Dil Se.... in Hindi Short Stories by Swati books and stories PDF | दिल से......

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दिल से......

"यार ! जफ़र तेरा हाल भी शहरुख की फिल्म 'दिल से' की तरह होने वाला है ।" इमरान ने कहा । "क्यों क्या होने वाला है मुझे ?" उस फ़िल्म में हीरोइन हीरो को छोड़ कुछ समय बाद लौट आयी थी । फिर अंत में पता चला कि वो मानव बम बनकर आई है। और फिर हीरो तो हीरो ही है देश बचा लेता है और अपनी हीरोइन के साथ ही मर जाता है ।" "मेरी ज़िंदगी का क्या कनेक्शन है इस फ़िल्म से ?" ज़फर इमरान को घूरते हुए पूछा । "देख यार! तेरी गलफ्रेंड सहर जिसका तीन साल से कोई अता-पता नहीं था । वो अचानक वापिस आ गई । किसी भी सोशल नेटवर्किंग साइड पर उसका कोई नामो-निशान नहीं था। और अब वो आकर कहती है कि किसी मजबूरी के चलते ऐसा किया मजबूरी कि अब्बू बीमार थे । और आज हम दोनों ने उसे दो लड़कों के साथ देखा जिनसे वो कोई बैग एक्सचेंज कर रही थी । पीछा करने पर किसी अँधेरी सी गली में गायब हो गई । तू मान न मान भाई 26 जनवरी आने वाली है और हम लोग नेशनल डिफेन्स ऑफ़ सिक्योरिटी में काम करते है और हमारे ऊपर इस कार्यक्रम की सुरक्षा की जिम्मेदारी है। समझ यार ! इसी बात का फ़ायदा उठाने के लिए ही वो वापिस आयी है।" इमरान की बातो में गंभीरता साफ़ झलक रही थीं ।


"ऐसा कुछ नहीं है यार! वो ऐसा कभी नहीं कर सकती वो अचानक से कोई टेरर कैंप तो ज्वाइन नहीं कर सकती । सीधी-सादी लड़की है सेहर । सचमुच उसके अब्बू बीमार थे । ऐसा कुछ नहीं होगा । उन लड़कों के बारे में पूछूँगा ।" उसे ज़फर अपनी गाड़ी में बैठता हुआ बोला। "ठीक है मेरा काम तुझे आगाह करना था और वैसे भी आशिक़ का जनाज़ा निकलेगा बड़ी धूम से ।" इमरान के चेहरे पर मुस्कान थीं ।


"कल तुम्हारे साथ वो दो लड़के कौन थे ?" ज़फर ने सेहर से पूछा "क्या मतलब ? कौन से दो लड़के?" थोड़ा घबराते हुए सेहर बोली । "वही जो कल गोल मार्किट में तुम्हारे साथ थें ।" कल मैं और इमरान किसी काम से वहीं आए हुए थें ।" ज़फर सेहर की सवालियाँ नज़र का ज़वाब देते हुए बोला। "वो मेरे चाचा के लड़के थे, आजमगढ़ से कुछ सामान देने आये थे । कल की ट्रैन से वापिस चले गए ।" बोलते समय सेहर इधर-उधर देख रही थीं । वैसे एक पूछो, "सेहर, तुमने इन तीन सालों में क्या किया ?" ज़फर ने फिर सेहर से सवाल पूछा । "क्या किया क्या मतलब? अब्बू की सेवा की । उन्हें कैंसर था और और वो उसी बीमारी से लड़ते हुए अल्लाह के पास भी चले गए । तुम पुलिस वालो को मोहब्बत भी करनी नहीं आती क्या ? जो तुम मुझ पर शक कर रहे हौ ।" सेहर चिढ़ते हुए बोली । "ऐसा मत कहो, मेरी जान । चलो, आज ड्यूटी नहीं है मूवी देखने चलते है ।" ज़फर ने सेहर को गले लगाते हुए कहा ।

इमरान गाना रहा था, "दिल तो आखिर दिल है ना मीठी सी मुश्किल है ना पिया पिया, पिया पिया ना पिया जिया जिया, जिया जिया ना जिया दिल से रे... !!!!!!!!!"" "बंद कर गाना आज हमें चावड़ी बाज़ार चलना है, ख़बर मिली है कि कुछ लोग आजमगढ़ से लालकिले पर हमला करने के मकसद से यही छुपे हुए हैं ।" ज़फर ने इमरान को लगभग कमरे से धकेलते हुए कहा । 'दोनों चावड़ी बाज़ार पहुंचे । अपने ख़बरी से मुलाकात करने के बाद मेट्रो स्टेशन की तरफ़ मुड़े ही थे तो सामने सेहर हाथ में किताबें पकड़े एक लड़की और वहीं दो लड़कों जो उसके चाचा के भाई थे । उनके साथ नज़र आई । ज़फर और इमरान दोनों की आँखों को यकीन नहीं हो रहा था कि सामने सेहर है ।' "मैं कह रहा हूँ न यार ! कुछ गड़बड़ तो ज़रूर है। तूने उसे पूछा था उन लड़कों के बारे में ?" इमरान ने लगभग ज़फ़र पर चिल्लाते हुए कहा । "हां पूछा था सेहर ने कहा, उसके चाचा के लड़के है । और कल की ट्रैन से आजमगढ़ चले गए है । पर पर यह तो तो तो ........ "" ज़फर बोलते हुए चुप हो गया । "उसने कहा तूने मान लिया । देख मुझे फैंटम के सैफ की तरह देश के लिए शहादत देनी है । न कि शाहरुख़ की तरह बेवकूफ बनना है।" इमरान ने गंभीर होते हुए कहा ।

"यह फिल्मो को छोड़ दे, तू सेहर के पीछे क्यों पड़ गया है । आयूब की गलफ्रेंड भी दो साल बाद फ्रांस से वापिस आई थी ।" ज़फर ने चिढ़ते हुए कहा । "मैं नहीं तू पीछे पड़ा है उसके। हाँ, बिलकुल शहनाज़ को मैं अच्छे से जानता हूँ । वो तो ब्रेकअप के बाद बाहर पढ़ाई करने गयी थीं। और जब लगा होगा कि नहीं रह सकती आयूब के बिना, तो वापिस लौट आई।" इमरान ने सफ़ाई देते हुए कहा। "जो भी है मुझे सेहर पर भरोसा है । और कल का कार्यक्रम भी अच्छे से होगा । ज़फर ने बड़े विश्वास के साथ कहा ।" पर उसकी आवाज़ में डर साफ़ झलक रहा था ।

"मुझे कल 26 जनवरी देखने जाना है । और वहाँ के वी.आई.पी. पास तुम मुझे दे दोंगे न ?" सेहर ने बड़े प्यार से पूछा और ज़फर मना न कर सका । इतनी सादा तबीयत क्या ऐसा कोई ख़ौफ़नाक काम नहीं कर सकती ।" ज़फर ने मन ही मन ख़ुद से सवाल किया ।

'कल 26 जनवरी की परेड थी, सब ठीक चल रहा था । तभी लालकिले के बाहर बम विस्फोट हो गया है । भगदड़ मच गयी है, लोग इधर -उधर भागने लगे । पर किसी की जान नहीं गयी । बस 200 के लगभग लोग घायल हो गए । और विस्फोट किसी महिला ने किया है । पहचान पता की जा रही है।' बार-बार लगातार न्यूज़ चैनल पर यही आ रहा था । ज़फर भागता हुआ सेहर के पास पहुँचा और उसे खींचता हुआ अपने फ्लैट में ले आया । "यह हरकत तुम्हारी है न सेहर? तभी तुम्हें 26 जनवरी जाना था, आज से पहले तो कभी नहीं गई । मेरा दोस्त इमरान कब से मुझे समझा रहा था और मैं तुम्हारी मोहब्बत में पागल तुम्हारे हर झूठ पर भरोसा कर रहा था । तुम जैसे लोगों की वजह से पूरी कौम बदनाम होती है । अब सच बताओ सच क्या है, यह न हो कि मैं तुम्हे जान से मार दूँ ।" सेहर को ज़मीन पर धक्का मारते हुए ज़फर बोला । "मैंने कुछ नहीं किया, मैं ऐसा घिनोना काम क्यों करूँगी ? पागल हो गए हो क्या ? सेहर रोते और चिल्लाते हुए बोली । "बताओ तुमने कोई बम छिपा रखा है क्या ? जफ़र उसे टटोलते हुए बोला । "दूर हटो मुझसे, ऐसा कुछ नहीं है ।" सेहर फिर चिल्लाई । "आखिर वो दोनों लड़के थे? तुम्हारे चाचा के तो लड़कियाँ है। यह बार-बार तुम पैकेट में उन्हें क्या देती रहती हो ?" तीन साल बाद मेरे पास क्यों आयी ? तुम सभी सोशल नेटवर्किंग साइड्स से गायब कैसे हो गई ? बताओ मुझे?" ज़फर गुस्से में बोला ।


"तो सुनो अम्मी ने फ़ोन पर एक दिन बताया कि अब्बू को कैंसर है तो यह सुनकर मैं जब लखनऊ चली आई वहाँ पता चला कि अब्बू ने तो गलत लोगों से कर्ज़ा लिया हुआ है । अब्बू के मरते ही वह लोग हमारे पीछे पड़ गए । तब से लेकर अब तक मैं और अम्मी भाग ही रहे है । वो मेरे अब्बू के दोस्त इक़बाल अंकल के बेटे थे, जो मुझे पैसे देकर मेरी मदद कर रहे थे, ताकि में अब्बू का कर्ज़ा चुका सको। और वो एक भाई दानिश को मेरी सहेली शबनम पसंद थी इसीलिए रिश्ते की बात करने के लिए उन्होंने आजमगढ़ जाना मना कर दिया ।" सेहर बिना सांस लिए आँखों में आंसू भरकर बोले जा रही थी । "तो क्या उस दिन चावड़ी बाज़ार में वो शबनम थी ?" ज़फर ने पूछा । "हाँ वही थी और 26 जनवरी की परेड में हम साथ थे, तभी तुमसे पास मांगे थे, फिर यह हादसा हुआ और तुम पागलों की तरह मुझे यहाँ ले आये ।" सेहर ने ज़फर को धक्का मारते हुए कहा । "यह तुम मुझे बता सकती थी सेहर ?" ज़फर ने पूछा। "वो लोग मेरे पीछे लगे हुए थे इसीलिए मैंने खुद को गायब कर दिया इंटरनेट की दुनिया से । और तुम्हें बताती तो तुम अपना पुलिस वाला रूप दिखाते वो तुम्हे भी मार देते । मैं उन्हें सारे पैसे लगभग दे चुकी थी । अब तुम्हें अम्मी से मिलवाना था ताकि नयी ज़िन्दगी शुरू कर सके । तुमसे प्यार करती हूँ इसीलिए वापिस आई । पर तुमने तो। .. कहते कहते सेहर रुक गई ।" "मुझे यकीं नहीं है, जब तक तुम सही साबित नहीं होती तब तक इसी फ्लैट में कैद होकर रहूँगी।" ज़फर सेहर को ऊँगली दिखाते हुए बोला । "मैं घर जा रही हू । जब तुम्हारे पास सबूत हो तब मुझे पकड़कर ले जाना यह रहा मेरा पता ।" पर्स से कागज़ निकाल उसके मुँह पर मार सेहर फ्लैट से बाहर आ गई ।

दो महीने की कड़ी तहकीकात के बाद पता चला कि वो मानव बम बनकर आई महिला कोई और नहीं आयूब की गलफ्रेंड शहनाज़ थी । कड़ा पहरा होने की वजह से लालकिले के बाहर बम गिराकर चली गई । अभी फरार है, पर जल्दी पकड़ी जाएंगी । "यानि दिल से मूवी आयूब के साथ हो गयी ।" इमरान हँसता हुआ बोला । "साले बड़ा भरोसा था, शहनाज़ पर अब बोल कमीने, तेरी बातों में आकर मैंने सेहर को पता नहीं क्या कुछ कहा और उस पर यकींन भी नहीं किया ।" ज़फर मायूस होता हुआ बोला । "मैं अपनी गलती मानता हूँ, कोई नहीं, यार! वो तुझे माफ़ कर देगी फिर तुम निकाह कर लेना सब ठीक ।" इमरान ज़फर को गले लगाते हुए बोला ।

ज़फ़र सेहर के दिए पते पर पहुँचा तो दरवाज़े पर ताला लगा देख बगल वाली चाय वाले की दूकान पर पहुँच गया । "ज़रा बताओगे यह लोग कहा गए है ?" ज़फर ने पूछा । "पता नहीं साहब, दो हफ्ते पहले ही यहाँ से चले गए ।" चाय वाला बोला । "कुछ पता है कहा गए ?" ज़फर का सवाल था । "नहीं साहब, बस जाते हुए देखा था । " चाय वाले का उत्तर था । ज़फ़र ताले को देख रहा था, तभी चाय वाले ने रेडियो का चैनल बदला तो गाना आ रहा था

"दिल है तो फिर दर्द होगा, दर्द है तो दिल भी होगा, मौसम गुज़रते रहते दिल से, दिल से, दिल से, दिल से रे. ..................... । । । ।