Asraar in Hindi Poems by Karishma Varlani books and stories PDF | असरार..

Featured Books
Categories
Share

असरार..

1). आरज़ू ...

हूँ मदहोश सरहोश आज बेहोंश हूँ कहीं
हूँ खामोश पर मन्द ही मन्द कुछ कहती हूँ अभी
सोचती हूँ लौट आऊँ ,लौट आऊँ तेरे करीब वहीं
वहीं जहां तू रहता है बसता है मेरा प्यार अब भी मुझमे कहीं
हम मिलकर भी ना मिल सके कभी
आरज़ू है तुझे पाने की बची अब भी मुझमे कहीं
चाहत है डूब जाऊं तुझमें इस कदर की दुनिया देखे मेरा वजूद अब तुझसे ही
हूँ मदहोश सरहोश आज बेहोंश हूँ कहीं,,

हर याद से तेरी याद जुड़ी है
डूबी हूँ तुझमें दुनिया से परे कहीं
ढूंढती मेरी नज़र हर वक़्त तुझे ही
पर एक गम है कि तू इस वक़्त नही है कहीं
हूँ मदहोंश सरहोश आज बेहोंश हूँ कहीं।।


2).
मर्ज़ और दवा ......

मिलने वाले अक्सर पूछे मुझसे ,
पीने का बहुत चाव रखती हो

क्या कहें जनाब भावनाओं की थोड़ी कच्ची हूँ
मन में अक्सर घाव रखती हूँ
हाँ मैं पीने का चाव रखती हूँ।

यद्यपि पेशे से स्वयं डॉक्टर हूँ
मन के मर्ज़ अक्सर दो घूँट से भर लेती हूँ
हाँ मैं पीने का बहुत चाव रखती हूँ.......

दो घूँट अंदर और सारे गम बाहर यही अपनी दवा की pharmacokinetics समझती हूँ

दवा लेकर कुछ यूं ही मुस्करा भी लेती हूँ
गम भूला कर कुछ अतरंगी सा फरमा भी लेती हूँ

मिज़ाज़ मेरा कुछ शायराना सा हो जाता है
पहचानना चाहे कोई गम मेरा तो उन शायरियों से चुरा लेता है

कभी परिवार की याद ,कभी दोस्त से लड़ाई ,कभी पढाई का दबाव ,कभी बॉय फ्रेंड की सगाई
हर गम का इलाज इसे बना लेती हूँ

हाँ मैं पीने की शौकीन हूँ जनाब
दो घूँट पी कर सारा गम मिटा देती हूँ।

यूँ तो मुझे ...और मेरी बातों को समझना बहुत मुश्किल है
पर पीने के बाद खुद की मुख्तार मैं आप हो जाती हूँ
एक अनकही सी पहेली हूँ
पर जिसके साथ दो घूँट लगा लूँ
बस फिर उस ही कि सहेली हूँ ।।

यह दावा रोज़ सुबह शाम दिन में दो बार लेना
एक साथ नही सुरप सुरप कर आहिस्ते आहिस्ते कर पीना

ऐसा खुद को हर बार prescription letter लिखती हूँ
जब मैं आप ही डॉक्टर और आप ही मन की मरीज़ होती हूँ....
फिर बड़ी शराफत से ,एक अच्छे मरीज़ की तरह दवाखाने पर पहुंच जाती हूँ

हज़ारो सवाल मन में लिए स्टूल पर जच जाती हूँ
वो थड़ी का माहौल इलायची की भीनी सी खुशबू
और बस प्यार से चाय को हलक से उतारती हूँ

हाँ मैं चाय की शौकीन हूँ जनाब बस चाय से ही मर्ज़ मिटाती हूँ।।

3). ऐ ज़िन्दगी थोड़ा और खिलखिलादे.....

ऐ ज़िन्दगी थोड़ा और खिलखिलादे
ठहाके की ना सही,, एक भीनी सी मुस्कान भर दे
ऐ ज़िन्दगी थोड़ा और मुस्करा दे।

हाँ माना बहुत नाज़ों से पाला था तूने मुझे
पालने में झुलाया,
कालीन पर चलवाया था मुझे,
अब कालीन पर ना सही एक साफ मैदान पर चलवा दे
ऐ ज़िन्दगी थोड़ा और खिलखिलादे ।

याद है मुझे खूब व्यंजन पकाया करती थी मे,
साथ परिवार के साथ एक पात्र में खाया करती थी मैं
अब अनेक व्यंजन ना सही
पर सुकून की दाल रोटी ही चखा दे...
ऐ ज़िन्दगी थोड़ा और खिलखिला दे ।

कल तक किसी नई नवेली दुल्हन की तरह
खूब आंगन में इठलायी मैं
कभी कंगन ,चूड़ी तो कभी पायल के साथ इतराई मैं..
आज उन गहनों के साथ ना सही
तो बस एक नथ के साथ ही चहका दे..
ऐ ज़िन्दगी थोड़ा और खिलखिला दे।

हाँ जानती हूँ ख्वाहिश थी मेरी
दूजी पीढ़ी को अपने हाथों के स्वेटर मुफ़्लर पहनाउँ मैं
कभी उन्हें नहलाकर कभी कहानियां सुनाकर
अपना बनाऊ मैं,
आज अपने बच्चे ना सही तो ज़रा पड़ोसी के बच्चों को लाड़ लड्डवा दे
ऐ ज़िन्दगी थोड़ा और खिलखिलादे।

अब तेरी तरन्नुम या कोई प्रेम संगीत ना सही
तो बस धीमे से गुनगुना दे
ऐ ज़िन्दगी थोड़ा और मुस्करा दे..
ठहाके की ना सही एक भीनी से मुस्कान भर दे
ऐ ज़िन्दगी थोड़ा और मुस्करा दे ।।