Sabreena - 25 in Hindi Women Focused by Dr Shushil Upadhyay books and stories PDF | सबरीना - 25

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सबरीना - 25

सबरीना

(25)

मेरे साथ हिन्दुस्तान चलो सबरीना!

’प्रोफेसर तारीकबी मुझे ले तो आए, लेकिन एक दिन मैं वहां से भाग निकली। मुझे लगा, मैं शराब और सैक्स की आदी हो गई थी। उस वक्त मेरी उम्र 18-19 साल थी। मेरे लिए प्रोफेसर तारीकबी की बौद्धिक दुनिया में सर्वाइव करना संभव ही नहीं था। कई महीनों तक सड़कों पर भटकती रही, ग्राहक ढूंढती रही और इसी सब में आजादी तलाशती और महसूस करती रही। प्रोफेसर तारीकबी की एक खूबी थी, वो कभी हार नहीं मानते थे, उन्हांेने मुझे भी यही सबसे बड़ी बात सिखाई। उन्होंने मेरी तलाश जारी रखी। इस मामले में सबरीना के पुराने कांटेक्ट काम आए, क्यांेकि वो भी उसी दुनिया से आई थी। उसके किसी परिचित ने मेरा ठिकाना बता दिया। एक दिन जब मैं बाहर निकली तो वहां मैंने प्रोफेसर तारीकबी और सबरीना को बैठे पाया। मैंने, भागने की कोशिश की, लेकिन सबरीना ने मुझे दबोच लिया। वो मुझे पकड़कर प्रोफेसर तारीकबी के सामने ले आई। उन्होंने कुछ भी नहीं, ना मुझ से कोई पूछताछ की। पास आते ही गले लगा लिया। उनका स्पर्श देहखोर मर्दाें जैसा नहीं था। मेरे भीतर का गुब्बार फूट पड़ा। मैं रोती रही और फिर वे मुझे घर ले आए, एक भी सवाल पूछे बिना। मुझ पर कोई बंदिश और पहरा नहीं लगाया गया। वे बिना नागा मुझे बाचतीत करते और अक्सर गले लगाकर पीठ थपथपा देते। मेरी सारी चालाकियां झड़ जाती। मैं जरा भी कमजोर पड़ती तो वे मुस्कुरा देते और मेरी हिम्मत लौट आती।’

जारीना धाराप्रवाह बोलती जा रही थी। सुशांत ने जारीना की आंखों में प्रोफेसर तारीकबी के कद को साफ-साफ देखा। सुशांत प्रोफेसर तारीकबी को जितना जानता था, वास्तव में उनका कद उससे भी बड़ा था। जारीना के लिए वे पिता ही नहीं मां की भूमिका में भी थे। जारीना बताती रही, ‘ मैं सब कुछ उनके सामने उगल देती थी। उन्होंने जिंदगी को महसूस करना सिखाया। पढ़ने का सिलसिला दोबारा शुरू हुआ। वक्त के साथ, मैं उनके समूह की सबसे मजबूत लड़की के तौर पर पहचानी जाने लगी। धीरे-धीरे मुझे लगा, मैं सबरीना की जगह लीडर बन गई। प्रोफेसर तारीकबी ने सबरीना को पीछे किए बिना मुझे आगे बढ़ाया। जब प्रोफेसर तारीकबी को ‘परमानेंट गार्जियनशिप’ दी गई तो हमने देश का कोना-कोना छान डाला। न जाने कितनी लड़कियों को बचाया और उन्हें रिहैब किया। आज वे देशभर में फैली हुई हैं। प्रोफेसर तारीकबी हम सब से अक्सर पूछते कि इसी आजादी की तलाश थी! हम सभी गौर से देखते और समझते। तब, साफ दिखाई देता कि हमारे आसपास तीन पीढ़ियां मौजूद हैं। वे जो सोवियत समाज में पले थे, वे जो उस व्यवस्था से आजादी चाहते थे और वे जिन्होंने आजादी की आड़ में मुल्क को अय्याशी के अड्डे में तब्दील कर दिया था। हम तीसरी पीढ़ी थे, जिनके लिए शराब, सेक्स, न्यूड क्लब और ड्रग्स ही आजादी का पर्याय थे। हम पश्चिम से आई हवाओं में बह गए थे।’

सुशांत ने उसे टोका, ‘ सब कुछ पश्चिम का दोष कैसे है ? सोवियत व्यवस्था में कहां खामी रह गई थी कि आजादी का विचार इतना प्रबल हो गया ?’

‘ असल में, सोवियत राज अपने आखिरी दिनों में एक सुस्त व्यवस्था थी। सब कुछ ठहरा हुआ दिखता था। कोई अमीरी नहीं थी, पर जो कुछ था उसका ठीक-ठीक बंटवारा था। स्कूल-काॅलेज थे, अस्पताल थे, सड़कें थीं, रोजी-रोटी का प्रबंध था औरतों को बराबरी थी। पर, वहां कारें नहीं थीं, आलीशान जिंदगी नहीं थी, फाइव स्टार होटल-माॅल नहीं थे और नाइट-क्लब भी नहीं थे। पर, आजादी के उन्माद में वो सब कुछ ढह हो गया, जो हमारे पास था। और आजादी के नाम पर क्या मिला, हमें पता ही नहीं चला। अब सब कुछ देखकर डर लगता है। बहुत लंबी लड़ाई है ये। प्रोफेसर तारीकबी चले गए, अब थोड़ी मुश्किल बढ़ गई है।’

जारीना बोलती रही और सुशांत उसके आक्रोश को मससूस करता रहा। डाॅ. मिर्जाएव थोड़ी देर के लिए जगे और फिर सो गए। बाहर धूप निकल आई थी और सबरीना अब भी बाहर की ओर देख रही थी। जब जारीना बोलती है तो सबरीना आमतौर पर चुप रहती है, लेकिन दोनों के बीच की केमिस्ट्री अद्भुत है। दोनों के ही मामलों मे सुशांत की भूमिका प्रायः श्रोता की रहती है। आज भी वह अच्छे श्रोता की तरह ही व्यवहार कर रहा था।

सबरीना ने सुशांत का ध्यान अपनी ओर खींचा, ‘ देखो, प्रोफेसर, बाहर वो भेड़ों का रेवड़, वो देखो प्रोफेसर तारीकबी और उनके अब्बा।’ सब मुस्कुरा पड़े। समरकंद अब ज्यादा दूर नहीं रह गया था। शहर का बाहरी इलाका दिखने लगा था। इस बीच यूनिवर्सिटी से सूचना आई कि एक विदेशी डेलीगेशन के आने के कारण गेस्ट हाउस में व्यवस्था नहीं हो सकी है इसलिए ताशकंद रोड पर होटल बीबीखानम में रुकने का इंतजाम किया गया है। इस सूचना से सुशांत को अच्छा नहीं लगा क्योंकि उसे होटल में रुकना जमता नहीं है, उसे लगता कि पूरी दुनिया के होटल एक जैसे ही होते हैं। इनकी तुलना में यूनिवर्सिटी के गेस्ट हाउसों में अक्सर एक नई दुनिया देखने को मिलती है। रेलवे स्टेशन के ठीक बाहर टैक्सी मिल गई और होटल बीबीखानम की ओर चल पड़े। जारीना आगे ड्राइवर के बराबर की सीट पर बैठ गई, बीच की सीटों पर डाॅ. मिर्जाएव पसर गए और पीछे की सीटों पर सुशंात और सबरीना बैठे। चिमगन की घटना के बाद से डाॅ. मिर्जाएव ज्यादा नहीं बोल रहे हैं, प्रायः खामोश ही दिखते हैं। प्रोफेसर तारीकबी की मौत का उन पर गहरा असर पड़ा था। उन्होंने अचानक सुशांत से पूछा, ‘ मृत्यु के सामने हर दर्शन बौना क्यों हो जाता है प्रोफेसर ?’ सुशांत उनके सवाल को समझ पाता इससे पहले उन्होंने अपने प्रश्न को टाल दिया, ‘ खैर, छोड़िये, ये सब बेमतलब के सवाल हैं।’ गाड़ी में फिर चुप्पी पसर गई। सुशांत ने सबरीना के हाथ पर हाथ रखा तो उसने चैंककर सुशांत की ओर देखा, ‘ मेरे साथ हिन्दुस्तान चलो सबरीना!’

‘ वहां जाकर क्या होगा, क्या करूंगी ?‘ सबरीना ने ठंडे ढंग से जवाब दिया।

‘ तुमने हिन्दुस्तानी समाज और संस्कृति पर काम किया है, वहां कई मौके होंगे।’ सुशंात ने जवाब दिया।

‘ पर, अब मैं अवसरांे की तलाश में नहीं हूं प्रोफेसर। मैं कॅरियर के बारे में नहीं सोचती, अगर सोचना ही होता तो फिर प्रोफेसर तारीकबी के साथ अब तक काम न करती। फिर, यहां जिस तरह के हालात हैं, ऐसे में किसी दूसरे देश, चाहे वह हिन्दुस्तान ही क्यों न हो, चले जाना शायद अच्छा नहीं होगा।’ सबरीना के इस जवाब पर सुशांत खामोश हो गया। सबरीना को महसूस हुआ, जवाब देने का उसका ढंग अच्छा नहीं था। उसने अपने उत्तर को थोड़ा सुधारने की कोशिश की, ’ मन तो मेरा बहुत है प्रोफेसर कि हिन्दुस्तान चलूं। अब तो आप भी वहां पर हैं, लेकिन अभी यहां के हालात ऐसे नहीं हैं।’ सुशंात फिर भी चुप रहा। उसे लगा कि उसने गलत वक्त पर ये प्रस्ताव रखा है। इस बीच गाड़ी होटल बीबीखानम पहुंची और बातचीत का सिलसिला भी थम गया। वहां काफी गहमागहमी थी, यूएई से कोई बड़ा ग्रुप आया हुआ था। होटल स्टाफ काफी भागदौड़ कर रहा था। असल में, अरब से आने वाले टूरिस्टों के पास पैसा खूब होता है और वे खूब खर्च करते हैं, होटल स्टाफ इस बात को अच्छी तरह जानता है इसलिए ज्यादा भागदौड़ हो रही थी। सबरीना और जारीना इन गतिविधियों को अच्छे से समझती हैं इसलिए वे लाॅबी में पड़े सोफे पर बैठ गईं और इंतजार करने लगंी कि कब रिसेप्शन से भीड़ छंटे। सबरीना की निगाह होटल गेट की ओर गई, उसने जारीना की ओर देखा, दोनों की आंखों में पहले हैरत और फिर बेचैनी तैर गई।

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