Job in Hindi Motivational Stories by Jyoti Prakash Rai books and stories PDF | नौकरी

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नौकरी

नौकरी -

जीवन का सबसे कठिन कार्य है की किसी के यहाँ नौकरी कर लेना, यदि आप बहुत पढ़े लिखे होते हुए भी किसी ऐसे धनवान व्यक्ति के पास नौकरी पर है जो धनवान तो है लेकिन गुणवान नहीं है और न ही सभ्यता का महत्व है तो फिर आपका जीवन भी एक कर्महीन के बराबर ही समझा जायेगा. क्योकि उस मालिक को अपने समान और अपने बराबर कोई अन्य व्यक्ति नजर ही नहीं आता है

यदि आप कोई भी कार्य करने से पहले उस मालिक को जानकारी नहीं देते हैं तो आप भले ही सही काम कर रहे हो या किये हो लेकिन वह आपको गलत ही ठहराएगा क्योंकि उसके पास पैसा है जिसके बल पर वह आपसे जो चाहे वो काम करवा सकता है ! एक बार की बात है एक पढ़े लिखे हुए व्यक्ति को किसी सेठ के यहाँ नौकरी करनी पड़ी मजे की बात यह है की सेठ भी पढ़ा - लिखा था लेकिन उसे किसी भी इंसान की क़द्र करने की आदत नहीं थी क्योकि वह अमीरों की गिनती में गिना जाता था ! और उसके पास काम करने वाला व्यक्ति पढाई के उस बुनियाद पर था जहा से उसको किसी के आगे झुकने की जरुरत ही नहीं थी लेकिन कहा जाता है की "मन के हारे हार - मन के जीते जीत" तो उसको लगता था की दुनिया में कही भी जाओ ऐसे ही व्यक्ति मिलेंगे इससे अच्छा यही काम कर लेना ही तकदीर में लिखा होगा तो यही सही ! और सेठ उसकी इसी कमजोरी का फायदा उठा कर उससे सरकार का कर (टैक्स) चोरी करवाता था अपने सभी कर्मचारियों का पगार कुछ ही रुपयों में पूरा करवाता वो भी खुदरा मूल्य में जबकि सरकारी कागजातों में बैंक द्वारा चेक से किया हुआ दिखाने के लिए कहता था ! एक दिन की बात है शुक्रवार का दिन था सेठ किसी काम से बाजार में निकले थे और दोपहर का वक़्त था लोग जुम्मे की नमाज पढ़ कर छूटे थे इसी बीच सेठ अपनी दो पहिया वाहन लिए पहुंच गए और अचानक किसी व्यक्ति को टक्कर लग गयी वह व्यक्ति कुछ बोल पाता तब तक सेठ जी उसे ही अंधा , पागल तमाम अपशब्द बोल कर चिल्लाने लगे यह सब तमाशा देख पब्लिक का सर घूम गया और सेठ जी की खबर लेना चालू कर दिए फिर क्या था जो आता वही हाथ साफ कर के जाता ! देखते ही देखते वह भीड़ इकठ्ठा हो गयी तभी एक व्यक्ति देखा और बोला अरे ये तो सेठ जी है ! तब जा कर पब्लिक ने उन्हें छोड़ा और सेठ जी की जान बची, इतने पर भी सेठ का रौब काम नहीं हुआ ! उनके साथ जो नौकर था वह उस वक़्त एक किनारे खड़ा होकर सब तमाशा देख रहा था, जैसे ही सेठ जी गाड़ी लेकर आगे बढे नौकर भी आ पंहुचा और सेठ को घर तक छोड़ा, सेठ घर जाते समय नौकर को एक हजार रुपये दिए और बोले आज की घटना किसी को भी मत बताना लेकिन यह बात कहा छुपने वाली थी ! दो दिनों में ही ऑफिस तक सब की जुबान पर चर्चा का विषय बन गयी !
दोस्तों कहने का तात्पर्य यह है की पैसे को उतना ही महत्त्व दें जितना उचित हो किसी के सामने मज़बूरी बता कर खुद को कमजोर साबित नहीं करना चाहिए !
धन्यवाद