शाम ढलने लगी थी .आधा नवम्बर बीत चुका था .सुहानी हवाओं में बर्फ की ठंडक घुलने लगी थी .शॉल ओढ़कर साहिल खिड़की से बाहर के नज़ारों को देखने लगा .डैडी के साथ कितनी ही बार उनके इस संसदीय क्षेत्र से सांसद रहते हुए साहिल ने इसी सरकारी डाकबंगले की खिड़की से रोमांचित होकर ये नज़ारे देखे थे .दूर दूर तक हरियाली ही हरियाली और उस पर संध्या की श्यामल चुनरी की छाया . साहिल की आँखों में एक सूनापन थोड़ी नमी के साथ उतर आया .ऐसा सूनापन साहिल ने पहली बार अपने डैडी की आँखों में तब देखा था जब दादी के अंगरक्षकों ने ही उनकी हत्या कर दी थी और डैडी के दादी की चिता को मुखाग्नि देने के बाद साहिल रोते हुए डैडी से लिपट गया था .चौदह साल के साहिल ने डैडी की आँखों में जो सूनापन उस समय देखा था वो ही उसके दिल में उतर गया था और जब तब उसकी आँखों में भी उतर आता है .साहिल ने आँखों में आयी नमी को शॉल के एक कोने से पोंछा और सरकारी डाकबंगले के उस कमरे में खिड़की के पास रखी कुर्सी पर बैठ गया .वही दीवार से सटी मेज पर फैले हुए कागजों को एकत्रित कर सलीके से क्रम में लगाया .ये कागज इस संसदीय क्षेत्र के दौरे के दौरान जनता द्वारा अपने सांसद साहिल को अपनी समस्याओं के समाधान हेतु दिए गए प्रार्थना पत्र थे .साहिल ने समस्याओं की गम्भीरता के आधार पर उनका ऊपर-नीचे का क्रम निर्धारित किया और मेज पर रखे अपने मोबाइल में आये मैसेज चैक किये .दो मैसेज छोटी बहन प्रिया के व् एक माँ का था .साहिल जानता है कि माँ व् बहन दोनों को ही हर पल उसकी चिंता लगी रहती है .साहिल ने दोनों को ही ''आई एम् ओ.के. एंड फाइन '' का मैसेज किया और दीवार पर लगी घडी से टाइम देखा .सात बजने आ गए थे .संध्या की श्यमल चुनरी अब रात की काली चादर बनकर खिड़की के दिखने वाले सारे नज़ारों को पूरी तरह ढक चुकी थी .साहिल ने कुर्सी से खड़े होते हुए खिड़की के किवाड़ बंद करने को ज्यों ही हाथ बढ़ाया तभी उसके कमरे के दरवाज़े पर किसी ने दस्तक दी .साहिल खिड़की बंद करता हुआ ही बोला -'' कम इन प्लीज़ '' .ये डाक बंगले का ही कर्मचारी था .उसने आते ही साहिल को टोकते हुए रोका -'' अरे भैय्या जी ...आप रहने दीजिये ..हम बंद कर देंगें .'' साहिल मुस्कुराता हुआ बोला -''लो हो भी गई बंद ..!!'' साहिल के पास पहुँचते ही वो कर्मचारी साहिल के चरण-स्पर्श के लिए झुका .साहिल ने उसके कंधे पकड़ते हुए उसे रोका और बोला -'' अरे ये क्या करते हो भाई ?'' वह कर्मचारी गदगद होता हुआ बोला -'' नहीं भैया जी रोकिये मत पर आप हमें मत छुइये ...हम चमार हैं ..आप नहीं जानते बड़ी जात के लोग भले ही मुसलमान से अपने दुधारू पशुओं का दूध निकलवा लें पर हमसे परहेज़ करते हैं ...और तो और अपने बच्चों से कहते हैं भले ही किसी भी जात की लड़की से प्रेम ब्याह कर लेना पर चमार से नहीं ...और आप भैय्या जी हमें हाथ लगाते हैं !!!'' साहिल के चेहरे की मुस्कराहट क्षोभ में पलट गयी पर वो खुद के भावों को नियंत्रित करता हुआ बोला -'' छोडो ये सब ..क्या नाम है तुम्हारा ..नई नियुक्ति हो शायद ?'' साहिल के इस प्रश्न पर वो कर्मचारी विनम्रता के साथ उत्तर देता हुआ बोला -'' हां भैय्या जी ...आपके ही संसदीय क्षेत्र का हूँ ...सुरेश नाम है हमारा ..भैय्या जी आपके दर्शन करके आज हमारा जन्म सफल होई गया .'' साहिल के चेहरे पर मुस्कराहट वापस आ गयी और वो चुटीले अंदाज़ में बोला -'' तुम्हारा जन्म तो सफल हो गया पर मेरा कैसे होगा !! एक बात बताओ तुम्हारे घर रात का भोजन तैयार हो गया होगा ?'' सुरेश बोला -''हां भैय्या जी ..पर आप ये क्यूँ पूछते हैं ..कही ...'' साहिल उसकी बात पूरी करता हुआ बोला '' हाँ ..बिलकुल सही ...'' साहिल ने बैड के पास पड़ी अपनी चप्पलें पहनी .जींस के ऊपर पहने सूती कुर्ते की जेब में मेज से उठाकर मोबाइल डाला और शॉल इस तरह लपेटा कि केवल नाक के ऊपर का चेहरा दिखाई दे रहा था .''चलो आज रात का भोजन मैं तुम्हारे घर ही करूंगा .'' साहिल के ये कहते ही सुरेश के आश्चर्य की सीमा न रही .वो साहिल के पीछे पीछे कमरे से बाहर आ गया . साहिल के कमरे से बाहर आते ही एस.पी.जी. के कमांडों सतर्क हो गए और साहिल के निजी सचिव चंद्रा जी भी अपने कमरे से निकल कर तेजी से वहाँ पहुँच गए .साहिल ने चेहरे से शॉल हटाते हुए कहा -'' रिलेक्स एवरीवन ...मैं एक घंटे में लौट आउंगा .'' साहिल से असहमत होते हुए तभी वहाँ पहुंचे सिक्योरिटी ऑफिसर बोले -'' बट वी कांट एलाउ यू टू गो एलोन सर .'' साहिल उन्हें आश्वस्त करता हुआ बोला -'' ऑल राइट ...यू मस्ट डू योर ड्यूटी ...पर ध्यान रहे किसी को कोई परेशानी न हो .'' ये कहकर साहिल अपनी गाड़ी से न जाकर सुरेश की बाइक पर ही उसके पीछे बैठकर उसके घर के लिए रवाना हो लिया पर शॉल से अपना चेहरा ढकना न भूला .सुरेश के घर पर साहिल का जो स्वागत हुआ उसने साहिल का दिल जीत लिया .सुरेश के माता पिता ने साहिल को उसकी दादी ,डैडी से सम्बंधित संस्मरण सुनाये तो जैसे साहिल वापस अपने उसी बचपन में पहुँच गया जब वो डैडी के साथ यहाँ आकर धूम मचाया करता था .सुरेश के माता-पिता साहिल की दादी व् डैडी की हत्या का जिक्र करते समय फफक -फफक कर रो पड़े . साहिल की आँखें भी भर आयी .सुरेश की माता जी ने साहिल के सिर पर स्नेह से हाथ फेरा तो साहिल को लगा जैसे दिल्ली से माँ यही आ गयी हो .''सच माँ का स्पर्श एक सा ही होता है वो चाहे मेरी माँ हो या किसी और की '' साहिल ने मन में सोचा .सुरेश की पत्नी खाना परोस लाइ तब सबने नीचे बैठकर एक साथ भोजन किया .आज साहिल के पेट की भूख ही नहीं बल्कि आत्मा भी तृप्त हो गयी .सुरेश के घर से सबको प्रणाम कर व् फिर आने का वादा कर साहिल जब डाकबंगले की ओर रवाना हुआ तब उसके मन में एक सुकून था कि उसने दशकों पहले गांधी जी द्वारा चलाये गए छुआछूत विरोधी अभियान में एक बूँद बराबर ही सही पर योगदान तो किया .
डाकबंगले पर अपने कमरे में साहिल जब लौटा तब रात के नौ बजने आ गए थे .शॉल बैड पर फेंककर ,मोबाइल कुर्ते की जेब से निकालकर मेज पर रख साहिल फ्रेश होने के लिए बाथरूम में गया .इधर उधर नज़र दौड़ाई तो बाथ सोप कहीं नज़र नहीं आया .एक बात याद कर साहिल के होंठो पर मुस्कान आ गयी और उसने मन में सोचा -'' लो भाई यहाँ तो साबुन का एक टुकड़ा तक नहीं और लोग कहते हैं मैं दलित के घर से लौटकर विशेष साबुन से नहाता हूँ !!!'' केवल पानी से मुंह धोकर आईने में अपना चेहरा देखते समय साहिल के कानों में सुरेश की पत्नी के एक बात उसके कानों में गूंजने लगी -'' भैय्या जी अब तो भौजी ले आइये !'' यूं सार्वजानिक रूप से चालीस की उम्र पार कर चुके साहिल को ये बातें अच्छी नहीं लगती थी पर सुरेश की पत्नी के कहने में एक अपनापन था बिल्कुल प्रिया जैसा .प्रिया भी बहुत बार टोक चुकी थी और माँ तो इस मुद्दे पर साहिल से कुछ कहना ही नहीं चाहती थी क्योंकि वे अच्छी तरह जानती हैं अपने साहिल को . तौलिया से मुंह पोछते हुए साहिल वापस कमरे में आया और बिखरे बालों को बिना संवारे ही अपना लैपटॉप लेकर बैड पर बैठ गया .मेल खुलते ही इनबॉक्स में ''हिलेरी' का मेल देखते ही वो सुखद आश्चर्य में पड़ गया .'नौ साल बाद आज अचानक हिलेरी का मेल ' साहिल को यकीन ही नहीं हुआ .मेरा मेल मिला कहाँ से हिलेरी को ?ये सोचते हुए उसने वो मेल खोल लिया .स्पैनिश भाषा में लिखा व् अंग्रेजी में अनुवादित उस मेल का सारांश कुछ यूँ था -'' मन की बात अपनी भाषा में ही लिखी जाती है इसलिए स्पैनिश में लिख रही हूँ और मुझे पूरा यकीन हैं कि मेरे साथ रहते हुए जो स्पैनिश शब्द तुम सीख गए थे अब वे भी भूल गए होगे इसलिए नीचे इसका अनुवाद अंग्रेजी में कर दिया है .साहिल .....मुबारक हो रेप के आरोप से अदालत द्वारा बरी किये जाना .मैं ऐसे ही घिनौने आरोपों से तुम्हे बचाने के लिए राजनीति में न आने की सलाह दिया करती थी .मैं जानती हूँ कि तुम रेप जैसे घिनौने अपराध को करने की सोच भी नहीं सकते .साहिल राजनीति तुम जैसे भोले-भाले लोगों के लिए नहीं है .तुम्हारी दादी को उनके ही अंगरक्षकों ने गोलियों से भून डाला और तुम्हारे डैडी को कितनी क्रूरता से बम-विस्फोट में उड़ा दिया गया ....फिर भी तुम्हारी मॉम राजनीति में आयी और फिर तुम भी !!! तुम्हारे डैडी की हत्या पर तुम्हे तड़पते हुए मैंने देखा है .आज मैं सुकून से कह सकती हूँ कि मैंने तुम्हे सही सलाह दी थी ...विपक्षियों की गन्दी सोच 'रेप' तक जा पहुँचती है और तुम जैसा शालीन व्यक्ति अपने को पाक-साफ़ घोषित करने के लिए अदालतों का चक्कर लगाता है .तुम ये सब कैसे झेलते हो मुझे आश्चर्य होता है !!...यदि अब भी एक प्रतिशत भी तुम राजनीति छोड़कर यहाँ वेनेजुएला आने के बारे में सोचने को तैयार हो तभी इस मेल का जवाब देना ....तुम्हारा मेल तुम्हारी ऑफिशियल वेबसाइट से लिया है ......अलविदा ''मेल की आखिरी चार लाइन साहिल ने दस बार पढ़ी और विंडो को शट डाउन कर दिया .साहिल ने एक निगाह मेज पर पड़े जनता के प्रार्थना पत्रों पर डाली और फिर ऊपर छत के पंखे पर .' हिलेरी जैसी फ्रेंड साहिल के लिए और कोई नहीं हो सकती ' ये वो पिछले बीस साल से जानता है पर जब राजनीति या फ्रेंड चुनने की बात आई तब साहिल ने राजनीति को चुना .साहिल अच्छी तरह जानता था कि राजनीति में आने के निर्णय से हिलेरी के साथ उसकी फ्रेंडशिप टूट जायेगी पर राजनीति ही वो जगह है जिसमे सक्रिय होकर वो अपने डैडी को ज़िंदा महसूस कर पाता है . दादी की हत्या के बाद सहमे हुए माँ ,साहिल और प्रिया को डैडी ने ही फिर से हँसना सिखाया था .कितना घबरा गया था साहिल एक बार लॉन में खेलती हुई प्रिया की ओर राइफल लेकर जाते हुए सिक्योरिटी पर्सन को देखकर .साहिल चिल्लाता हुआ दौड़ा था उस ओर -'' डोंट किल माई सिस्टर !!!'' डैडी भी चौदह वर्षीय किशोर साहिल की चीख सुनकर अपने रूम से दौड़कर वहाँ पहुँच गए थे और आँखों ही आँखों में सिक्योरिटी पर्सन को वहाँ से जाने का इशारा किया था .साहिल डैडी से लिपट कर बहुत देर तक रोता रहा था .एक हादसा बच्चे के दिमाग पर कितना गहरा प्रभाव छोड़ जाता है ये डैडी अच्छी तरह जानते थे . साहिल व् प्रिया की पांच साल तक शिक्षा घर पर ही हुई क्योंकि साहिल के पूरे परिवार को मार डालने की धमकियाँ रोज़ आतंकवादी संगठनों की ओर से रोज़ दी जा रही थी .पांच साल बाद साहिल को विदेश पढ़ने भेज दिया गया .इसी दौरान उसकी दोस्ती हिलेरी से हुई .कॉलेज कैम्पस में एक दिन मस्ती करते हुए सब दोस्तों के साथ साहिल ये योजना बना ही रहा था कि इस बार भारत लौटने पर डैडी के साथ क्या-क्या शेयर करेगा ,उन्हें यहाँ के बारे में ये बतायेगा ...वो बतायेगा ...'' तभी अचानक सुरक्षा कारणों से साहिल को तुरंत अति सुरक्षित जगह पर ले जाया गया और वहाँ वार्डन सर ने उसके कंधे पर हाथ रखते हुए धीमे स्वर में कहा -'' योर फादर इज मोर .....उनकी हत्या कर दी गयी है .'' इक्कीस वर्षीय साहिल के दिल को चीरते हुए निकल गए थे ये शब्द .उसके मुंह से बस इतना निकला था -'' इज दिस ट्रू ? '' और वार्डन सरके ''यस'' कहते ही उसकी आँखों के सामने डैडी का मुस्कुराता हुआ चेहरा घूम गया था और कान में उनके अंतिम शब्द '' कम सून ...'' साथ ही दिखाई दिया था माँ का चेहरा और साहिल ने तुरंत माँ से बात कराये जाने का आग्रह किया था .फोन पर संपर्क सधते ही साहिल माँ से बस इतना कह पाया था -'' माँ मैं आ रहा हूँ ...टूटना मत .'' जबकि साहिल खुद टूट कर चूर चूर हो गया था .जिन संस्मरणों को डैडी के साथ शेयर करने की प्लानिंग कुछ देर पहले वो कर रहा था उनके चीथड़े चीथड़े उड गए थे बिलकुल डैडी के बम विस्फोट में उड़े शरीर की तरह .साहिल की सिक्योरिटी इतनी कड़ी कर दी गयी थी कि हिलेरी भी ऐसे वक्त में उससे मिल नहीं पाई थी .विशेष विमान से साहिल को भारत लाया गया था और एयर पोर्ट पर खड़ी प्रिया साहिल को देखते ही उसकी ओर दौड़कर जाकर लिपट गयी थी उससे .घंटों से आँखों में रोके हुए अपने आंसुओं के सैलाब को रोक नहीं पायी थी वो .प्रिया की आँखों में आंसूं देखकर साहिल के दिल में दर्द की लहर दौड़ पड़ी थी पर उसने बड़े भाई होने का कर्तव्य निभाते हुए प्रिया को सम्भाला था .साहिल को इस वक्त केवल माँ की चिंता थी .उस माँ की जो उसके डैडी के लिए अपना घर ,देश ,संस्कृति छोड़कर भारतीयता के रंग में रंग गयी थी .जिसने अच्छी बहू ,अच्छी पत्नी व् अच्छी माँ होने की परीक्षाएं उत्तम अंकों में पास की थी .जो डैडी के हल्का सा बुखार होने पर सारी रात जगती रहती थी ...वो माँ डैडी के बिना कैसे रह पायेगी ? यही एक प्रश्न साहिल के दिल व् दिमाग में उथल-पुथल मचाये हुए था .उम्मीद के विपरीत माँ ने दिल कड़ा कर सब सह लिया .साहिल विस्मित था पर गौरवान्वित भी ऐसी माँ को पाकर .माँ ने न केवल खुद को सम्भाला बल्कि साहिल व् प्रिया को भी .माँ का दिया सम्बल ही था जो साहिल डैडी के सब अंतिम संस्कार संयमित होकर करता गया वरना न जिस्म में ताकत रही थी और न मन में कोई उमंग जीवन के प्रति . इस हादसे के बाद साहिल माँ व् प्रिया को अकेला छोड़कर विदेश नहीं जाना चाहता था पर सुरक्षा कारणों से उसे फिर जाना पड़ा .माँ व् प्रिया को लेकर जब भी वो भावुक हो जाता हिलेरी उसे ढांढस बंधाती. डैडी के बारे में बात करता हुआ तो वो तड़प ही उठता था तब हिलेरी उसका ध्यान किसी और तरफ ले जाती .ऐसी फ्रेंड हिलेरी की सलाह को टालना साहिल के लिए सबसे कठिन काम था पर राजनीति में आने की प्रेरणा उसे माँ से मिली थी .सत्ता को जहर मानती आई माँ ने जब देखा कि दादी व् डैडी के खून-पसीने से सींची गयी पार्टी साम्प्रदायिक पार्टियों के आगे झुकने लगी है तब उन्होंने पार्टी की कमान अपने हाथ में ली और राजनीति में एक नए दौर की शरुआत हुई . जनता ने भी माँ की मेहनत व् नीयत को समझा .'' बेटी विदेश की है तो क्या बहू तो हिंदुस्तान की है .'' कहकर भारतीय जनता ने अपना दो सौ प्रतिशत स्नेह माँ पर न्योछावर कर दिया .माँ ने भी तो जनता की उम्मीदों पर खरे उतरने के लिए दिन-रात एक कर दिए . जनता के इसी प्यार ने साहिल को भी भारत वापस बुला लिया .माँ के संसदीय क्षेत्र का दौरा करते समय जब एक नौ वर्षीय बालक ने साहिल का हाथ पकड़कर पूछा था -'' भैय्या जी मेरे पिता जी का सपना है कि मैं खूब पढूं इसलिए मैं दस किलोमीटर पैदल चलकर जाता हूँ .क्या आप अपने पिता जी के अधूरे सपने पूरे नहीं करेंगें ?'' उसी क्षण साहिल ने राजनीति में सक्रिय होने का अंतिम निर्णय ले लिया था .साहिल ने मन ही मन कहा -'' हिलेरी तुमने एक प्रतिशत उम्मीद भी गलत ही की है .अब मैं पूर्ण ह्रदय से जनता को समर्पित हूँ .मेरी पूँजी है ''जनता का विश्वास'' जिसे मैं कभी नहीं लुटा सकता और रही बात विपक्षियों के घिनौने आरोपों की तो जिस दिन राजनीति में आया था उसी दिन इस दिल को वज्र कर लिया था .हिलेरी तुम दादी की हत्या और डैडी की हत्या की बात करके मुझे मेरे लक्ष्य से नहीं भटका सकती हो .मैं जान चूका हूँ कि डैडी के सपने मैं राजनीति में रहकर ही पूरे कर सकता हूँ क्योंकि जनसेवा का सर्वोत्तम माध्यम राजनीति ही है .मैं तुम्हारे मेल का जवाब कभी नहीं दूंगा ...कभी नहीं !!!!!!'' ये सोचते हुए साहिल ने कुर्ते की जेब में पड़े पर्स को निकाला और उसमें लगी डैडी की फोटो को चूम लिया.