Wo Raat in Hindi Horror Stories by Deepti Khanna books and stories PDF | वो रात

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वो रात

ए -वक्त तू क्यों रुका नहीं उस वक्त
जो मेरे दिल के थे करीब
आए थे लेने मुझे अपने साथ उस वक्त ll

ख्वाब या हकीकत ,जब भी सोचती हूं उस मंजर को तो मेरी रूह कांप उठती हूं l वह अंधेरी रात , कोहरा ने ढका था सारा आसमान l खिड़की के बाहर यूं लग रहा था सफेद नदी बह रही हो उस पार l
सारा परिवार निद्रा के आगोश में लिपटा हुआ था जैसे एक नवजात शिशु अपनी मां के साथ लिपटा हो l मैं भी घर के समस्त कार्य निपटा के जा रही थी अपनी सपनों की दुनिया में परंतु मेरी निगाह पड़ी बैठक के एक दीवान पर जो सुसज्जित हो रखा था सब के कपड़ों से उस रात l मुझे ख्याल आया कि कल रविवार है कोई रिश्तेदार ही आ जाता है सुबह-सुबह क्या सोचेगा मेरे बारे में कि घर की बहू सारा दिन आराम ही फर्म आती रहती है , कोई काम नहीं करती ? मैंने भी कपड़े समेटने का बीड़ा उठाया पता नहीं कब घड़ी में बजे दो l अचानक कहीं से खुशबू आई l
वह भीनी भीनी खुशबू
ममता की सुगंध
कभी जिस से महकता था मेरा बचपन l
फिर कहीं से आई एक कंगन खनकने की आवाज , मेरी दुनिया सिमट गई वह आवाज सुनकर कुछ इस तरह l वह आवाज़ थी मेरे मां के कंगन की, उनकी आखिरी निशानी जो अभी मैंने पहन रखी थी l अचानक साड़ी बैठक में कोहरा छा गया और मुझे ऐसा प्रतीत हुआ किसी ने मुझे आवाज दी" दीप्ति" l वह अंदाज दीप्ती कहने का आगाज मैं कैसे भूल सकती हूं l मेरे जहन में समाई हुई है वह मेरी मां की आवाज l
अचानक सारी बैठक में कोहरा छा गया , और किसी ने मेरी कलाई पकड़ मुझे दिवान पर बैठा दिया l वह स्पर्श ! वह मुझे छूने के सलीके था मेरी मां का l अचानक कोहरा छठ गया और मैंने अपनी मां का पल्लू अपनी गोद में पाया मैंने गर्दन घुमाई और वह ममता का चेहरा मुस्कुराता हुआ देखा l
मां ने आशीर्वाद देते हुए कहा चल दीप्ति चले उस पार जहां हम रहे एक साथ l मैं भी उनके पीछे-पीछे चल पड़ी और पहुंच गई अमृतसर रेलवे स्टेशन l सर्द हवा के झुमको से सारे वृक्ष हिल रहे थे और गहरे कोहरे से ढका था सारा प्लेटफार्म l लो पथ गामिनी सीटीयाँ मार रही थी वह प्लेटफार्म को अलविदा करने को तैयार खड़ी थी ।
मैंने कहा मां रुको मैं रास्ते के लिए पानी लेकर आई और मैं दौर की शीशम के बाहर दुकान पर पानी लेने गई । दुकानदार ने कहा पानी देते हुए ₹30 मेरे ध्यान में आया कि मैं तो पैसे लाना ही भूल गई और मैं मां के पास दौड़ कर गई पैसे लेने , परंतु मैंने देखा कि मां तो वहां थी ही नहीं प्लेटफार्म पे ।
सुबह जब मुझे होश आई तो मेरे बच्चे मेरे आस-पास खड़े हुए थे । मुझे सब परिवार वाले कह रहे थे कि मैं दीवान पर क्यों सोई हुई थी । मैं चौक के उठी और अपने आसपास देखा मैं पसीने से लथपथ हुई थी सब मजाक कर रहे थे सर्दी में गर्मी का एहसास । परंतु मैं उस एहसास को याद कर रही थी वह स्पर्श वह दीप्ति कहने का अंदाज ।
क्या वह स्वपन था या क्या सच्ची में मां आई थी मुझसे मिलने