अह्सास
हरि से मिलने से पूर्व आत्मिक सुख क्या होता है ये दिवंगत पिता से मैंने पाया था पर किसी को याद करके खुश होने का अह्सास हरि ने मुझे दिया l. हरि के अतिरिक्त मुझे कभी किसी ने नहीं पूछा कि 'पिंकी तुम्हारी तबीयत कैसी है? दिनभर दर्द से परेशान रहती, किसी को मेरे दर्द या मुझसे मतलब न था l घर का सूनापन खाने को आता l पैर वास्तव में भारी था कि सूजन बढ़ रही थी, दर्द ऊपर से अलग l
यकायक फोन भी अच्छा न लगता l एक नए नाम की घंटी ने चेहरे की मुस्कान बढ़ा दी l यह परिचित हरि का ही फोन था जिससे तीन साल पहले सेमिनार में मुलाकात हुई थी l बात-चीत ने हलचल के सुखद पल भर दिए l कुछ अपनापन नजर आया l रोज बात होने लगी l
बढ़ते पैर दर्द व पैर में सूजन के लिए अनेक डॉक्टर्स की सलाह ली गयी l इलाज के लिए अनेक सलाह मिलती l रोज हरि यही पूछता '' देवी तबीयत कैसी है, जल्दी सोना, स्वास्थ्य का ध्यान रखना l'' कुछ दर्द कम हुआ l यह वास्तविकता थी या अह्सास पता नहीं......... I
कुछ नजदीकियां बढ़ी जिससे प्रेम का नाम तो नहीं दिया जा सकता है पर आत्मिक सुख मिलता हरि से बात करके l हरि रोजाना एक ही बात कहता "देवी कैसी है तबीयत?" "मैं देवी नहीं हूँ! मेरा हर बार जवाब होता l स्वामी रामो मत्सखा रामचंद्र: कहकर मुझे रोज ईश्वर के समक्ष खड़ा कर देता और स्त्री रूप में देव तुल्य शारदे कहता l अब मैं थोड़ी स्वस्थ महसूस करने लगी l मैं हरि से कभी मिली नहीं केवल फोन ने हमें मिलाया और फोन ने ही छोटी सी गलत फहमी की दूरियां बना दी l भ्रम की स्थिति ने रास्ते बदल दिए, दोनों के अलग अलग रास्ते अपने आप बन गए l न हरि ने मुझे पुकारा, न मैंने पीछे मुड़कर देखा l मन में आज भी अहर्निश हरि ही हरि है l........किन्तु अब हरि कहाँ है?........... पर हरि होने 'अह्सास' अवश्य है !!!
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