DHRNA - 1 in Hindi Classic Stories by Deepak Bundela AryMoulik books and stories PDF | धरना - 1

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धरना - 1

शाम हों चली थी, सूरज वसुंधरा को कल आने का वादा करके जा चूका था.. शहर की सड़कों पर दिन की अपेक्षा शाम कुछ ज्यादा ही रंगीन दिखाई देने लगी थी...

कहते हैं किसी के जीवन में जिंदगी भी दिन और रात के क्षितिज की तरह होती हैं जो कभी उसे मिल नहीं सकती
इस जहां में ऐसे कई लोग हैं... जो हमेशा जिंदगी की तलाश में हर शाम मरते हैं और हर सुबह नई आश के साथ जागते हैं....
.......
शाम रात की और धीरे धीरे रफ्तार पकड़ रही थी, और उसी की रफ्तार में पार्टी का शुरूर भी बढ़ता जा रहा था यहां कुछ लोग नशे में कोने खोपचे में पड़े थे तो कुछ अभी भी मदहोशी के आलम में वेखबर थे तो वही कुछ मस्ती के आलम में चूर हो कर हफ्ते भर की मशक्क्त को की जकड़ी ज़ंजीरो को तोड़ने में चूर थे....
क्योंकि कल सुबह फिर हफ्ते भर की भाग दौड़ में जो शरीख होना हैं....
जस्न का म्यूजिक इतना लाउड था कि किसी को कानों कान सुनाई तक नहीं दे रहा था सब संगीत के शोर में चिल्लाये जा रहे थे.... वही भीड़ से हाट कर कुछ लोग अलग अलग टेबलों पर बैठ कर रात के डिनर का आनंद ले रहे थे... वेटर एक टेबल के पास आता हैं जिस पर प्रिया बैठी हैं... वो वेटर को देख कर एक दम चौक जाती हैं.. और उसके मुंह से तेज़ आवाज़ के साथ एक नाम निकलता हैं... "सूरज".....!
वेटर उस पर नज़र अंदाज़ करके चुप चाप सर्व करता रहता हैं जबकि प्रिया उसे गौर से देखते हुए फिर पूछती हैं..
तुम सूरज हो ना....?
प्रिया के दोस्त भी उस वेटर को देखने लागते हैं
वेटर प्रिया को चोरी की नज़रों से देखता हैं... और बिना कुछ कहे वहां से जाने लगता हैं... तभी प्रिया थोड़ा गर्म लहज़े में ख़डी होती हुई बोलती हैं
A you....मैं तुम से बात कर रही हूं... क्या सुनाई नहीं देता क्या...?
तभी प्रिया के दोस्त ने पूछा
Annie problam priya....?
तब तक वेटर भीड़ का फायदा उठा कर उनकी आंखो से ओझल हो चूका था...
Sit यार ये... ये... सूरज ही था
अरे कौन सूरज प्रिया...? प्रिया के हसबेंड ने प्रिया से पूछा था.
ये.... वो सूरज हैं निखिल जो मेरी क्लास में था... जिसने तुम्हे और मुझें एक होने में मदद की थी... वसुंधरा का सूरज....!
क्या ये वो सूरज था..जभी वो यहां से तेज़ी से भगा हैं... तुम रुको मैं उसे लेकर आता हूं.. निखिल उठ कर जाने लगता हैं... तभी प्रिया भी उसके साथ चलने का बोलती हैं.. रुको निखिल मैं भी चलती हूं... और दोनों सूरज को भीड़ में ढूढ़ने लगते हैं...
निखिल देखो वो वहा....
और दोनों सामने दिख रहे वेटर के पास पहुंच जाते हैं जो फ़ूड स्टॉल पर खड़ा होकर खाने की ट्रे ले रहा था निखिल उसके कंधे पर हाथ रख कर बोलता हैं.
सूरज....
वो वेटर उनकी तरफ पलटता हैं... लेकिन वो सूरज नहीं होता हैं
जी मेम सूरज उधर किचिन में मिलेगा...
किधर... प्रिया ने उत्सुकता वस पूछा था..
वो गेट से सीधे अंदर चले जाइएगा सामने ही किचन हैं वो अभी अभी वही गया हैं...
इतना सुनते ही वो दोनों उस ओर तेज़ी से चले जाते हैं....
उनके जाते ही वेटर आवाज़ लगाता हैं
सूरज... बाहर आजा भाई वो लोग किचन की तरफ चले गये हैं
सूरज टेबल के निचे से बाहर निकलता हैं...
Thanx पवन... अब मैं यहां से निकलता हूं... मैनेजर पूछे तो बोल देना अचानक तबियत खराब होने के कारण जाना पड़ा...
ठीक हैं तू जा... ये ले रूम की चाबी..
सूरज जाते जाते रुकता हैं...
अब क्या हुआ...?
मैं उन लोगो को किचन में नहीं मिलूंगा तों वो फिर तेरे पास आएंगे..
तू इसकी चिंता मत कर उन्हें मैं सम्हाल लूंगा...अभी तू जा...
अगला भाग पार्ट -2 में पढ़े... !