Kaun Dilon Ki Jaane - 13 in Hindi Moral Stories by Lajpat Rai Garg books and stories PDF | कौन दिलों की जाने! - 13

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कौन दिलों की जाने! - 13

कौन दिलों की जाने!

तेरह

एक दिन रात का खाना खाने के बाद रमेश और रानी बेड पर बैठे टी.वी. देख रहे थे। आलोक से दोस्ती को लेकर रमेश के मन में शक की वजह से द्वन्द्व तो रहता था, लेकिन उसके पास रानी के विरुद्ध लच्छमी से प्राप्त आधी—अधूरी जानकारी के अतिरिक्त कोई ठोस सबूत नहीं था, जिसके आधार पर वह रानी के चरित्र पर सन्देह कर सकता। फिर भी चाहता वह जरूर था कि किसी—न—किसी तरह कोई कड़ी हाथ लगे ताकि रानी स्वयं वस्तुस्थिति प्रकट कर दे। इसीलिये उसनेे हवा में तीर चला कर अपना मनोरथ पूरा करना चाहा। उसने कहा — ‘रानी, आज दोपहर में मैंने कई बार तुमसे बात करनी चाही, किन्तु तुम्हारा मोबाइल हर बार ‘बिजी' ही मिला। अपने दोस्त से बात कर रही थी क्या?'

‘न तो मैंने आज आलोक से बात की और न ही तुम्हारी कोई मिस कॉल आई। तुम स्वयं मेरा मोबाइल चैक कर सकते हो।'

तीर निशाने पर न लगा देखकर रमेश ने बात को और न बढ़ाकर वहीं खत्म कर देना ही उचित समझ। उठकर कपड़े चेंज करने के लिये बाथरूम चला गया। इतने में मोबाइल की घंटी बजी। रानी ने मोबाइल ऑन किया तो अंजनि बोल रही थी — ‘हैलो मम्मा, कैसी हो? लोहड़ी पर तो आ नहीं सकी थी, अब सोच रही हूँ कि होली पर मिलने आ जाऊँ, तब तक आर्यन और पिंकी भी ‘इग्ज़ाम' से फारिग हो चुके होंगे। बच्चे नाना—नानी से मिलने के लिये बहुत उत्सुक हैं।'

‘बहुत अच्छी बात है। दामाद बाबू को भी साथ लाना। होली इकट्ठे मिलकर मनायेंगे, बड़ा अच्छा लगेगा।'

‘अभी से ‘इनका' तो पक्का नहीं कह सकती। जैसा समय होगा, देख लेंगे।'

इधर माँ—बेटी की बात पूरी हुई, उधर रमेश बाथरूम से बाहर आया। उसे फोन पर हो रही बातचीत की आवाज़ तो सुनाई पड़ गयी थी, किन्तु यह नहीं पता लगा था कि रानी किससे बात कर रही थी। इसलिये बाहर आते ही पूछा — ‘किसका फोन था?'

रानी ने बता दिया कि अंजनि बच्चों सहित होली पर आने की कह रही थी।

सुनकर रमेश बोला — ‘यह तो बहुत अच्छी खबर है। उसे आये भी तो काफी अर्सा हो गया। बच्चे साथ होंगे तो होली की रौनक और बढ़ जायेगी।'

रमेश द्वारा रानी कोे पर्याप्त समय न देने की अपनी अकुलाहट को तंज रूप में प्रकट करते हुए उसने कहा — ‘आप बच्चों को वक्त दे पाओगे, आपके पास समय ही कब होता है? आपकी मित्रमंडली तो होली अपने ही ढंग से मनाती है।'

रमेश ने रानी के कटाक्ष की ओर ध्यान दिये बिना कहा — ‘भई, जब बच्चे आयेंगे तो बच्चों का संग मित्रमंडली से अधिक अच्छा लगेगा। मित्रमंडली का संग तो अकेलेपन को भरने का एक बहाना होता है। आज मिस्टर मेहरा बता रहे थे कि इस बार रेजिडेंट्‌स वेल्फेयर एसोसिएशन की ओर से गमाडा स्टेडियम में होली वाले दिन दोपहर बाद ‘होली—मिलन' का एक सार्वजनिक फंक्शन आयोजित किया जा रहा है, जिसमें ‘हास्य कवि दरबार' तथा ‘फूलों की होली' के कार्यक्रम रहेंगे। प्रसिद्ध हास्य कवि सुरेन्द्र शर्मा भी आयेंगे। बच्चों के लिये यह भी एक अलग किस्म का अनुभव होगा,' इतना कहकर थोड़ा व्यंग्य का पुट देते हुए कहा — ‘अपने दोस्त को भी बुला लेना, हम भी उससे मिल लेंगे। वह भी कार्यक्रम का आनन्द ले लेगा।'

रानी ने रमेश के व्यंग्य को नज़रअन्दाज़ करते हुए कहा —‘अगर आप आलोक को मिलना चाहते हैं तो उन्हें पहले ही बुला लेते हैं।'

अपने व्यंग्यमय अन्दाज़ में ही रमेश ने कहा — ‘क्यों, बच्चों के सामने बुलाने में कोई दिक्कत है क्या?'

‘नहीं, ऐसी तो कोई बात नहीं।'

‘चलो छोड़ो इन बातों को, नींद आ रही है।'

और रमेश करवट बदल कर लेट गया।

***