Bhadukada - 1 in Hindi Fiction Stories by vandana A dubey books and stories PDF | भदूकड़ा - 1

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भदूकड़ा - 1


जिज्जी….. हमें अपने पास बुला लो…” बस ये एक वाक्य कहते-कहते ही कुंती की आवाज़ भर्रा गयी थी. और इस भर्राई आवाज़ ने सुमित्रा जी को विचलित कर दिया. मन उद्विग्न हो गया उनका, जैसा कि हमेशा होता है. जितनी परेशान कुंती न हो रही होंगीं, उतनी सुमित्रा जी हो गयी थीं. मोबाइल पर तो बस इतना ही कह
पाईं-
“ का हुआ कुंती? इतनी परेशान काय हो? का हो
गओ? आवै की का है, आ जाओ ई मैं पूछनै का है?”
आगे और भी कुछ कहना चाहती थीं सुमित्रा जी, लेकिन दूसरी तरफ़ से फोन कट गया. सुमित्रा जी ने लगाया भी, तो हमेशा की तरह दूसरी तरफ़ उठा नहीं. सुमित्रा जी जानती थीं, कुंती ने अपनी बात कहने के लिये फोन लगाया था, उनकी सुनने के लिये नहीं. हमेशा यही होता है….!
ये जो सुमित्रा जी हैं न, बहुत भोली हैं. ज़रूरत से ज़्यादा भोली. इतना भोलापन इस दुनिया में तो अब मिलता नहीं, पहले कभी मिलता रहा होगा, तभी तो सुमित्रा जी भी इस भोलेपन की शिकार हैं. तीन बहनें और तीन भाई हैं सुमित्रा जी. सब भाई बहनों में सुमित्रा जी तीसरे नम्बर की हैं. अब नाम के साथ सम्मानजनक शब्द- ’जी’ लगा देख के तो आप समझ ही गये होंगे, कि ये सुमित्रा जी निश्चित रूप से उम्रदराज़ हैं. है कि नहीं? खैर! आप समझे हों या नहीं, हमें कथा आगे बढ़ाने दीजिये वरना फिर यहीं अटक जायेंगे, और आप कहेंगे कि इधर-उधर की बातें बनाने की तुम्हारी बहुत आदत है, मुद्दे की बात छोड़ के!!
कुंती का फोन आने के बाद अब सुमित्रा जी फिर परेशान हैं. हमेशा ही ऐसा होता है….. कुंती का रोते-धोते फोन आता है और फिर जब तक कुंती उनके पास आ न जायें, तब तक सुमित्रा जी को चैन नहीं. मैने बताया था कि सुमित्रा जी बहुत भोली हैं, सो वे कुंती के ऐसे रोते-धोते फोन आने के बाद हमेशा ही सचमुच बेचैन हो जाती हैं, जबकि उधर से कुंती का फोन केवल सुमित्रा जी को परेशान करने के लिये होता है. रोनी आवाज़ के साथ फोन करने के ठीक बाद कुंती के चेहरे पर एक कुटिल मुस्कान होती है. ये क्रम पिछले चालीस सालों से जारी है. ऐसा नहीं है कि सुमित्रा जी कुंती को नहीं जानतीं या उनकी हरक़तों को नहीं जानतीं. बस उनका भोलापन आड़े आ जाता है. आड़े तो उनकी माफ़ करने की आदत भी आ जाती है वरना कोई और बहन होती तो अपनी देहरी न चढ़ने देती ऐसी मंथरा को. क्या कुछ नहीं किया सुमित्रा जी ने कुंती के लिये, और बदले में कुंती ने क्या दिया ? दिया तो कुछ नहीं, हां सुमित्रा जी का सम्मान छीनने की भरपूर कोशिश ज़रूर की. कोशिश तो उन्हें बदनाम करने की भी बहुत की लेकिन असल में जो किसी का बुरा नहीं करता, अन्तत: उसका भी कोई बुरा नहीं कर पाता, लाख कोशिशों के बावजूद. अब भाई किसी के साथ अगर उल्टा हुआ हो, माने अच्छा करने पर भी उसका बुरा हुआ हो, तो हमें गाली न देने लगना. हमने तो सुमित्रा जी और कुंती के मामले में जो देखा, वही लिखा. आप भी वैसे अब चिढ़ने लगे होंगे कि क्या सस्पेंस क्रियेट कर रहे हम भी. पूरी बात बताते क्यों नहीं आखिर क्या किया कुंती ने? तो लो भाई अब बता ही देते हैं. आप हुंकारा भरते रहियेगा.

(क्रमशः )