दिल की ज़मीन पर ठुकी कीलें
(लघु कथा-संग्रह )
16-गुड़िया का ब्याह
शायद विधाता ने ही लड़कियों में विशिष्टता भरकर उन्हें सँवारा है कि वे सदा गुड़ियों के और अपने और साज-श्रृंगार के प्रति आकर्षित व सचेत रहती हैं |
आभा जब अपनी बिटिया मीनू को मंहगी गुड़ियों से खेलते देखती है, उसे अपने बचपन के दिन याद आते हैं |एक आम घर में मीनू का जन्म हुआ था, पिता उस छोटे से शहर के पोस्ट-ऑफ़िस के पोस्टमास्टर थे | यूँ तो उनके पास कई लोग थे पोस्टऑफ़िस का काम करने वाले पर बच्चों को अपने काम स्वयं ही करने का आदेश था, पिता की दृष्टि में पोस्ट-ऑफ़िस के लोगों से घर का काम करवाने की कोई ज़रुरत न थी, न ही तुक !
"पिता जी, गुड़िया चाहिए ---" आभा ठुनकती हुई बोलती |
"अपनी अम्मा से कहकर बनवा लो न !"
" अम्मा, निवि के पास कितना सुंदर गुड्डा है, उसका ब्याह करना चाहती है वो --हमारे पास तो गुड़िया ही नहीं है, उसका ब्याह न कर देते, कितने बड़े घर में जाती हमारी गुड़िया ---" आभा के चेहरे पर निराशा देखकर अम्मा ने गुड़िया बनाने की ठानी | वो अधितर सबके कपड़े घर पर सीतीं थीं सो कपड़ों का एक बड़ा पोटला उनके पास जमा हो गया था |
"जा भागकर स्टोर में से पोटला ले आ, कपड़ों का ---"
अम्मा ने बेटे से मशीन निकलवाकर धूप में रखवाई और सब काम से निवृत्त होकर आभा के लिए गुड़िया बनाने बैठ गईं |
आभा की पक्की में पक्की सहेली इंद्रा भी पहुंच गई और दो घंटे में अम्मा ने इतनी खूबसूरत गुड़िया बनाई कि दोनों लड़कियाँ पलक झपकना भूल गईं | माँ ने उस गुड़िया को अपने गोटे-किनारे वाली ज़री की साड़ी के बचे हुए पुराने संजोकर रखे गए कपड़े से सुंदर सा लहंगा, ओढ़नी, चोली पहनाकर गुड़िया सजा दी और लड़कियों को आश्वासन दिया कि समय मिलने पर वो गुड़िया के खूब सारे कपड़े बना देंगीं |एक खिलौने बेचने वाला आता था, गिलट के गहने उससे ले लिए गए थे |
अब गुड़िया दिखाई का प्रोग्राम हुआ, निवि का गुड्डा बाज़ार का था पर आभा की गुड़िया के सामने फीका था | निवि अपनी सहेलियों के साथ गुड़िया की मुँह-दिखाई कर गई और दो दिन बाद सगाई और शादी का मुहूर्त निकाला गया | निवि के ड्राइवर का बेटा वीरू पंडित जी बना, बडम--गड़म पढ़कर न जाने उसने कौनसे मंत्र पढ़े | अम्मा का हँसकर बुरा हाल था पर वो बरातियों के लिए स्वादिष्ट भोजन बनाने में रसोईघर से ही सब लीला देखकर खुश होती रहीं |और सब काम-काज संपन्न हो गए थे |
"दहेज़ दिखाओ ---" निवि अपने गुड्डे व बहू को लेकर कार में बैठने ही वाली थी कि दरवाज़े पर ठिठक गई |
"हमने तो ये कपड़े बनवाए हैं, तुमने बढ़िया खाना कहा था, हमने बरातियों का खाना कितना अच्छा किया|हमारी अम्मा ने कितनी अच्छी खीर-पूरी बनाई"आभा को समझ में नहीं आ रहा था, क्या कहे ?
"गाड़ी कहाँ है ? तुम्हारी बेटी को किसमें बिठाकर ले जाएंगे ?"निवि रौब से बोली |
"है तो तुम्हारी इतनी बड़ी गाड़ी, इसमें बिठाओ ---हम कहाँ से लाएँ गाड़ी ?"आभा सकपका रही थी |
"नहीं जी, गाड़ी लाओ, नहीं तो हम तुम्हारी बेटी को यहीं छोड़ जाएंगे ---निवि ने फिर रौब झाड़ा|
निवि का मतलब छोटी बच्चों वाली मोटर से था | वह चाहती थी जब वह उनकी गुड़िया को इतने बड़े अमीर घर के गुड्डे से ब्याह कर ले जा रही है तो आभा को भी तो उसके स्टैंडर्ड से शादी करनी चाहिए न ! बच्चे जैसा देखते हैं, वैसी ही छाप उनके मस्तिष्क पर पड़ जाती है |
" ये मत समझना तुम अमीर हो तो हम कुछ कम हैं ---अपनी बेटी को घर में रख लेंगे पर तुम्हारे जैसे लालची के घर नहीं भेजेंगे ---और सुनो, बुलाऊँ पुलिस को ---पता नहीं है, दहेज़ मांगना अपराध है --"इंद्रा जाटनी थी और किसीके काबू में नहीं आती थी |
बारात बिना दुल्हन वापिस चली गई पर इंद्रा ने अपनी सहेली को दो आने की मोटर खरीदने नहीं दी | आभा अपनी बिटिया को उसकी गुड़ियों को सजाते देख रही थी, दो दिन पहले मीनू उससे अपनी उस अँग्रेज़ गुड़िया रूमी की शादी की बात कर रही थी जो उसके पापा इंग्लैण्ड से लाए थे और जो जॉन नाम के गुड्डे के प्यार में पड़ गई थी| मीनू ने उसे बताया था और आभा का हँसी के मारे बुरा हाल हो गया था, वह ज़माने में आने वाली तब्दीलियों के बारे में सोचने को बाध्य थी |
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