Faisla - 10 in Hindi Women Focused by Rajesh Shukla books and stories PDF | फ़ैसला - 10

Featured Books
Categories
Share

फ़ैसला - 10

फ़ैसला

(10)

इस तरह से धीरे-धीरे दो दिन का समय भी बीत गया। सबेरे-सबेरे ही उठकर सिद्धेश ने एडवोकेट खन्ना और अपने अभिन्न मित्र डा. के.डी. से सुगन्धा को लेकर फोन पर बात की और आपस में बातचीत करने के बाद 10 बजे का समय निश्चित कर लिया। उसके बाद उसने सुगन्धा को आवाज देकर उससे 10 बजे के पहले घर से निकलने को कह दिया। इसके बाद सिद्धेश स्वयं अपनी तैयारी में लग गया। लगभग 2 घंटे के बाद दोनों तैयार हो गये।

लगभग नौ बजे सिद्धेश कार की ड्राइविंग सीट पर बैठ गया और पीछे की सीट पर सुगन्धा बैठी हुई थी। सुगन्धा को पीछे बैठा देख सिद्धेश ने आगे बैठने के लिए कहा। परन्तु वह उसे टाल गयी। इधर सिद्धेश ने बैठने को लेकर उस पर अधिक दबाव डालना उचित न समझा और उसकी कार घर के गेट को पार करके एडवोकेट खन्ना के घर के रास्ते पर दोड़ने लगी। वह कुछ ही देर में खन्ना के घर के पास पहुंच गयी। सिद्धेश ने गाड़ी पार्क करते हुए पीछे का दरवाजा खोलकर सुगन्धा से बाहर आने का इशारा किया और दोनो खन्ना के घर में ही बने ऑफिस में जाकर बैठ गये।

उधर एडवोकेट खन्ना कुछ देर के बाद अपनी नॉट ठीक करते हुए ऑफिस के अंदर दाखिल हुए। ऑफिस में पैर रखते ही उनकी नजर सामने बैठे सिद्धेश और सुगन्धा पर पड़ी। मिस्टर खन्ना सिद्धेश से हाय-हेला के बाद अपनी चेयर पर बैठ गये। कुछ एक बातें करते-करते उन्होंने सिद्धेश से पूछा। क्या आप इन्ही के बारे में बात कर रहे थे

जी हां! सिद्धेश ने शॉर्ट में ही जवाब दिया।

फिर एडवोकेट खन्ना ने सुगन्धा से बात की। वह बातें करते ही बोल पड़े आपका क्या नाम है?

जी! सुगन्धा।

नाम तो बहुत अच्छा है। जैसा कि सिद्धेश ने मुझसे बताया कि तुम्हारे साथ तुम्हारे पति ने अपने दोस्त के साथ मिलकर बहुत ही घृणित कार्य किया। जिसमें आपकी लाड़ली बेटी की भी जान जाती रही। तो आप जरा शॉर्ट में ही कुछ बतायें।

सुगन्धा की आपबीती सुनकर खन्ना जी बोले- तो क्या आप उन दुराचारियों को सजा दिलवाना चाहती हैं ?

जी सर ! मैं उन्हें अवश्य सजा दिलाना चाहती हूँ जिससे वे भविष्य में किसी स्त्री का जीवन बर्वाद न कर सके।

लेकिन उन दुराचारियों में तुम्हारा पति भी तो शामिल है। खन्ना जी ने कहा।

पति !अरे ! उस पति ने तो मेरे प्रति अच्छा अपना धर्म निभाया । मुझे बाजारू औरत से भी निकृष्ट जिन्दगी देने में कोई भी कसर नहीं उठा रखी। मेरी भावनाओं और पति-पत्नी के प्रेम की तो अरथी ही निकाल दी। तो अब वह मेरा पति कैसा रहा। सर ! इतना कहते ही वह फफक कर रोने लगी।

अरे !अरे !सुगन्धा रोओ मत। तुम जैसा चाहती हो ठीक वैसा ही होगा।

समय को ध्यान में रखते हुए एडवोकेट खन्ना सिद्धेश और सुगन्धा के साथ ऑफिस से निकल सीधे पुलिस से सम्पर्क के लिए थाने में पहुँच गये। वहाँ इन्स्पेक्टर से मिलकर दोनों ने अपने आने का कारण बताया। सारी बात सुनने के बाद इन्स्पेक्टर साहब कुछ सोचने के बाद बोले- ठीक है घटना तो पुरानी हो गयी है लेकिन कोई बात नहीं। आपका एफ.आई.आर. दर्ज हो जायेगा। उसके बाद हम उन अपराधियों को दबोच लेंगे। आखिर वे पुलिस की नजर से कब दूर रहेंगें। एक तो गलती आप लोगों यह की। काफी दिन बाद आये। नहीं तो हम कब के उनको पकड़कर हवालात की हवा खिला दिये। इतना कहते हुए इन्स्पेक्टर ने सामने मेज पर हाथ पटका।

थोड़ी देर बाद सुगन्धा से विधिवत बातचीत करने के बाद एफ.आई.आर. दर्ज हो गयी। बातचीत के दौरान पुलिस वालों ने काफी बातों का खुलासा करवाया। जिन बातों का बयान करना सुगन्धा के लिए आसान नहीं था। वह झेंपती हुई पसीने-पसीने हो गयी। वह मन ही मन सिद्धेश का बहुत ही आभार मानती हुई आखिर कह ही दिया कि अगर आप न होते तो वे दुराचारी निष्कंटक घूमते रहते। आपके इस कदम से उनके द्वारा भविष्य में होने वाले अपराधों पर लगाम तो लग सकेगी।

हाँ यह बात तो सुगन्धा ने बहुत सही कही कि अगर आप ने यह कदम न उठाया होता तो शायद यह बेचारी न्याय के लिए कैसे गुहार लगाती। इसका श्रेय तो आपको ही जाता है सिद्धेश से एडवोकेट खन्ना बाले।

सिद्धेश ने अपना मोबाइल नं. थाने में देकर कहा- कि जैसे ही इस केस में कोई भी प्रोगेस हो आप मुझे कृपा कर बता जरूर दीजिएगा। थाने में पुलिस अधिकारी भी सिद्धेश की बातों से काफी प्रभावित हुए। उन्होंने संतोष दिलाया कि मैं सुगन्धा के अपराधियों को अवश्य ही शीघ्रति शीघ्र गिरफ्तार कर लूंगा। और न्याय दिलाने में आपकी पूरी मदद करूंगा।

अरे भाई! आप खन्ना जी के साथ आये हो इसका मतलब काम तो होना ही है।

इतना कहते ही इन्स्पेक्टर सहित सभी लोग हंसने लगे। अगर हंसी नहीं आयी तो सिर्फ सुगन्धा के चेहरे पर। वह अभी भी मूर्तिवत् अतीत की काली छाया से ग्रसित थी। इसके बाद सिद्धेश ने संतुष्ट होकर सुगन्धा से चलने को कहा। आवाज सुन जैसे वह नींद से जगी हो अपना सिर सिद्धेश की ओर घुमाया। फिर एडवोकेट खन्ना सहित सभी लोगा थाने से निकल गये।

सिद्धेश ने आज ऑफिस जाना कैंसिल कर दिया था। इसलिए उसकी गाड़ी महिला काल्याण समिति के कार्यालय की ओर जाने वाली सड़क पर चल दी। नये रास्ते पर जाते देख सुगन्धा से रहा नहीं गया। उसने आखिर सिद्धेश से पूँछ ही लिया। घर की तरफ तो चल नहीं रहे हो फिर कहाँ जा रहे हो। सिद्धेश ने भी अपनी चुप्पी तोड़ते हुए कहा- मैंने सोचा कि तुम्हें भी महिला समिति का ऑफिस दिखा दूँ। वहाँ पर महिलाओं से मिलकर तुम्हें भी अच्छा लगेगा। थोड़ा सोच में परिवर्तन आयेगा।

अच्छा !तो इसका मतलब आज तुम ऑफिस नहीं जाओगे। सुगन्धा ने कहा।

हाँ !आज कुछ ऐसा ही मेरा इरादा है। कहकर सिद्धेश मुस्कराते हुए गाड़ी चलाने लगा।

कुछ ही देर में उसकी कार महिला कल्याण समिति के कार्यालय के सामने पहुँच गयी। सिद्धेश अपनी कार को पार्क करते हुए सुगन्धा से बोला- लो ! महिला कल्याण समिति का ऑफिस आ गया। तब तक उसकी कार पार्क हो चुकी थी। दोनों कार से नीचे उतरे और धीरे-धीरे ऑफिस के अन्दर चले गये। ऑफिस में पहुँचकर सिद्धेश ने वहाँ कार्य कर रहे लोगों से सुगन्धा का परिचय कराया। थोड़ी देर सिद्धेश ऑफिस में रूका और फिर समिति की मुख्य कार्यशाला में सुगन्धा के साथ गया।

कार्यशाला के अन्दर पहुँचते ही सभी महिलाओं ने उसका अभिवादन किया। ये सभी महिलाएँ समाज द्वारा किसी न किसी रूप में प्रताड़ित ही है। जिन्होंने अब इस जगह को अपना आश्रय और कार्यक्षेत्रा बना लिया। वे सभी सिद्धेश का बहुत आभार मानती हैं। क्योंकि इनकी वजह से उन महिलाओं को फिर से सम्मान पूर्वक इस समाज में जीने का मौका मिला है। कुछ एक औरतों के तो सिद्धेश को देखते ही आँखों में आँसू तैरने लगते हैं। क्योंकि वे इनको अपने लिए गवान से कम नहीं मानती। जब उन औरतों को इस निर्दयी समाज ने ठुकरा दिया। तब इसी पुरूष ने आगे बढ़कर उन्हें सहारा देते हुए अपने पैरों पर खड़े होने की प्रेरणा दी और मार्ग भी दिखाया। जो सामने दिख रहा है। वहाँ पर महिलायें कुटीर उद्योग भी चलाती हैं जिसकी आय से इस समिति की सभी महिलाओं का भरण-पोषण और सभी खर्चे चलते हैं।

ऐसी जगह को देखकर सुगन्धा की तो जैसे आँखें खुली की खुली रह गयी। वहाँ पर सभी महिलाएँ जैसे कहीं से प्रशिक्षण प्राप्त किया हो इस तरह से कार्य कर रही थीं। कहीं पर तो मोमबत्तियाँ बन रही हैं। पापड़ बनाते-बनाते अपने सारे गम भूलकर गुनगुना भी रही हैं। लेकिन मजाल है कि कोई पापड़ टेड़ा बने वे कुशल हाथों से निकलकर चंदा की तरह गोल ही दिखायी दे रहे हैं। कुछ दूर कहीं से भीनी-भीनी सुगन्ध आ रही है वह सुगन्ध ऐसी मानव मन बरबस ही उस ओर खिंचा चला जाय। अब तो सुगन्धा से रहा नहीं गया वह फौरन वहाँ पहुँच गयी, जहाँ से महक हवा में तैर रही थी। उस जगह पहुँच कर सुगन्धा को लगा जैसे वह किसी देवता के घर में आ गयी है। महिलाओं के हाथों से निकल कर यहाँ अगरबत्ती और धूप बाजार में बिकने के लिए तैयार है। वहाँ कार्य करने वाली महिलाओं की तल्लीनता और कार्य शैली को देखकर अनायास ही सुगन्धा के मुँह से निकल गया... क्या बात है।

कुछ दूर से आ रहे सिद्धेश ने सुगन्धा के पास आकर पूँछ ही लिया और बताइये यहाँ पर आकर कैसा लगा। सुगन्धा उसके शब्द समाप्त होने से पहले ही बोल पड़ी बहुत अच्छा ! इस जगह पर आकर तो जैसे जाने का मन ही नहीं करता।

ऐसी बात है, इतना अच्छा तुम्हें यहाँ लगा सिद्धेश बोला।

हाँ। सही में। इन महिलाओं के क्रियाकलाप और कार्य करने की तल्लीनता तो देखते ही बनती है। ऐसा लगता है कि ये महिलायें कहीं से प्रशिक्षण प्राप्त करके कार्य कर रही हैं। क्या यह सच है?

ऐसा नहीं! इन्होंने यहीं रहकर कार्य करना सीखा है! बस उनमें लगन और परिश्रम अथाह है। यह सब उसी का परिणाम है।

सुगन्धा को इस प्रकार बोलते देखा सिद्धेश मुस्कराते हुए बोला - लगता है इन महिलाओं को देखकर तुम्हारे मन में भी कुछ करने की इच्छा जागृत हुई है।

यह तुम्हें कैसे पता चला। सुगन्धा बोली।

देखो कुछ बातें सामने वाले के बोलने से उसके मन की स्थिति को बताने लगती है। इसमें कुछ अधिक दिमाग पर जोर देने वाली बात नही हैं। सिद्धेश बोल ही रहा था कि बीच में सुगन्धा ने उसे रोक दिया।

इसका मतलब आप मनोवैज्ञानिक हो। तभी तो सबके मन की बातें पढ़ लेते हो। सुगन्धा ने कहा।

अरे! कोई मनोवैज्ञानिक नहीं, बस अनुभव के आधार पर ही कहता हूं। सिद्धेश ने इतना कहा ही था कि,

दोनो ठहाके मारकर हंसने लगे। सुगन्धा तो शायद सिद्धेश के घर आने के बाद इतना खुलकर पहली बार हंसी थी और सिद्धेश भी काफी समय बाद इस प्रकार हंस पाया था।

क्योंकि दोनों ही अपने-अपने जीवन के झमेलों में उलझे हुए थे। आज सुगन्धा के अतीत के ताने-बानों को सुलझाने की उम्मीद जगी। तो चेहरे पर हंसी ने भी दस्तक दे दी। दोनों ने अपनी हंसी पर नियंत्रण करते हुए घर चलने का निर्णय लिया।

वहां के कर्मचारियों और महिलाओं से विदा लेकर दोनों कार में बैठकर घर को रवाना हो लिये। गेट पर पहुंचकर जैसे ही सिद्धेश ने कार का हार्न बजाया तो दौड़कर भोला काका ने घर का गेट खोला। इसके बाद दोनों कार से उतरकर अपने अपने कमरों में चले गये। दौड़ भाग में काफी थकान होने के कारण सिद्धेश और सुगन्धा अपने-अपने कमरों में आराम करने लगे। शायद नींद भी आ गयी थी।

***