Sabreena - 29 in Hindi Women Focused by Dr Shushil Upadhyay books and stories PDF | सबरीना - 29

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सबरीना - 29

सबरीना

(29)

वो खत, जो उन्होंने मेरी मां को लिखे थे।’

सुशांत और सबरीना काफी देर तक ऐसे ही खड़े रहे। डाॅ. मिर्जाएव ने सबरीना को टोका, ‘चलो, अब यहां से जल्द निकलना चाहिए। यूनिवर्सिटी ही चलते हैं। वहां पर ठहरने का कुछ न कुछ इंतजाम हो जाएगा।‘ जारीना और सबरीना ने सामान समेटा, होटल की बुकिंग कैंसिल कराई और बाहर निकल लिए। अब चारों लड़कियां भी उनके साथ थीं। उनके बाहर निकलने पर होटल स्टाफ ने भी राहत की सांस ली। चूंकि, होटल संचालकों ने कोई गैरकानूनी काम नहीं किया था इसलिए डाॅ. मिर्जाएव को वहां से तुरंत निकलना ही ठीक लगा। डाॅ. मिर्जाएव ने सुशांत की ओर देखते हुए कहा, ‘ यहां के कानून के मुताबिक किसी व्यस्क लड़की और पुरुष को अनैतिक गतिविधियों के लिए होटल के भीतर से नहीं पकड़ा जा सकता। न ही ऐसे मामलों में लिप्त विदेशियों को गिरफ्तार किया जा सकता। पर, आज के मामले में पुलिस और होटल प्रबंधन, दोनों ही दबाव में थे इसलिए हम लोग आसानी से अपना काम पूरा कर पाए। अब यूनिवर्सिटी पहुंच जाएंगे तो सभी पूरी तरह सुरक्षित हांेगे। यहां कई तरह के गठजोड़ काम करते हैं। ऐसे में जरूरी नहीं है कि कानूनी एजेंसियां हमेशा आपकी मदद कर पाएं या करने की इच्छुक हों।’ सुशंात को ये तमाम बातें समझने में देर नहीं लगी क्योंकि उसके अपने मुल्क का सिस्टम भी तो इससे अलग नहीं है।

वैसे तो मौके-बेमौके सबरीना और जारीना सुशांत को भौचक्का करती रही हैं, लेकिन इस बार वो पहले से ज्यादा भौचक्का हुआ। जैसे ही, वो गाड़ी में बैठने को हुआ, सबरीना ने रोक दिया, ‘ रुकिए, प्रोफेसर। जरा, लड़कियों के कपड़े चेंज करा दें। ऐसे कपड़ों में हर किसी की इन पर निगाह रहेगी।‘ सुशांत को स्थिति को समझने में थोड़ा वक्त लगा। उसे इस बात की हैरत हुई कि जारीना और सबरीना के लगैज में अलग-अलग आकार-प्रकार की ड्रैसेज थी। ड्रैसेज क्या थी, वो स्कूल-काॅलेज की यूनिफाॅर्म थीं। दो-दो लड़कियां गाड़ी में अंदर गईं। सबरीना और जारीना ने उनके साइज के कपड़े पहचानने और पहनने में मदद की। कुछ ही देर में चारों लड़कियों का रंग-ढंग पूरी तरह बदला हुआ दिख रहा था। पहली नजर में वे किसी स्कूल की छात्रा लग रही थीं। सुशांत की ओर देखकर सबरीना बोली,‘ सारी तैयारी रखनी पड़ती है प्रोफेसर। अब ये लड़कियां लगभग सुरक्षित हैं। लगभग इसलिए कि एक बार यूनिवर्सिटी पहुंच जाएं और फिर कल ताशकंद के लिए निकल पड़ें तो फिर किसी तरह का खतरा नहीं है।’ सुशांत ने सिर हिलाया, जैसे पूरी बात को ठीक वैसे ही समझ गया हो, जैसे कि सबरीना समझाना चाह रही है। वो जब भी सबरीना को देखता है तो इस बात को महसूस करता है कि सबरीना अपने भावों को बहुत जल्द काबू में कर लेती है। हालांकि, उसके आवेगों का प्रवाह बहुत तेज होता है, पर उसे दूसरी परिस्थिति में ढलने में ज्यादा वक्त नहीं लगता।

ठिगने कद की हसीनोवा और डाॅ. मिर्जाएव गाड़ी में अगली सीटों पर बैठे। बीच की सीटों पर बाकी तीनों लड़कियों के साथ जारीना बैठ गई और सबसे पीछे की ओर, आमने-सामने की दो सीटों पर सुशंात और सबरीना बैठ गए। सबरीना ने सुबह से पहने हुए अपने बूट निकाले और उन्हें ताजी हवा दिखाकर फिर पहनने लगी। अचानक रुकी, ‘ देखो प्रोफेसर, मेरे पाकिस्तानी पति ने कबाब बनाने वाला तकुआ मेरे पैर में घोंप दिया था।‘ सुशांत ने सबरीना के गोरे पैर पर स्याह दाग को देखा। फिर उसने सबरीना की आंखों में देखने की कोशिश की। वहां कोई भाव नहीं था। उसने बूट पहन लिया, सुशांत ने उसके पैर को छूने की कोशिश की तो सबरीना ने पैर पीछे हटा लिया, ‘ रहने दो, मैंने सहानुभूति हासिल करने के लिए नहीं दिखाया। मुझे सहानुभूति से चिढ़ है।’ सुशांत ने हाथ पीछे हटा लिया। कुछ पलांे के लिए उसे समझ ही नहीं आया कि अपने हाथ को कहां रखे। पता नहीं सबरीना कैसे ताड़ जाती है, उसने सुशांत से कहा, ’ हाथों को कोट की जेबों में रख लीजिए, वरना फिर मचलने लगेंगे। वैसे भी, इन चारों लड़कियों और जारीना के सामने आप ऐसा कुछ नहीं करना चाहेंगे कि आपकी छवि प्रभावित हो! है ना ?’ सबरीना ने अपनी पुतलियांे को दायें से बायें और फिर बायें से दायें नचाया, हल्की से मुस्कान बिखेरी और फिर बाहर देखने लगी। उसके चेहरे पर अनामंत्रित गंभीरता फिर स्थायी भाव की तरह पसर गई। दिन खत्म होने को था। समरकंद की सड़कों पर धुंध पसरने लगी थी। गाड़ी की रफ्तार बढ़ने पर डाॅ. मिर्जाएव को फिर नींद के झोंके आने लगे।

सुशांत को सबरीना के बड़े-से पर्स में वो फाइल दिख रही थी जो उसने प्रोफेसर तारीकबी के घर से उठाई थी। उसे लगता है कि इस फाइल में कुछ खास है, लेकिन वो किस अधिकार से इस फाइल के बारे में पूछे। सबरीना का ध्यान फाइल को देख रहे सुशांत की ओर गया तो सबरीना बोली, ‘प्रोफेसर तारीकबी के खत हैं, जो उन्होंने मेरी मां दिलराबू को लिखे थे।’

‘ आपकी मां को लिखे थे ? मैं, समझा नहीं।‘ सुशांत ने कहा।

सबरीना ने चेहरे पर कोई भाव लाए बिना जवाब दिया, ‘ प्रोफेसर तारीकबी मेरी मां से प्रेम करते थे। दोनांे मास्को में मिले थे, लेकिन जब मेरी मां कमांडर ताशीद करीमोव से मिली तो उन्हें प्रोफेसर तारीकबी बेमतलब लगने लगे हांेगे। बाद में, ऐसा ही उन्होंने मेरे पिता कमांडर ताशीद करीमोव के साथ भी किया। मेरे पिता और प्रोफेसर तारीकबी जैसे एक ही मिट्टी के बने थे। भरोसा करना और उस भरोसे को आखिरी पल तक निभाना उनके खून में था। मां ने प्रोफेसर तारीकबी से किनारा कर लिया, लेकिन उन्होंने मां से किनारा नहीं किया। ये खत उन 30 सालों के दस्तावेज हैं-जब प्रोफेसर तारीकबी पहली बार मेरी मां से मिले थे और जब मेरी मां ने ताशकंद में आखिरी सांस ली थी। उन्होंने दिलराबू को हर पल अपने मन के सबसे मुलायम कोनों में संभालकर रखा।’

‘ओह।’ सुशांत ने लंबी सांस ली।

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