दिल की ज़मीन पर ठुकी कीलें
(लघु कथा-संग्रह )
13-टच-मी-नॉट
अम्मा के घर पर ऊपर छज्जे के बीचों-बीच एक सीमेंट का सुंदर सा गमला बना हुआ था | शायद छज्जा बनाते समय यह गमला बनाया गया था | अम्मा उसमें कुछ न कुछ बोती रहतीं | मौसम के अनुसार उसमें डले बीज उग आते | इस बार अम्मा की किसी सहेली ने उन्हें एक पौधा लाकर दिया | अम्मा ने उस पौधे को छज्जे वाले गमले में लगा दिया जो उस समय ख़ाली था | कुछ ही दिनों में उसमें से प्यारी-प्यारी हरी पत्तियाँ निकल आईं |
" अम्मा जी ! इसे क्या कहते हैं --?" अम्मा की पाँच साल की धेवती मिनी बड़ी शरारती थी |
" इसे छुईमुई यानि अंग्रेज़ी में 'टच मी नॉट' कहते हैं, देखो, इसे छूकर देखो ---"
मिनी ने डरने का नाटक किया और पत्तियों को जैसे ही हाथ लगाया, कुछेक सेकेंड्स में वे मुरझाने लगीं |
" देखिए नानी माँ, कैसे मुरझा गया है ---" वह चीख़ी |
"देखो, तुमने ज़ोर से पकड़ा होगा न, इसीलिए वो मुरझा गया ---" अम्मा ने उसे चिढ़ाना चाहा |
दो-चार मिनिट वह नानी के चेहरे पर कुछ पढ़ने की कोशिश करती रही फिर दादी अम्मा जैसे गूढ़ शब्दों में बोली ;
" आप सब बड़ों को इससे सीखना चाहिए न, बच्चे भी तो ऐसे ही नाज़ुक होते हैं, आप लोग ज़ोर से जब बच्चों के कान खींचते हैं तो समझते ही नहीं कि हम कैसे मुरझा जाते हैं ---"
अब अम्मा की बारी थी यह सोचने की कि वह नन्ही मिनी से ट्रेनिंग ले कि बच्चों के साथ कैसे पेश आना चाहिए ?
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