Desh Virana - 12 in Hindi Motivational Stories by Suraj Prakash books and stories PDF | देस बिराना - 12

Featured Books
Categories
Share

देस बिराना - 12

देस बिराना

किस्त बारह

सारी तैयारियां हो गयी हैं। सामान से भी मुक्ति पा ली है। तनावों से भी। बेशक एक दूसरे किस्म का, अनिश्चितता का हलका-सा दबाव है। पता नहीं, आगे वाली दुनिया कैसी मिले। जो कुछ पीछे छूट रहा है, अच्छा भी, बुरा भी, उससे अब किसी भी तरह का मोह महसूस करने का मतलब नहीं है। पूरे होशो-हवास में सब कुछ छोड़ रहा हूं। लेकिन जो कुछ पाने जा रहा हूं, वह कैसे और कितना मिलेगा, या मिलेगा भी या नहीं, इसी की हलकी-सी आशंका है। उम्मीद भी और वायदा भी। वैसे तो इतना कुछ सह चुका हूं कि कुछ न मिले तो भी कोई फ़र्क नहीं पड़ेगा।

आज की आखरी डाक में दारजी का खत है। पत्र खोलने की हिम्मत नहीं हो रही। फिर कोई मांग होगी या मुझे किसी न किसी चक्कर में फांसने की उनकी कोई लुभावनी योजना। सोचता हूं अब जाते-जाते मैं उनके लिए क्या कर सकता हूं। पत्र एक तरफ रख देता हूं। बाद में देखूंगा।

एयरपोर्ट के लिए निकलने से पहले पत्र उठा कर जेब में डाल लिया था। अलका और देवेन्‍द्र साथ आये थे। मैं सिक्युरिटी एरिया जा रहा हूं और वे दोनों आंखों में आंसू भरे मुझे विदा करके लौट गये हैं। मैंने आज तक किसी भी परिवार से इतना स्नेह नहीं पाया जितना इन दोनों ने दिया है। दोनों सुखी बने रहें।

उनसे वादा करता हूं - उन्हें पत्र लिखता रहूंगा।

जेब में कुछ कड़ा महसूस होता है। देखता हूं - दारजी का ही पत्र है। खोल कर देखता हूं

- बरखुरदार,

जीते रहो।

एक बार फिर तेरे कारण मुझे उस बछित्तरे के आगे नीचा देखना पड़ा। वो तो भला आदमी है इसलिए बयाने के पैसे लौटा दिये हैं वरना.... अब तेरे हाथों ये भी लिखा था हमारी किस्मत में। अच्छा खासा घर मिट्टी के मोल मिल रहा था, तेरे कारण हाथ से निकल गया। बाकी खबर यह है कि बिल्लू के लिए एक ठीक-ठाक घर मिल गया है। उम्मीद तो यही है कि बात सिरे चढ़ जायेगी। बाकी रब्ब राखा। सोचते तो यही हैं कि कुड़माई और लावां फेरे एक ही साथ ही कर लें। पता नहीं अब कैसे निभेगा। तेरी बेबे चाहती है कि तू अब भी आ जाये तो तेरे लिए भी कोई अच्छी सी कुड़ी वेख कर दोनों भराओं की बारात एक साथ निकालें। अगर तुझे मंजूर हो तो तार से खबर कर और तुरंत आ। बाकी अगर तूने क्वांरा ही रहने का मन बना लिया हो तो कम से कम बड़े भाई का फरज निभाने ही आ जा। हम लड़की वालों को कहने लायक तो हो सकें कि हमारे घर में कोई बड़ा अफसर है और हम किसी किस्म की कमी नहीं रहने देंगे। बाकी तू खुद समझदार है.।

खत मिलते ही अपने आने की खबर देना।

बेबे ने आसीस कही है।

तुम्हारा

दारजी।

तो यह है असलियत। खत लिखना तो कोई दारजी से सीखे। उन्होंने रुपये पैसे को लेकर एक भी शब्द नहीं लिखा है लेकिन पूरा का पूरा खत ही जैसे आवाजें मार रहा है - तेरे छोटे भाई की शादी है और तू घर की हालत देखते हुए मदद नहीं करेगा तो तुझे बड़ा कौन कहेगा...।

सॉरी दारजी और सॉरी बिल्लू जी...अब वाकई देर हो चुकी है। इस समय मैं एयरपोर्ट की लाउंज में बैठा आपका पत्र पढ़ रहा हूं। अब मैं बैंक, चैक या ड्राफ्ट की सीमाओं से बाहर जा चुका हूं। रात के बारह बजे हैं। सारे बैंक बंद हो चुके हैं। बैंक खुले भी होते तो भी उसमें रखे सारे पैसे किसी और के नाम हो चुके हैं। वैसे दारजी, आपने दहेज के लेनदेन की बात तो पक्की कर ही रखी होगी। मैं मदद न भी करूं तो चलेगा। वैसे भी सिर्फ एक घंटे बाद मेरी फ्लाइट है और मैं चाह कर भी न तो अपने छोटे भाई की शादी में शामिल हो पाऊंगा और न ही तुम लोगों को ही इसी महीने लंदन में होने वाली अपनी शादी में बुलवा पाऊंगा।

फलाइट का समय हो चुका है। सिक्योरिटी चैक हो चुका है और बोर्डिंग कार्ड हाथ में लिए मैं लाउंज में बैठा हूं।

तो!! अलविदा मेरे प्यारे देश भारत। तुमने बहुत कुछ दिया मुझे मेरे प्यारे देश! बस, एक घर ही नहीं दिया। घर नाम के दो शब्दों के लिए मुझे कितना रुलाया है.. क्या क्या नहीं दिखाया है मुझे..। हर बार मेरे लिए ही घर छलावा क्यों बना रहा। मैं एक जगह से दूसरी जगह भटकता रहा। खोजता रहा कहां है मेरा घर!! जो मिला, वह घर क्यों नही रहा मेरे लिए !! आखिर मैं गलत कहां था और मेरा हिस्सा मुझे क्यों नहीं मिला अब तक। अब जा रहा हूं दूसरे देश में। शायद वहां एक घर मिले मुझे!! मेरी राह देखता घर। मेरी चाहत का घर। मेरे सपनों का एक सीधा सादा सा घर। चार दीवारों के भीतर घर जहां मैं शाम को लौट सकूं। घर जो मेरा हो, हमारा हो। कोई हो उस घर में जो मेरी राह देखे। मेरे सुख-दुख की भागीदार बने और अपनेपन का अहसास कराये। जहां लौटना मुझे अच्छा लगे न कि मजबूरी।

सॉरी गुड्डी, तुम्हें दिये वचन पूरे नहीं कर पाया। तुममें हिम्मत जगा कर मैं ही कमज़ोर निकल गया। अब अपना ख्याल तुम्हें खुद ही रखना है। बेबे मैं तुम्हें कभी सुख नहीं दे सका। हमेशा दुख ही तो दिया है। बाकी तेरे नसीब बेबे। देख ना तेरे दो-दो लड़कों की शादियां हो रही हैं लेकिन बड़ा लड़का छोटे की शादी में नहीं होगा और बड़े की शादी में तो खैर, तुम्हें बुलाया ही नहीं जा रहा है।

मेरी आंखों से आंसू बह रहे हैं। मैंने ऐसा घर तो नहीं चाहा था बेबे..।

मैं घड़ी देखता हूं। जहाज में चढ़ने की घोषणा हो चुकी है।

तभी अचानक सामने बने एसटीडी बूथ की तरफ मेरी निगाह पड़ती है। सोचता हूं, जाते जाते बड़े भाई का तथाकथित फर्ज भी अदा कर कर दिया जाये। मैं तेजी से एसटीडी बूथ की तरफ बढ़ता हूं। नंदू का नम्बर मिलाता हूं।

घंटी जा रही है। आधी रात को आदमी को उठने में इतनी देर तो लगती ही है।

लाइन पर नंदू ही है।

- नंदू सुन, मैं दीपू बोल रहा हूं।

- बोलो भाई, इस वक्त!! खैरियत तो है। वह पूरी तरह जाग गया है।

- तू मेरी बात सुन पूरी। मेरे पास वक्त कम है, मैं बस पांच-सात मिनट में ही लंदन चला जाऊंगा। गुड्डी तुझे पूरी बात बता देगी। आज ही दारजी की चिट्ठी आयी है, बिल्लू की शादी कर रहे हैं वे। मैं यहां सारे खाते बंद कर चुका हूं और मेरे पास पैसे तो हैं लेकिन समय नहीं है।... मैंने गुड्डी के पास कुछ कोरे चैक भेजे हैं। ये पैसे मैंने गुड्डी की पढ़ाई और शादी के लिए अलग रखे थे। वो ये चैक तेरे पास रखवाने आयेगी। तू इसमें से एक चैक पर पचास हज़ार की रकम लिख कर पैसे निकलवा लेना और दारजी को देना। करेगा ना मेरा ये काम..? उसके लिए बाद में और भेज दूंगा।

- तू फिकर मत कर। तेरा काम हो जायेगा। अगर गुड्डी चैक नहीं भी लायेगी तो भी दारजी तक रकम पहुंच जायेगी। और कोई काम बोल..?

- बस, रखता हूं फोन। फ्लाइट के लिए टाइम हो चुका है।

- ओ के गुड लक, वीरा, अपना ख्याल रखना।

- ओ के नंदू। खत लिखूंगा।

मैं फोन रखता हूं और जहाज की तरफ लपकता हूं।

***