भू- गोल
अर्थात दुनिया गोल है...!
जी जनाब, ये बात सभी जानते है के दुनिया गोल है...जिसे हम सीधे से शब्दों में बिना किसी लाग लपेट के कही भी ठोक देते है....लेकिन बात कुछ ऐसी है कि दुनिया सही मायने में पूरी गोल तो है नहीं...ये बात सौ आने सच है...जिसमें बारह आने दुनिया गोल है....
अब इस भू-गोल का सीधा संबंध हम इंसानों से जुड़ा है जो हमारे डीएनए में पाया जाता है...हम इस गोलाई की धूरी के अंदर ही अपनी जिंदगी की गुजर बसर कर के जी रहे हैं....हम कितनी भी सीधी दूरी तय करे पर एक दिन वही आकर खड़े हो जाते है जहां से हम कभी चले थे....उडने बाला भी इस गोलाई नुमा भू-गोल में आकर गिरता है और सीधा चलने वाला भी...मतलब आप समझ ही रहे होंगे के दुनिया चार आने टेढ़ी-मेढ़ी होकर गोल है....
ये बात शाकीर चच्चा हमें बडी अदवगी से समझा रहे थे और हम अपना सिर पकड़े उनकी हर गोलाईनुमा भू-गोल की बातों को सुन रहें थे....उनकी सारी बाते हमारे भेजे में गोल-गोल घूम रही थी उनके हर शब्द एक दूसरे के आगे निकलने की दौड़ हमारे छोटे से भेजे में धमा चौकड़ी मचा रहे थे...हमें पता था इस भू-गोल के चक्कर में अच्छों अच्छों का भू-गोल निपट गया लेकिन चच्चा ने हममें जरूर कोई आज सीध देख ली थी जिसके चलते आज हम उनके इस भू-गोल नामा के सच्चे श्रोता उन्हे दिखाई दे रहें थे.....चच्चा के इस भू-गोल नामा की कथा से कुछ-कुछ तो आज की बातों पर सटीक बैठ रही थी लेकिन वो खुल कर दावे के साथ नही कह पा रहे थे....अवमूमन ऐसा हम सभी में है...जो सीधी सी बात को सीधे तरीके से कह दें....क्योंकि सीधी बात कहने की हिम्मत कहना भी जिगर बालों का काम होत है...और जो कह भी देते है वो शायद इस भू-गोल के ज्ञाता नहीं होते...ऐसा अवमूमन गोल-गोल कहने वाले भू-गोल के ज्ञाताओं का मानना है...जिनकी जमात इस भू-गोल में वेहद मात्रा में पाई जाती है अनका तो पूरा के पूरा कुनवा होता है...जाहां सीधी बात को सिरे से नकार दिया जाता है वो इस भू-गोल के निवासी हो ही नहीं सकते..और ना ही इस भू-गोल बासियों के वंसज... तो जनाब इस एक घंटे की भू-गोल कथा से हम बड़ी मुश्किलों से अपना पिंड़ चच्चा से छुड़ा पाए...बस गल्ती इतनी सी थी के हमने आज के जमाने की आग पर थोड़ी सी चिंगारी भर रख दी थी उसी का नतीजा था जो हमें इस भू-गोल को समझना पड़ा....
चच्चा के जाने के बाद हम काफी देर तक इस भू-गोल की परिभाषा को समझने में लगे रहे लेकिन छोर और सिरा नदारद ही रहा....इस दुनिया में रोज कुछ ना कुछ ऐसी बाते अब भी जहां की तहां है जो हमने बचपन में सुनी थी जिनको लेकर लोगों ने अपनी जान तक गवां दी...लेकिन वो बाते आज भी जैसी की तैसी है....क्योंकि उन बातो को तूल देने बाले भी तो इस भू-गोल के ही प्राणी है उनकी भी रगो में इस भू-गोल का खून दौड़ रहा है तो भला कैसे ये बाते खत्म होगी....
अंत में हमें इस भू-गोल का अर्थ बस इतना ही समझ में आया के हम भी तो रोज शाम को अपने घर लौट आते हैं पर इस जिंदगी की उल्झनें कभी खतम नहीं होती... अर्थात दुनिया बारह आने गोल है....!