Satya - 17 in Hindi Fiction Stories by KAMAL KANT LAL books and stories PDF | सत्या - 17

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सत्या - 17

सत्या 17

शराब के नशे में लड़खड़ाता शंकर चला जा रहा था. अपनी गली में मुड़ते ही उसने सविता को घर के बाहर औरतों से घिरा हुआ देखा. उसे गुस्सा आने लगा. रोज़ जब लौटो तो औरतों की महफिल. सबको चहकते देखकर उसका गुस्सा और भी भड़क गया. पास पहुँचकर वह चिल्लाने लगा, “क्या हो रहा है यहाँ? इन पँचफोड़नियों के साथ क्या चक्कल्लस होता रहता है दिनभर?... चलो, जाओ सब अपने-अपने घर.”

शंकर ने गेट खोली. लेकिन नशे में लड़खड़ाकर गेट पर झूल गया. औरतें जल्दी-जल्दी वहाँ से खिसकने लगीं.

घर के अंदर सत्या दोनों बच्चों को पढ़ा रहा था. बाहर शंकर की तेज आवाज़ सुनकर सबने सर उठाकर दरवाज़े की तरफ देखा. शंकर और सविता के झगड़ने की आवाज़े तेज हो गई थीं. सविता कह रही थी, “पेट भर दारू पी लिए ना, अब ज़्यादा बकवास मत करो. जाकर चुपचाप सो जाओ.”

शंकर कह रहा था, “साली कमीनी, रोज-रोज औरत लोग को जमा करके नौटंकी करती रहती है.....”

सत्या का मन खिन्न हो गया. वह बड़बड़ाया, “फिर शुरू हो गए दोनों. ऐसे में बच्चों की पढ़ाई कैसे होगी?”

काफी देर तक यह सिलसिला चलता रहा. बच्चे डिस्टर्ब होते रहे. अचानक भड़ाक से दरवाज़ा खुला और बदहवास सी सविता अंदर आई, “सत्या बाबू, शंकर खून की उल्टी कर रहा है. एक बाल्टी खून निकल गया. शायद बेहोश हो गया है. चलकर देखिए न जल्दी.”

सत्या झट से उठ खड़ा हुआ और खूँटे पर से कमीज़ निकाल कर शरीर पर डाली. मीरा दौड़कर अंदर आई. सत्या ने मीरा से कहा, “शंकर को अस्पताल ले जाना होगा. मीरा तुम निरंजन के पास जाओ और जल्दी से ऑटोरिक्शा लेकर आओ.”

वह सविता के साथ कमरे से बाहर चला गया.

इमरजेंसी वार्ड के अंदर काफी भीड़ लगी थी. कई सीरियस मरीज़ों का ईलाज चल रहा था. एक डॉक्टर ने चिल्लाकर पूछा, “अरे कौन है शंकर के साथ? दो बोतल खून लेकर आओ. जल्दी.”

डॉक्टर ने एक पर्चा बढ़ाया जिसे सत्या ने पकड़ लिया. डॉक्टर कह रहा था, “ये सैंपल भी ले जाओ. क्रॉस मैचिंग कराकर ब्लड बैंक से जल्दी से दो बोतल खून ले आओ. पेशेंट की कंडीशन क्रिटिकल है.”

सत्या मुड़कर तेज कदमों से जाने लगा. सविता और रमेश उसके पीछे लपके. ब्लड बैंक के काऊंटर के पार खड़े टेक्निशीयन ने पर्चा देखा और कहा, “हाँ ठीक है. कौन कौन खून देगा बगल वाले कमरे में चलो.”

तीनों एक दूसरे का मुँह देखने लगे. सत्या बोला, “दो बोतल खून के बदले में हम दो लोगों को खून देना होगा. एक तो हम दे देंगे. दूसरा रमेश तुम दे देना.”

सविता बीच में बोली, “इसके बदन में खून कम दारू ज़्यादा होगा. ये नहीं, हम देंगे खून.”

खून देने की बात पर रमेश सकपकाया गया था. मीरा की बात सुनकर उसकी साँस में साँस आई.

शंकर मेल वार्ड के बेड पर लेटा था. एक नर्स ने आकर खून की बोतल और ट्यूब को सेट किया. खून की बूँदों को टपकते हुए सब देख रहे थे. वही डॉक्टर आया. उसने शंकर की नब्ज़ देखी, आँखों में झाँका. पेट को हाथों से टटोला और कहने लगा, “लिवर पूरी तरह डैमेज हो गया है. मॉर्डन बस्ती का है न? हर महीने इस बस्ती का कोई-न-कोई ऐसी हालत में आकर यहाँ भरती होता है. कितना दारू पीते हैं ये लोग.....अगर बच गया तो इसको पूरी ज़िंदगी शराब को हाथ भी नहीं लगानी होगी. एक बूँद भी पेट में गया तो इसको कोई नहीं बचा पाएगा....लेकिन ये सुनेगा तब तो...मेरा काम है बोलना, सो बोल दिया.”

डॉक्टर चला गया. सविता ने ग़ौर से शंकर का चेहरा देखा. चेहरा पीला पड़ गया था. शंकर को अचानक उबकाई आई और उसने ढेर सारा खून उल्टी किया. नर्स दौड़ कर आई. सविता शंकर की पीठ सहलाने लगी. उसके चेहरे पर ढेर सारी चिंताओं की लकीरें उभर आई थीं.

दीवार पर लगी घड़ी में 5 बज कर 10 मिनट हुए थे और रमेश शंकर की तीमारदारी में लगा था. सविता और सत्या साथ-साथ वार्ड में दाख़िल हुए. सत्या ने हँस कर शंकर का अभिवादन किया और कहा, “कैसे हो शंकर बाबू? .... तो जान बच गई. अब

छोड़िये ये शराब-वराब. लीजिए हम आपके लिए यह मैगज़ीन लाए हैं.”

शंकर, “नमस्ते सर. ... अब तो शराब की तरफ देखेंगे भी नहीं.”

“शाबाश, ये हुई बात.”

तभी हेड नर्स बेड के पास आई. आते ही वह ऊँची आवाज़ में चिल्लाकर कहने लगी, “आप लोग अपना पेशेंट को ले जाइये. हमलोग ऐसा पेशेंट का ईलाज नहीं करेंगे. कोई फायदा नहीं इसके ईलाज का.”

सत्या, “क्या हुआ सिस्टर?”

हेड नर्स, “हमको ख़बर मिली है कि रात को डाब में दारू मिलाकर इसका दोस्त लाता है और ये पीता है. ऐसे आदमी का ईलाज करने का क्या फायदा?”

अचानक सविता प्रचंड रूप में आ गई और उसने रमेश की पीठ पर जोर का एक धौल जमाया. रमेश बिलबिलाकर छिटका और मिमियाते हुए बोला, “हम नहीं भाभी, रात में तो चँदू रहता है.”

हेड नर्स, “तुमलोग यहाँ पर झगड़ा मत करो. छुट्टी का कागज़ लो और दफा हो जाओ.”

हेड नर्स चली गई. सविता ने आग्नेय नेत्रों से रमेश को घूरा. रमेश आँखें चुराते हुए वहाँ से खिसक लिया. शंकर करवट बदलकर सोने का स्वांग करने लगा. सविता शंकर को देखकर दाँत पीसते हुए गुर्राई, “चलो घर ... अच्छी ख़बर लेते हैं तुम्हारी. अब या तो दारू छोड़ो या हमको छोड़ो.”

फिर सत्या की तरफ मुड़कर बोली, “सत्या बाबू. इसकी शराब ऐसे नहीं छूटेगी. बस्ती से शराब का ठेका ही उखाड़ फेंकना होगा. शराबियों से हमको नफरत हो गई है. आज से बस्ती में कोई शराब पिए हुए दिखा तो उसकी तो ख़ैर नहीं. देखते हैं ये शराब कैसे नहीं छोड़ता है.”

मध्यांतर