"आज आपकी पुण्यतिथि,
फिर वही रिश्तेदारों के फोन,
वही गम में शरीक होने के ढोंग,
थक चुकी हूँ इन सबसे अब ये बोझ नही उठाया जाता।"
निखिल की तस्वीर को निहारती हुई नेहा बुदबुदाती जा रही थी।
"एक पल ऐसा नही गुजरा जब आपको साथ नही महसूस किया। हारने नही दिया आपने मुझे, मेरा संबल बनकर खड़े रहे हमेशा मेरे साथ।
म्रत्यु पर किसका जोर चला है जो मैं चला पाती।" अचानक ही हुए हादसे ने नेहा की जिंदगी बदल कर रख दी। व्यवस्थित ढंग से जिंदगी जीने वाला एक दिन उसको अव्यवस्थित करके सदा के लिए गायब हो गया। अल्हड़ नादाँ थी नेहा। हर जिम्मेदारी से मुक्त। हर पल चहचहाती हुई, छोटी छोटी बातों पर ठहाके लगाती हुई। निखिल के अचानक दुर्घटना में जाते ही सारी जिम्मेदारियां नेहा के सिर पर आने से लड़खड़ाने की स्थिति बन पड़ी थी। उसकी मदद को अनेको हाथ आये लेकिन मन नही माना। स्वाभिमानी थी और जिद्दी भी। उम्र कम और ख़ूबसूरती की मिसाल भी। पता नही क्यों नेहा के मन मे किसी के प्रति विश्वास ही नही जमा। वह शंकित रहती कि मदद के नाम पर सामने वाले की आँखे उसके जिस्म को टटोलती हैं।
आर्थिक स्थिति मजबूत थी कमी थी तो इनकी और नेहा के नियोजन की। उस दिन पहली बार नेहा को लगा था की काश निखिल ने उसे व्यवहारिकता में दक्ष किया होता वह इस विकट स्थिति में न घिरती लेकिन नियति तो उसे ठोकर मारकर सिखाना चाहती थी। रोना आया था उसे बहुत। ये क्या तरीका निकाला ईश्वर ने उसे जिम्मेदार बनाने का।
भले ही अल्हड़ थी मगर इरादों में थी मजबूती।ठान लिया था किसी का सहारा नही लूँगी। एक के बाद एक निर्णय लेती चली गयी और हर निर्णय के बाद महसूस होता एक हाथ उसकी पीठ पर शाबासी की थपकी देता हुआ और वह बस मुस्कुरा देती। हँसना तो भूल ही चुकी थी। ठहाके तो जैसे निखिल के साथ ही चले गए थे।
हौसलों ने उड़ान भरी। वक़्त के साथ संजीदा भी होती गयी। इकलौते बेटे की परवरिश में कोई कमी न रखी। घरेलू कामों के साथ व्यवसाय सम्भालना कोई आसान काम नही था ऊपर से हिम को वक़्त देना। वक़्त को जैसे नेहा ने मुट्ठी में बंद कर लिए, जैसे चाहा वैसे ही नियोजित करती चली गयी।
हिम के विवाह में हर पल मन ही मन निखिल से बातें करती रही और हल्की मुस्कान से सारी विधियां पूरी करती रही। रिश्तेदार हैरान थे उसके बदले स्वरुप को देखकर।
दो साल बीत चुके थे हिम के विवाह को। 8 दिन पहले हिम भी पिता बन चुका था और वह दादी। आज हिम हॉस्पिटल से अपने नवजात शिशु को लेकर घर आने वाला है। नेहा उन्ही की प्रतीक्षा में खड़ी थी।
" मुझे ऐसा लग रहा है तुम वापस आ रहे हो निखिल मेरे पास, एक छोटा बच्चा बनकर। जितना मैंने तुम्हे तंग किया अपनी शरारतों से उन्ही का बदला लेने शायद। बस जगह ही तो बदली है हमने आपस में।" निखिल की तस्वीर में अपनी चमकती हुई बिंदी को देखकर नेहा की मुस्कान गहरी हो गयी ।
घण्टी के बजते ही वह वर्तमान में लौटी। लगता है मेरा लल्ला आ गया। स्वागत की विधि पूरी होते ही लल्ला को गोद में लेकर नेहा खुलकर हंस पड़ी ठहाकों के साथ। बेटा और बहु विस्फारित नेत्रों से देख रहे थे । उसकी ये हंसी उनके लिए अजूबा थी।निखिल की तस्वीर की और देखते हुए नेहा ने ऐलान कर दिया -"नवजीवन और नवनिर्माण, हिम, आज के दिन को हम तुम्हारे पापा की पुण्यतिथि के रूप में नही इस दिन को पापा की घर वापसी के रूप में याद करेंगे और लल्ला गजब हो तुम अपने दद्दा की तरह, क्या दिन चुना है अपने घर आने का। मेरे गम को ख़ुशी में बदल दिया उन्ही की तर्ज पर।
विनय...दिल से बस यूँ ही।