Adhuri havas - 20 in Hindi Horror Stories by Baalak lakhani books and stories PDF | अधूरी हवस - 20

Featured Books
Categories
Share

अधूरी हवस - 20

Part 20

राज ने बडी ही मुश्किल से मिताली की शादी मे जाने का फेसला कर लिया, राज अपनी कार लेके अकेले ही मिताली के गाव की और रात को ही निकल चला, दूसरे दिन मंडप और संगीत था तो अगली रात को निकले तभी वोह अटेंड कर पाता.

पूरी रात ड्राइविंग करके अगली सुबह मिताली के गाव पहुंचा, जेसे ही उसके घर के आगे राज ने अपनी कार खडी की अंदर से किसीने आवाज दी होगी या शायद, मिताली को महसूस हुवा होंगा की राज की आहट का, वोह तुरंत भागते हुवे अपने कमरे से बाहर आई कार के पास.

राज ये मंज़र देखता ही रहा कि इसे केसे पता मे आ गया, घड़ी भर तो राज मिताली को देखता ही रहा बिना कोई मेकअप गिले बलों को रुमाल मे लपेटे हुवे नंगे पेर दौड़ती हुई आती मिताली को, राज कार के अंदर से ही देखता है, जब राज की नज़र मिताली के चेहरे पे आके थमती हे तो क्या देखता हे, मिताली के चहरे की खुशी, ठंड मे सुबह जब सूरज बादल को चीर के जब निकलता तब जो नजारा दिखाई देता है, उससे भी कहीं सुन्दर नजारा मिताली के चहरे पे दिख रहा था, पर साथ ही साथ घास पर ओस की बूंद के माफिक आँखों के एक कोने मे बूंद भी नज़र आती है, राज भाँप नहीं पाता के खुश चहरे पर ये बूंद खुशी के हे या गम की, पर कमाल की मोहिनी सी लग रही थी.

मिताली के जहन मे शायद वोह गाना चल रहा होगा," तुम आए तो आया मुजे याद गली मे आज चाँद निकला" फटक से कार का डोर खोलती है, खुशी से आ गए आप एक दिन जल्दी नहीं आ सकते थे? रास्ते मे कोई परेशानी तो नहीं हुई? अकेले ही निकले थे?

कितने सारे सवाल एक ही साँस मे पूछ डाले कुछ ही पल मे, फिर अपने माथे पे हाथ पटकते हुवे, मे भी पागल हू बाहर ही खड़ा करके आपको बातों मे उलझा दिया सॉरी सॉरी... आइए आप अंदर आइए.. बाहर से ही सबको आवाज लगाती है, देखो कोन आया हे, इनके लिए खाट बिछाये.

मिताली के माताजी उसका भाई सब बहार आए और राज की ओर बढ़ रहे थे,.. तभी मिताली राज के तरफ का डोर खोल कर उनका हाथ पकड कर खींचते हुवे घर के अंदर ले चलती है,

मिताली की माताजी: अरे महमानों के साथ कोई ऎसा सुलूक करता हे भला?
कोन कहेगा तुम्हें देख कर की आज तेरी शादी हे.. कहते हुवे हस्ती हे

मिताली : हा पता हें पर शादी होने तक तो मुजे मेरे घर मे जो जी मे आए करने दो अभी क्यू रोक रहे हो.
(राज सुने ऎसे धीरे से दबी आवाज मे

"अभी जनाजा कहा उठा हे मेरे अरमानो का
आज तेरे आंगन मे जी भरकर चहक ने तो दो" ओर राज की तरफ आँखों मे देखते हुए )

राज : अरे पागल ये केसी बात कर रही हो एसा नहीं बोलते...

मिताली : और नहीं तो क्या (आंख के कोने पे ज़मी बंद को कोई देखे नहीं उस तरह से पोछते हुवे बरामदे से घर की ओर जाते हुवे)

मिताली उसके भाई को आवाज लगाकर कहती हैं, राज का समान और उनको नहाने का बंदोबस्त करने को कहती हैं.

थोड़ी ही देर मे मिताली खुद कॉफी बनाकर राज के लिए लाती है, उनके घर वाले सहेलियाँ सब कहते है, कि हमे बोल दिया करो हम उनकी सम्भाल रख लेंगे, तुम्हें अभी पार्लर मे जाना हे रेड्डी होने को जाना है फिर मुहूर्त भी निकल जाएगा तो सब चिल्लाने लगेंगे.

मिताली : हा पता हें ए सारी बाते अब अभी अभी आए महमान को बता दो, उनको ही लेके जाना हे हमे सब जगह पर जहा जहा हमे जाना हे वहीं लेके चलेंगे अब उनकी कार मे..

मिताली की सहेली कविता राज के पास आती है..

कविता : देख रहे हों उसको बावरी हो चुकी है आपको देख कर.., कल देर रात तक आपको ही याद कर के रोये जा रही थी, आप आयेंगे या नहीं आयेंगे,.. और आयेंगे तो ख़ुद को केसे संभालेंगी.., शुक्रिया उसके मुखड़े पे ये खुशी लाने के लिए,

राज : क्या मेने आके कोई गलती तो नहीं कि?

कविता : पता नहीं.. कल तक तो मे सोचती थी कि आप ना आए, पर आज इसे देख कर लगा अच्छा ही हुवा आप आए, वर्ना मातम जेसा महसूस हो रहा था, उसके चहरे पर एक मुस्कान देखने को तरस गई थी.

राज : में भी बड़ी कशमकश मे था यहा आने के लिए खेर अब देखते हैं, पर तुम मेरे आसपास ही रहना उसे सम्भाल ने के लिए, उसका पागल पन तो तुम जानती ही हो.

कविता : हा.

तभी मिताली आती है आपके लिए पानी गर्म निकाल दिया है, और आप नहाने के लिए जा सकते हैं,

कविता : अबे पागल तुम ये क्या कर रही हो?
मुजे बोलो मे सब करती हू ना.

मिताली : हा पता हें तो यहा बाते बनाने की जगह वोह काम करती ना, इतनी देर हुई उन्हें आए हुवे. (गुस्से से मुह फूला कर चली जाती है, और राज को कहती जाती है जल्दी से नहाकर नाश्ते पे आए)

कविता : देखा केसे सम्भाले इसको.

राज :तुम जाओ उसके साथ रहो मुजे कुछ चाहिए तो तुम्हें आवाज दूँगा, उसे मत आने देना ठीक है?

कविता :ठीक है कहा आके फंसी आप दोनों के बीच. (मुह बिगाड ते हुवे हसते हुवे वोह भी चल बनी)

राज भी हसने लगा और बाथरूम की ओर चल पड़ा थोड़ी देर मे रेड्डी होके कमरे का दरवाजा खोलता है तो सामने दोनों देवियां इंतजार करे खडी होती है कब महाशय बहार आये और नाश्ते के टेबल पर बिराजे.

मिताली : चलिए जल्दी सब मुझे चिल्ला रहे हैं, और आप हे कि ल़डकियों की तरह सजने मे कितना वक़्त लगाते हो. और उधर मुजे पार्लर मे से कॉल पे कॉल आ रहे हैं.

राज : क्यू? मेरे लिए रुकी थी तुम्हें चला जाना चाहिये ना. कार तो थी ख़ाम खा सबको भड़का रही हो.

मिताली : हा थोड़ी देर मे कोई असमान नहीं गिरेगा, मुहूर्त कहीं भागा नहीं जा रहा, सब बस ऎसे ही जल्दी जल्दी चिल्ला रहे हैं,

(कविता हसने लगती है दोनो की बाते सुनकर)

मिताली कविता की और देखते हुवे तुम्हें बड़ी हसी छूट रही है? मोहतरमा क्या कोई चुटकुला सुनाया मेने?

कविता : नहीं बाबा तुम दोनों की बाते सुनकर रहा नहीं जाता केसे लड़ते हो, सब देखकर कहेंगे दूल्हा तो आज ही आ गया हे.

(मिताली को आंख मारकर इशारा करते हुवे हसी छूट जाति, मिताली भी मंद मंद मुस्कराते कविता को कोहनी मारते हुवे चुप कर )

राज : यहा हमारी फटे जा रही हे और आप दोनों को मस्ती सूज रही है.

मिताली राज ओर घूरते हुवे : हें ना? एसा ही होना चाहिए (ठहाका के हस्ते हुवे)

मिताली राज को नास्ता करवाने के बाद कहती हे आपको कहीं और जाना नहीं आपको मे जहा जहा जाऊँगी वहा वहा आपको साथ ही आना हे, कहीं इधर उधर जाना नहीं हे आपको कोई और बुलाए तो भी नहीं जाना, चलिए कार निकालिये हमे पार्लर लेके चलिये.

राज मिताली को पार्लर मे लेके जाता है,वहा पहुँच कर राज मिताली को कहता है, में कार मे ही इंतजार करता हूं, तुम रेड्डी होके आ जा वो,

मिताली : नहीं आप अंदर आइये, आप अंदर ही इंतजार करना.

राज : अरे वहा सब लडकिया ही होंगी और मुजे अजीब लगेगा.

मिताली : आपको अलग कमरे मे आपके बैठने का इंतजाम करवा दूंगी. वेसे भी रात की सफर कर कर आए हैं, आँखों मे थकान दिख रही है, वाह आप थोड़ा रेस्ट कर लेना, गाड़ी मे ठीक नहीं होगा चलिए.

राज : तुम्हारे आगे ना कहना ही बेकार है.
(मिताली धीरे से गुनगुनाते हुवे फिरभी आपने कर तो दी ना, कहते हुवे सामने देखते हैं,)

राज को मिताली शब्द कटार की तरह चुभ तो रहे थे, पर क्या करता आया था तो झेलना तो पड़ेगा ही, पर एक तरफ मिताली की एसी हरकतों पर गुस्सा तो आता था पर उसकी नादानी पर प्यार भी बड़ा आ रहा है.

वहा पार्लर मे वेटिंग रूम मे सोफा पड़ा होता हे वहा पर ही राज सो जाता है, रात की थकान की वजह से उसकी आंख लग जाती है, दो एक घंटे बाद कोई उसको आवाज देता लग रहा है पर आंख की थकान की वजह से सोया रहेता हे.

मेकअप आर्टिस्ट जोर से : ओ मेडम आईना यहां हे. (मिताली को आवाज देते हुवे पीछे से)

राज की नींद टूट जाती है, देखता है तो सामने शृंगार से सज्ज के मिताली खडी थी. और मुस्कुरा रही थी, आँखों से इशारा करते हुवे जेसे बता रही हो केसी लग रही हू.

राज आँखों को साफ करते हुवे (कोई सपना तो नहीं देखे रहा ना एसा भाव होता है उसे)

राज : होगया? चलो चले?

मिताली : (मुस्कुराते हुवे) ठीक हैं केसी लाग रही हू?

राज : (मिताली को बिना पलके झपकाए देखते हुवे) रुको ये बिंदी को थोड़ा.. (बिंदी को सीधा करते हुवे) हाँ अब ठीक है, परी लगती हो.

मिताली होठों मे हसी दबाते हुवे सर हिलाती है, उसने जान बुझकर बिंदी टेढी करदी थी,

मिताली राज को हर जगह साथ ही रहने को कहती थी राज थोड़ी भी देर उसकी आँखों से दूर जाता तो कविता को बुलाने भेज देती या खुद उसे ढूंढने उसके पीछे चली जाती
एसा पूरा दिन चलता ही रहा संगीत मे भी मिताली राज के साथ नाची देर रात तक संगीत का जलसा खत्म हुवा.

सब अपने अपने कमरे मे सोने जा रहे थे, तो राज भी बताये बिना चला सोने, मिताली ने कविता को भेजा और कहा आप कमरा बंध मत कर देना मुजे काम हे उनसे एसा मिताली ने कहा है.

राज : क्या काम हे? कहीं जाने का हे? अभी?

कविता : वोह मुजे भी बताया जितना बताया वोह आपको कहे दिया.

राज : ठीक हे मे फ्रेश होता हू तब तक तुम लोग आओ.

राज अपने कमरे की और बढ़ जाता है, और अपने कमरे में फ्रेश होने चले जाते हैं.

राज सोच रहा है अब क्या पूरे दिन तो उसके साथ ही तो था अब जाके आधी रात को कौनसा काम याद आया. राज फ्रेश होके कमरे मे बेड पर आराम करता हे, तो राज की तो आंख लग जाती है, थकान की वजह से.

उधर मिताली और कविता दोनों एकाद घंटे बाद राज के कमरे में आते हैं तो क्या देखते हैं, राज तो घोड़े बेच के सो गया, कमरे मे पड़े सोफ़े पे बेठे राज को धीरे धीरे आवाज देती है, पर वोह तो उठने से गया, कविता उसे हाथ लगा के उठाने जाती है, मिताली उसे रोकती है, नहीं मत उठाव उन्हें सोने दो और तुम भी यही सोफ़े पे सो जाओ,ए लो कंबल कविता को देते हुवे, और एक कंबल राज के ऊपर डाल दिया.

कविता : और तुम? तुम नहीं सोओगी?

मिताली : नहीं अभी नींद नहीं आँखों मे, ये दिलबर सामने हो और आंखो नींद आए तो क्या ख़ाक प्यार किया मेने.

कविता : पागल क्या इरादा हे तेरा? सब महमान बाहर सोये हुवे है, कोई कभी भी इस कमरे में आ सकता है.

मिताली : ओ गंदी सोच,.. ब्रेक लगा तेरी सोच को इरादा नेक हे, इनको ऎसे सोते हुवे रोज देखू एसा सपना था मेरा, सुबह उनको गिले बालो से उनके चहरे पे रोज पानी छिटक के शरारत करू और वोह उठकर अपनी बाहों के घेरे मे लेके फिर सो जाए, कंबल मे घुसकर ढेर सारी चुटिया काटु,
हर सुबह बस और बस इनको ही देख कर मेरा दिन शुरू हो बस ए ही तो सपना मे देखा करती थी, पर अब देख जिसके साथ मुजे जाना था, वोह मुजे बिदा करने आया है,

(मिताली की आवाज भारी हो जाती है, आँखों मे आंसू भी आ जाता है, कविता मिताली का हाथ खिंचते हुवे अपनी आगोश मे ले लेती है और मिताली सहलाने लगती है, कविता का दिल भी भर आता है, वोह भी रोने लगती है दोनों सहेलियों दबी आवाज मे एक दूसरे को लिपट कर कई देर रोती रही,
मिताली ये भी कहती हैं कि ये अगर यहा नहीं आते तो शायद मुजे रिस्तों के नाम से भरोसा ही टूट जाता, और इनसे बहोत ही गुस्सा थी, इतना की इनको मार मार कर हड्डियां तोड़ दु सारी, (दोनों हस पड़ती है रोते रोते) पर सुबह उनको सामने देख कर सारा का सारा गुस्सा कहा गायब हो गया पता ही नहीं चला.

मिताली :आज कितना जुल्म किया उन पर फिर भी उफ्फ तक नहीं की.

कविता :हा यार, तूने तो हद्द की करदी है, तूजे नहीं लगता ज्यादा हो रहा है, दूसरे रिसते दार भी तुम दिनों को देख कर बाते बनाते थे केसे बगल मे बेठे है, केसे हाथ पकड़ कर हर जगह साथ मे लेके चलती हो.

मिताली : बोलने दो सबको, सबका काम ही तो होता है, बाते बनाना, खाएंगे बाते बनायेंगे और चलते बनेंगे.

कविता : कल तो बारात आ रही है, कल तो साथ मे लेके नहीं घूमने वाली ना? एसा कुछ इरादा मत करना अभी से बता रहे हैं, वर्ना पिटाई करने मे पीछे नहीं हटेंगे.

मिताली : मेरा बस चले तो उन्हें ससुराल मे भी साथ ले चलू, नहीं डरों मत हस्त मिलाप तक तो रहेंगे साथ मे, और हाँ उसके बाद मे तुम उसके साथ ही रहना कहीं इधर उधर नहीं जाने चाहिए, मेरी आँखों के सामने ही उन्हें बिठा कर रखना,बिदाई तक वोह कहीं नहीं जाने चाहिए ये तेरी जिम्मेदारी है, और हाँ और एक काम तुम्हें करना है, उनका सारा समान सम्भालकर उनकी कार मे रखवा देना अपने हाथो से बोल देते हैं, कल फिर भूल गई आखिरी वक़्त मे तो, अरे और एक बात ये ले लिफाफा.

कविता : लिफाफा? ये कब लिखा? और तू ही क्यू नहीं दे देती सामने तो सोये हे, तू कहे तो उनके कपड़ों के ऊपर रख दु? सीधा उनकी नजर पड़ेगी.

मिताली : नहीं ये कल उनके हाथो मे देना और वोह घर पहुंच जाये उसके बाद खोलने को कहना, और ये हमने परसों लिखा था ए ना आए होते तो, हम वहा जाके इन्हें पोस्ट करते.

कविता : में खोल के देखू क्या लिखा है?

मिताली : नहीं नहीं..

कविता : नहीं पढ़ेंगे ठीक है, ये देने की क्या जरूरत है, सामने ही तो सोए हे तुम बोल ही दो जो लिखा है वोह.

मिताली : नहीं ये सारी बाते शायद उनके सामने मे नही बोल पाऊँगी इस लिए लिख दिया, अच्छा अब बाते बहोत हो गई तुम सो जाओ, मे भी सो जाऊँगी थोड़ी देर के बाद.

कविता : ठीक है, हाँ पर तुम सो ही जाना कल होने वाला कांड आज यहां मत कर देना

(मिताली हाथ दिखाते हुवे मरेंगे तुम्हें अब सो जाओ) कविता लेटर को अपने पर्स मे सम्भाल कर रख देती हे और सोफ़े पे ही कंबल ओढ़ लेती है, और मिताली राज के पेर के पास बेठि रही राज को देखते हुए, काफी टाईम तक तकती रही राज को कमरे मे पूरा सन्नाटा सबकी सांसो के अलावा किसीका शोर नहीं.

अचानक से बिल्ली आती है और अलमारी के ऊपर चढ़ जाती है, और मिताली.....

क्रमशः.........

कहानी का ये पार्ट ज्यादा लंबा लिखा हे इस बार कई पढ़ने वालो की फर्माइश थी पार्ट छोटा लिखते हो तो आज उनकी इच्छा भी पूर्ण करदी, आपकी चाह से ही तो हमे लिखने का और बल मिलता है, सभी पढ़ने वालो को ढेर सारा प्यार
रेटिंग देते रहिएगा