Dil ki zameen par thuki kile - 9 in Hindi Short Stories by Pranava Bharti books and stories PDF | दिल की ज़मीन पर ठुकी कीलें - 9

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दिल की ज़मीन पर ठुकी कीलें - 9

दिल की ज़मीन पर ठुकी कीलें

(लघु कथा-संग्रह )

9-बुलबुल

पता नहीं कब, कैसे उसने क्यारियों में छिपकर बच्चे दे दिए |वैसे ही परेशान थे सड़क के कुत्तों से ! सड़क पर खड़ी गाड़ियों पर बड़ी शान से वे बैठे रहते, जब उनका मन होता तब खड़ाक से बँगलों के अंदर कूद जाते | पता तो तब चलता जब अंदर कहीं गंदा कर जाते या पीछे चौकड़ी में सुबह कामवाली के इंतज़ार में प्रतीक्षा करते बर्तनों से गुफ़्तगू करने पहुँच जाते |

इनमें से ही कोई होगी जिसने क्यारी में बच्चे दिए और अगली सुबह नौकर के घंटी बजाने पर पूरा दम लगाकर उसने उसे भागने पर मज़बूर कर दिया | फ़ोन करने पर टका सा जवाब परोस दिया पूरन ने जिससे घर-मालकिन के दिल की धड़कनें बैठ गईं |

" नहीं, मैं तो नहीं आऊँगा --जब तक आपके घर में ये सड़क का कुत्ता है ---" पूरन ने फ़ोन बंद कर दिया और उन्नति बिसुरती सी ठगी रह गई |

"चलो जी, उठाओ झाड़ू -पोछा और कस लो कमर इतने लंबे कंपाउंड को साफ़ करने के लिए ! उन्नति सुबह पाँच बजे उठती है, पति को फ़्रेश होने के लिए कम से कम 3/4 अलग -अलग वेराइटी की चाय चाहिएं, बच्चों के हाथ में सब चीज़ें पकड़ाना, उनके लिए दूध-नाश्ते की तैयारी में ही वह सुबह से लगी रहती है और उसके बाद इतनी पस्त हो जाती है कि झाड़ू उठाने की कल्पना से ही उसे सिहरन होने लगती है |

सोलह वर्षीय बेटे ने स्कूल से आकर क्यारी में एक नज़र मारी और उछलता हुआ माँ के पास पहुँचा ---

" मम्मा ! दूध दो न ?"

"ये टाइम दूध पीने का है क्या बेटा, चलो गर्मागर्म खाना खाओ --"

उन्नति उसके लिए गरम फुल्के सेकने चल दी | किचन में आकर उसने तवा चढ़ाया ही था कि बेटा फिर कंपाउंड में से चिल्लाया ---

"मम्मा ! पहले दूध दो न, मैं बाद में खा लूँगा --"

"नहीं, मैं नहीं देने वाली इसे दूध, पल जाएगी यहीं, मेरे लिए तो मुसीबत हो गई है | पूरन भाग गया, मेरी वैसे ही हालत पस्त हो रही है |चलो, तुम खाना खाओ ---"

" नहीं, पहले इसे दूध --फिर मेरा खाना ---" पसर ही तो गया दिव्य !

दो /तीन वर्ष पहले दो हट्टे -कट्टे एल्सेशियन और लेब्राडॉर रखे थे उसने | उनका लाड़ -प्यार बस उन्हें सहलाने तक ! बाकी बाहर ले जाना, सफ़ाई रखना, नहलाना ---?उन्नति का काम इतना बढ़ गया कि रो पड़ी | उन्हें खींचकर ले जाने से उसकी नाप भी न जाने कितनी बार उतरी और वह अशक्त, बीमार \सी रहने लगी |

"बस, लाड़ लड़ाने का शौक भर है, पिसने के लिए वो है ही ---" उनके लिए आदमी रखा गया, वो नहीं टिका |झक मारकर उन्नति दोनों कुत्तों को फॉर्म -हाऊस में छोड़ आई थी, बेटे की अनुपस्थिति में | आकर उसने जो उधम किया ---तौबा ---कुछ दिनों बाद पता चला दोनों नहीं रहे, इतना साहस नहीं था कि बेटे को बताया जाता |

आज रुष्ट थी, बहुत रुष्ट ----खिसियाई हुई भी थी | इस बुलबुल ने बच्चों के साथ मिलकर सारी क्यारियाँ कुरेद डालीं थी, नौकर को भगा दिया था, और वह अकेली थी काम करने वाली !

पर --बेटा वहीं पसर गया ---पहले उसकी बुलबुल को दूध, बाद में खाना ---

उन्नति एक माँ थी, चुपचाप भीतर गई और दूध की थैली और एक स्टील का पुराना कटोरा लेकर बाहर आई | बेटे के मुख पर गुलाल खिल उठा |

" ओ ---मेरी प्यारी मम्मा ! ----" उसने माँ के हाथ से कटोरा लेकर उसमें दूध डाला और अपनी बुलबुल को पुचकारते हुए उसके आगे दूध रख दिया | अब यह रोज़ का काम हो गया था | बेटा खुश और माँ इस चिंता में कि जब ये बच्चे क्यारियों से बाहर आने लगेंगे तब कंपाउंड में से गाड़ियाँ निकलवाने में परेड तो उसीको करनी है |

***