suno aisha - 2 in Hindi Fiction Stories by Junaid Chaudhary books and stories PDF | सुनो आएशा - 2

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सुनो आएशा - 2


वादे के मुताबिक हिरा मुझे अगले दिन शाम में आयशा के घर ले गयी। ओर नसीब देखिए गेट भी आयशा ने ही खोला।।उसने काली ओर कत्थई धारियों वाला गाउन पहन रखा था।।जिसपर ऊंची कर के बांधी गयी बालो की पोनी टेल अलग ही लुक दे रही थी।।खूबसूरत पतले पतले गुलाबी होंठों पर प्यारी सी मुस्कान।।आंखों में ऊपर की पलको पर लगा हुआ आई लाइनर उसकी बड़ी आंखों को ओर भी क़ातिल बना रहा था।। पहली नज़र में उसे अच्छे से न देख पाने की वजह से इस बार मेने उसकी खूबसूरती का अच्छे से मुआयना किया।।दिल की धड़कनों को संभालते हुए में बहन के साथ जाकर उनके ड्राइंग रूम में बैठ गया।। इतने में किचन से आयशा की अम्मी भी हमारे लिए पानी ले आयीं।। हमने उन्हें सलाम करा ओर उन्होंने बहन को गले लगाते हुए मुझसे खेरियत मालूम कि।। ।आयशा भी सामने ही आकर बैठ गयी थी और कनखियों से मुझे बार बार देख रही थी।। उसकी अम्मी ने कहा और बताएं बेटा आप क्या करते हो।।मेने कहा जी आंटी मेरा c.a का पहला साल है ओर साथ ही b.com का आखरी साल भी।। आंटी ने खुशी का इज़हार करते हुए कहा बहुत अच्छे बेटा।।बातों बातों में पता लगा आयशा के अलावा उसकी दो बहनें ओर है जो उस से छोटी है। भाई कोई नही है ।ओर उसके पापा किसी "सी एल गुप्ता" नाम की फैक्ट्री में सैम्पलर है। इस मीटिंग में क्योंकि आयशा की अम्मी लगातार सामने बैठी हुई थी इसलिए सामाजिक बातो के अलावा कोई बात न हो पाई। दाल न गलते देख मेने हिरा से कहा चलो अब घर चलते है।। सलाम दुआ करके हम उनके घर से विदा लेने लगे।।आयशा हमे गेट तक छोड़ने आयी।।और मुस्कुरा कर मुझसे बोली अच्छा लगा आपसे मिल कर।। इस वक़्त चेहरे पर बहुत बड़ी स्माइल आना चाहती थी लेकिन उसे छोटा करते हुए मेने कहा मुझे भी अच्छा लगा।।इंशा अल्लाह फिर मुलाकात होगी।। इसके बाद तो मानो मुझमे बिजलीं दौड़ रही थी।।बाइक मेरी हवा से बातें कर रही थी और हिरा मेरे कान मरोड़ कर कह रही थी कंजर दोनो को घर ज़िंदा जाना है।।हल्के चला ले।। मेने हिरा से कहा ये मीटिंग ज़्यादा अच्छी नही थी।।कही और मीटिंग रखो जहाँ कोई रिश्तेदार न हो।। हिरा बोली ठीक है छुटके अब जब कपड़े ले ही लिए है तो लगाती हु कुछ जुगाड़।

में जानता था कि हिरा बहुत तेज़ ओर चालाक है।वो बिना मिलाये रहेगी नही।।उसने अगले हफ्ते 5 जून 2016 में निंजा टर्टल मूवी के तीन टिकट बुक कर लिए।।ओर आयशा को मूवी जाने के लिये मना भी लिया।। शाम 5 बजे का शो था।।लेकिन धूप दोपहर की तरह ही तेज़ थी।
इसलिए मेने अपने दोस्त शादाब से उसकी स्विफ्ट कार सुबह ही उधार ले ली थी।। उस कार को अच्छे से धोया पोलिश मारा।क्योकि उस गरीब की कार में कार फ्रेशनर नही था जिस वजह से वो अजीब ही बदबू मार रही थी।।इस समस्या से निजात के लिए मेने अपना एक्स का डिओ पूरी कार में छिड़का।। 4 बजे खुद नहाया अच्छे से खुद को सांवरा बालो में ड्रायर लगाया। इधर में सज संवर के एकदम हीरो लग रहा था उधर मेरी बहन हिरा उलझी ज़ुल्फो ओर लोअर टीशर्ट में ऊंघती हुई कहती है चल वई छुटके मूवी टाइम हो गया है।।मेने बमुश्किल उसका मुंह धुलवा कर ज़ुल्फो में कंघी कराई ओर ठीक 4:30 बजे आयशा के घर के आगे गाड़ी लगा दी।।


हिरा ने आयशा को कॉल कर के बुलाया। बलखाती चाल नीली कुर्ती पर लहराता हुआ सफेद रूपट्टा ऊपर से धूप में खिलता हुआ गोरा रंग मुझे उसपर से नज़र हटाने ही नही दे रहा था।।देखते देखते वो पीछे की सीट पर आकर बैठ गयी। कार में हमारे चहेते जनाब इमरान हाशमी साहब का गाना "ज़रा सी दिल मे दे जगह तू" चल रहा था। ओर आयशा चेहरे पर मुस्कान लिए बैठी थी।।उसकी प्यारी मुस्कान को में बैक मिरर में लगातार निहार रहा था।।उफ अजीब ही पागलपन दिलो दिमाग पर हावी था।।

बहन ने हाथ पर नोचते हुए हल्के से कहा कंजर सम्भाल के आगे देख के चला ले।।अगर कार में डेंट आ गया तो दोनों की पॉकेट मनी निकल जायेगी सही कराने में। ये वाक़ई गम्भीर बात थी।।इसलिए मैंने कजरारी आंखों से ध्यान हटा कर सामने रोड पर लगाया।


सिनेमा हाल में हिरा ने 3 सीट वाली रॉ के टिकट बुक किये थे। जिसमें आखरी सीट पर मुझे बिठा दिया।मेरे बराबर में आयशा को ओर आखिर में खुद बेठ गयी।

अब मेरे पास सिर्फ तीन घण्टे थे जिसमें मुझे किसी भी तरह आयशा को खुद से मुतास्सिर करना था।

न जाने में कामयाब हो भी पाऊंगा या नही। पढ़ते है अगले पार्ट में...