औघड़ का दान
प्रदीप श्रीवास्तव
भाग-1
सीमा अफनाई हुई सी बहुत जल्दी में अपनी स्कूटी भगाए जा रही थी। अमूमन वह इतनी तेज़ नहीं चलती। मन उसका घर पर लगा हुआ था जहां दोनों बेटियां और पति कब के पहुंच चुके होंगे। दोनों बेटियों को उसने डे-बोर्डिंग में डाल रखा था जिन्हें ऑफ़िस से आते वक़्त पति घर ले आते थे और सुबह छोड़ने भी जाते थे। क्योंकि उसके ऑफ़िस एल.डी.ए. में समय की पाबंदी को लेकर हाय तौबा नहीं थी। हां वह सब समय से पहले पहुंचते हैं जिन्हें ऊपरी इनकम वाली जगह मिली हुई थी। और जो सुबह होते ही शिकार को जबह करने की हसरत लिए आंखें खोलते हैं। और तब तक अड़े रहते हैं ऑफ़िस में जब तक कि शिकार मिलने की जरा भी उम्मीद रहती है। दूसरी तरफ जो ऊपरी इनकम वाली जगह पर नहीं होते हैं, वे अपनी कुंठा निकालते हैं देर से ऑफ़िस पहुंच कर, अपने काम को कभी समय से पूरा न करके एवं समय से पहले ही ऑफ़िस छोड़ कर या व्यक्तिगत कामों के लिए जब मन आया तब ऑफ़िस छोड़ कर।
सीमा का पति नवीन इसी श्रेणी में आता है। इसलिए उसका ऑफ़िस आना-जाना पता ही नहीं चलता। कब आ जाए, कब चला जाए, कोई ठिकाना नहीं। इसके चलते वह अपने बच्चों की देख-भाल के लिए पूरा वक़्त निकाल लेता है। पत्नी के हिस्से का भी बहुत सा काम कर डालता है, पत्नी सीमा ऑफ़िस से आने में एक मिनट भी देर कर दे तो उसका मूड खराब हो जाता है। वह लाख कारण बताए लेकिन उसे उन पर यकीन नहीं होता। और आज तो हद ही हो गई थी। साढ़े आठ बजने को थे। उसका कहीं पता नहीं था। मोबाइल भी नहीं उठा रही थी। उसकी बुरी आदतों में कॉल रिसीव न करना भी शामिल था। पूछने पर एक ही जवाब कि बैग में था, रिंग सुनाई ही नहीं पड़ी। मगर आज रोज की अपेक्षा बहुत देर हो चुकी थी। इस लिए नवीन चिंतित हो रहा था।
सीमा पति के मूड का ही ख़याल कर अपनी स्कूटी पूरी रफ़्तार से भगाए जा रही थी। हालांकि सड़क पर इस समय तक ऑफ़िस वालों की भीड़ कम हो चुकी होती है लेकिन फिर भी ट्रैफ़िक बहुत था और हमेशा की तरह वायलेंट भी, सीमा की आंखें इस ट्रैफ़िक को लेकर बहुत सतर्क थीं, मगर सचिवालय के करीब पहुंचते ही वहां लगे जाम ने उसे रोक दिया, इस पर वह खीझ कर बुदबुदाई ‘ये जाम कब पीछा छोड़ेंगे।’ हेलमेट के अंदर से उसकी यह बुदबुदाहट बाहर तक आई लेकिन बाहर गाड़ियों के शोर में खो गई। उसके आगे-पीछे दाएं-बाएं हर तरफ गाड़ियां थीं। फोर व्हीलर से लेकर थ्री व्हीलर, टू व्हीलर तक सब! जाम कुछ इस कदर लगा था कि जो जहां था वहीं खड़ा था, ज़्यादा टाइम लगते देख कर्इ्र्रयों ने अपनी गाड़ियां बंद कर दी थीं। सीमा ने भी। करीब पांच मिनट के बाद ट्रैफ़िक को आगे बढ़ने के लिए सिग्नल मिला। दूसरी तरफ से किसी मंत्री जी का काफ़िला निकलना था इसलिए ट्रैफ़िक इतनी देर तक रोका गया था।
सिग्नल मिलते ही सारी गाड़ियां बेतहाशा भाग खड़ी हुर्इं। लेकिन सीमा की स्कूटी स्टार्ट ही न हुई। उसने किक मारी लेकिन नतीजा शिफर, इस बीच हार्नों की चीख-पुकार एक दम बढ़ गई। इसी शोर में पीछे किसी मनचले ने चीख कर कहा ‘अरे! माता जी हिलोगी-डुलोगी या यहीं खड़ी रहोगी।’ अपने लिए माता जी सुनकर सीमा चिढ़ कर बुदबुदाई ‘कमीने! अपनी माता को माता जी नहीं बुलाएंगे हमें माता जी कह रहे हैं, साले कमीने।’ इस बीच उसने और कई किक मारी जिससे स्कूटी स्टार्ट हो गई। फिर वह भी बिना एक सेकेंड देर किए फर्राटे से आगे बढ़ गई। जब घर पहुंची तो नौ बज चुके थे। पोर्च में एक कोने में उसने अपनी स्कूटी खड़ी की। वहीं बगल में पति की मोटर साइकिल एवं मकान मालिक की कार और मोटर साइकिल दोनों खड़ी थीं। मतलब की उसके अलावा बाकी सब पहले ही आ चुके थे। यह सब देखकर आज देर से आने के मुद्दे पर वह बहुत दिन बाद पति का सामना करने में भय का अहसास कर रही थी।
पोर्च के बगल से ही ऊपर जाने के लिए सीढ़ियां थीं। मकान मालिक ने किराएदार का रास्ता भी अलग रखने की गरज से ऊपर जाने के लिए बगल से ही सीढ़ियां बनवा दी थीं। सीमा सीढ़ियों को एक तरह से फलांगती हुई ऊपर पहुंची। अंदर कमरे की लाइट जल रही थी। टी.वी. की आवाज़ आ रही थी। उसके कॉलबेल बजाते ही अंदर से दोनों बेटियों की आवाज़ गूँजी ‘मम्मी .....’ और इसके कुछ ही क्षण बाद दरवाजा खुला वह पूरी तरह अंदर पहुंच भी नहीं पाई थी कि दोनों बेटियां उससे चिपक गईं और प्रश्न पर प्रश्न चालू, ‘मम्मी इतनी देर क्यों कर दी’, छोटी वाली बोली, ‘मम्मी मेरी चॉकलेट लाई हो।’ सीमा दोनों को प्यार करती हुई सोफे की तरफ बढ़ी जहां पति नवीन मुंह फुलाए बैठे टी.वी. देख रहे थे। सीमा भी उसके सामने सोफे पर बैठ गई बेटियों को यह समझाते हुए कि आज चॉकलेट लेना भूल गई। तुम लोग यह टॉफी ले लो। उसने बैग से कुछ टॉफियां निकाल कर दोनों को दे दीं जो उसके बैग में हमेशा रहती हैं। क्योंकि इन्हें खाने की उसे आदत सी थी। अब तक पति द्वारा एक नज़र न देखने और कुछ न बोलने से वह समझ गई कि मामला गंभीर है। उसने धीरे से कहा,
‘सॉरी बहुत देर हो गई। वो असल में सोफी का हाथ टूट गया है। उसका ट्रीटमेंट कराने के बाद मुझे उसे उसके घर तक छोड़ने जाना पड़ा। इसी लिए आने में देर हो गई।’
पति इतना कहने पर भी कुछ न बोले तो उसने कहा,
‘मैं मान रही हूं तुम सब परेशान हो गए होगे। मगर मज़बूर थी और कोई रास्ता ही नहीं था। पूरी बात सुनोगे तो तुम्हें लगेगा कि मैंने गलती नहीं की।’
इतनी बात पर भी पति टस से मस नहीं हुए तो उसे बड़ी खीझ हुई। प्यास के मारे गला अलग सूख रहा था। इस बार अप्रैल महीने में ही गर्मी ने मई की गर्मी का अहसास करा दिया था। थकान, प्यास और पति के गुस्से से पस्त हो उसने बड़ी बेटी से कहा,
‘रुचिका बेटे जरा मम्मा के लिए पानी ले आओ।’
‘हां बेटा जल्दी से पानी ले आओ, साक्षात् देवी मइया अवतरित हुई हैं, चढ़ाने के लिए कुछ प्रसाद वगैरह भी ले आना।’
रुचिका, मां की बात सुनकर पानी के लिए उठ भी न पाई थी कि नवीन ने पत्नी सीमा पर तीखा व्यंग्य बाण चला दिया और फिर रिमोट लेकर टी.वी. के चैनल बदलने लगा। रुचिका कुछ न समझ के जब ठिठक गई तो सीमा ने उसे जाने का इशारा किया। देवी मइया सुन कर उसे रास्ते में मिले शोहदों का फिकरा माता जी कहना फिर कानों में गूंज गया। रुचिका के जाते ही उसने कहा,
‘कम से कम बच्चों के सामने तो ठीक से बोलिए। सोफी की मज़बूरी देखते तो तुम भी वही करते जो मैंने किया। बच्चों को सो जाने दीजिए फिर बताती हूं कि क्या हुआ। तब बताना कि मेरी गलती है क्या ? हां मुझे फ़ोन कर देना चाहिए था, इतनी गलती ज़रूर हुई ?’
‘ठीक है, सोने दो बच्चों को फिर आज तुम्हारी बजाता हूं कायदे से। कई दिन से नहीं बजाई इसी लिए घर सेवा छोड़ कर समाज सेवा ज़्यादा करने लगी हो।’
नवीन की बजाने वाली बात ने उसे राहत दी कि चलो मामला सुलझ गया। क्योंकि उसके बजाने शब्द के पीछे छिपे अर्थ को वह बखूबी समझती थी। समझ यह भी गई थी कि लाख थकी है पर पति महोदय जल्दी सोने नहीं देंगे। वह यह सोच ही रही थी कि छोटी बेटी जो उसकी गोद में बैठी टॉफी खा रही थी, उसने पूछा,
‘मम्मी, पापा हम लोगों के सोने के बाद क्या बजाएंगे?’
उसके प्रश्न से चौंक कर सीमा बोली,
‘अं कुछ नहीं बेटा .... पापा ऐसे ही कुछ बोल रहे थे।’
‘नहीं आप झूठ बोल रही हैं ... बताइए न क्या बजाएंगे?’
‘ओफ्फो अपने पापा से ही पूछो क्या बजाएंगे। लीजिए अब बताइए क्या बजाएंगे। कितनी बार कहा बच्चों का थोड़ा ध्यान रखा करिए। अब चुप क्यों हैं लीजिए संभालिए।’ कहते हुए सीमा ने बेटी को गोद से उतार कर भेज दिया नवीन के पास और बड़ी बेटी से पानी लेकर पीने लगी। रुचि ने पिता के पास पहुंच कर फिर वही प्रश्न किया तो नवीन ने उसे अपनी गोद में बैठाते हुए कहा,
‘हूं बेटा तब मैं मोबाइल में तुम्हारी जो पोएम रिकॉर्ड की है न उसे बजाएंगे।’
‘क्यों?’
‘क्योंकि तुम्हारी आवाज़ बहुत-बहुत मीठी है न इसलिए।’
‘तो अभी क्यों नहीं बजाते ?’
‘अभी इसलिए नहीं क्योंकि अं ... अं ... क्योंकि अभी टीवी चल रहा है।’
‘लेकिन पापा आपने तो मम्मी की बजाने के लिए कहा था।’
‘हूं ... मां की तरह पीछे ही पड़ जाती है। तुम्हारी पोएम मां के मोबाइल में भी है न और उनका मोबाइल ज़्यादा बढ़िया है इसलिए उन्हीं का बजाएंगे। अब तुम अपना कार्टून चैनल देखो ठीक है।’ नवीन ने रुचि के प्रश्नों से बचने के लिए उसे रिमोट थमा दिया। और सोफे पर पसर कर बैठ गया। तब तक पानी पीकर काफी राहत महसूस कर चुकी सीमा ने खड़े होते हुए कहा,
‘और बोलो अंड-बंड।’
इसके बाद उसने अंदर जाकर कपड़े चेंज किए और जल्दी से किचेन में घुस गई। वहां यह देख कर उसे राहत मिली कि पति महोदय ने सब्जी वगैरह पहले से ही काट कर रखी हुई है। चाय का कप, दूध लगा गिलास एवं नाश्ते की जूठी प्लेटों ने यह भी बता दिया कि पति महोदय ने नाश्ता बना कर बच्चों के साथ कर लिया है। इसके बाद उसने जल्दी-जल्दी खाना बनाया। सबने मिलकर खाया। फिर बच्चे पापा के साथ बिस्तर पर पहुंच गए। लेकिन सीमा अभी किचेन में ही थी। सवेरे के लिए काफी कुछ तैयारी कर लेना चाह रही थी। क्योंकि सुबह वक़्त बहुत कम होता है। पति, बच्चों सहित खुद के लिए भी ढेर सारा काम करना होता है।
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