दिल की ज़मीन पर ठुकी कीलें
(लघु कथा-संग्रह )
17-पिन
"ये क्या है?" शिवम उठते हुए कुछ झुंझलाया।उसकी पैंट के पीछे कुछ भारी सा महसूस हो रहा था।थोड़ा टटोलने पर उसे पता चला उसकी पैंट में पिन से कुछ लटका दिया गया था|
तेज़ बंदा था शिवम, तुरंत बुद्धि दौड़ी, पीछे बैठी शरारती लड़कियों पर नज़र डाली, उसकी सालियाँ बैठीं थीं | वो बेचारा हाथ पीछे करके पिन खोलने की कोशिश करता लेकिन उसका हाथ ही नहीं पहुँच रहा था | पीछे लड़कियों की खी-खी सुनाई दे रही थी |
वैसे नीरा बहुत शांत व सहमी सी रहने वाली लड़की थी पर उस समय न जाने कैसे वह बोल्ड हो गई | थोड़ी पीछे सरककर उसने शिवम की पैंट से वह आसन छुड़ा दिया जिस पर बैठकर फेरे हो रहे थे |तीन पिनों से कसकर चिपका दिया गया था शिवम की पैंट को !
"क्या हो रहा है ये सब ---" नीरा के पिता कलेक्टर कौशिक बड़े संजीदा --क्या गुस्सैल इंसान थे !
"जी, कुछ नहीं ताता ----" मीरा ने आँखें नीची करके कहा |
"मैंने कहा था न, कोई बद्तमीज़ी नहीं होगी ---"उनके स्वरों में क्रोध छलक रहा था |
"जी ताता ---वो मामी जी ---" धीरे से छोटी बिटिया इंद्रा ने फुसफुसाया |सब बच्चे उन्हें ताता कहते थे | ताता सचमें ही ततैया थे जिसमें से पापा की जगह ताता शब्द की शोध की गई थी| वैसे यह उपनाम उनकी धर्मपत्नी ने ही दिया था उन्हें !
अनिता मामी को बच्चों ने अपने में मिला रखा था, कभी भी किसी शरारत की, गड़बड़ की बंदूक मामी के कंधे पर रखकर चला देते |
नीता मामी का कौशिक जी पर बहुत अच्छा प्रभाव था | उनको यदि कोई समझा सकता तो वो केवल अनीता मामी ही थीं |नीरा की शादी में पंडित जी पर ही ग़ुस्सा हो गए थे | तब अनीता ने ही उन्हें समझा-बुझाकर शांत किया था |
"बेटा ---तुम भी ---" कलेक्टर साहब इतना ही बोले कि अनीता मामी के चेहरे की हवाईयां उड़ गईं | उन्हें लगा कि वह सबकी नज़र में आ गई हैं, क्या सोचते होंगे जीजा जी ! आश्चर्य हुआ सबको, क्षण भर बाद ही वे मुस्कुराने लगे थे |
ख़ैर शादी खूब धूमधाम से संपन्न हो गई |
"अरी ! अनीता, ज़रा दामाद जी से कह दे न नीरा को रात में गर्म दूध की आदत है, गर्म दूध पीए बिना वो सो नहीं पाती |"
यहाँ भी उसके कंधे पर बंदूक ! बड़ी ननद का कहना कैसे न मानती ?चली गई और शिवम से कह दिया, चुपके से उसने ----| शिवम और अनीता की उम्र में शिवम उससे एक वर्ष बड़े थे और ओहदा अनीता का बड़ा | शिवम मुस्कुरा दिए ;
" आपने अपनी बेटी के लिए सब इंतज़ाम कर लिए हैं| फटा हुआ सीना नहीं आता क्या जो पिनें भी साथ में दे दी हैं ---" शरारती शिवम ज़ोर से ठठा दिए | शुक्र था, वहाँ पर कौशिक जी नहीं थे |
"लो, नीरा इन्हें भी सँभालो, तुम्हारी मामी की गिफ़्ट हैं ---" एक के अंदर एक, तीन पिनें थीं | नीरा ने पति के हाथ से पिन लेकर अपने पर्स में रख ली थी | सबके मुख पर मुस्कुराहट तैर गई |
शनैः शनैः परिवार पूरा हुआ, बच्चे बड़े हुए | उनके भी कामकाज हो गए |शिवम एक डॉक्टर थे, उनका अपना बहुत बड़ा क्लिनिक था | सब आनंद में थे कि पता चला नीरा को लास्ट स्टेज का कैंसर है |अनीता जब भी दिल्ली जाती उससे मिलती | बड़ा सुकून मिलता उसके परिवार को देखकर | वह भी सपरिवार उसके पास आती-जाती रही थी किन्तु नीरा ने अपनी बीमारी की किसीको भी कानोंकान ख़बर न होने दी थी | नीरा ने किसीको भी बताने के लिए मना कर दिया था, किसीने उसके चेहरे पर शिकन भी नहीं देखी थी जो कोई समझ भी पाता | जब उसकी इहलीला समाप्त हो गई तब उसे पता चला |
" मामी जी ये याद हैंआपको ?"नीरा के घर उसके अंतिम क्रिया-कलाप में जाने पर शिवम ने उसे तीन सेफ़्टीपिन दिखाते हुए पूछा |
अनीता कैसे भूल सकती थी ?कारण, जब भी मिलना होता नीरा व शिवम की शादी के किस्से ज़रूर छिड़ते ---नीरा खूब हँसती और कहती ;
"मामी जी का प्रताप ही था कि ताता उनके साथ हम बच्चों को कुछ शरारत करने देते थे वरना तो मज़ाल ! ताता के सामने हम कोई छोटी-मोटी शरारत भी कर लें |
"आपको ये पिन लौटाने को कह गई थी नीरा कि मामी जी इन्हें देखकर मुझे याद रखेंगी---"
अनीता हाथ में पिनों को लेकर भरभराकर रो पड़ी | नीरा क्या कोई भुलाने की चीज़ थी ?
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