#जय_बजरंगबली
पूज्य हनुमान जी को खबर मिली कि पृथ्वी पर उनके गोत्र को लेकर काफी घमासान मचा है। उन्होंने तो कभी इस विषय मे सोचा ही नही था। और वो कैसे सोचते ? सूर्य का क्या कोई गोत्र होता है भला या फिर हवाओ का कोई गोत्र होता है? शुक्र है लंका राम जी के रहते निपट गयी नही तो आज लंका छोड़ अयोध्या बचानी मुश्किल हो जाती।
विचारों के चलते हुए भी हनुमान जी आंखें मूंदे ध्यानमग्न प्रतीत हो रहे थे। तभी उनकी पूंछ पर किसी का पांव पड़ा।
"हे वानरराज, आप यहाँ क्या कर रहें है? " सूट बूट से किसी कॉर्पोरेट एग्जेक्युटिव से लग रहा था वो व्यक्ति
हनुमान जी बोले " हम तो यहीं रहतें हैं, अभी विश्राम कर रहें हैं वत्स"
"हा हा , महाराज ये पंचवटी नही मुम्बई है , आपको ये जंगल छोड़ना पड़ेगा, वो क्या है कि अब ये वन क्षेत्र नही रहा , आपके नाम पर होनी चाहिए ज़मीन और ये ज़मीन सरकारी है"
हनुमान जी एकटक उस सरकारी / कॉर्पोरेट अफसर को देख रहे थे जिसके चश्मे के मोटे कांच के आरपार उसकी आंखें गुलाब जामुन के साइज की लग रही थी।
हनुमान जी आश्चर्य चकित थे , उन्होंने कहा जरा मेरी पूंछ हिला के दिखा दो तो मैं अभी के अभी ये वन क्षेत्र, जो की तुम्हारे कथानुसार अब वन क्षेत्र नही रहा, छोड़ कर चला जाऊंगा।
ये सुनते ही सरकारी अफसर ने अपना लैपटॉप जमीन पर रखा और हनुमान जी की पूंछ एक हाथ से उठा कर रस्सी की तरह लपेट कर एक तरफ रख दी।
अब हनुमान जी घोर आश्चर्य से भर गए, और भरते भी क्यों न जिस पूंछ को महाबली भीम हिला नही पाएं उस पूँछ को इस डेढ़ पसली के आदमी ने उठा कर लपेट दिया। वो आदमी जिसके सारे दांत आप बाहर से ही गिन सकते थे।
"चौंकिए मत वानर राज, हम ब्यूरोक्रेट्स बड़े बड़े जहाज, इमारते, जंगल, सरकारे यूँही गिरा देते है और ये तो आपकी पूँछ ही है । " अफसर पूरे आत्मविश्वास के साथ बोला।
"वैसे आप यहाँ हनुमान जी के गेट अप में क्या कर रहें हैं?"
"गेट अप? तुम्हारा क्या मतलब है, हम स्वयं हनुमान हैं" हनुमान जी बोले
अब की अफसर को हँसी आ गयी, हंसते हंसते चश्मा संभालते हुए वो बोला "भाई फिल्मसिटी पास ही है, वहाँ कोई रोल कर रहे हो क्या, गज़ब कैरेक्टर में उतर गए हो मेरी मानो जाओ और शूटिंग में ध्यान दो यहां जंगल मे कभी भी कुछ भी हो सकता है आजकल मामला गरम है और इस गर्मी के कारण ठंड में भी अचानक कभी कभी आग लग जाती है"
हनुमान जी हैरान थे "सम्मानीय, मैं ही रामभक्त हनुमान हूँ, वही हनुमान जिसे अमरत्व का वरदान प्राप्त है"
"अरे जाओ जी, बड़े आये रामभक्त हनुमान, हनुमान हो तो अपना सीना चीर के दिखाओ वहाँ राम है या नही" अफसर अजीब सी शक्ल बना कर बोला, इस समय उसकी शक्ल सिंघाड़े के जैसी प्रतीत हो रही थी।
हनुमान जी शांत भाव से बोले "मेरे हृदय में श्री राम वास करतें है सांकेतिक रूप से उसे एक अलंकार की तरह रामायण में दिखाया गया है। सीना चीर देना प्रतीक है पुत्र"
अफसर जी बोले "हमने तो जो पढ़ा वही मानेंगे । आप अपनी परिभाषाएं न जोड़े।
हनुमान जी निरंतर उसके मुख की तरफ देख रहे थे और सोच रहे थे रामायण काल मे वन में राक्षसों का वास होता था पर वे वन को नष्ट नही करते थे मगर इस युग के राक्षस अपनी स्वार्थ सिद्धि के लिए वनों को नष्ट किये जा रहें हैं । वन के आस पास उठती ऊंची ऊंची इमारते इस बात की सूचक हैं।
"क्या सोचने लगे वानर राज?" अफसर बोला
"मैं देख रहा हूँ कि मनुष्य के लोभ के चलते वन्य जीव अत्यंत कष्ट मे हैं। और तुम्हारे वार्तालाप से प्रतीत होता है कि शीघ्र ही ये हरा भरा जंगल मिट जाएगा। इसके स्थान पर ये अजीब अजीब सी दिखने वाली इमारते आ जाएंगी जो न किला लगती है न विला बस छोटी छोटी डिब्बियां जिसमे बैंक लोन के नीचे ताउम्र इंसान दबा रहता है। मनुष्य को गुलाम बनाने का ये आधुनिक तरीका घातक है। मनुष्य को अपने रहने के लिए जमीन खरीदनी पड़े इससे ज्यादा शर्म का विषय और क्या होगा। परमात्मा ने तो ये जमीन सबके लिए बनाई है" पूज्य हनुमान जी का मुख अब गंभीर हो चला था।
"तुम तो यार सच मे खुद को हनुमान समझ बैठे हो, अरे भैया ये जिसे तुम डिब्बी कह रहे हो ये करोड़ो में मिलती है मुम्बई में। और ये कोई हमारा बनाया हुआ सिस्टम तो है नही बरसो से चला आ रहा है । इस नौकरी के लिए 50 लाख खर्च किये हमारे बाउजी जी ने अब हमारा कमाने का टाइम आया है तो तुम ज्ञान झाड़ रहे हो। चलो भागो यहाँ से और हमे हमारा काम करने दो, संसार मे जंगलों की कमी है क्या लेके चले जाओ सबको अपने साथ" हँसते हुए अफसर बोला
हनुमान जी के नेत्रों में अश्रु की कुछ बूंदे आ चुकी थी जब गिलहरी के कुछ बच्चे उनके कंधे पे चढ़ कर सहमे से उनके कान में कुछ बुदबुदा रहे थे।
"तुम्हे पता है ये हमसे क्या कह रहे है पुत्र"? अफसर की और पीठ किये पवनपुत्र बोले
अफसर साहब झुँजला कर बोले "महाराज आप सुनिए इन गिलहरियों की बातें हमे तो समझ आती नही। आप तो हमे अपना काम करने दीजिए"
हनुमान जी की आवाज़ में अब थोड़ा कड़ापन आ चुका था वो बोले " हम जो बोल रहें हैं वो तुम्हारे समझ नही आ रहा है। प्रभु ने ये धरती समस्त जीवों के लिए बनाई है । मनुष्य का कोई अधिकार नही की वो इस धरती को किसी बिकाऊ वस्तु की भांति खरीदने बेचने लगे। यहीं नही वनों को नष्ट करने लगे वहां रह रहे जीवो का जीवन संकट में डाल दे। सुनो मूर्ख मनुष्य अपने लिए नही मगर इन मूक असहाय जीवो के लिए मैं फिर से अपनी गदा उठा सकता हूँ। जै श्री राम"
जै श्री राम के उदघोष के साथ जैसे ही हनुमान जी ने अपना विकराल रूप अफसर को दिखाया उसके प्राण हलक में ही अटक गए। उसको काटो तो खून नही
"महाराज, क्षमा कर दें प्रभु मैं आपको पहचान नही पाया। आज के समय मे आपके दर्शन होंगे कभी सोचा नही था। हे ईश्वर ये क्या अपराध हो गया मुझसे" डरा हुआ वो अफसर बोला
हनुमान जी अपने साधारण आकार में आ चुके थे वे बोले " आधुनिक मनुष्य अशिष्ट होने के साथ साथ धूर्त भी है, यही कारण था हमने तुम्हे अपनी पूंछ उठाने दी क्योंकि यदि तुम न उठा पाते तो फिर तुम्हारा वास्तविक चेहरा हम तुम्हे कभी दिखा नही पाते। मनुष्य अब अहंकारी नही स्वार्थी और चालबाज़ ज्यादा हो गया है। राक्षसों में भी एक शिष्टता थी जो अब दिखाई नही देती। तुम मनुष्य सामने वाले व्यक्ति को देख कर अपनी भाव भंगिमाएं, शब्द बदलते हो तुम उसी के साथ शिष्ट होने का ढोंग करते हो जो या तो तुमसे अधिक शक्तिशाली हो या तुम्हे उससे कुछ लाभ होने वाला हो आदर सम्मान ये सब मात्र दिखावा है , सुनो अफसर जाकर अपने मालिको से कह दो की इन वन्य जीवों के घर मे न घुसे ये सलाह नही चेतावनी है"
"जी महाराज , आपके चरणों मे प्रणाम - मैं हमेशा हनुमान चालीसा पड़ता हूँ। आपको पहचान नही पाया इसके लिए क्षमा आप ठीक ही कहते हैं मैं मूर्ख ही हूँ कृपया मुझे क्षमा कर दें" अफसर गिड़गिड़ाया
"ठीक है जो क्षमा किया तुम्हे" जे सी बी मशीन को एक और फेकते हुए हनुमान जी बोले
"एक प्रार्थना है प्रभुश्री, मेरा प्रमोशन 3 साल से रुका हुआ है आपका आशीर्वाद चाहिए" अफसर की मिमियाती आवाज़ आयी
पूज्य हनुमान जी ने आकाश की तरफ देखा और फिर एक बार हैरान होते हुए अफसर की तरफ देखा और निराशा लिए हुए अन्तर्ध्यान हो गए।
7 बजे का अलार्म बजा और अफसर हड़बड़ा कर उठ गया । बिस्तर के पास चाय के साथ , आज सुबह का अखबार आ चुका था जिसके पहले पन्ने पर ऑस्ट्रेलिया के घने जंगलों में मुम्बई के आरे वन क्षेत्र की तरह अज्ञात कारणों से आग लग चुकी थी ।
~ सम्पूर्ण सिद्धार्थ