-बच्चों की जिम्मेवारी नहीं उठानी. उसकी जींदगी का एक ही मकसद है, पार्टी करो, दारु पीओ और रोज नई नई लडकीयों के साथ मजे करो. ऐसे अय्याश जैज की जींदगी में रुकावट तब आती है जब एक 21 साल की लडकी टिया (अलाया फर्नीचरवाला) की एन्ट्री होती है. टिया बताती है की वो जैज की बेटी है. 22 साल पहेले जैज ने किसी लडकी के साथ मस्ती की थी जिसका नतीजा उसकी बेटी के रुप में आकर जैज के सामने खडा हो जाता है. टिया के आते ही ताउम्र कुंवारा रहेने की चाह रखनेवाले जैज की वाट लग जाती है. न सिर्फ वो रातोरात बाप बन जाता है बलकी उसे पता चलता है की जल्द ही वो नाना भी बननेवाला है क्योंकी उसकी बेटी भी प्रेग्नन्ट है..! फिर क्या होता है, वो जानने के लिए आपको फिल्म ‘जवानी जानेमन’ देखनी पडेगी. लेकिन ऐसी गलती करने की कोई जरूरत नहीं. क्यों..? पढिए आगे...

बाप-बेटी की रिश्ते पर बूनी गई कहानी सुनने में तो बहोत अच्छी लगती है, कहानी में नयापन भी है, उसकी प्रस्तुति भी अच्छे से हुई है, पर हिन्दी फिल्म में सबसे जरूरी जो चीज होती है वो 'एन्टरटेनमेन्ट' नामकी बला ही इस फिल्म से गायब है. कहेने को तो ये फिल्म हलकीफूलकी कॉमेडी है लेकिन मजाल है जो कहीं-कोई कॉमेडी हुई हो. टीवी सिरियल में जिस तरह कॉमेडी हो रही है ऐसा भ्रम पैदा करने के लिए फालतू सा बैकग्राउन्ड म्युजिक बजा दिया जाता है ठीक वैसा ही हथकंडा इस फिल्म में अपनाया गया है. कलाकार डायलोग बोलते है, लेकिन बो दर्शकों को हंसाने में बुरी तरह से नाकामियाब होते है. फिर भी बैकग्राउन्ड म्युजिक एसा बजता है जैसे कोई बहोत बडी कॉमेडी हो गई हो. माफ करो, भैया.

फिल्म में बिना वजह बेफिजूल के सीन ठूंसे गए है. जैसे की, इन्टरवल से पहेले का सैफ का टकिला शॉट कोम्पिटिशन वाला सीन. कोई जरूरत ही नहीं थी उसकी. बस, ऐवेंइ कुछ भी डाल दिया है निर्देशक नितिन कक्कड़ ने. इस से पहेल 'मित्रों', 'फिल्मीस्तान' और 'नोटबूक' जैसी सुपरफ्लॉप फिल्में बनानेवाले नितिन सर ने 'जवानी जानेमन' के रूप में एक और महाफ्लॉप दे डाली है.

सैफ अली खान ने कोशिश तो बहोत की है की वो कूल दिखे, कॉमेडी करें, फिल्म को उपर उठांए.... लेकिन एक कूल दिखने के अलावा वो कुछ भी हांसिल नहीं कर पाए. कॉमेडी करने के नाम पे उन्होंने ऑवरएक्टिंग भी की है और फालतूगिरी भी. सैफ की बेटी का रोल करनेवाली अलाया फर्निचरवाला वास्तव में कबीर बेदी की बेटी पूजा बेदी की बेटी है. वो पूजा जो 'जो जीता वो ही सिकंदर' की बाद कहीं नहीं चली, न फिल्मों में, न टीवी पर. अलाया की बात करें तो वो इस रोल के लिए परफेक्ट चोइस लगीं. अपने किरदार को उन्होंने पूरे आत्मविश्वास के साथ न्याय दिया है, लेकिन फिर भी कहेना पडेगा की उनमें वो एक्स फेक्टर नहीं है जो बोलिवुड की हिरोइन में होना चाहिए. आलिया-सारा-ज्हानवी जैसी खूबसूरत एवं तीखी मिर्चीयों के मुकाबले अलाया फिकी लगीं. मेइनस्ट्रीम हिन्दी सिनेमा में उनका शायद ही कोई भविष्य होगा.

पता नहीं तबू जैसी ग्रेट एक्ट्रेस की कौन सी मजबूरी रही होगी जो उन्होंने इतना पीद्दू सा रोल स्वीकार कर लिया. फिल्म में उनके केवल 5-6 सीन है और एक भी सीन में हम उस 'तबू-द-ग्रेट' का दिदार नहीं कर पाते. कुमुद मिश्रा जैसे मंजे हुए कलाकार और फरिदा जलाज जैसी सिनियर अभिनेत्री की प्रतीभा भी बिलकुल वेस्ट हुई है. ये निर्देशक की असफलता ही है की वो इतनी दमदार सहायक कलाकार-टीम से उमदा काम नहीं ले पाए है. चंकी पांडे इस फिल्म में क्या कर रहे थे ये पता चलते ही मैं आपको बता दूंगा. ‘कपिल शर्मा शॉ’ में दर्शकों को हंसा-हंसा के लोटपोट कर देनेवाले किकू शारदा ने इस फिल्म में कॉमेडी के नाम पे निहायती बाहियात अभिनय किया है. वो लंडन के होस्पिटल में डॉक्टर है, लेकिन इतने बेवकूफ दिखाए गए है की कोई उन्हें चपरासी की नौकरी भी न दें. सेक्रेड गेम्स में ‘कूकू’ का यादगार किरदार निभानेवाली कुब्रा सैत यहां भी अच्छी लगीं.

पूरी फिल्म को लंडन में शूट किया गया है तो जाहिर है की सिनेमेटोग्राफी अच्छी ही होगी. फिल्म का म्युजिक बस ठीकठाक ही है. ‘ओले ओले…’ का रिमिक्स सुनने में अच्छा है लेकिन इसका फिल्मांकन बहोत ही बेकार किया गया है. बाकी के गानों के बारे में कुछ ना ही कहें तो अच्छा है. बैकग्राउन्ड स्कॉर थर्ड क्लास लगा.

लाख कोशिशों के बावजूद, पापा के करोडो फूंकने के बाद भी एक्टिंग में सफल न होनेवाले जैकी भगनानी ने इस फिल्म को सैफ अली खान के साथ मिलकर प्रोड्युस किया है. जैकी की करियर की तरफ ही उनके पापा का पैसा भी इस फिल्म में पक्का डूबनेवाला है. सारा कूसूर निर्देशक नितिन कक्कड़ का ही है जो अच्छी कहानी और अच्छे कलाकार होने के बावजूद एक मनोरंजक फिल्म नहीं दे पाए है.

‘जवानी जानेमन’ में एन्टरटेनमेन्ट के नाम पर कुछ भी नहीं है, तो इसे दूर से ही नमस्कार कर दिजिएगा. मेरी ओर से 5 में से केवल 2 स्टार्स. सैफ को सलाह है की सोलो के चक्कर में ना पडो; आप मल्टिस्टारर में ही चलनेवाली चीज हो.