आज सुबह जब मैं उठा तो पहले से खुद को काफी हल्का महसूस किया लगता है रात की दवाई ने असर किया है और लगभग एक महिने की बीमारी के बाद आज मुझे अच्छा महसूस हो रहा था। उम्र के इस पड़ाव में जब जीवन का यथार्थ भी काल्पनिक लगे ,तब.......चंद पलो के लिए मन और शरीर शांत हो जाए तो ऐसा लगता है मानो किसी दिव्य पुरुष ने कोई दिव्य बुटी या चमत्कारी मंत्र दे दिया हो जिसके प्रयोग से जीवन की समस्त समस्याएं ऐसे नष्ट हो जाती है जैसे कपूर को अग्नि भस्मीभूत कर देती है।
उठकर आगे चला, आज घर में चहल- पहल का माहौल था..... शायद बहु ने कोई पूजा रखवाइ हो.........., तो मुझे इसका पता क्यों नहीं........ शायद बीमार था इसलिए न बताया हो या फिर बताया हो और मैं ही ना सुन पाया। खैर बहुत सारे लोग दिख रहे हैं, पोता, बडे़ बेटे का बडा़ लड़का मोबाईल पर व्यस्त है मानो बहुत सारी सामग्रियों को जुटाने का कार्य उसे सौपा गया हो। चलते- चलते बडे़ बेटे के कमरे का पास पहुंचा अन्दर से आवाज आ रही थी। बहु ,बेटे को बोल रही थी..... क्या फायदा कितना कुछ किया तुमने परिवार के लिए, कितनी नौकरियां छोड़ी, परिवार के लिए एक टांग पर खड़े रहे, माँ की कितनी सेवा की, फिर भी तुम्हारे बाप ने गाँव में अपने भतीजों के लिए बिल्डिंग बना दी,....... बेटे ने कहा छोडो़ कोई उनके नाम थोड़े कर दी है वो तो अपनी ही संपत्ति है वे लोग तो केवल देखभाल के लिए रहते हैं........ बहु आवेश में आ गई............ बोली अरे जीवन भर तो तुम्हारे चचेरे भाई लोग ही उस मकान को भोगेंगे, तुमको उस देहात में मरना हो तो जा कर मरो.......... और तो और तुम्हारे बाप ने सारी संपत्ति आधी-आधी बाट दी तुम्हारे उस निखट्टू भाई को इतनी संपत्ति देने का फायदा......... सब के सब हमारी ही छाती पर मूंग दलेंगे...... माँ-बाप ने ना जाने किस डपोरशंख को मेरे गले बांध दिया।
आगे बढा तो छोटे बेटे के कमरे से उसके छोटे से बेटे कि खिलखिलाहट सुनकर उसे गोद में लेने के लिए मन मचल उठा पर समाजिक मर्यादा भी कोई चीज होती है बेटे- बहु के कमरे में अचानक से घुसना मर्यादानकुल न था, और फिर छोटी बहु की आवाज कानो में पड़ी। वह अपने पति को बोल रही थी... सुना तुमने सारी प्रोपर्टी आधे- आधे हिस्से में बटी है अरे बड़े भईया के पास तो नौकरी है उनके बच्चे भी बड़े है, संपत्ति पर ज्यादा अधिकार हमारा था। आगे बढ़ा तो देखा बड़ी बेटी भी आई हुई थी, उसने मुझे देखा और अपरिचितो की तरह हड़बड़ाहट में अंदर चली गई।
अब में छत पर चला गया, बहुत दिनों से खुली हवा में सांस नहीं लिया था। बाहर बगीचे में कुछ संबधी बैठे थे। एक मेरे मामा का लड़का था, बोल रहा था..... बुआ के कारण यहाँ आता हूँ या फारमिलिटी पुरी करने यहाँ आ जाता हूँ, दूसरा एक और ममेरा भाई, जो निर्गुणवाद का प्रचारक था अपनी निर्गुणवाद की दुकान खोले बैठा था। ये आदमी मुझे कतई पसंद नहीं था..... बहु भी न जाने किस किस को बुला लेती है। बाहर सड़क पर देखा तो एक भतीजा बाहर के ठेले पर कचौड़ी जिलेबी खाने में मशगूल था अपने एक साथी को बोल रहा था अरे खा ले खा ले........... आज खाना कब मिलेगा कुछ पता नहीं।
मै नीचे उतरकर हाल में आया जहाँ सुरेखा का वही चिरपरिचित फोटो हार सहित टंगा था। पन्द्रह बर्ष पहले वो मुझे छोड़ के जा चुकीं थी। ये कहना की हम सर्वश्रेष्ठ दंपति थे उचित न होगा यदि गृहस्थी की सौ नंबर की परीक्षा हो तो हमारी गृहस्थी को साठ- पैंसठ अंक अवश्य प्राप्त हो जाएगें
खैर आगे बरामदे में गया जहाँ एक मझौले कद का आईना टंगा रहता था। उसके साथ टंगा था टूथब्रश और टूथपेस्ट का डब्बा। टूथपेस्ट का मोटा ट्यूब मानो एक मोटा सेठ अपने गल्ले पर बैठा हो उसमें लगे ब्रश को देखकर लग रहा था मानो ट्रेन के डिब्बे में अपरिचित यात्री मुह घुमाए बैठे हो...... अचानक मैने आइने को देखा उसमें मेरा अक्स नही था, मैं भागकर अपने कमरे में गया और अपने आईने में अपनी छवि को ढूँढने लगा पर मेरी छवि आईने में नहीं बन रही थी और तभी किसी ने मेरे कंधे पर हाथ रखा, पीछे मुड़ा........ तो सुरेखा ने कहा पन्द्रह बर्ष इंतजार करवाया तुमने
अब मैं जान गया कि आईने में मेरा प्रतिबिंब क्यो नही बना......... क्योंकि आईने की मौत हो चुकी थी
मन्नू भारती