Kaun Dilon Ki Jaane - 3 in Hindi Moral Stories by Lajpat Rai Garg books and stories PDF | कौन दिलों की जाने! - 3

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कौन दिलों की जाने! - 3

कौन दिलों की जाने!

तीन

रमेश के मुम्बई जाने के बाद उसी दिन सायं रानी अपनी सहेली के संग ‘नॉर्थ कन्ट्री मॉल' गई थी। वहाँ कई प्रसिद्ध कलाकरों की पेंटिंग्स की प्रदर्शनी लगी हुई थी। प्रसिद्ध चित्रकार सरदार शोभा सह की दो पेंटिंग्स रानी को बहुत पसन्द आईं — एक, आशीर्वाद की मुद्रा में गुरु नानक की पेंटिंग जोकि सरदार शोभा सह की सर्वश्रेष्ठ कलाकृति है तथा दूसरी, सोहनी—महिवाल की सर्वाधिक लोकप्रिय पेंटिंग जिसमें सोहनी नदी पार रह रहे अपने प्रेमी महिवाल से मिलन—हेतु कच्चे घड़े के सहारे नदी पार करते हुए दिखाई गई है — और वह इन्हें खरीदे बिन न रह सकी। क्योंकि आलोक का रविवार को आना निश्चित था, इसलिये उसने पेंटिंग्स को ड्रार्इंगरूम में सोफे के सामने वाली दीवार पर लगवा लिया था। पेंटिंग्स के लगने से ड्रार्इंगरूम की शोभा दोगुनी बढ़ गई थी। ड्रार्इंगरूम में आने वाले किसी भी व्यक्ति की नज़र इन पेंटिंग्स पर पड़े बिना नहीं रह सकती थी। सोमवार दोपहर बाद जब रमेश घर आया तो ड्रार्इंगरूम की बदली हुई साज—सज्जा तथा दीवार पर लगी हुई नई पेंटिंग्स को देखकर उसने रानी से पूछा — ‘ये पेंटिंग्स कब खरीदीं?'

‘शनिवार को आपको एयरपोर्ट पर छोड़ने के बाद मैं मिसेज़ वर्मा के घर चली गई थी। बातों—बातों में उसने बताया कि ‘नॉर्थ कन्ट्री मॉल' में पेंटिंग्स की एग्ज़िबिशन लगी हुई है, सो हम एग्ज़िबिशन देखने चली गईं। वहाँ मुझे ये पेंटिंग्स पसन्द आईं और मैं खरीद लाई।'

‘बहुत सुन्दर पेंटिंग्स हैं। इनसे ड्रार्इंगरूम की शोभा बहुत बढ़ गई है। पेंटिंग्स किस से लगवाई?'

‘आलोक जिनसे आपको शादी में मिलवाया था, उन्होंने कल आना था, इसलिये घर आकर मैंने दीपु को बुलवाकर इन्हें लगवा लिया।'

रमेश सोचने लगा, रानी ने विवाह—समारोह में परिचय करवाते समय आलोक के लिये ‘आप' का सम्बोधन इस्तेमाल किया था। आज रानी उसके लिये ‘जिनसे' व ‘उन्होंने' शब्द इस्तेमाल कर रही है। दोस्तों, विशेषकर बचपन के दोस्तों के बीच तो कोई औपचारिकता नहीं होती। कहीं रानी और आलोक के बीच सम्बन्ध दोस्ती से आगे तो नहीं बढ़े हुए! इसी सोच के चलते उसने ने कटाक्ष करते हुए कहा — ‘ओह, फिर तो पुराने दोस्त के साथ बहुत बढ़िया टाईम बीता होगा?'

रानी ने रमेश के कटाक्ष को नज़रअन्दाज़ करते हुए इतना ही कहा — ‘आलोक का मिलने आना अच्छा लगा।'

‘अच्छा क्यों न लगता? बचपन की दोस्ती की बात और ही होती है। आदमी को ताउम्र याद रहती है। बचपन में दिमाग सांसारिक झंझटों से मुक्त होता है। तुम लोगों ने भी बचपन की यादें खूब ताजा की होंगी?'

रमेश के बात करने के अन्दाज़ से रानी तय नहीं कर पाई कि वह कटाक्ष कर रहा है अथवा सहज भाव से बचपन की दोस्ती पर टिप्पणी कर रहा है। उसने इस वार्तालाप को ‘हाँ' कहकर यहीं फुलस्टॉप लगाने की कोशिश करते हुए पूछा — ‘अपना सुनाओ, यात्रा कैसी रही, जिस काम के लिये गये थे, वह तो हो गया होगा?'

कोई भी सांसारिक व्यक्ति स्व—प्रशंसा व शेखी बघारने का अवसर हाथ से जाने नहीं देता। रमेश भी इसका अपवाद न था। उसने बताया — ‘अपने काम कभी रुकते नहीं। तुम्हें तो पता ही है कि कोई भी ढंग क्यों न अपनाना पड़े, मैं काम करवा कर ही रहता हूँ। सफर हमेशा की तरह बढ़िया रहा।'

‘खाना तैयार है, लगा दूँ या पहले चाय—कॉफी लोगे?'

‘खाना तो प्लेन में हो चुका है। चाय पी लूँगा।'

और रानी चाय बनाने रसोई में चली गई।

***