Sabreena - 27 in Hindi Women Focused by Dr Shushil Upadhyay books and stories PDF | सबरीना - 27

Featured Books
Categories
Share

सबरीना - 27

सबरीना

(27)

‘दस दिन यहां रहेंगे, बीस से बलात्कार करेंगे’

सबरीना ने लड़कियों को तीन हिस्सों में बांटा। सबसे पहले उन लड़कियों को पहचाना गया जो 18 साल से कम उम्र की थीं। इसके बाद उन्हें अलग किया गया जो विदेशी थीं। हालांकि, सुशांत को सभी उज्बेक लग रही थीं, लेकिन इनमें से कुछ ताजिक, कज्जाक, हजारा, तुर्क, अजरबैजानी, उक्राइनी भी थीं। सबरीना ने इन सभी के बारे में रिपोर्ट तैयार की और उसे पुलिस आॅफिसर दानिकोव के सामने रख दिया। दानिकोव ने रिपोर्ट को पहले नीचे से उपर और फिर उपर से नीचे तक पढ़ा। कई बार उसके चेहरे के भाव बदले, कई बार वो चिंतित दिखा और कई बार राहत का भाव उसके चेहरे पर साफ-साफ नजर आया। उसने मंझे हुए अधिकारी की तरह एक बार सारी लड़कियों की ओर देखा और फिर रिपोर्ट सबरीना की ओर बढ़ाई, ‘आपने काफी अच्छी रिपोर्ट बनाई है, ऐसा लग रहा है जैसे कानून के जानकार किसी पुलिस आॅफिसर ने इस रिपोर्ट को तैयार किया है। बहुत अच्छा, अब इन लोगों पर कार्रवाई तय है।’ पुलिस आॅफिसर ने सबरीना की ओर तारीफ के अंदाज में देखा।

सबरीना ने रिपोर्ट को डाॅ. मिर्जाएव की ओर बढ़ा दिया, उन्होंने अपने हस्ताक्षर किए और दानिकोव से तुरंत साइन करने को कहा ताकि बाद में कोई परेशानी पैदा न हो। दानिकोव ने अंतरराष्ट्रीय प्रतिनिधि बने सुशंात से साइन कराने पर जोर दिया। जारीना और सबरीना पुलिस के तमाम हथकंडे जानती हैं इसलिए उन्होंने सुशंात के साइन कराने के साथ-साथ गवाह के तौर पर अपने साइन भी कर दिए। दानिकोव ने भी मन मारकर रिपोर्ट पर साइन किए। दानिकोव के दबाव में होने का परिणाम ये रहा कि उसने सारी कार्रवाई बेहद तेजी से पूरी की। सुशांत को रिपोर्ट पर साइन करते वक्त लग रहा था कि कहीं वो इस पराये देश में किसी कानूनी पचड़े में न फंस जाए, लेकिन अगले ही पल उसे ख्याल आया कि ये सब किस मकसद से किया जा रहा है। फिर भी, उसने पूरी रिपोर्ट को एक बार पढ़ लिया-

‘ समरकंद यूनिवर्सिटी जा रहे विशेष प्रतिनिधि मंडल, जिसमें डाॅ. साकिब मिर्जाएव, प्रोफेसर सुशांत विशेष तौर पर सम्मिलित थे, उन्हांेने ताशकंद रोड पर एक विदेशी समूह को देखा जो अपने पहवाने और बोलचाल से अरब मुसलिम प्रतीत होते थे। इन लोगों के साथ कुछ युवा लड़कियों का समूह था जो देखने में स्थानीय प्रतीत होती थी। प्रतिनिधि मंडल ने इनकी गतिविधियांे को देखकर ऐसा महसूस कि विदेशी समूह द्वारा स्थानीय लड़कियों को ट्रैप करने की कोशिश की जा रहा है। प्रतिनिधि मंडल ने तत्काल स्थानीय पुलिस को सूचित किया और कुछ ही देर में पुलिस आॅफिसर दानिकोव मौके पर पहुंच गए। उनकी त्वरित कार्रवाई के लिए प्रतिनिधि मंडल उनकी तारीफ करता है। विदेशियों और स्थानीय लड़कियों से कानूनसम्मत तरीके से व्यापक और गहन पूछताछ की गई। पूछताछ में पता चला कि विदेशियों के कुछ साथी होटल बीबीखानम में रुके हुए हैं और इससे पहले वहां पर कुछ अन्य लड़कियों को भी ले जाया गया है। प्रतिनिधि मंडल ने पुलिस अधिकारियों को लेकर होटल बीबीखानम का निरीक्षण किया। वहां पर यूएई के 27 लोगों के समूह के रुके होने की सूचना मिली जो कि बिजनेस वीजा पर उज्बेकिस्तान आए हुए हैं। होटल से कुल 24 लड़कियों को बचाया गया। इनमें 7 पड़ोसी देशों की रहने वाली हैं, 4 लड़कियां माइनर हैं, जबकि 13 लड़कियां व्यस्क उज्बेकी हैं। विदेशी समूह ने उज्बेक कानूनों का स्पष्ट उल्लंघन किया है। प्रतिनिधि मंडल और पुलिस आॅफिसर ने इन सभी को तत्काल डिपोर्ट करने और भविष्य में इन्हें उज्बेकिस्तान में प्रवेश न देने की संस्तुति के साथ अपनी रिपोर्ट सक्षम मजिस्ट्रेट के सामने प्रस्तुत करने का निर्णय लिया। विदेशी लड़कियों को उज्बेकिस्तान में अनैतिक एवं गैरकानूनी गतिविधियों में लिप्त होने के कारण छह महीने के अनिवार्य सुधार कार्यक्रम के बाद उनके देश भेजना संस्तुत किया गया। 13 उज्बेक लड़कियांे को मजिस्ट्रेट के समक्ष प्रस्तुत करने की सिफारिश की गई ताकि अनिवार्य काउंसलिंग के बाद इनके बारे में अंतिम निर्णय लिया जा सके। प्रतिनिधि मंडल ने अपने वैधानिक अधिकारों इस्तेमाल करते हुए चार माइनर लड़कियों को अपने संरक्षण में ले लिया है, अगले आदेश तक इनकी गार्जियनशिप डाॅ. मिर्जाएव के पास होगी। प्रतिनिधि मंडल संस्तुति करता है कि होटल बीबीखानम के संचालकों को चेतावनी निर्गत की जाए और पुलिस आॅफिसर दानिकोव को उनकी कर्तव्यनिष्ठा के लिए प्रशंसा-पत्र प्रदान किया जाए।’

इस रिपोर्ट को पढ़ते हुए सुशांत को लगा कि भारत में भी पुलिस क्राइम की कहानियांे को ऐसे ही बुनती है, लेकिन उनमें से बहुत कम कोर्ट में सही साबित होती हैं। पता नहीं, ये कहानी यहां के कोर्ट में भी सही साबित होगी या नहीं। उसने सबरीना से पूछा, ‘ इस मामले में अंतिम फैसला कोर्ट करेगा ? ’

‘ नहीं, आयोग के प्रतिनिधि और पुलिस आॅफिसर सहमत हों तो फिर कोर्ट उसे ज्यों का त्यों स्वीकार कर लेता हैं। यदि, दोनों में मतभेद हों तब कोर्ट निर्णय लेता है। कुछ घंटे में ही मामले कोर्ट से स्वीकृत हो जाएगा। असल में, यहां कोर्ट का चयन अब भी पुरानी सोवियत पद्धति से ही होता है। आम लोगों के बीच से ही चुनाव द्वारा जज चुने जाते हैं। लड़कियों के मामले में प्रोफेसर तारीकबी की प्रतिष्ठा इतनी ऊंची रही है कि कोई कोर्ट उनके आयोग के निर्णयों को नहीं बदलता। सबरीना ने लंबा जवाब दिया। सुशांत ने थोड़ी राहत महसूस की, लेकिन फर्जी पदनामों से हस्ताक्षर करना अक्सर परेशानी पैदा कर देता है, उसने फिर सबरीना से पूछा, ‘अगर कोर्ट में फर्जीवाड़ा पकड़ा गया तब ?’

‘ क्यों चिंता करते हो प्रोफसर! इन विदेशियों को देख रहे हो। दस दिन यहां रहेंगे तो 20 लड़कियों से बलात्कार करेंगे, इनका कुछ बिगड़ता है ? कुछ नहीं बिगड़ता है। हम तो उन्हें बचा रहे हैं, जिंदगी बदलने का मौका दे रहे हैं, वो भी कानूनी तरीके से। हमारा कोई क्या बिगाड़ लेगा....औरबिगाड़ भी ले तो क्या फर्क पड़ेगा! आपके नाम पर, आपके फर्जी पदनाम की आड़ में कुछ लड़कियों की जिंदगी बच सके तो इससे बड़ी क्या बात होगी! संभव है, कल इन्हीं में से कोई जारीना और सबरीना निकल आए।‘ सुशांत ने महसूस किया कि सबरीना की बातें अक्सर बहुत गहरे अर्थ लिए होते हैं। उसने जो कुछ कहा, उसे सुनकर सुशांत को खुद पर गुस्सा आया कि वो इतना स्वार्थी और आत्मकेंद्रित होकर क्यों सोचता है।

***