Ek Jindagi - Do chahte - 25 in Hindi Motivational Stories by Dr Vinita Rahurikar books and stories PDF | एक जिंदगी - दो चाहतें - 25

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एक जिंदगी - दो चाहतें - 25

एक जिंदगी - दो चाहतें

विनीता राहुरीकर

अध्याय-25

पूरे बगीचे में परम और तनु के मनपसंद पेड़-पौधे लग चुके थे। बगीचे के एक कोने में पत्थर की फर्शी पर परम ने मिट्टी के एक सकोरे में पानी रख दिया और रोज सुबह होते ही चिडिय़ों को बाजरा डालने लगा। रोज दोनों चिडिय़ों का कलरव सुनते हुए अपने छोटे से बगीचे में बैठ कर सुबह की चाय पीते। आस-पास के दो-तीन परिवारों से परम और तनु ने पहचान कर ली थी।

अभी दोनों चाय पी ही रहे थे कि भरत भाई का फोन आया वो तनु से पूछ रहे थे कि क्या वो आज थोड़ी देर के लिए ऑफिस आ सकती है। वीकली स्पेशल मेगजीन का काम तनु की गैरहाजरी में जो लड़की संभाल रही थी वह अचानक बीमार पड़ गयी। और मैगजीन फायनल होकर रात में प्रिंटिंग में जानी है।

''मैं समय पर पहुँच जाऊँगी पापा आप चिंता मत करिये।" तनु ने उन्हें आश्वासन दिया।

''क्या हुआ आज इतनी सुबह-सुबह पापा का फोन आ गया।" जैसे ही तनु ने फोन रखा परम ने पूछा।

"मेरी जगह जो लड़की वीकली मैगजीन संभाल रही थी वह अचानक बीमार पड़ गयी है और मेगजीन आज ही प्रिंटिंग में जानी है तो पापा चाहते हैं कि मैं आज ऑफिस जाकर मैगजीन फायनल कर दूँ।" तनु ने बताया।

''तो चलो फटाफट खाना बनाते हैं और ऑफिस चलते हंैं।" परम ने कप समेट कर ट्रे में रखे और उठते हुए बोला।

दोनों उठकर अंदर किचन में आ गये। तनु ने अपने बालों का जूड़ा बनाया और रबड़बैंड लगाकर ऊपर बांध लिया। दोनों ने साथ मिलकर फटाफट खाना बनाया और नहाकर तैयार हो गये।

''मैं लंच पैक कर लेती हूँ। ऑफिस में ही कर लेंगे लंच टाईम में।" तनु लंच बाक्स में खाना पैक करने लगी।

''ओ.के. मेडम। अभी में कॉर्नफ्लेक्स बना लेता हूँ।" परम ने दूध गरम किया और दो बाउल में कॉर्नफ्लेक्स बना लिये। दोनों ने नाश्ता किया और सालण चौकड़ी के रास्ते पर निकल लिये।

नेहरू नगर से होते हुए शिव रंजनी और फिर भरत देसाई का ऑफिस। चैराहे से अंदर आकर छठवीं बिल्डिंग भरत देसाई का ऑफिस था। छ: मंजिली शानदार बिल्डिंग भरत देसाई की प्रतिष्ठा का जीता जागता नमूना था। आस-पास और भी अखबारों तथा टीवी न्यूज चैनल के दफ्तर थे लेकिन कोई भी भरत देसाई की प्रतिष्ठा को छू भी नहीं सकता था। दफ्तर के विशाल पार्किंग के दरवाजे पर खड़े दरबान और सिक्यूरिटी ऑफिसर ने तनु को देखकर लम्बा सलाम ठोंका। तनु ने भी मुस्कुरा कर जवाब दिया। बिल्डिंग के गेट के सामने कार रोक कर परम ने तनु से कहा..

''तुम अपना काम निपटाओ मैं एक आध घण्टे में आता हूँ।"

''क्यों आप कहाँ जा रहे हो" तनु ने शंकित स्वर में पूछा।

''अरे कहीं नहीं बाबा आता हूँ थोड़ी देर में।"

''अपने चाचा-चाची के यहाँ जा रहें हैं ना?" तनु समझ गयी थी।

''हाँ इस छुट्टी का यह पहला और आखरी चक्कर।" परम ने कहा।

''ठीक है मैं मना नहीं करती लेकिन प्रॉमिस करो कि वहाँ चाहे जो बातें हों आप अपना मूड खराब नहीं करेंगे।" तनु ने परम को कहा" वापस आने पर मुझे अपसेट वाला नहीं अपना हँसता मुस्कुराता परम चाहिये।"

''आय प्रॉमिस यू, कि आपको अपका हँसता मुस्कुराता परम ही वापस मिलेगा जी।" परम ने उसे आश्वासन दिया।

''ओके जल्दी आइयेगा। लंच यहीं पर साथ में करेंगे।" तनु मुस्कुराती हुई कार से उतर गयी।

''बस घण्टे भर में वापस आता हूँ।" परम ने तनु को बाय किया और चला गया।

तनु काँच के बड़े से गेट के अदर दाखिल हुई। ग्राउण्ड और फस्र्ट फ्लौर पर रिसेप्शन और टीवी न्यूज चैनल के दफ्तर थे। सेकेण्ड और थर्ड फ्लौर पर अखबार का दफ्तर था। चौथे फ्लोर पर भरत देसाई का आलीशान ऑफिस था। पाँचवे और छंटवें फ्लोर पर गोदाम और भरत देसाई के अन्य छोटे-मोटे व्यवसायों के दफ्तर थे।

लिफ्ट से सेकण्ड फ्लोर पर उतरते ही ऐसी की ठण्डी हवा के साथ ही कोरे और पुराने कागजो और पेपर इंक की मिलीजुली चिरपरिचित गंध तनु के नथुनों मे समा गयी। तनु ने एक लम्बी और गहरी सांस ली। कागज की खुशबु तनु को बहुत पसंद थी। बचपन से ही कोरी किताबों की गंध उसे आकर्षित करती थी। जब गर्मी की छुटिटयों के बाद स्कूल दुबारा शुरू होते थे और नयी किताबें आती थी तब तनु घण्टों किताब-कापियाँ नाक से लगाए बैठी रहती।

कॉरिडोर पार करके तनु अपने केबिन में पहुँची। सारा स्टाफ उसे देखकर खुश हो गया। तनु को भी बहुत अच्छा लग रहा था। वह पूरे बीस दिनों बाद यहाँ आयी थी।

''वेलकम मेडम जी।" अनूप केबिन में आकर बोला ''अच्छा हुआ रश्मी बिमार पड़ गयी तो आपके दर्शन तो भी हो गये।"

''छी:! मेरे दर्शन करने के लिये तुम्हें किसी को बिमार करने की क्या जरूरत है। ऐसे ही घर नही आ सकते मिलने।" तनु बोली।

अनूप पाँच मिनट इधर-उधर की बात करके फिर तनु से बोला ''चलो तुम अपना काम कर लो। मटेरियल सिलेक्ट कर लो फिर मैं रमन को भेजता हूँ वो आकर कंपोजिंग कर लेगा।"

''नही रमन अपने काम में परफेक्ट तो है पर थोड़ा स्लो है आज तो शिशिर को भेजना। वह काम फटाफट कर देता है।" तनु ने कहा।

''ठीक है मैं शिशिर को भेजता हूँ।" कहकर अनूप वापस अपने केबिन में चला गया।

दो घण्टे तक तनु आये हुए मटेरियल में से आर्टिकल, कहानी, कविता और दूसरे कॉलम्स छाँटती रही। जब उसने पर्याप्त मेटर इकट्ठा कर लिया था तभी शिशिर आ गया। तनु ने उसे सारा मैटर दिया और प्यून को भेजकर इस एडिशन के लिए आए हुए विज्ञापनों की फाईल मंगवाई।

तब तक शिशिर कम्प्यूटर पर मेटर एडजस्ट करने लगा। तनु को परम का ख्याल आया। पता नहीं चाचा-चाची ने कैसा व्यवहार किया होगा। क्या कहा होगा! परम का मूड़ कैसा होगा। अब तक तो आ जाना चाहिये था उसे। तनु इन्ही सब बातों को सोच रही थी कि प्यून एडवरटाईजमेंट की फाईल देकर चला गया।

तनु मेटर के बीच -बीच में विज्ञापनों को एडजस्ट करवाने लगी। शिशिर कम्प्यूटर पर उन्हें कम्पोज करता रहा।

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