Shaurya Gathae - 8 in Hindi Biography by Shashi Padha books and stories PDF | शौर्य गाथाएँ - 8

Featured Books
  • પ્રેમ સમાધિ - પ્રકરણ-122

    પ્રેમ સમાધિ પ્રકરણ-122 બધાં જમી પરવાર્યા.... પછી વિજયે કહ્યુ...

  • સિંઘમ અગેન

    સિંઘમ અગેન- રાકેશ ઠક્કર       જો ‘સિંઘમ અગેન’ 2024 ની દિવાળી...

  • સરખામણી

    સરખામણી એટલે તુલના , મુકાબલો..માનવી નો સ્વભાવ જ છે સરખામણી ક...

  • ભાગવત રહસ્ય - 109

    ભાગવત રહસ્ય-૧૦૯   જીવ હાય-હાય કરતો એકલો જ જાય છે. અંતકાળે યમ...

  • ખજાનો - 76

    બધા એક સાથે જ બોલી ઉઠ્યા. દરેકના ચહેરા પર ગજબ નો આનંદ જોઈ, ડ...

Categories
Share

शौर्य गाथाएँ - 8

शौर्य गाथाएँ

शशि पाधा

(8)

अपना – अपना युद्ध

मेरे पति अपने सैनिकों के साथ किसी कठिन अभियान के लिए गए हैं, यह बात मैं जानती थी । कहाँ गए हैं; कितने दिन के लिए गए हैं, कब लौटेंगे, यह नहीं जानती थी ।ऐसा तो कई बार हो चुका है कि हमारी पलटन ( भारतीय सेना की स्पैशल फोर्सेस की एक इकाई ) की कुछ टुकड़ियों को किसी ना किसी मिशन के लिए अचानक जाना पड़ता था और मिशन की गोपनीयता या महत्व को देखते हुए बहुत बार परिवारों को उस के विषय में कोई जानकारी नहीं होती थी | पड़ोसी देश के साथ युद्ध के समय तो हमारी पलटन सीमाओं पर युद्धरत रहती ही है लेकिन पिछले कई वर्षों से स्पैशल फोर्सेस की इकाइयों को देश के भीतर फैली अराजकता से निपटने के लिए भी सदैव तैयार रहना पड़ता था| आतंकवाद का राक्षस उन दिनों अपने पैर पसार रहा था | भारत की उत्तर पूर्व की सीमाओं पर अलगाववादी संगठन और उत्तरी सीमाओं पर घुस आए आतंकवादी तत्व भारत में अशांति फैलाने के लिए अपने-अपने खेमे जमा रहे थे| भारतीय सेना की स्पैशल फोर्सेस की पलटने आतंकवाद से जूझने के लिए विशेष प्रकार से प्रशिक्षित हैं | अत: ऐसे अभियानों में जाना उनका कर्तव्य था |

सैनिक पत्नी होते हुए मैं एक बात भली भांति समझ गई थी कि सीमा पर शत्रु से युद्ध करने में इतनी कठिनाई नहीं जितनी देश के बीच छिपे आतंकवादियों से आमने–सामने जूझने में। सीमा पर होने वाले युद्ध में सैनिक शत्रु के ठिकानों को जानते हैं | लेकिन आतंकवादी तो छद्म वेश में, कहीं भी छुप कर वार कर सकता है वो तो आपके साथ चलते हुए भी बम विस्फोट कर सकता है । आम जनता में उसे कैसे पहचाना जा सकता है ? आतंकवादी का ध्येय एक सैनिक के उद्देश्य से बिलकुल भिन्न होता है । वे हथियार उठाते हैं तो केवल आम जनता में हिंसा और अराजकता फैलाने के लिए, दहशत फैलाने के लिए या राष्ट्र की उन्नति में बाधा डालने के लिए। इस बार जिस महत्वपूर्ण अभियान के लिए हमारी पलटन के सैनिक गए थे, वो भी आतंकवादियों को हाथों हाथ लेने का ही मिशन था |

उस दिन सुबह-सुबह यूनिट की पी:टी ग्राऊँड में तीन चार हैलीकॉप्टर आ खड़े हुए । साथ ही कुछ सैनिक गाड़ियाँ भी तैयार थीं । हम सब सैनिक परिवार ग्राऊँड के एक कोने में खड़े एक-एक करके अपने सैनिकों को उन हैलीकॉप्टरों में सवार होते देखते रहे । हैलीकॉप्टर के पंखों से उड़ती धूल ने किसी को विचलित नहीं किया। विशेषतया बच्चे तो खुश होकर, हाथ हिला कर अपने पिता, अंकल को विदा कर रहे थे । सैनिक पत्नियाँ मौन खड़ी अपने-अपने ईश से सब के वापिस सकुशल लौटने की प्रार्थना कर रही थीं | ऐसे में कोई भाषा नहीं होती, बस मौन में ही संवाद होता है ।

कुछ समय बाद धूल बैठ गई, गाड़ियां भी चली गईं और मैदान में खड़े रह गए कुछ सैनिक परिवार और कुछ सैनिक । मैंने उसी समय यह निर्णय लिया कि इन परिवारों को चिंतामुक्त करने के लिए हमें आज ही शाम को यूनिट के परिवार कल्याण केंद्र में मिलना चाहिए । सभी परिवार और बच्चे इस सुझाव से बहुत प्रसन्न हो गए। मैं जान गई थी कि उस छावनी के सभी परिवारों को खुश रखना

उस समय मेरा सब से मुख्य कर्तव्य है और इसके लिए हम सब को साथ-साथ समय बिताना होगा ।

शाम को जब हम परिवार कल्याण केंद्र में एकत्रित हुए तो वातावरण सहज था । सभी सैनिक पत्नियाँ मनोरंजन के मूड में थीं । हमने सब से पहले ज्योत जला कर अभियान में गए हुए सैनिकों के सकुशल लौटने की प्रार्थना की और उसके साथ ही आरम्भ हो गया हमारा रंगारंग कार्यक्रम ।

हमारी पलटन में जम्मू-कश्मीर, हिमाचल, पंजाब, हरियाणा, यू पी और राजस्थान राज्यों के सैनिक थे । अत: हमने इन सभी राज्यों से संबंधित परिवारों को एक-एक करके कोई लोकनृत्य, लोकगीत या प्रहसन प्रस्तुत करने का आग्रह किया । मज़े की बात यह थी कि सुबह और अभी के बीच के तीन घंटों में उन सब ने आपस में मिल कर सारी तैयारी कर ली थी । किसी ने झट से कमर पर करधनी बाँध ली, कोई सात गज का घाघरा पहन कर आई थी और कोई लंबा घूँघट ओढ़ कर, कमर पर हाथ धर कर नृत्य की मुद्रा में खड़ी हो गई । साथ ही ढोलक बजाने वाली मंडली भी एक दरी पर बैठ गई । सब का उत्साह देख कर चिंता तो उस छावनी से ना जाने कितनी दूर भाग गई थी । वो शाम इतनी हँसी -खुशी में बीती कि समय का कुछ पता ही नहीं चला

इतने वर्ष हो गए हैं किन्तु मैं अभी तक उनका हंसमुख चेहरा और नाम नहीं भूल पाई | मैं उन्हें नाम से बुलाती थी और वे सब मुझे ‘मेम साब जी’| सेना के परिवारों में यह बहुत पुरानी रीत है, शायद अंग्रेज़ों के समय की । कुछ बातें नहीं बदलतीं और यह भी नहीं बदली।

खैर, ठुमके, ढोलक, घुँघरू, और चूड़ियों की खनखनाहट ने उस शाम को इतना मनोरंजक कर दिया कि चिंता का नामोनिशान ही नहीं रहा| कोई भी अपने घर जाने को तैयार नहीं थी । फिर भी जाना तो था| कार्यक्रम की समाप्ति हुई गर्म- गर्म चाय और पकोड़ों के साथ। अब यह भी भारतीय सेना के रीति-रिवाज़ों का एक अभिन्न अंग है|। आप चाहे सीमा रेखा के पास शत्रु से केवल कुछ गज दूर बंकरों में जाएँ, बर्फ से ढके उन्नत शिखरों को छुएँ, रेगिस्तान के रेत के टीलों पर स्थापित सैनिक शिविरों में जाएँ, आपकी आवभगत में दो चीज़ें अवश्य होंगी | गर्मागरम चाय और पकौड़े। हाँ, एक बात का ध्यान रहे कि ऐसा केवल शान्ति के समय ही होता है ।

उस शाम परस्पर विदा लेते समय हमने अगले दिन पलटन के ‘सर्व धर्म स्थल’ के परिसर में मिलने का कार्यक्रम बनाया| ऐसे धार्मिक स्थल में छावनियों में हर शाम विभिन्न धर्मों के अनुसार ईश पूजन होता है | हमने सोचा, वहाँ पर सब का मिलना भी हो जाएगा और मन को शान्ति भी मिलेगी|

हमारी पलटन के सैनिकों को अभियान के लिए गए हुए दो-चार दिन ही हुए थे| चौथे दिन की सुबह हमारे घर पलटन की देख-रेख के लिए नियुक्त मेजर राज और एक जे सी ओ साहिब मुझसे मिलने आए|

सैनिक पत्नियाँ अशुभ के विषय में कदापि नहीं सोचतीं| उन्हें अपने शूरवीरों की वीरता पर इतनी निष्ठा जो रहती है| मैंने भी ऐसा कुछ नहीं सोचा| किन्तु, जैसे ही मैं उनसे मिलने कमरे में आई, उनके गंभीर चेहरे को देख कर कुछ आशंकित हो गई|

ऐसी परिस्थिति में हम प्रश्न नहीं पूछते| मेरे बैठते ही मेजर राज ने कहा, " मैम, दो दिन से लगातार हमारे सैनिक आतंकवादियों के साथ मुठभेड़ में युद्धरत हैं| अभियान की सफलता के साथ सूचना यह भी आई है कि हमारे कुछ सैनिक शहीद हुए हैं और कुछ घायल| घायलों को राज्य के विभिन्न अस्पतालों में भर्ती कराया गया है| शहीदों का दाह संस्कार भी आज वहीं पर हो जाएगा| ( उन दिनों शहीदों के पार्थिव शरीर को उनके घर तक पहुँचाने की सुविधा नहीं थी | संस्कार के बाद केवल अस्थि कलश ही उनके परिवार तक पहुँचाए जाते थे)

कुछ पल के लिए मैं स्तब्द्ध रह गई | अब क्या होगा ? कैसे सामना करूँगी मैं उनके परिवारों का | और ना जाने यह किस-किस का नाम बतायेंगे| मैं बहुत देर तक मौन बैठी रही| फिर मैंने बड़े ही शांत स्वर में पूछा, " घायलों और शहीदों में से किस- किस का परिवार है यहाँ पर ?"

उनके हाथ में एक लिस्ट थी | जिसे पढ़ कर उन्होंने मुझे बताया कि अमुक अधिकारी और अमुक सैनिक घायल हैं | घायल सैनिकों के परिवार को हम कल तक सूचना देंगे | छुट्टियों के कारण शहीदों में से दो परिवार आज सुबह ही गाँव चले गए हैं वहाँ सूचित करने का प्रबंध हो गया है| शहीदों में से हवलदार मदन लाल का परिवार अभी यहीँ पर है| आपको उनकी पत्नी के पास जाकर यह दुखद सूचना देनी होगी|

मैंने प्रश्नसूचक दृष्टि से उनकी ओर देखा मानो उनसे ही कुछ संबल मांग रही थी| उन्होंने एक लिस्ट मुझे देते हुए कहा, " इस लिस्ट में सभी नाम हैं| आप इनमें से कुछ को अवश्य पहचानती होंगी|"

काँपते हाथों से मैंने लिस्ट पकड़ी |कुछ नामों के आगे Injured और कुछ के आगे Killed लिखा था | 700 -800 की पलटन में सभी को नामों से पहचान पाना संभव नहीं था| उस समय मैं हर नाम के साथ एक चेहरा जोड़ने का प्रयत्न कर रही थी| कई नामों के साथ चेहरे अपने आप जुड़ गए और मैं बिलकुल जड़वत हो गई|

मेरी मनोदशा देखते हुए मेजर राज ने कहा, " आप जितना समय चाहें ले लें, हम बाहर आपकी प्रतीक्षा करेंगे | हमें फैमिली क्वाटर्स में जाना होगा|"

मैंने जन्म होते भी देखा है और मृत्यु को भी बहुत पास से देखा है| किन्तु ऐसी दुखद परिस्थिति का कभी भी अनुमान नहीं किया था| किसी पत्नी को, किस भाषा में, किन शब्दों में आमने-सामने बैठ कर यह बताया जाए कि तुम्हारे पति नहीं रहे| वे अब कभी लौट कर नहीं आएँगे | यह तो किसी शास्त्र में, किसी किताब में, कहीं नहीं पढ़ा था | हे प्रभु ! यह मेरी कैसी परीक्षा ! लेकिन उस समय पलटन के सर्वोच्च अधिकारी की पत्नी होने के नाते यही मेरा कर्तव्य था|

मैंने उनसे कहा, " मुझे कुछ समय दीजिए | और एक-दो अन्य अधिकारियों की पत्नियों को भी मेरे साथ आने के लिए तैयार कीजिए|"

वो दोनों कुछ देर के लिए वहाँ से चले गए| अब मुझे अपने को संभालना था | सबसे पहले मैं अपने घर में स्थापित मंदिर में गई| मैंने वहाँ भगवान् से साहस और शक्ति प्रदान करने की प्रार्थना की| कुछ ही क्षणों के बाद मैं तैयार थी|

हम दो जीपों में बैठ कर सैनिकों के क्वाटर्स की ओर चल पड़े | हमारी गाड़ी को देख कर वहाँ खेलते बच्चे खुशी से उछलते हुए एक दूसरे को बताने लगे, "सी ओ आंटी आई हैं, सी ओ आंटी आई हैं|” (कमांडिंग ऑफिसर की पत्नी को सी ओ आंटी के नाम से जाना जाता था ) | कुछ स्त्रियाँ पेड़ों की छाया में बैठ कर स्वेटर बुन रही थीं और कुछ यूँ ही आपसे में बतिया रही थी| मुझे गाड़ी से उतरते देख कर सभी की सभी बड़े उत्साह के साथ मिलने आईं|

मैंने बहुत शांत स्वर में उनसे केवल यही कह, "अभी आपसे मिलती हूँ, ज़रा कृष्णा से मिल आऊ|" और मैं बिना उनसे दृष्टि मिलाए आगे बढ़ गई|

हवलदार मदन की पत्नी कृष्णा को मैं पहचानती थी|परिवार कल्याण केंद्र की हर मीटिंग में वो अवश्य आती थी | अभी दो दिन पहले ही तो हमारे कार्यक्रम में करधनी पहन कर, घूँघट निकाल कर उसने ऐसा मनभावन नृत्य किया था कि सभी उसके साथ हो लिए थे|

मेजर राज और सूबेदार साहिब हमें सीधे कृष्णा के घर ले आए| हमें आते देख कर वो प्रसन्नता से फूली नहीं समाई थी| उसने बड़े चाव से हमें कुर्सियों और चारपाई पर बिठाया और बिना कुछ पूछे सीधी रसोई घर में चली गई|

अपने को धीरज बंधाने के लिए मैंने कमरे को निहारा| साफ़ सुथरा कमरा था| मेरी दृष्टि दीवार पर टंगी कृष्णा और मदन की फोटो पर गई| कितने खुश नज़र आ रहे थे दोनों इस फोटो मे| साथ ही एक कील पर हैंगर में हवलदार मदन की वर्दी, टोपी और बेल्ट टंगी थी| वर्दी को दीवार की सफेदी ना लगे इसलिए ठीक उसके पीछे अखबार के कुछ पन्ने पिन से लगाए हुए थे| एक सैनिक को अपनी वर्दी पर बड़ा गर्व होता है और वो उसकी देख-रेख अपने सबसे बहुमूल्य निधि की तरह करता है| मदन ने भी जाने से पहले अपनी वर्दी यहाँ बड़े ध्यान से टाँगी होगी| मैं कभी वर्दी और कभी फोटो की ओर देखती रही|

कृष्णा बड़े चाव से चाय बना कर लाई| वो बहुत ही खुश दिखाई दे रही थी | भला आज पहली बार कोई 'मेम साहिब' उसके घर में आई थीं|

मैंने उससे कहा, " आओ बैठो, आराम से चाय पीयेंगे|"

भोली भाली कृष्णा बड़े संकोच के साथ सामने रखी चारपाई पर बैठ गई | मैंने बड़े सहज तरीके से उससे कहा, "कृष्णा, आपका घर कौन से गाँव में है? और यहाँ से कितनी दूर है?

उसने अपने गाँव का नाम बताया जो यू पी राज्य में था| समझ नहीं आ रहा था कि कैसे कुछ कहा जाए| मैंने अगला प्रश्न किया, " आपके गाँव के घर में कौन कौन है?"

उसने बताया कि मदन के माता पिता है, दो छोटे भाई हैं, थोड़ी सी जमीन भी है|

मैंने पूछा, ."क्या अपना मकान है कि सारा परिवार इकट्ठा रहता है?”

अपने मन की बात कहते हुए वो बोली, " नहीं मेमसाहब, छोटा सा घर है, छुट्टियों में जाएँ तो मुश्किल होती है| ये सोच रहे हैं कि अब की बार छुट्टी मिले तो अपने लिए एक कमरा बनवा लें|"

अब और कैसे अपने को रोकूँ, कैसे उसे बताऊँ ? मैंने एक और प्रश्न का सहारा लिया, " कृष्णा, अगर आपको अपने बच्चों के साथ अपने गाँव में हमेशा के लिए रहना पड़े तो क्या आपके ससुराल के लोग आपकी सहायता करेंगे ?" पता नहीं मेरे इस प्रश्न में उसने क्या सुना|कुछ देर वो मेरी आँखों में सीधे देखती रही| मैंने देखा कि वो काँपने लगी थी| बड़े उत्तेजना भरे स्वर में अगले ही क्षण उसने पूछा, " आप ऐसा क्यों कह रहे हो? मुझे क्यों गाँव जाना होगा|?"

मैंने उसके दोनों हाथों को अपने हाथों में लेकर बड़े ही शांत स्वर में कहा, " कृष्णा मेरी बात ध्यान से सुनो | मदन अब लौट के नहीं आने वाले|"

यह सुनते ही कृष्णा पछाड़ खा कर मेरी गोद में गिर गई |वो कभी दीवार पर टंगी तस्वीर को देखती, कभी रोती और कभी अस्फुट शब्दों में मदन से बातें करती| इतने में उसके दोनों बच्चे भी अन्दर आ गए थे| वो निरीह अपनी माँ को रोता हुआ देख कर हैरान हो गए| पांच वर्ष का बड़ा पुत्र तो बिना कारण जाने माँ को चुप कराने का प्रयत्न करता रहा| छोटी बहन माँ की गोद में आकर रोने लगी |

कृष्णा ने मुझसे कुछ नहीं पूछा | वो केवल अपने बच्चों को हृदय से लगाए कभी रोती तो कभी शून्य की ओर देख रही थी| मैंने उससे कहा, ” कल सुबह उन्हें माथे पर गोली लगी थी| एक कमरे में कुछ आतंकवादी छिपे थे| पूरी टीम उन्हें नष्ट करने के लिए गई थी और इसी मुठभेड़ मदन शहीद हो गए थे|”

कृष्णा चुपचाप सुनती रही, मैं नहीं जानती कि वो उस समय क्या सोच रही थी| अन्दर से तो मैं भी बहुत व्यथित थी किन्तु बाहर धैर्य को थामे बैठी रही|

रोते बिलखते उसने पूछा था, ”वे कहाँ हैं?” शायद वो जानना चाहती थी कि गोली लगने के बाद उनके साथ क्या हुआ|

मैं उसके मौन प्रश्न समझ रही थी| मैंने कृष्णा को बताया कि कल शाम ही मेरे पति ने स्वयं अपने हाथों से उनका दाह संस्कार किया था |

कृष्णा अब सच्चाई को सामने देख रही थी| अपने बच्चों को गले लगा कर वे बार बार कह रही थी, " तुम्हारे पापा अब नहीं आएँगे, वो कभी नहीं आएँगे|"

दोनों बच्चे कभी मेरी ओर तो कभी बिलखती हुई माँ की ओर देख रहे थे| शायद उन्हें कुछ भी समझ नहीं आ रहा था| इतने में कृष्णा के घर के बाहर खड़ी अन्य सैनिक पत्नियों के भी रोने की आवाज़ आने लगी| सूबेदार साहब और मेजर राज की पत्नी उनसे बातचीत करके उनका ढाढ़स बंधाने का प्रयत्न कर रहे थे| कृष्णा के पास अब उसकी दो पड़ोसन आ गईं थी| मैं उसे छोड़ थोड़ी देर के लिए बाहर गई| मुझे आते देख सभी प्रश्न सूचक दृष्टि से मेरी और देखने लगीं| मैंने बड़े संयत स्वर में उनसे कहा, " मेरा विश्वास करो| आपको बहुत हिम्मत रखनी है | आप सब के पति सकुशल है| इस समय कृष्णा को हम सब की आवश्यकता है|"

मैं जानती थी कि उन परिवारों में से पांच सैनिक घायल हैं, लेकिन उस समय उन्हें चिंता में डालना मैंने उचित नहीं समझा| उन्हें अगले दिन भी सूचित किया जा सकता था| इस समय कृष्णा और उसका परिवार हमारी सब से बड़ी जिम्मेवारी थी |

मैं और अन्य अधिकारियों की पत्नियाँ पूरा दिन कृष्णा के साथ ही रहीं| वो कभी रोती; कभी मूर्छित हो जाती, कभी अपने बच्चों से बातें करती| उसने कई घंटों तक मेरा हाथ नहीं छोड़ा| बस एक ही बात बार-बार कहती, " आप मुझे छोड़ कर तो नहीं जाओगे? मैं क्या करूँ? अब मैं कहाँ रहूँगी? "

भविष्य का कठिन रास्ता शायद उसकी आँखों के सामने बार-बार आ रहा था| ऐसे में हम उसे किन शब्दों में दिलासा देते ! इतनी बड़ी सैनिक छावनी| लगभग १०० परिवार और मैं अपने को बहुत असहाय और एकाकी अनुभव कर रही थी| मेरी विडंबना यह थी कि मैं रो भी नहीं सकती थी| अगर रोती तो अन्य परिवारों के धीरज का बाँध टूट जाता| हम तीन अधिकारी पत्नियाँ दो दिन और रात बारी –बारी से कृष्णा के साथ ही रहीं|

मुझे तो अगले दिन अपने धैर्य की एक और परीक्षा देनी थी| घायल सैनिकों की पत्नियों को सूचित करना था | अगले दिन जब हम मंदिर के प्रांगण में एकत्रित हुए तो बारी–बारी सब के पास जाकर मैंने उन्हें सूचित किया| मेजर राज ने बताया कि कौन-कौन से हॉस्पिटल में घायल सैनिक पहुँचाए गए है| कहीं सिसकियाँ तो कहीं दबे स्वरों में रुदन मैं सुन रही थी| उस समय उनका पूरा विश्वास केवल मुझ पर टिका था| उस कठिन परिस्थिति में मैं ही उनकी माँ और मैं ही उनकी बहन थी | मैंने उसी समय पंडित जी से अखंड ज्योत जला कर प्रार्थना आरम्भ करने को कहा| भजनों के पावन स्वरों में हम सब ने शान्ति का अनुभव किया|

दो दिन के बाद कृष्णा और मदन के परिवार के सदस्य आ गए| उसे उसके परिवार के बीच छोड़ कर हमें कुछ धीरज हुआ| फिर भी मैं घंटों उसके पास बैठती थी| कभी वो भविष्य में आने वाली कठिनाइयों की बात करती, कभी पारिवारिक परिस्थिति से मुझे आगाह कराती और कभी बच्चों के भविष्य की बात करती|

लगभग सात दिन के बाद कृष्णा के परिवार के लोग मदन के अस्थि कलश के साथ कृष्णा और उसके बच्चों को लेकर उसके गाँव चले गए|

जाने के दिन मैं एक बार फिर उससे मिली थी| उसे सूती सफेद साड़ी में देख मेरे सारे बाँध टूट गए थे| मुझे परिवार कल्याण केंद्र में नृत्य करती कृष्णा नहीं दिखाई रही थी| मेरा हाथ पकड़ कर उसने केवल यही कहा, " मेरा घर बनवा देना मेम साहब, मुझे भूलना मत|मेरा अता-पता लेते रहना| "

मैंने शायद यही कहा था कि यहाँ भी तो तेरा घर है, जब जी चाहे पलटन में आ जाना| अपने को कभी अकेला मत समझना| पत्र लिख कर सब हाल बताना| वो बारी-बारी से सभी के गले लगी और गाड़ी में बैठ गई| मैं बहुत देर तक अपने ईश से यही प्रार्थना करती रही कि कृष्णा को साहस और धीरज देना| मुझे उसकी चिंता थी| अपने गाँव में उसे ना जाने किन कठिन परिस्थितियों का सामना करना पड़ेगा|

पलटन ने जल्दी ही उसके गाँव में उसके लिए घर बनवा दिया| वो बहुत साहसी स्त्री थी| उसने संदेसा भिजवाया था कि वो मेहनत करेगी, अपने बच्चों को पढ़ाएगी और एक दिन उसका बेटा इसी पलटन का हिस्सा बनेगा| मैं कृष्णा को जानती थी, इसी लिए मुझे उसके इस संकल्प पर भरोसा था|

हमारा स्थानान्तरण हो गया था| जिन परिवारों के साथ मैंने सुख और दुःख को इतने पास से भोगा था, उन्हें छोड़ कर जाना बड़ा दुखद था| किन्तु बदलाव तो जीवन को गति देता है और हम भी इस शाश्वत नियम से बंधे नये स्थान पर चले गए|

चार वर्ष के बाद पलटन के स्थापना दिवस समारोह में मुझे कृष्णा फिर से मिली| जैसे ही उसने मुझे देखा, वो बड़े प्रेम से मुझसे लिपट गई | उसके मुख पर वही

पुरानी मुस्कान थी| उसने आज भी सफ़ेद साड़ी पहन रखी थी पर उस पर हलके नीले रंग के फूल थे| उसे देख कर मुझे कुछ सांत्वना मिली | मुझे लगा कि उसने अपने आप को संभाल लिया है|

कृष्णा पूर्ण आत्मीयता से खुशी–खुशी सब के गले मिल रही थी| उसके साहस और धैर्य को देखते हुए मेरे मन में विचार आया, ' प्रभु ! अगर सैनिक शूरवीर होते हैं तो उनकी पत्नियाँ किसी वीरांगना से कम नहीं| युद्ध का सामना तो दोनों को करना पड़ता है| अंतर केवल इतना है कि दोनों का अपना -अपना युद्ध क्षेत्र होता है|

***