Faisla - 13 in Hindi Women Focused by Rajesh Shukla books and stories PDF | फ़ैसला - 13

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फ़ैसला - 13

फ़ैसला

(13)

खिड़की पर आकर बैठी चिड़ियों की चहचहाट से नींद खुल गयीं तो देखा कि भगवान भास्कर की एक प्रकाश किरण खिड़की के रास्ते कमरे तक आ गयी है। सिद्धेश ने तुरन्त बिस्तर छोड़ नित्य क्रिया से निवृत होने अटैच बाथरूम में चला। कुछ देर बाद बाहर निकल कर न्यूज देखने के लिए टीवी आन कर दी और सोफे पर नाइट सूट में ही बैठ गया। वह ऐसे बैठा था कि जैसे कल जो हुआ उसे वह भूल चुका है। परन्तु ऐसा था नहीं।

उसी समय चाय की ट्रे हाथ में लिए भोला ने कमरे में प्रवेश किया। उसे देखा! तो सिद्धेश बोल पड़ा - कैसे हो काका? सब ठीक है।

अरे बाबू जी! हम तो ठीक हैं। लेकिन...?

क्या हुआ। कुछ कहना चाहते हो? बोलो-बोलो।

कल आप इतना चुपचाप क्यो थे? आपने न तो चाय पी और नहीं खाना खाया। आखिर क्या हुआ था कल।

अरे! कुछ नहीं। ऐसा कुछ भी नहीं था। सिद्धेश ने बात को घुमाने का प्रया किया।

कुछ तो जरूर था। क्योंकि बोलने वाले आप और इस तरह आकर कमरे में बन्द हो गये। क्या यह बिना कारण ही था। अगर आप नहीं बताना चाहो तो न सहीं। कहते हुए भोला कमरे से बाहर जाने लगा। ýकिये काका! ऐसा नहीं कि मैं तुम्हें बताना नहीं चाहता। काका! अब मृदुला इस घर में कभी नहीं आयेगी।

ऐसा क्यों? बाबू जी! यह क्या कह रहे हो। भोला ने चौंक कर कहा। हां! यही सच है। कल मेेरा और मृदुला का तलाक हो गया। चेहरे पर दुःख और पश्चाताप के भाव सिद्धेश को अपने जाल में खींचते हुए साफ दिखायी दे रहे थे।

अरे! यह क्यो हो गया। बीबी जी ने यह ठीक नहीं किया। पता नहीं उन्हें आप में कौन सी कमी दिखायी दी। जो मेरे राम जैसे बाबू जी से नाता ही तोड़ लिया। इस प्रकार कहते हुए इतना भाव-विभारे हो गया कि उसने सिद्धेश के घुटने पकड़ लिए और आंसुओं को बाहर आने से रोन न सका।

कुछ देर बाद कमरे से जब भोला चला गया तो! यही बात सुगन्धा को भी मालूम हो गयी। वह तो दौड़ी-दौड़ी हड़बड़ाती हुई कमरे में दाखिल हुई। सिद्धेशकी ओर देखते हुए बोली यह मैं क्या सुन रही हूं।

क्या यह सच है।

हां! यही सच है। भरे हुए गले से सिद्धेश बोला।

यह बहुत गलत हुआ। ऐसा नहीं होना चाहिए था। लेकिन इसमें आदमी क्या कर सकता है। शायद ईश्वर ने इतने दिनों के लिए जोड़ी बनायी थी। कहते हुए सुगन्धा सहानुभूति पूर्ण हाथ सिद्धेश के कंधे पर रख कर थपथपाने लगी।

सिद्धेश अपने को नियंत्रित करते हुए सुगन्धा से समिति के बारे में बातें करने लगा। जिससे कि थोड़ा माहौल में परिवर्तन आये। बातों ही बातों में सुगन्धा ने भी महिला कल्याण समिति में कार्य करने की इच्छा प्रकट की। पहले तो सिद्धेश ने कहा-क्या करोगी समिति के झमेले में पड़कर। घर में रहकर भोला काका के कार्यों को देखो। जिससे उनको भी कोई बोलने वाला मिलेगा और अकेले वे ऊबते हैं इससे छुटकारा मिल जायेगा। लेकिन सुगन्धा की दृढ़ इच्छाशक्ति देखते हुए उसे समिति में कार्य करने की हां कहना ही पड़ा। उसको हां कहते ही जैसे सुगन्धा के चेहरे पर चमक आ गयी। वह इतना खुश थी जिस शब्दों में बांधना मुश्किल था क्योंकि उसे अपने जीवन की उचित राह जो मिल गयी थी।

सुगन्धा ने एकाएक कहा - कि मैं आज से ही समिति में कार्य करने जा सकती हूं?

आज से ही सिद्धेश ने अचम्भित होते हुए बोला।

हां-हां। जब समिति में कार्य करना है तो आज से ही आरम्भ करने में क्या बुराई है।

सुगन्धा की इस बात का सिद्धेश उत्तर न दे सका और उसे तैयार होने के लिए कह दिया।

आज सुगन्धा बहुत खुश थी। वह जल्दी से तैयार होने में जुट गयी। इधन सिद्धेश भी नहाने चला गया। कुछ देर बाद दोनों लगभग तैयार हो गये। अब घड़ी ने भी अपनी गति से चलते हुए सुबह 8.30 बजा दिये। घड़ी की ओर देखते ही सिद्धेश ने सुगन्धा से कहा चलो मैं तुम्हें समिति में छोड़ता हुआ ऑफिस चला जाऊँगा। इसलिए जल्दी चलो नहीं तो देर हो जायेगी। दोनों जल्दी से नीचे उतर कर कार में बैठकर चले गये। जाने के बाद भोला ने गेट बंद कर दिया और घर के कार्यों में लग गया।

समिति के गेट पर पहुंचते ही वहां के कर्मचारी और रहने वाली महिलाओं ने सिद्धेश और सुगन्धा का अभिवादन किया। इसके बाद सुगन्धा के साथ सिद्धेश सीधे समिति के कार्यालय पहुंचा और मैनेजर से कहा कि आज से सुगन्धा आपके इस कार्यालय में समिति का कार्य देखेंगी। इसलिए आप इनकी मदद करते हुए इनको यहां हो रहे क्रियाकलापों को ध्यान पूर्वक बताने का कष्ट करिएगा। क्योंकि यह समिति के कार्यों में काफी ýचि रखती हैं। इतना कहकर सिद्धेश कार्यालय के बाहर अपने ऑफिस जाने के लिए कार के पास पहुंच गया। सभी ने उसका अभिवान कदते हुए विदा किया।

यहां सुगन्धा समिति के कार्यों को मैनेजर के साथ मिलकर विधिवत् समझने लगी। उसे यहां के कार्यों में काफी मजा आ रहा था। आज उसका यहां पहला दिन था। इसलिए आधा समय परिचय में ही बीत गया। परन्तु उसके बाद भी उसे रहने वाली एवं कार्य करने वाली महिलाओं से मिलकर व उनसे बातें करके बहुत अच्छा लगा। अलग-अलग जगहों से समाज द्वारा शोषित व प्रताड़ित महिलाएं यहां इस एक छत के नीचे कितने अपनत्व के साथ रहती हैं कि उनकी प्रशंसा करके जीभ भी नहीं थकती। सुगन्धा से सभी प्रेमपूर्वक, सम्मान सहित बातें कर रहीं थीं कि जैसे कोई उनका सगा मिल गया हो।

धीरे-धीरे समय चक्र में बंधे सूर्य भगवान अस्ताचल की ओर पहुंच गये। ऑफिस बंद होने का समय भी हो गया और कार्य करने वाली महिलाओं ने अपना काम बंद कर दिया। इधर सिद्धेश अपने ऑफिस से निकलकर सीधे समिति में पहुंच गया। शायद इस सयम सुगन्धा उसकी प्रतीक्षा ही कर रही थी। उसे देखते ही वह अपना पर्स लेकर उठ खड़ी हुई। सिद्धेश ने भी लोगों से उनकके दुःख दर्द पूछे और इसके बाद सुगन्धा सहित कार में बैठकर अपने घर की ओर चल दिया। रास्ते में कपूरथला मार्केट के पास एक चाट ठेले के पास उसी कार रूक गयी। सिद्धेश ने सुगन्धा से चाट खाने का आग्रह किया जिसे वह मना न कर सकी। चाट खाने के बाद दोनों सीधे घर पहुंच गये।

घर पहुंच कर जब खाने के बाद सुगन्धा समिति की बातें बतायी तो भोला और सिद्धेश दोनों बहुत खुश थे। खुशी इस बात की, कि वह समिति में रहकर अपने अतीत से थोड़ा अलग रह पायेगी और उसको नये-नये कार्यों को देखकर समस्याओं से लड़ने और जिन्दगी जीने की हिम्मत बंधेगी। सिद्धेश ने कुछ ही शब्दों में उसका हौसला भी बढ़ाया।

फिर क्या था सुगन्धा का मन समिति में लग गया और दिन, महीने बीतने लगे। अब तो सुगन्धा को बिना समिति जाये चैन ही नहीं पड़ता था और वहां के लोग बिना सुगन्धा के अपने को अधूरा समझने लगे थे। यह सब सम्भव हुआ उसके कठिन परिश्रम और अपनत्वपूर्ण व्यवहार के कारण। जिसने सुगन्धा को सबकी चहेती बना दिया। उसने समिति की गई जिम्मेदारियों का बोझ अपने कन्धों पर ले लिया। लगभग एक वर्ष में ही उसके बिना जैसे समिति का कोई कार्य ही नहीं चलता था।

इधर उसका केस भी न्यायालय में चल रहा था। वह समय-समय पर सिद्धेश के साथ पेशी पर भी जाती थी। वैसे केस कुछ लम्बा ही खिंच गया था। फिर भी खन्ना जी एडवोकेट और इन्स्पेक्टर शर्माजी ने इस केस में सुगन्धा की काफी मदद की। जहां पर कमजोर पड़ने लगती तो इन लोगों ने समय-समय पर उसको हिम्मत बंधायी। वैसे इस केस में खर्चे की जिम्मेदारी तो सिद्धेश ने ही ले रखी थी। जिसमें उसने कभी कोई कमी नहीं आने दी। सुगन्धा भी इन सबका हृदय से आभार मानती थी। यह केस अब धीरे-धीरे निर्णायक स्थिति में पहुंचने वाला था। जिसका सभी को बेसब्री से इन्तजार था और सबसे अधिक सुगन्धा को।

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