Badi baai saab - Last part in Hindi Fiction Stories by vandana A dubey books and stories PDF | बड़ी बाई साब - 19 (अंतिम)

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बड़ी बाई साब - 19 (अंतिम)

ओहो…. तो ये शीलू के लिये तैयारी चल रही है…. उससे पूछ लिया है न दादी?”
“पूछना क्या? नीलू से पूछा था क्या? शादी के लायक़ उमर हो गयी अब उसकी. बाक़ी पढ़ाई ससुराल में कर लेगी. अब यहां का दाना-पानी पूरा हुआ समझो.”
“ हाहाहा…. दादीसाब आप भी न! शीलू चिड़िया है क्या, जो दाना-पानी पूरा हुआ? नीलू दीदी से न पूछ के आपने ग़लती की थी दादी. अब नीलू दीदी ही झेल रहीं न उस परिवार को? ऐसा बेमेल ब्याह आपने करवाया न, कि पड़ोसी तक आपस अचरज करते हैं, आपसे भले ही कोई न कहे.” एक सांस में अपनी सालों से जमी पड़ी भड़ास निकाल दी रोहन ने.
दादी अवाक हो अभी रोहन का चेहरा देख ही रही थीं कि गौरी भी हाथ पोंछते हुए वहीं आ गयी.
“ हां मांसाब. रोहन ठीक ही कह रहा. नीलू ने तो पता नहीं कितनी बातें आपसे बताई ही नहीं. हम भी छुपाये रहे. लेकिन अब उन सब बातों को बता देने का वक़्त आ गया है शायद, वरना घर में एक बार फिर वही कहानी दोहराई जायेगी. हमारी नीलू भी कम पढ़ी-लिखी नहीं है, लेकिन आज बातें उनकी सुनती है जो कहीं से भी उसके लायक़ नहीं हैं. ऐसे डर के रहती है, जैसे वे सब उस पर एहसान कर रहे हों. अब नहीं होगा ऐसा मांसाब. शीलू का जब मन होगा, और जिससे ब्याह करने का मन होगा, हम उसी से उसका ब्याह करेंगे. लड़का वही बतायेगी, हम केवल उसका साथ देंगे, और घर-बार देख आयेंगे बस. अब न अपनी पसन्द हम बच्चों पर थोपेंगे, न कोई ज़बर्दस्ती करेंगे. ये बात अब आपको भी समझ लेनी चाहिये. मांसाब , हम कस्बे में हैं, जहां ज़िन्दगी बहुत धीमी गति से बदल रही, लेकिन दुनिया बहुत आगे जा चुकी है. हमारे बच्चे भी इसी नई दुनिया के हिस्से हैं. कोशिश तो ये होनी चाहिये, कि हम भी उनकी दुनिया का हिस्सा बनें, न कि उन्हें अपनी दुनिया में घसीटें?”
गौरी के मन का भी बरसों का जमा गुबार था, जो भरभरा के निकल पड़ा. बड़ी बाईसाब हतप्रभ सी, विस्मित सी गौरी को देख रही थीं. ये वही बहू है, जो लम्बे समय से बेज़ुबानों में गिनी जाने लगी थी? खांसी की आवाज़ पर बड़ीबाईसाब ने पलट के देखा तो बुंदेला साब पीछे खड़े थे, चेहरे पर संतोष की छाया और मन्द-मन्द हास लिये. गौरी ने उनकी तरफ़ देखा, आंखों में सवाल लिये, कि इतना बोल के अच्छा किया या बुरा? लेकिन बुंदेला साब की आंखों ने उसे आश्वस्त किया, कि उसने जो कहा/किया ठीक किया.
चेहरे पर आश्वस्ति का भाव तो बड़ी बाईसाब के भी था, पता नहीं गौरी की समझदारी भरी बातों से या खुद के ज़िम्मेदारी से मुक्त होने के. जो भी हो, गौरी का बोलना अखरा नहीं था उन्हें. सबने देखा, अपनी रोबीली आवाज़ से सबको चुप करा देने वाली दादी ने, तख्त पर उनके सामने बिछी तमाम लड़कों की तस्वीरों को समेटा और वापस लिफ़ाफ़े में बन्द कर दिया. इन रिश्तों के लिफ़ाफ़े में बन्द होते ही अब शीलू आज़ाद थी, अपनी राह चुनने के लिये.

(समाप्त)