Satya - 19 in Hindi Fiction Stories by KAMAL KANT LAL books and stories PDF | सत्या - 19

Featured Books
Categories
Share

सत्या - 19

सत्या 19

सब-इन्सपेक्टर केस डायरी लिख रहा था जब उसे थाने के बाहर औरतों के द्वारा लगाए गए नारे सुनाई पड़े. उसने एक सिपाही को आवाज़ दी, “क्या हो रहा है बाहर, ये कौन हल्ला कर रहा है?”

सिपाही बाहर झाँक कर आया और बोला, “माडर्न बस्ती की औरतें हैं. बोलती हैं बस्ती में चल रही सरकारी दारू दुकान बंद कराओ.”

सब-इन्सपेक्टर, “ऐसे कैसे बंद करा सकते हैं? उनके लीडर को भेजो अंदर, समझाते हैं.”

सिपाही ने बाहर निकलकर आवाज़ लगाई, “दो लोग अंदर आ जाओ. केवल दो लोग आएँगे. बाकी बाहर इंतज़ार करें.”

दरवाज़े पर खलबली मच गई. सविता और गोमती अंदर आ गए. लेकिन बाकी भी ठेल-पेल कर अंदर खिसकने लगीं.

सिपाही चिल्लाया, “अरे-अरे, सब कहाँ चली आ रही हो? केवल दो लोग बस, बाकी बाहर रुको. चलो बाहर सब.”

कोई नहीं हिला. सविता ने सब-इन्सपेक्टर से कहा, “गुड ईवनिंग सर. आई ऐम सविता ऐंड शी इज़ गोमती. वी आर फ्रॉम मॉडर्न बस्ती. वी हैव कम हियर टू रिक्वेस्ट यू टू प्लीज़ क्लोज़ द ...... सरकारी वाईन शॉप इन आवर बस्ती.”

उसको अंगरेजी में बोलता देखकर सब-इन्सपेक्टर और सिपाही दोनों चौंके. सब-इन्सपेक्टर संभल कर बैठ गया. उसने मेज़ पर पड़ी पेपर वेट से खेलते हुए कहा, “आप ही बोल रही हैं कि सरकारी दुकान है. इसका मतलब उसके पास बाकायदा लाईसेंस है शराब बेचने का. उसको हम कैसे कह सकते हैं बंद करने के लिए?”

इस बार गोमती बोली, “और हमलोगुन का क्या?”

सब-इन्सपेक्टर थोड़ा असमंजस में पड़ गया, “हम समझे नहीं आपलोगों की बात का मतलब.”

गोमती, “सरकार बोलता है दारू बेचो और हमरा बस्ती का लोग दारू पी-पी कर जवानी में ही मर जाता है. हमरा दामाद पच्चीस बरस का उमर में दारू पीकर मर गया और मेरा बेटी को बिधबा छोड़ के गया,” उसने भीड़ में से अपनी बेटी निर्मला को खींच कर सामने किया, “ये देखो, ये कोई उमर है बिधबा होने का? वही हमलोगुन पूछता है, हमलोगुन का बारे में कौन सोचता है?”

सब-इन्सपेक्टर को जवाब देते नहीं बना. वह अपनी कुर्सी पर बैठा कसमसाया. सविता ने आगे कहा, “सर यू प्लीज़ डू समथिंग फॉर अस. प्लीज़ राईट आवर कम्प्लेंट. हम लोगों की बात आप सरकार तक पहुँचाईये. हमारी थोड़ी सहायता कर दीजिए. भगवान आपका भला करेगा.”

सब-इन्सपेक्टर बगलें झांकने लगा. गोमती ने भी गुहार लगाई, “हमलोगुन के लिए कुछ कीजिए इनिसपेट्टर साहब.”

सब-इन्सपेक्टर द्विविधा में पड़ गया, “देखिये, ये मामला उत्पाद विभाग का है. हम इसमें कुछ नहीं कर पाएँगे.”

तभी सत्या हड़बड़ाता हुआ अंदर आया. उत्पाद विभाग की बात सुनकर बोला,

“चलो-चलो तुमलोग, हम बताते हैं कहाँ है उत्पाद विभाग. चलो, बाहर चलो. कोई हल्ला-हंगामा नहीं.”

औरतें धीरे-धीरे बाहर निकलने लगीं. सब-इन्सपेक्टर ने ग़ौर से सत्या को देखा.

सब-इन्सपेक्टर, “आप कौन हैं?”

सत्या, “जी मैं सत्यजीत पाल हूँ. एस. डी. ओ. कार्यालय में काम करता हूँ. इसी बस्ती में रहता हूँ. आप निश्चिंत रहें, ये कोई हंगामा नहीं करेंगी.”

सब-इन्सपेक्टर ने कहा, “लगता तो नहीं है कि मामला यहीं शांत हो जाएगा. मूड तो काफी गरम है इनका. समझाईये इनको. कानून हाथ में लेंगी तो मुसीबत में पड़ेंगी.”

सत्या, “जी, जी समझाते हैं.”

“आप जरा देर रुकिएगा..... सत्यजीत पाल के लिए चाय ले आओ रे कोई.”

एक सिपाही बाहर गया और थोड़ी देर में चाय के ग्लास लेकर अंदर आया. तब तक सत्या सब-इन्सपेक्टर के इशारे पर सामने कुर्सी पर बैठ चुका था, “आईये सत्यजीत बाबू, बैठिए. अब जरा विस्तार से बताईये पूरा मामला क्या है. बरसों से वहाँ शराब का ठेका चल रहा है. अब अचानक क्या बात हो गई कि रातों-रात शराब के खिलाफ हो गईं बस्ती की महिलाएँ?.... और ये जो नेता बनी हुई थी, अंगरेजी बोल रही थी, ये भी इसी बस्ती में रहती है?”

सत्या, “कौन सविता? हाँ-हाँ, तैश में आने पर अंगरेजी में बात करती है.... सविता का पति शंकर कारखाने में काम करता है. रोज़ शाम को शराब पीकर आता है और झगड़ता है. मारता भी है. लेकिन ये बात तो बस्ती के प्रायः सभी घरों में है. टर्निंग पॉएंट तब आया जब उसके पति शंकर को खून की उल्टियाँ होने लगीं और डॉक्टर ने कहा कि उसका लीवर पूरी तरह ख़राब हो गया है. अब एक बूँद शराब भी उसके लिए जानलेवा होगी. लेकिन बस्ती वालों की बदमाशी तो देखिए, नारियल-डाब में दारू छुपाकर इसको पिलाने लगे. यह बात जानने के बाद से सविता पूरी तरह से माँ चंडी बनी हुई है. बस्ती की सभी विधवाएँ और शराबी पतियों की सताई औरतें उसके साथ हैं.”

“आपको क्या लगता है, यह इनका वक्ती जुनून है या...?”

“ये परिवर्तन की आँधी है सर. हमलोगों को इसकी ओर पीठ करके बैठना होगा.”

सब-इन्सपेक्टर काफी देर तक सत्या को घूरता रहा. लेकिन उसके दिमाग में कुछ और

ही चल रहा था. अंत में वह बोला, “हवलदार साब, ज़रा नज़र रखिएगा बस्ती पर. हम तो कहते हैं एक सिपाही वहाँ ड्यूटी पर लगा दीजिए. मामला नाज़ुक है. औरतें चाहेंगी तो दुकान ज़्यादा दिन नहीं चलेगी वहाँ. बस केवल लॉ एँड ऑर्डर का मामला नहीं बनना चाहिए... आप अब जा सकते हैं सत्यजीत जी, धन्यवाद.”

सत्या के बाहर आते ही सारी औरतों ने उसे घेर लिया. सविता ने पूछा, “क्या बोल रहे थे इन्सपेक्टर साहब?”

सत्या, “ऐसे नहीं. अंगरेजी में पूछो सविता, तब बताएँगे.”

सविता को सत्या की बात कुछ समझ नहीं आई. तब सत्या ने ठहाका लगाया. “अरे तुम्हारी अंगरेजी की तारीफ कर रहे थे.”

भीड़ में खुशी की लहर दौड़ गई. सविता ने परेशान होकर कहा, “अब कुछ बताईये भी. हमको क्या करना है, कहाँ जाना है?”

सत्या, “अब सब घर चलते हैं. आराम से खाते हैं और सोते हैं.”

सभी औरतों ने सम्मिलित स्वर में कहा, “नहीं-नहीं.”

शोर होता देखकर सत्या ने हाथ उठाकर उनको शांत किया, “देखो, हम इन्सपेक्टर साहब को सब बात बता दिए हैं. लेकिन शराब की भट्टी को हटाना इनके हाथ में नहीं है. चलो चलकर एक अर्जी लिखते हैं. उसपर तुम सब लोग हस्ताक्षर करके उत्पाद विभाग के साहब को कल जाकर दे देना. अब चलो सब.”

सब चल पड़े. बस्ती पहुँचकर शराब की दुकान के आगे से गुजरती हुई सारी औरतों ने लाठियों को एक ताल में ज़मीन पर पटक कर नारे लगाने शुरू कर दिए.

सविता, “बस्ती से दुकान हटाओ.”

सारी औरतें, “दुकान हटाओ, दुकान हटाओ.”

“ये बस्ती है बाज़ार नहीं. दुकान हटाओ, दुकान हटाओ.”

“दुकान हटाओ, दुकान हटाओ.”

कालिया शांत भाव से दुकान के बाहर खड़ा तमाशा देख रहा था.

“बस्ती से दुकान हटाओ.”

“दुकान हटाओ, दुकान हटाओ.”

सुबह का समय. सविता के घर के आगे औरतों का जमघट लगा था. एक टेबल के आगे बैठी सविता कुछ लिख रही थी और सत्या पास खड़ा लिखा रहा था.

सत्या, “हाँ, तो अबतक क्या लिखा, पढ़ो.”

सविता, “श्रीमान से निवेदन है कि हमारे मॉडर्न बस्ती में जो सरकारी शराब की दुकान है, उसे हम बस्ती की महिलाओं के आग्रह पर तत्काल प्रभाव से बंद किया जाए. हम सभी महिलाओं ने अपनी सहमती देते हुए अपने हस्ताक्षर कर दिए हैं.

“इस शराब की दुकान के कारण बस्ती का माहौल ख़राब हो रहा है. घर-घर में गाली-गलौज और झगड़ा-झंझट होता रहता है. इससे बच्चों की पढ़ाई में मुश्किल हो रही है. नौजवान लोग भी छोटी उमर में शराब के आदी हो रहे हैं और लिवर ख़राब होने के कारण जवानी में ही मर जाते हैं. बस्ती में पचास की उम्र के बस कुछ ही मरद बचे हैं. विधवाओं की संख्या बहुत है.

“परिवार के मुखिया के मर जाने के कारण विधवाओं को बच्चों के लालन-पालन में बहुत कठिनाई हो रही है......हाँ अब आगे बताईये.”

सत्या, “अच्छा पहले ये बताओ. शराब दुकान बंद होने से क्या लोग शराब पीना बंद कर देंगे?”

कई आँखों में नाराज़गी दिखाई दी. सत्या ने जल्दी से कहा, “म..मेरा मतलब है..सब यही पूछेंगे. क्या जवाब दोगे तुमलोग?”

गोमती, “आप दारू का ठेका बंद कराओ न बाबू, फिर देखो हमलोग क्या करता है. जो दारू पिएगा उसका टाँग तोड़ देंगे. बाहर से कोई दारू पीकर आया तो उसका धुनाई करेंगे, बस्ती में घुसने ई नेहीं देंगें.”

कई औरतें एक साथ बोलीं, “हाँ-हाँ घुसने नहीं देंगे बस्ती में.”

सत्या, “देखो तुमलोगों के बोलने पर हम लिखा दिए. लेकिन तुमलोगों की दुख-तकलीफ सुनकर कोई दुकान बंद नहीं कराएगा.”

अचानक सन्नाटा छा गया. सभी चुप, सत्या का चेहरा देखने लगे. सविता ने अंत में पूछा, “तो फिर उपाय क्या है?”

सत्या, “उपाय है न....चलो आगे लिखो..... महोदय से निवेदन है कि शराब की दुकान पर दुकान के मालिक ने एक 12 बरस के बालक को काम पर लगा रखा है. हमारा निवेदन है कि उस बालक को बाल-श्रम से मुक्त कराया जाए.

“पुनः निवेदन है कि शराब की दुकान के ठीक सामने चंडी माता का मंदिर है. शराबियों के हुड़दंग के कारण वहाँ भक्तों की पूजा में विध्न पड़ रहा है.”

गोमती, “कहाँ है चंडी माता का मंदिर? सामने तो तुलसी का घर है.”

सत्या, “है न मंदिर. तुलसी के घर में ही तो मंदिर है.”

सबने तुलसी की तरफ घूम कर देखा. वह घबराकर इधर-उधर देखने लगी. सविता ने पूछा, “कब मंदिर बना? हम लोग तो नहीं देखें?”

सत्या शरारत भरी नज़रों से सबको देखने लगा. बेचारी तुलसी ने घबराकर कहा, “मेरे घर में मंदिर कहाँ है?”

सत्या, “नहीं है तो बना लो सब मिलकर,” सत्या खड़ा मुस्कुरा रहा था.

सविता ने सवाल किया, “इससे क्या होगा?”

सत्या ने बताया, “मंदिर के सामने शराब की दुकान चलाना ग़ैर कानूनी है.”

सब औरतें ख़ामोशी से एक दूसरे का चेहरा तकने लगीं. अचानक जैसे उन्हें सबकुछ समझ में आ गया. एक शोर उठा. झारखंड बुढ़िया सीटी बजाकर नाचने लगी. सब खुश हो गए. अनिता ने ज़ोर से कहा, “सब मिलकर बोलो, चंडी माता की...जै.”

सारी औरतों ने एक स्वर में कहा, “चंडी माता की...जै.”

निर्मला, “माँ काली की.”

“जै”

“चंडी माता की”

“जै”

“माँ काली की”

“जै”

सत्या, “चलो अब आगे लिखो. हमको काम पर जाने में लेट हो रही है...... हाँ तो क्या लिखा ....शराबियों के हुड़दंग के कारण वहाँ भक्तों की पूजा में विध्न पड़ रहा है. अब आगे लिखो... मंदिर के आगे शराब बेचना कानून के ख़िलाफ है. इसलिए श्रीमान से निवेदन है कि शराब की दुकान को बस्ती से दूर कहीं अन्यत्र स्थानांतरित कर दिया जाए. इसके लिए हम बस्ती की सारी महिलाएँ आपका सदा आभारी रहेंगी. ... नीचे लिखो ...आपकी विश्वासी...नीचे जगह छोड़ कर लिखो...मॉडर्न बस्ती की समस्त महिलाएँ. ..और थोड़ी जगह छोड़कर नीचे लिखो प्रतिलिपि. नम्बर एक पर लिखो उपायुक्त महोदय,”

मीरा ने पूछा, “ये कौन है?”

सत्या बताने लगा, “उपायुक्त मतलब डी. सी., डेपुटी कमिशनर. ये जिले के मालिक होते हैं. नम्बर 2 पर एस. डी. ओ., नम्बर 3 पर थाना प्रभारी, नम्बर 4 पर मुखिया, मॉडर्न बस्ती. इसके नीचे सभी लोग एक के नीचे एक अपना नाम लिखकर हस्ताक्षर कर दो. ज़रूरत पड़े तो अलग से पन्ना जोड़ो. सबका हस्ताक्षर या अंगूठे का निशान चाहिए.

“फिर इस ज्ञापन के आठ दस फोटो कॉपी करके ओरिजिनल ज्ञापन उत्पाद विभाग को और फोटो कॉपी बाकी लोगों को खुद जाकर दो. और याद रखना कोई हंगामा नहीं. शांति से जुलुस लेकर जाओ और सबको दे आओ.

“...और हाँ कुछ प्लाकार्ड बना लो....अरे दफ्ती के ऊपर नारे लिखकर हाथ में पकड़ लो....चलो अब नारे लिखो...हुउउउं.. हाँ लिखो मॉडर्न बस्ती से शराब दुकान हटाओ...दूसरा लिखो ज़ीरो टॉलरेंस टू अलकोहल इन मॉर्डन बस्ती..... अगला लिखो ...शराब दुकान हटाओ, मॉडर्न बस्ती को बचाओ.

“हम फिर बता रहे हैं, कोई भी हंगामा नहीं करना. प्रेस वाले पूछें, तो केवल सविता और गोमती ही जवाब देंगी. और कोई कुछ नहीं बोलेगा. हाँ प्रेस वालों को एक-एक फोटो कॉपी दे देना. अब हम चलते हैं और शाम को मिलते हैं. कोई हंगामा नहीं करना.”

सत्या चला गया. महिलाएँ तैयारी में व्यस्त हो गईं.