Sipaahi in Hindi Detective stories by Satish Sardana Kumar books and stories PDF | सिपाही

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सिपाही

कहानी
: भुखिया मंदिर में उत्तराखंडी पंडित जी अपनी कुमाउनी हिंदी में आरती कर रहा था।लोग ताली बजाकर बजाकर साथ दे रहे थे।पहाड़ी की तलहटी में बसे गाँव सिहनगर में रोजाना की तरह शाम ढल रही थी।सब लोग खुश दिखाई देते थे।लेकिन सुगनाराम जाट कुछ ज्यादा ही खुश था।कपास की फसल अच्छी हुई थी।इस बार बैंक और बनिया दोनों का कर्जा उतर जाएगा यह सोचते सोचते कब खेत खत्म हुआ और कब मंदिर आ गया।मंदिर में आरती की आवाज सुनकर उसका मन हुआ कि वह हाथ मुँह धोकर अंदर जाए और थोड़ी देर बैठकर भगवान का भजन करे।कितने ही वर्ष हो गए थे उसे मंदिर के भीतर गए।शायद तीन साल या उससे भी ज्यादा।पिछली बार वह मंदिर तब गया था जब उसका लड़का बेहद बीमार हुआ था और उसकी पत्नी ने मन्नत मान रखी थी।आज भी जाने का मन था,लेकिन भैंसों के न्यार फूस का टाइम निकला जा रहा था।दूध भी निकालना था और कुट्टी भी काट के रखनी थी।इसलिए उसने मंदिर जाने की टाल कर दी और घर का रुख किया।
वह मंदिर से चंद कदम ही दूर गया था कि फ़ौज की एक गाड़ी आकर रुकी।दो बावर्दी जवान कूदकर उतरे और मंदिर के बाहर खड़े शख्स को यथासंभव दुःख भरे लहजे में सूचना दी,"आपके गांव का जवान सुगनाराम जाट वल्द श्री बाबा रतन शहीद हो गया।कल सुबह उसका पार्थिव शरीर राजकीय सम्मान के साथ आपके गाँव में अंतिम संस्कार के लिए लाया जाएगा।"जवान सांस लेने के लिए रुका।फिर बोला,"कृपया आ
आप हमें उनके घर का रास्ता बता दें।सुगना राम जाट का घर कच्ची घास फूस भरी नालियों वाली गलियों के बाद एक संकरी गली में था।गाड़ी वहाँ तक न जा पाई तो फौजी पैदल चले।घर पर केवल बूढ़ी औरतें थी।मर्द और जवान लुगाई सब घेर में थे।घेर वह जगह थी जहाँ जानवर बाँधे जाते थे और मेहमान के ठहरने के लिए बैठक होती थी।
बुढियों ने खबर सुनी तो खाटों से उतर कर रोने बैठ गई।और एक लड़का फौजियों के संग घेर दिखाने चल दिया।
ढलती शाम अब तक रात में बदल चुकी थी।फौजी वापिस चले गए थे।सुबह शहीद का शव आना था।गांव के लोग दबी जुबान से कह रहे थे कि भर्ती तो अगनाराम हुआ था सुगनाराम कैसे मर गया।सुगनाराम जाट उसका छोटा भाई तो किसान है और वह सही सलामत गाँव में मौजूद है।
सुगनाराम चुप!एक वही इस बात का ठीक ठीक जवाब दे सकता था।लेकिन वह जवाब देना नहीं चाहता था।लेकिन उसके माथे पर चिंता की लकीरें जरूर थी जिसे गांव के लोग भाई के जाने का गम समझ रहे थे।
अगले दिन पार्थिव शरीर आ गया।पुलिस और मिल्ट्री की गारद ने सलामी दी।मंत्री और नेताओं ने फूल चढ़ाए।इस तरह अंतिम संस्कार सम्पन्न हुआ।इलेक्शन सिर पर था इसलिए पक्ष विपक्ष की सभी पार्टियों के नेता आए।आनन फानन में शहीद की प्रतिमा बनवाई गई।प्रतिमा शहीद से बिल्कुल न मिलती थी।लेकिन नीचे लिखा था सुगना राम जाट,सिग्नल कोर!शहीद और शहादत की तिथि अंकित थी।वीरता का संक्षिप्त बखान लिखा पत्थर भी नीचे लगा था।
सुगना राम जाट रोज उस बुत के सामने से गुजरता और अपने नाम का बुत लगा देखता।मन ही मन बुदबुदाता,"अगनाराम,मरने के बाद तो नाम सही करवा लेता।"
: अगनाराम और सुगनाराम एक ही पिता बाबा रतन की संतान थे।उनके पिता जवानी में ही घर छोड़कर चले गए थे।बारह एकड़ उपजाऊ भूमि उनके नाम थी।उनकी माँ ने बड़ी मुश्किल से वे पाले थे।
अगनाराम पढ़ाई में ठीक ठाक ही था।लेकिन खेती क्यारी में भी उसका मन न लगता था।छोटा था इसलिए माँ भी उसे कुछ न कहती थी।सुगनाराम भी भाई पर जान छिड़कता था।सुगनाराम ने तो कस्बे के स्कूल से सीनियर सेकंडरी कर ली।लेकिन अगनाराम नौंवी कक्षा से आगे न बढ़ सका।अगनाराम की इच्छा फौज या पुलिस में नौकरी करने की थी।उसका कद काठी और शरीर भी अच्छा निकल कर आया था।लेकिन सुगनाराम सामान्य कद काठी का लेकिन पक्के हाड़ का व्यक्ति था।बारहवीं करने के बाद सब लड़के फौज और पुलिस में भर्ती की तैयारी में लग जाते।कोई विरला ही होता जिसका ब्योन्त होता कि वह बी ए,एम ए करे।
एक दिन अगनाराम को कोई लड़का मिला जिसकी अहमदनगर में कोई जान पहचान थी।इस जान पहचान के दम पर वह लड़कों को फौज में भर्ती करवाता था।खर्च था पंद्रह हजार से एक लाख तक।पंद्रह हजार उसके जिसके डिग्री सर्टिफिकेट ठीक ठाक हों,कद काठी पूरा हो और लिखित परीक्षा में भी पास हुआ हो।फिर जितनी अयोग्यता बढ़ती जाती पैसा भी बढ़ता जाता।अब अगनाराम के पास तो खाली कद काठी था लेकिन बारहवी की सनद न थी।सुगनाराम के पास बारहवीं की सनद थी कद काठी न थी।दूसरे सुगनाराम की नौकरी करने की कोई इच्छा भी न थी।क्योंकि वह जानता था कि खेती उसके दम पर ही है।उसके गाँव छोड़ते ही खेत बिक जायेंगे।
आखिर अगनाराम ने अपने दिल की बात बताई।उसने कहा,भाई मैंने सारी बात तय कर ली है।अस्सी हजार लगेंगे।मैं तेरी सनद लगाकर आवेदन भेज दूंगा।बाकी एजेंट सब संभाल लेगा।सुगनाराम इन सब झंझटों से दूर रहना चाहता था।लेकिन भाई के अनुरोध और दवाब के आगे झुक गया।आज वह सोचता है कि अगर उस दिन वह न झुका होता तो आज उसका भाई जीवित होता।बहुत सारे फौजी 65 और 71 की लड़ाई में भाग लेने के बावजूद भी जीवित घर आये हैं और पेंशन पा रहे हैं।और उसका भाई आज बुत बना मंदिर के बाहर खड़ा है।उस बुत के नीचे उसका नाम भी नहीं है।
: शाने जहांन कराची में पैदा हुआ था।उसके पिता इंडिया से आये थे।इसलिए उसके लहजे में हल्का सा बागड़ी पुट था।कारगिल की लड़ाई में उसे पैर में गोली लगी थी इसलिए वह थोड़ा सा लंगड़ा कर चलता था।उसकी दो बेगमें थी।एक निपट देहाती दकियानूसी औरत जो गांव में रहकर बाल बच्चों की देखभाल करती थी।अल्लाह के करम से और खाविंद की मेहनत से उसे तीन लड़के और माशाल्लाह छ लड़कियां हुई थी।इस बीच उसके खाविंद को कोई शहरी मोहतरमा पसंद आ गई थी।पाँच साल हुए उससे शादी रचाई थी।शहरी मोहतरमा से उसे एक मरियल सी टींगरी पैदा हुई थी जो परमानेंट जुकाम की मरीज थी।शाने जहान को लोग ट्रक ड्राइवर शान के नाम से जानते थे और वो इंडिया पाकिस्तान बॉर्डर एरिया में पाकिस्तान आर्मी के कॉन्ट्रैक्टर के लिए ट्रक चलाता था।फौजी न होते हुए भी फ़ौज से मिली जुली वर्दी पहनता।स्टैण्डर्ड से रहता।औरत,सिगरेट और शराब के सिवा उसे कोई बुरी आदत नहीं थी।इतना तो खुदा ने ट्रक ड्राइवर लोगों को इजाजत दी हुई है।वह पाकिस्तान अपनी मादरे वतन से जितनी मोहब्बत करता था उससे कहीं ज़्यादा। दुश्मन हिंदुस्तान से नफरत करता
कारगिल की लड़ाई खत्म होने के बाद उसने कई फेरे पिंडी से बॉर्डर के लगाए थे।इसलिए उसे रास्ता हथेली की रेखाओं की तरह याद था।लेकिन जब बंदे का वक़्त आ जाता है तो सबसे पहले उसकी बुद्धि खराब हो जाती है।उस दिन उसे पिंडी से सिंध बॉर्डर की तरफ जाना था।सड़क बिल्कुल बॉर्डर के साथ साथ थी।तभी रेगिस्तान में धूल भरी आंधी की शुरुआत हो गयी।उसने ट्रक रोकने की जरूरत न समझी।पेड़ों के साये घटते गए और एक जगह जाकर सड़क अचानक खत्म हो गई।
शान को लगा वह रास्ता भूल गया है लेकिन अब सड़क ढूंढना बहुत जरूरी था।वह ट्रक से नीचे उतरा।इलाका वैसा ही था,रेतीला!कहीं कहीं पेड़ बाकी विरले झाड़ झंखाड़!लेकिन हवा में अजनबीयत की गंध मौजूद थी।क्या गंध थी वह समझ नहीं पाया,तभी कहीं फायर हुआ और वह नीचे झुक गया।मोर्टार गन की आवाज थी वह!
उसके पीछे खड़े उसके ट्रक में जोर का धमाका हुआ और उसके ट्रक में आग लग गई।आसमान में लकड़ी और लोहे के टुकड़े उड़ने लगे।एक टुकड़ा बहुत तेजी से उसकी कनपटी पर लगा।वह कान को सहलाता हुआ भाग कर ट्रक के साये से दूर हटा।यह उसकी आखिरी गलती थी।दूर बैठे भारतीय सिपाही ने साधकर निशाना लगाया।इंसास राइफल का थ्री राउंड फायर हुआ और शान की छाती में जाकर पैवस्त हो गया।दूर कहीं बॉर्डर पर तैनात पाकिस्तानी सैनिक ने दूरबीन से देखा,"उसे जलते हुए ट्रक और गर्दो गुबार के सिवा कुछ दिखाई न दिया।
जब बहुत देर तक कोई हलचल नहीं हुई भारतीय सैनिक अपने अपने ठिकानों से निकल आगे बढ़े और चित पड़े पाकिस्तानी व्यक्ति के शरीर के पास पहुंचें।जो सैनिक पहले पहुंचे उन्होंने बाद में आए सैनिकों को बताया,"इसकी शक्ल देखो।बिल्कुल सुगनाराम जाट लगता है।"
सुगना राम जाट की शहादत के दो द्विज पहले लेफ्टिनेंट कर्नल विजय कुमार ने सुगनाराम जाट को अपने दफ्तर बुलाया।सुगनाराम सैल्युट मारकर चुपचाप खड़ा हो गया तो वे बोले,"सुगनाराम !हमने एक गैंग पकड़ा है जो जाली शैक्षिक प्रमाण पत्रों के आधार पर सेना में भर्ती कराने में संलिप्त पाया गया है।उस गैंग ने भर्ती कराए गए जवानों के जो नाम दिए हैं उनमें तुम्हारा नाम भी शामिल है।"सुगनाराम का दिल लरजा लेकिन उसने भावों को अपने चेहरे पर नहीं आने दिया।
"और कल ही राजस्थान सिंध बॉर्डर पर एक अज्ञात व्यक्ति मारा गया जो उस पार से आया था।हमारा अंदाज है कि वह आंधी तूफान में रास्ता भटक गया था क्योंकि उसने अपने ट्रक के साथ ही बॉर्डर पार किया था।"सुगनाराम हैरान हुआ कि साहब उसे ये सब क्यों बता रहे हैं।
"उसमें एक बात सामने आई कि उस व्यक्ति का चेहरा बिल्कुल तुम से मिलता है।"
साहब बोले,"सुन रहे हो जवान!"
"जी जनाब!"
"अब तुम्हारे सामने दो रास्ते हैं।एक तो यह तुम्हें मिलिटरी पुलिस के हवाले कर दिया जाए।तुम डिसमिस हो जाओगे और तुम्हें कैद भी हो सकती है।"
"और दूसरा रास्ता है कि तुम्हारे हमशक्ल की डेड बॉडी तुम्हारे घर भेज दी जाए और तुम्हें स्पेशल मिशन पर पाकिस्तान।यह एके खतरनाक मिशन है।जिसमें तुम्हें अपना रास्ता खुद
चुनना होगा।कोई तुम्हें सलाह देने वाला न होगा।तुम्हें एक बार मिशन ब्रीफ कर दिया जाएगा।तुम्हें सारे नंबर जबानी याद रखने होंगे।न किसी डायरी में लिखोगे न किसी को बताओगे।जब भी हमें कुछ सूचना चाहिए होगी हम अपने तरीके से तुमसे संपर्क करेंगे।तुम हमसे संपर्क करने की कोई भी कोशिश न करोगे।न ही हमारे किसी अफसर से अपनी असली पहचान जाहिर करोगे।
तुम अपने परिवार के लिए मर चुके हो।तुम्हारे घर तुम्हारी डेड बॉडी भेज दी जाएगी।शहीद के सारे बेनिफिट्स रिलीज कर दिए जायेंगे।
साहब थोड़ी देर रुके और उसकी तरफ प्रश्नवाचक दृष्टि से देखा।
सुगनाराम उर्फ अगनाराम जाट के पास स्वीकार करने के सिवा कोई चारा न था।उसकी इच्छा थी कि जाती बार अपनी बीवी और बच्चों से मिल ले।लेकिन इसकी भी इजाजत नहीं दी गई।
उसके पैर की लंगड़ाहट बनाने के लिए उसका आपरेशन किया गया।उसे खतना करके बाकायदा मुस्लिम बनाया गया और कुरान शरीफ की बेसिक ट्रेनिंग दी गई।मुसलमान के लिए क्या महत्वपूर्ण है क्या नहीं यह बताया गया।मृतक के बातचीत करने के तरीके के बारे में उन्हें कुछ मालूम न था।इसलिए इस बारे में उसे कुछ न बताया गया।
एक नियत दिन उसे बॉर्डर पार पाकिस्तान रेंजर्स को सौंप दिया गया।इससे पहले दोनों सरकारों के बीच पत्राचार हुआ था।उसकी पहचान स्थापित होने के बाद ही पाकिस्तान के अधिकारी उसे लेने को तैयार हुए।उसकी शहरी पत्नी उसकी पहचान करने और लिवाने के लिए बॉर्डर पर लाई गई थी।
उसका नाम जाहिदा हिना रखा गया था क्योंकि उसके पिता इसी नाम की कराची की मशहूर साहित्यिक हस्ती के प्रशंसक थे।उसने कराची यूनिवर्सिटी से बी ए तक की पढ़ाई की थी।लेकिन नसीब के खोट से उसकी जिस खानदानी आदमी से शादी हुई थी वह शराबी औऱ आवारा निकला।एक औरत पर वह मर मिटा था और बगैर शादी के ही उसके साथ रहता था।जब जी करता चला आता और उसके शरीर का उपभोग करके चला जाता।अपनी इंकम में से एक छदाम तो देना दूर उलटा बहाना बना के उसी की कमाई में से कुछ रकम वसूल करके चला जाता और महीनों तक शक्ल न दिखाता।और वह फरमाबरदार बीवी के तरह उसके सारे ऐबों पर पर्दा डाल उसकी हर मुमकिन खिदमत कर रही थी।करती भी रहती लेकिन उसने उसकी क़ुरबानी की कोई कद्र न की और उस रखैल के कहने पर उसे तलाक दे दिया।जाहिदा ने चैन की सांस ली।ऐसे आदमी से पीछा छूटा तो उसे अपने मुस्तकबिल की फिक्र हुई तो उसे यह बागड़ी पसंद आ गया।शादीशुदा होते हुए भी वह जवान और पढ़ी लिखी बीवी मिलने के रोमांच से भर गया और उससे शादी कर ली।उसकी पहली बीवी को कोई एतराज न था उसके हिसाब से मर्द का ऐसा करना बिल्कुल जायज था।क्योंकि उसका मजहब इसकी इजाजत देता है।शान को अपनी नई बीवी को कोई माहवारी खर्चा भी नहीं देना था कि वह खुद कमाती थी और कराची में खुद का फ्लैट भी था उसके पास।उसने शान से एक ही शर्त रखी थी कि वह उसके खानदानी घर जोकि गांव में था और जहाँ उसकी पहली बीवी का कब्जा था ,में जाकर रहने को कभी न कहेगा।
उसका ज्यादातर वक्त नौकरी करने और रिसाले,किताबें पढ़ने में गुजरता था।इस गतिविधि में तभी रुकावट आती थी जब शान घर आता था।लेकिन वह ड्राइवर था इसलिए दो रात से ज्यादा कभी न रुकता था।एक लड़की होने के बाद भी उसके रूटीन में कोई अंतर न आया था।
लेकिन वह अबके गया तो उसकी कोई खबर न लगी।फिर उसकी कम्पनी से खबर लगी कि वह गलती से उस पार चला गया था।भारतीय फौज ने उसका ट्रक उड़ा दिया था और उसके जिंदा बचने की कोई उम्मीद न बची थी।वह इसे अपने नसीब का खोट समझ कर खामोश हुई थी फिर उसे खबर मिली कि शान जिंदा है और पाकिस्तानी गवर्नमेंट उसे वापिस लाने का जतन कर रही है।
फिर वह रोज भी आ गया जब उसे अपने खाविंद शान को रिसीव करने के लिए बुलाया गया।जब उसने उसे देखा तो उसने उसकी आँखों में उसके लिए अजनबीपन महसूस किया
वह पहले के मुकाबले कमजोर भी दिख रहा था और बड़ा चुपचाप था।शायद भारती फौजियों के जुल्मों जबर का असर था।इसलिए उसके चेहरे पर लाली की बजाय अजीब सा पीलापन था।
पाकिस्तानी अफसरों ने उससे दो घंटे पूछताछ की लेकिन वह उसके साथ ही मौजूद थी।उसने बहुत कम सवालों का तफसील में जवाब दिया।बस दो तीन वाक्यों में उस दिन का वाक्या बयान किया।दुश्मन फौजियों का जिक्र थोड़ा नफरत से किया।पाकिस्तानी अफसर मुतासिर हुए या नहीं लेकिन उसे अपने खाविंद को ले जाने की इजाज़त मिल गई।
जाहिदा ने 16डाउन कराची एक्सप्रेस में लाहौर से कराची की दो ए सी स्लीपर क्लास की टिकट बुक करवाई थी।ट्रैन में चढ़कर सुगनाराम उर्फ अगनाराम उर्फ शाने जहान ने देखा कि ट्रेन अंदर से कमोबेश इंडिया जैसी थी लेकिन बाहर से इस्लामी ट्रैन लग रही थी।ट्रैन में सर्व किया जाने वाला खाना नॉन वेज था उसके पास पता करने का कोई साधन न था कि इसमें बीफ मिलाया गया है या नहीं।उसके लिंग की ताजी कटी चमड़ी भी दर्द कर रही थी इसलिए उसने जाहिदा से सिरदर्द का बहाना करके एक टेबलेट ले ली थी और सोने का उपक्रम करने लगा।जाहिदा ने उसके माथे पर हाथ रखा और बोली,"हरारत तो नहीं है।"जाहिदा का हाथ उसकी बीवी जैसा ही नरम था।लेकिन उसकी कमर का घेरा ज्यादा चौड़ा था और उसका वक्षस्थल भी ऊंचा था।लेकिन उसे फर्क न पड़ता था।फौज की नौकरी में वह कई बाजारू औरतों के साथ सो चुका था और उसे औरतें बहुत पहले से ही जरूरत का सामान भर ही लगती थी।जाहिदा अब लेटकर कोई उर्दू की किताब पढ़ रही थी जिसका शीर्षक छोटा सा था जिसे उसने आसानी से पढ़ लिया,"बहाओ!"लेकिन लेखक के नाम का पहला अक्षर उसे समझ न आया।
लेकिन आखिरी शब्द जो शायद लेखक का सरनेम था उसने पढ़ लिया,"तरार"।जाहिदा पढ़ने में मशगूल थी इसलिए उसने करवट बदल ली और सोने की कोशिश करने लगा।
कोच में हलचल की आवाजें सुनकर उस की नींद उचट गई उसने देखा उसके सहयात्री फर्श पर चटाई बिछा रहे हैं और जाहिदा भी अपनी जगह पर नहीं है।
"क्या हुआ!"उसने सहयात्री से पूछा।
"अल्लाह के हुजूर में हाजरी लगाने का वक्त हुआ"मनोरंजक चेहरे वाले खूब काली दाढ़ी वाले व्यक्ति ने मुस्करा कर कहा।
एक बुजुर्ग लेकिन सख्त चेहरे वाली औरत बोली,"फज्र की नमाज का वेला हो गया है।उठ मासूम इंसान!उसके हुजूर में बैठकर अपने गुनाह बख्शवा ले।क्यों उसकी नजर में कुफ्र का हिस्सेदार बनता है।"
उसे आते वक़्त दी गई ट्रेनिंग याद आई।वह वजू करने बाथरूम की तरफ गया।अच्छी तरह से कुहनी तक हाथ धोकर,मुँह पर पानी डाल,कुल्ला करके उसने टखनों तक पानी डाला तो मन में खुद को पवित्र महसूस करने लगा।जब वह वापिस आया तब तक जाहिदा चटाई जिसे ये लोग मुसल्ला कहते हैं ,बिछा चुकी थी।वह अपने मुसल्ले पर घुटने के बल झुका तो उसका घुटना मुड़ा नहीं उसकी 'सी' निकल गई।जाहिदा ने अचंभे से उसको मुड़ कर देखा और बोली,"आराम से!"
नमाज पढ़कर जब वह सीट पर आया तो जाहिदा हौले से बोली,"तुम्हें तो उसकी जात पर हल्का सा भी यकीन नहीं था।अच्छा लगा कि मुसीबत पड़ने पर तुम्हें उसके करिश्मे पर भरोसा गया है।अगर पहले ही भरोसा कर लेते तो मुसीबत ही नहीं आती।"
तो क्या शान धार्मिक व्यक्ति नहीं था।उसकी ट्रेनिंग बेकार गई।शुक्र है इस औरत को उस पर शक नहीं हुआ।लेकिन इस पर ध्यान देने की जरूरत है।वरना कोई भी अनहोनी हो सकती है।
कराची उतर कर जब वे दोनों घर की तरफ एक टैक्सी में बढ़े तो वह महानगर उसे मुंबई से कुछ अलग न दिखाई दिया।वही बेतरतीब भीड़ और ट्रैफिक!वही जीवन की आपाधापी में भागते रुकते लोग।उसे न हवा में परायेपन की गंध महसूस हुई न उसे कोई संभावित खतरा दिखाई दिया।फौज की नौकरी में सालों साल खतरनाक जगहों पर नौकरी करते हुए उसने संकट में सहजता के अभिनय और संयम का महत्च सीख लिया था और सामान्य होने का अभिनय करते करते शत्रु को पहचान कर उचित समय पर उस पर टूट पड़ने औऱ उसे जड़ से उखाड़ फेंकने में महारत भी हासिल की थी।वह जब निश्चिंत था कि उसका छदम वेश कोई न जानेगा तभी उसका भेद जाहिर हो गया था और उस विकट परिस्थिति से पार पाने के लिए इस दोहरी गंभीर परिस्थिति में फंस गया था।क्या वह इस व्यूह रचना से सकुशल निकल पायेगा या इसमें फंस कर रह जाएगा।
उसने ऐसा सोचते हुए जाहिदा की तरफ देखा जो अभी भी उस किताब में उलझी हुई थी।उसके गोरे चेहरे पर अजब सा रोमांच का भाव था।किताब में वर्णित किसी घटना में वह डूबी हुई थी और अपने साथ घटी घटना से अनजान थी।जाहिदा ने उसे गौर से देखते देख लिया था और उससे चिपट गई थी।फिर ड्राइवर को रियर व्यू मिरर में देखते पाकर थोड़ा हटकर बैन गयी थी।
शाम होते होते दोनों एक दूसरे से थोड़े रिलैक्स हो गए थे।बच्ची नानी के यहाँ थी। उसे पता भी नहीं था कि उसकी कोई बच्ची है।लेकिन घर में फोटो वगैरह देखकर आयडिया लगा लिया कि कोई औलाद भी है।
फ्लैट पंद्रह माला बिल्डिंग में नौंवी मंजिल पर था।बालकनी से समुद्र का बढ़िया व्यू दिखता था और इतनी ऊंचाई पर खड़े होने के बावजूद नमकीन पानी की गंध आती थी।थोड़ी देर वे बालकनी में खड़े रहे।जाहिदा उसके शरीर के निकट से निकट आना चाहती थी।वह भी कोई शक न हो इसलिए न विरोध ही कर रहा था न उकसावा दे रहा था।
खाने में क्या बनना चाहिए।वह क्या बताता।मुसलमान ज्यादातर मांसभक्षण करते हैं।फौज में रहने की वजह से वह कुछ भी खा लेता है बस थोड़ा मेहनत और सलीके से पका हो।लेकिन यहाँ क्या कहा जा सकता है।थोड़ा ज्यादा इसरार होने पर वह बोला,"मटन का कुछ भी पका लो।लेकिन तीखा कम हो।"
"क्या हुआ!आपको तो तीखा पसंद था।"
"आज कुछ चेंज को जी चाहता है।"कहकर उसने बात संभाली।
वह किचन में मशगूल हो गई तो वह फिर से बालकनी में जाकर खड़ा हो गया।दरवाजे पर कॉलबेल बजी तो उसने किचन में खड़े खड़े ही पुकार
लगाई,"दरवाजा खोलना जरा!गीत होगी।"
अब ये गीत कौन है।दरवाजा खोला था तो कोई तीन चार साल की मासूम सी बच्ची दरवाजे पर खड़ी थी,पीछे कोई औरत थी।बच्ची भरी नाक और कफ रुंधे गले से बोली,"अम्मी कहाँ है!"
और अंदर भाग ली।औरत ने उसे सलाम किया और दरवाजे से ही लौट गई।दरवाजा बंद करके वह अंदर आया।बच्ची किचन से भागी भागी बाहर आई और सब कमरों में घूम गई और फिर से किचन में घुस कर बोली,"कहाँ है अब्बू!आप कह रही थी अब्बू आये हैं।"
औरत की हँसी की आवाज सुनाई दी।लड़की उसकी उँगली पकड़े पकड़े बाहर आई,"यह तो रहे अब्बू!अपने अब्बू को नहीं पहचानती!"
बच्ची अंसमजस में खड़ी रही। उसने उसे गोद मे लेने के लिए हाथ बढ़ाया तो बच्ची ज्यादा जोर से अपनी अम्मी की टाँगों से चिपट गई और उसके पास न आई।
मटन वाकई शानदार बना था।
पता नहीं ये लोग इस डिश को क्या नाम देते होंगे।खूब सारे मसाले,देसी घी,नींबू और दही की खुशबू उसे बहुत भाई,साथ में नान थे।इसलिए वह पेटभर खा गया।इस के साथ वह व्हिस्की का एक पेग भी लेता था।लेकिन यहाँ उसने रहने दिया।क्या पता शान व्हिस्की पीता हो या नहीं।उसने सुना था कि मुसलमान शराब नहीं पीते क्योंकि उनके लिए यह हराम है।लेकिन उसने इंडिया में मुस्लिम लोगों को पीते भी देखा था।लेकिन वह यहाँ रिस्क नहीं ले सकता था।
बच्ची सो गई थी।इसलिए वे थोड़ी देर बालकनी में बैठे रोशनियों को देखते रहे और लहरों का संगीत सुनते रहे।फिर बैडरूम में आ गए।निहायत ही नरम बिस्तर था।जब जाहिदा बोली,"कपड़े उतारिये आपकी थोड़ी मालिश कर दूं।"तो वह थोड़ा सकुचा गया।
लेकिन उसने मना न किया।दस पंद्रह मिनट तक वह मालिश करती रही फिर उससे लिपट गई।
"आपकी आदतों में बड़ी तब्दीली देख रही हूँ।पहले तो आपके दिमाग में हमेशा सेक्स भरा रहता था।आज इतने ठंडे क्यों हो,पत्थर की मानिंद!"वह उसका लाड़ करते हुए बोली।
अब वह क्या जवाब देता।बोला,
"तुम जानती हो मैं मौत के मुँह से वापिस आया हूँ।मुझे नार्मल होने में थोड़ा वक्त लगेगा।"
जाहिदा उसका जवाब सुनकर संतुष्ट हो गई।लेकिन अगले ही पल उसने फिर प्रश्न किया,"लेकिन गीत ने आपको क्यों नहीं पहचाना!पहले तो वह आते ही आपके शानों पर सवार हो जाती थी।"
"बच्चे हैं कुछ भी रियेक्ट करते हैं।"वह लेट गया था।जाहिदा उसका सिर दबा रही थी।
सिर दबाते उसका हाथ खोपड़ी में एक जगह रुक गया।थोड़ी देर वह कुछ तलाश करती रही।फिर बोली,"अरे ,यहाँ एक चिब था।कहाँ गया?"
सुगनाराम उर्फ़ अगनाराम उर्फ़ शान को मालूम न था चिब किस बला का नाम है।
उसने जाहिदा का हाथ परे हटा दिया और करवट बदल कर सोने की एक्टिंग करने लगा।
"जान!"
"हूँ!"
"आपको मरी की याद है!"
"क्या?"
मरी में समंदर किनारे मैंने आपसे कहा था कि मैं आपको तब भी पहचान लूंगी गर आप शक्ल बदल कर आ जाएं।आप किसी जानवर की जून में आ जाएं।आप किसी बुत के भेस में आ जाएं!"
"????"
"जवाब दो!"
"क्या जवाब दूँ!"
"यही कि मरी में कोई समंदर नहीं है।दरिया है और मैं शाने जहान नहीं हूँ।कोई बहुरूपिया हूँ।"
सुगनाराम ने आंखें खोली।
जाहिदा ने उसे जकड़ लिया
"तुम कौन हो अजनबी!"वह बड़ी जोर से बोली,"और मेरा शान कहाँ है!"
"क्या बेवकूफी की बातें कर रही हो।छोड़ो मुझे!"सुगनाराम ने उठने की कोशिश की।लेकिन उसकी जकड़ सख्त थी।
"बेवकूफी!दुरुस्त कहा,मैं बेवकूफ ही तो हूँ।तुम एक साढ़े तीन साल की बच्ची को बेवकूफ नहीं बना पाए।और तुमने मुझे बेवकूफ बना दिया।मुझे क्या,तुमने पाकिस्तानी अफसरान को बेवकूफ बना दिया!"
वह उसे छोड़कर उठ खड़ी हुई और बंद दरवाजे को खोलने के लिए आगे बढ़ी।बस यही गलती उसने कर दी।सुगनाराम,ट्रेंड भारतीय सैनिक बाज की तरह उस पर झपटा और उसे एक चिड़िया की तरह अपने शिकंजे में जकड़ा और उसे प्रतिक्रिया देने का कोई अवसर दिए बगैर बालकनी से नौ मंजिल नीचे फेंक दिया।थोड़ी देर शांति छाई रही।लहरों के शोर में उसके नीचे गिरने की आवाज भी दब गई और वह बिस्तर पर आकर लेट गया।उसे बड़े जोर से नींद आ रही थी।
दूसरे कमरे में वह साढ़े तीन साल की जुकाम और कफ़ की मरीज बच्ची अचानक उठ बैठी और रोने लगी।रोते रोते उसे खांसी आ गयी औऱ उसने ढेर सारा कफ़ अपने बिस्तर पर उगल दिया।
लगातार बजती बेल की वजह से वह उठ खड़ा हुआ।नींद की झोंक में दीवारों से बचते और फर्नीचर से टकराते हुए वह दरवाजे तक पहुंचा और दरवाजा खोल दिया।सामने टहरी टी शर्ट और खाकी पेंट में दो जवान खड़े थे।उनके पीछे तीन शख्स शायद पड़ोसी होंगे।सिंध पुलिस के ही थे उनकी वर्दी और जूते और बेल्ट में खुंसी रिवॉल्वर चुगली कर रहे थे।ऐसे ही पुलिस वाले उसने कल रास्ते में देखे थे।दोनों के चेहरे पर दाढ़ी थी।और आंखों में सख्ती ।
उसकी नींद भारी आंखों को देख वे अचंभे में पड़ गए थे।अंदर आकर इधर उधर देखते हुए वे शख्स खड़े रहे और दूसरा सारे कमरों का चक्कर लगाकर आया।
"खाँ साहब!बच्ची उधर बेहोश पड़ी है।"वह पुलिस वाला आकर दूसरे पुलिस वाले से बोला।
खाँ साहब नाम का पुलिस वाला उससे मुख़ातिब हुआ,"आपको मालूम भी है रात में कब आपकी बीवी ने बालकनी से कूदकर जान दे दी।बच्ची उधर बेहोश पड़ी है।आप क्या नशा करके सोते हैं।"
यह सुनकर वह यथासंभव अनजान बनने की एक्टिंग करते हुए वहीं सोफे पर बैठ गया।लेकिन अब उसे अपनी एक्टिंग पर भरोसा न था।रात जाहिदा ने उसका आत्मविश्वास हवा कर दिया था।अब तो पुलिस जो करे सो करे।लेकिन पुलिस को उसकी एक्टिंग पर ध्यान देने की फुरसत न थी।डेडबॉडी मोर्चरी भिजवानी थी।इसलिए शिनाख्त जरूरी थी।बच्ची को सोसाइटी की एक औरत के हवाले करके और डॉक्टर को बुलाने की हिदायत करके वे उसे लेकर नीचे आये।लाश स्ट्रेचर पर थी।उस पर कपड़ा डाल रखा था।उसके। मुँह से कपड़ा हटाया तो उसने देखा उसके चेहरे पर कोई खरोंच या चोट न थी।कितनी खूबसूरत औरत थी अगर होशियारी न करती तो अभी तक जिंदा होती।उसने बहुत देर तक गौर से देखने के बाद मुँह फेर लिया।
लाश फिर से ढक दी गई।तभी एक अधेड़ औरत एक नौजवान शख्स के साथ रोती हुई आई और उसके चिपट गई।"शान बेटे!हम तो तबाह ओ बर्बाद हो गये।हाय मेरी बच्ची!अल्लाह ने तेरे नसीब में सुख न लिखा।"और जोर जोर से रोने लगा।सुगनाराम ने उसकी पीठ पर अपना हाथ रखा और उसे जोर से अपने सीने से सटा लिया।औरत हिलक हिलक कर रोने लगी।साथ आया शख्स आँसू पोंछते हुए ,"अम्मी बस करें!अम्मी बस करें!"मुँह बिगाड़कर रोने लगा।अपनी अम्मी को छोड़कर दीवार पकड़ कर खड़ा होकर उसने स्वर ऊंचा कर लिया।बीच बीच में उसका स्वर ग़ायब हो जाता और फिर दुगने वेग से लौट आता।अपने फ़ौजी जीवन में उसने बहुत लाशें देखी थी और उन पर बहुत से रोने वाले।वह वहाँ निर्द्वन्द्व ड्यूटी देता खड़ा रहा था।लेकिन यहाँ वह सीन का पार्ट था।उसे खड़े खड़े ध्यान आया कि उसके गाँव में उसकी डेडबॉडी पहुंचने पर उसकी पत्नी और बच्चे भी इसी तरह से रोये होंगे।उसके सामने अपनी रोती हुई माँ का चेहरा घूम गया।और वह भी जोर जोर से रोने लगा।उसकी रुलाई रुक न रही थी।कोई उसकी पीठ थपथपा कर कह रहा था,"मर्द बन!मर्द बन!!तहम्मल रख।अल्लाह की जात पर भरोसा रख।वह सब ठीक करेगा।"
लेकिन उसका रुदन न रुका।उसके रुदन का यह फायदा हुआ कि पुलिस को उसकी बेगुनाही का यकीन हो गया।उन्होंने ज्यादा पूछताछ न की।डेडबॉडी पोस्टमार्टम कर बाद सीधे कब्रिस्तान पहुंचा दी गई और शाम ढलने से पहले सुपुर्द ए ख़ाक कर दी गई।
: उनका फ्लैट बंद पड़ा था।शान की ससुराल या जाहिदा के मायके का घर गुलशने इक़बाल कॉलोनी में था और मातमपुर्सी वाले लोग वहीं आ जा रहे थे।
: एक बुर्का परस्त औरत और उसके साथ बारह तेरह साल का सेहतमंद लड़का सामने के दरवाजे से उसे देखते हुए आगे बढ़ रहे थे।किसी औरत ने उस औरत से कुछ कहा और वह औरतों की साइड में चली गई।लड़का उसकी तरफ आया और उसके नजदीक फर्श पर बैठ गया।थोड़ी देर मुँह पर हाथ रखकर खामोश बैठा रहा और फिर बोला," अब्बा जी!आप ज्यादा परेशान न हों।आप परेशान होंगे तो अम्मी भी परेशान होंगी।अम्मी आपको नई और पहले से भी ज्यादा खूबसूरत बेग़म ला देंगी।वह रास्ते में कह रही थी।"
उस लड़के की बात सुनकर वह मुस्कराया।लेकिन पीछे कोई हौले से हंसा।कोई" श श श",खामोश भी बोला।
थोड़ी देर बाद उस औरत ने लड़के को इशारे से बुलाया।लड़का अपनीअम्मी की बात सुनकर वापिस आया।
वह उससे बोला,"अब्बा जी!अम्मी आपको बाहिर बुला रही हैं।"
यह सुनकर वह हौले से उठा और आंगन में चला गया।औरत पीछे से आई,उसने बुरका उठाया तो सुगनाराम ने देखा कि यह औरत भी बला की खूबसूरत और मोटी थी।उसके चेहरे पर गज़ब की लाली थी और उसका शरीर भी कसावट लिए था।गाँव के खान पान और आबो हवा का असर उस पर साफ साफ दिख रहा था।
"मेरे सरताज!"वह नाटकीय आवाज में बोली।मुझे मालूम है आप मायूस और माजूर है।जो हादसा आपके दिल पर गुजरा है।जो गम आप पर आन पड़ा है उसे सोचती हूँ तो कलेजा मुँह को आता है।आप जरा भी परेशान न हों।जाहिदा बेगम से भी दुगनी खूबसूरत, जहीन और पढ़ी लिखी लड़की मेरे जेहन में हैं।आप कहें तो कल ही आपका निकाह उससे पढ़वा दूं।"कहती कहती उसने उसके मुख की तरफ देखा और उसे नाराज देखकर मुँह पर ताला जड़ लिया।वह अपने बच्चे को लेकर चुपचाप गेट से बाहर चली गई।वह मुड़ने को ही था कि वही लड़का दौड़ता हुआ वापिस आया और उससे पूछा,"अम्मी पूछ रही है कि आप घर कब आओगे "
"अगले हफ्ते!"वह लड़के के सिर पर प्यार से हाथ फिराते हुए बोला,"इंशाअल्लाह!"
सिर पर हाथ फेरने से वह लड़का अभिभूत हो गया।
"अब्बा एक सौ रुपये देना!पतंग और मांझा लेना है।अम्मी देती नहीं है।"
सुगनाराम उस की बात सुनकर भावुक हो गया और उसे सौ रुपये के दो नोट दे दिए।जाहिदा की मौत के बाद की रस्मों में सुगनाराम ने देखा कहीं चले जाओ चीजे थोड़ी बहुत घट बढ़ के साथ वही रहती हैं।इस बीच उसे शान की ट्रक ट्रांसपोर्ट कंपनी से एक दो बार बुलावा भी आया लेकिन उसने बीवी की मर्ग का बहाना बनाकर अपनी असमर्थता प्रदर्शित कर दी।वह पहले गांव जाना चाहता था कि अंदाजा लगा सके कि शान कैसा आदमी था।उसकी आदतें क्या क्या थी।ताकि पहले जैसी किसी मुसीबत में न पड़े।क्योंकि उसके दुश्मन देश में जिंदा रहने और मिशन में कामयाब होने के लिए जरूरी था कि उसके पास सारी जानकारी हो।
शान का गाँव कराची से कोई बीस मील दूर एक लिंक रोड पर था।
गांव को कराची एरिया में गोठ कहा जाता है।कराची से बाहर निकलते ही उर्दू भाषी कम होते जाते हैं और सिंधी भाषी बढ़ते जाते हैं।गनीमत है कि हर जगह लोग उर्दू समझ लेते हैं।
उसने बस सर्विसेज की नार्मल बस ली और गंतव्य की तरफ चल दिया।शहर की भीड़ भाड़ से निकलकर उसे सकूं महसूस हुआ।थोड़ी देर में ही उसका गाँव आ गया।बड़ा बेटा जो कराची आया था उसे लिवाने आया था वरना अपना ही घर खोजने पूछने की परेशानी से दो चार होना पड़ता।
उसका गाँव का घर बहुत बड़ा था।किसी सिंधी हिंदू व्यापारी का छोड़ा हुआ घर उसके खानदान को अलॉट हुआ था जब वे ईस्ट पंजाब के हिसार जिले के अपने गाँव को छोड़कर पाकिस्तान आ गए थे।इतना बड़ा खुला आँगन था।उस आँगन को पार कर के दस दस कमरे दोनों तरफ थे पीछे की तरफ भैंस,गाय और बकरियों को रखने की जगह थी।
हर काम के लिए नौकर थे।उसे समझ नहीं आया कि ऐसा आदमी ट्रक ड्राइवर क्यों था।क्या वह गाँव से दूर रहने का बहाना ढूंढा करता था।लेकिन अब उसके रूप में उसका हमशक्ल सुगनाराम था जिसे गाँव में रहकर खेती करने के मुकाबले फौज की नौकरी करना ज्यादा अच्छा लगा था।
शान की पहली पत्नी बिल्कुल ही सीधी साधी औरत थी।अक्सर घर के अंदर या पीछे की तरफ रहती।न ज्यादा जवाब न सवाल!रात को उसका बिस्तर अंदर लगा रहता।एक नौकर पैर औऱ सिर दबाने की पेशकश करता।वह मना करता तो थोड़ी देर में बीवी आ जाती।उसके कहे बगैर बैठती भी नहीं थी।न उसे शक़ हुआ कि वह उसका पति नहीं कोई और है।न ही वह शक़ करना जानती थी।उसे हर चीज पर यकीन था,हर बात पर भरोसा था।
इसलिए सुगनाराम गाँव में घूम घाम कर शान की आदतों के बारे में जानकारी इकठी कर सका।जानकारी जो उसके काम आए।उसकी हिम्मत इतनी बढ़ गई कि वह लोकल बैंक में जाकर पैसे भी निकलवा आया।दस्तखत करने के लिए उसने मैनेजर से नमूना दस्तखत दिखाने की रिक्वेस्ट कि तो मैनेजर ने दिखा दिए।
अब उसे अपने मिशन पर जाने और उसमें कामयाब होने में कोई हिचकिचाहट नहीं थी।
अगले आदेश की प्रतीक्षा में बैठे बैठे बहुत दिन हो गये थे इसलिए वह कंपनी का टूक लेकर एक फेरा लगाने की सोचने लगा।इसलिए कराची आकर वह सीधा कंपनी के आफिस गया।मालिकों ने बताया कि कोई सीक्रेट मिशन सर अंजाम दिया जाना है इसलिए उसे बंदूक चलाने और बम फेंकने आदि की ट्रेनिंग दी जाएगी।दो दिन बाद वह सफर करता हुआ पिंडी पहुंच गया।इससे पहले वह जाहिदा की बीमार बेटी से मिलता आया था ताकि ससुराल वालों को कोई शुब्हा न हो।पिंडी का पूरा नाम रावलपिंडी है और यह पाकिस्तान मिल्ट्री का हेडक्वार्टर है।असल में हेडक्वार्टर जिस जगह पर है उसे चकलाला कहते हैं।रावलपिंडी और पाकिस्तान की राजधानी इस्लामाबाद दोनों जुड़े हए शहर हैं।
आप बता नहीं सकते कि इस्लामाबाद कहाँ खत्म होता है और रावलपिंडी कहाँ से शुरू होता है।रावलपिंडी स्टेशन पर उतर कर सुगनाराम ज्यादा सावधानी से आगे बढ़ा।मिल्ट्री के अफसर सामान्य लोगों के मुकाबले ज्यादा अनुभवी और प्रक्षिशित होते हैं।इसलिए ख़तरा कई गुना ज्यादा था।
जिस अफसर को उसे रिपोर्ट करना था उसका नाम ख़्वाजा पीरबख्श था।वह मोटी गुद्दी वाला फौजी सख्तजान दिखता था लेकिन था गज़ब का हंसोड़ और चुटकुलेबाज!उसने भारतीय हिन्दू फौजियों के दाल पीने और पापड़ खाकर लड़ाई लड़ने के कई फर्जी किस्से सुनाए जिनको सुनकर उसे हँसना भी पड़ा।वह अपने आप को पंजाबी खत्री बताता था और इस तरह बोलता था जैसे उसके शहर के रिफ्यूजी बोलते थे।
उसे एक कमरा जिसमें अटैच्ड बाथरूम था तिमंजिला होस्टल में ग्राउंड फ्लोर पर दिया गया।मेस पास में ही था और उसे शाकाहारी खाना ढूंढने में बड़ी तकलीफ हुई।लेकिन जो भी मिला उसने डटकर खाया।
अगले दिन से उसकी ट्रेनिंग शुरू हो गई।सब तरह की रिवाल्वर और पिस्तौल लोड अनलोड करना, सभी राइफल और उनकी क्वालिटी इत्यादि सब सिखाया जा रहा था।वह यह जानकर हैरान था कि पाकिस्तानी हथियार भारतीय हथियारों के मुकाबले उच्च कोटि का था और साज संभाल भी काफी थी।इस की वजह उसे यह समझ आयी कि पाकिस्तान में मिलिट्री सिविलियन एडमिनिस्ट्रेशन की मोहताज नहीं है इसलिए उसको बजट की दिक्कत नहीं है।
: सात दिन की ट्रेनिंग में उसने अपने आप को भारतीय सैनिक से पाकिस्तानी सैनिक में ढाल लिया।लगभग सारे हथियारों की जानकारी हासिल कर ली,बस टैंक रह गया।उसे परेशानी सिर्फ उर्दू को लेकर हुई लेकिन उसने देखा पाक आर्मी भी अंग्रेजी को इज्जत देने वाला संगठन है।इसलिए जो चीज उर्दू में लिखी थी वो इंग्लिश में भी लिखी थी।
उसकी प्रोग्रेस देखकर आर्मी के ट्रेनर खुश थे और कह रहे थे कि अगर सही वक्त पर एनलिस्ट हुआ होता तो काकुल में फर्स्ट आया होता।उसे पता चला कि इनका मेन ट्रेनिंग सेंटर एबटाबाद के पास काकुल में है।उसने मुस्करा कर जवाब दिया,"जो वक्त होता है वह हमेशा सही होता है।बंदा ही थोड़ा इधर उधर होता है।"
बीच बीच में उसे लगा कि उसकी जासूसी हो रही है।उसका दिल कर रहा था कि जासूस को पकड़े लेकिन कुछ सोचकर उसने यह काम आखिरी दिन पर छोड़ दिया।आखिरी दिन जब वह नहा धोकर नाश्ता करने के लिए मेस में घुसा उसे लगा कि कोई उसे इशारे से बुला रहा है।उसने उस तरफ नहीं देखा तो वह व्यक्ति उसकी मेज तक आया और अपनी पहचान बताई,"मैं मेजर शकूर सिद्दीकी ठठा का रहने वाला हूँ।सुना है तुम भी सिंध से हो।"
"जी जनाब!"उसने खड़े होकर सैल्युट किया और उस व्यक्ति की तरफ देखा।मोटी और हिलती नाक वाला थका हुआ सा आदमी फौजी कहीं से नहीं लग रहा था।उसे क्या लेना।
"सुना है तुम गलती से उस पार चले गए थे?"
"जी जनाब!"
"और अब अपनी मर्जी से उस पार जाने की तैयारी में हो।"
"मैं समझा नहीं जनाब!"
"ये जो बंदूक चलाने की ट्रेनिंग तुम ले रहे हो।बम फेंकना सीख रहे हो।य हुनर क्या तुम शादी में इस्तेमाल करोगे?"सुगनाराम हैरान हुआ कि यह आदमी इतना तल्ख क्यों है,"तुम्हें इंसान से दहशतगर्द बनाया जा रहा है बरखुरदार!"
"खिदमते वतन के लिए सब कुछ जायज है जनाब!वतन पर मर मिटने का मौका नसीब वालों को मिलता है जनाब!"उसने फ़ौजी ट्रेनिंग में सीखा हुआ रटा रटाया वाक्य दोहरा दिया।
उसकी बात को सुनकर मेजर शकूर सिद्दीकी बहुत जोर से हंसा।'बेहतर!"
"वतनपरस्ती का जज्बा
बड़ी अच्छी चीज है मगर यह हमारा वतन नहीं है।यह इस्लामी नेशन नहीं है।यह पंजाबी नेशन है।"
"सिंध,बलूच और कश्मीर तो पंजाब की कॉलोनी हैं।जैसे इंडिया ग्रेट ब्रिटेन की कॉलोनी था।रिसोर्सेज हमारे,मेहनत हमारी और तरक्की पंजाब की।"
"आपको ऐसी बातें करते डर नहीं लगता ?"सुगनाराम उर्फ शान से सवाल किया।
"पहले लगता था।अब नहीं लगता।अब लगता है कि हर मुसलमान का फर्ज है कि हक़ के लिए आवाज उठाओ।"
: "आप मुसलमान से ज्यादा कम्युनिस्ट लग रहे हैं मुझको।मैं गरीब आदमी हूँ।मुझे बच्चे पालने हैं।"वह बोला"मुझे तो बक्शो आप!"
दहशतगर्दी करने से कौनसे बच्चे पल जाने हैं।हद से हद एक साल में तुम किसी गोली का शिकार हो जाओगे।ये लोग तुम्हारी जगह नया मिट्टी का बावा तलाश कर लेंगें।इनका कारोबार चलता रहेगा।इनके बच्चे आईवी लीग और सैंड्हर्स्ट में पढ़ते रहेंगे।इनकी कोठियां इस्लामाबाद,क्लिफ्टन और लंदन में बनती रहेंगी।तुम्हारी औलादे गाँव गाँव की ख़ाक छानती फिरेंगी।"उस की बातें सुनकर सुगनाराम को शान के बच्चे याद आ गए,खासकर सबसे बड़ा लड़का जिससे उसे लगाव हो गया था।
[05/11, 6:49 p.m.] Satish Sardana: "हाँ!यह बात तो दुरुस्त कह रहे हैं आप!हिंदुस्तान पाकिस्तान की दुश्मनी में हमारे अफसरान ने अपने घर भर लिए हैं।लेकिन ज़नाब करा क्या जा सकता है।"
[05/11, 6:59 p.m.] Satish Sardana: मेजर शकूर उसके कन्विंस होने पर खुश हो गया।
"ठीक है बरखुरदार!कल जब यहाँ से फ्री हो जाओ तो मेरे से मिलकर जाना।"उसने अपना कार्ड उसकी जेब में हौले से सरका दिया और तेजी से वहाँ से चला गया।
उसके जाने के बाद मेस का मैनेजर उसके पास आया और उससे मुखातिब हुआ,इसके मुँह मत लगना साहब!इसका तो अंकल सिंध में मिनिस्टर है इस वजह से फौज इसे झेल रही है।वरना कबका इसका कोर्ट मार्शल हो गया होता।आप का कोई वली वारिस नहीं है।आप इससे दो कदम दूर रहोगे तो सलामत रहोगे।"यह बात सुनकर वह मुस्करा कर बोला,"फिक्र मत कीजिए जनाब!दूध की बोतल छोड़े मुझे बड़े साल हो गए।हाउ आ जायेगा ऐसा कहने से तो अपने बचपन में भी नहीं डरता था।"
यह सुनकर मेस का मैनेजर हँसता हुआ चला गया।
ट्रेनिंग खत्म हो गई थी।अब उसे बहावलपुर जाना था।
[05/11, 7:48 p.m.] Satish Sardana: शाम को जब वह अफसरों से विदा लेकर,दुआ सलाम कर बैग वगैरह पैक करने ले लिए अपने कमरे में आया तो उसने एक चिट्ठी को अपने बैग की तलहटी में पाया
चिठी हिंदी में लिखी थी इससे ही स्पष्ट था कि उसे भारत से भेजा गया है।उस पर इतना ही लिखा था।,"बहावलपुर में मिलेंगे!राम राम!!"
उसने चिठी फाड़ दी।फिर न जाने क्या सोचकर निगल ली और एक गिलास पानी पी लिया। उसे लगा कि पर्दे के पीछे से एक साया हटा और ओझल हो गया।लेकिन वह उसे देखने न गया और बैग उठाकर निकल गया।रावलपिंडी सेंट्रल बस स्टैंड पास ही था।इसके बावजूद वह एक टैक्सी पकड़कर इस्लामाबाद चला गया।इस्लामाबाद पहुंच कर उसने अपने संपर्क को फोन किया।एक नौजवान उसे वहां से ले गया।पंद्रह मिनट बाद वे एक बंगले में घुसे।बंगले के ड्राइंग रूम में बहुत सी रशियन लड़कियां बैठी थी।नौजवान उसके बगल में चुपचाप खड़ा हो गया।उसने एक भरे बदन वाली लड़की पसंद की और उसे लेकर एक कमरे में चला गया।दो घंटे बाद वह वहाँ से निकला और रावलपिंडी बस स्टैंड के लिए टैक्सी पकड़ी।रावलपिंडी से बहावलपुर के लिए नाईट सर्विस बस एक घंटे बाद उपलब्ध थी।पास में ही एक रेस्तरां था।वहाँ जाकर उसने पिज़्ज़ा ऑर्डर किया।खाकर वह बस में आ बैठा।
बस चलने में अभी भी देर थी।
थोड़ी देर बाद एक व्यक्ति उसकी बगल की सीट पर आ बैठा।उसके हाथ में एक बैग था जो उसने उसकी गोदी में रख दिया।उसे बड़ा बदतमीज आदमी लगा।लेकिन वह कुछ सोचकर चुप रह गया।आदमी के हाथ में एक न्यूज़पेपर था।उसे वह पढ़ रहा था।सुगनाराम की निगाह न्यूज़पेपर के हैडिंग पर पड़ी।टाइम्स ऑफ इंडिया!यहाँ!उसने आदमी के चेहरे की तरफ़ देखा।उसकी यूनिट का मंगलाराम था।थोड़ी देर बाद बस चली तो उसने अखबार मोड़कर सीट के नीचे डाल दिया।बस की लाइट बंद हो गई तो वह आंखें बंद कर लेट गया और उसे नींद आ गई।जब उसकी नींद खुली तो उसने बगल की सीट की तरफ देखा।मंगलाराम जा चुका था।उसका बैग जो उसने उसकी गोद में रखा था अभी भी उसकी गोद में था।यह एक छोटा सा स्कूल बैग था।उसने उसकी चेन खोलकर हाथ अंदर किया।उसके हाथ रिवाल्वर की ठंडी नाल से जा टकराये।
ईशापुर की ब्राउनिंग 13 राउंड हाई पावर पिस्टल है,उसकी आँखों में चमक आ गई।इस पिस्टल को वह आँख बंद करके पहचान सकता है जिसके बारे में उसका मेजर लाम्बा कहा करता था,लड़की के जिस्म पर हाथ फेरने से ज्यादा आनंद हाई पावर पिस्टल पर फेरने से आता है।
पराये और दुश्मन देश में अचानक उसे सुरक्षा और शक्ति का अहसास हुआ।अंधेरे में ही उसने पिस्टल निकालकर अपने कुर्तें की जेब में डाल ली।एक किलो वजन की पिस्टल उतरते समय किसी से टकराएगी जरूर,यह खतरा भाँप कर उसने पिस्टल अपनी जुराब में खोंस ली।
बैग में एक अतिरिक्त मैगजीन, और एक बंद लिफाफा था।उसने बैग बंद कर दिया और सोने की कोशिश करने लगालेकिन उसकी आँखों में नींद नहीं थी।सुबह जब बस आकर बहावलपुर बस स्टेशन पर आकर लगी वह सावधानी से उठा।छोटा हैंडबैग बड़े बैग में डाला और हौले हौले कदम रखते हुए उतरा।
उसने इधर उधर देखा।एक हज्जाम की दुकान दिखी।वह उसमें चला गया।हर एक वर्कर के पास एक ग्राहक था।इसलिए वह बेंच पर बैठ गया।उसने बैग में से लिफाफा निकाला।उसमें एक कागज था।उसे खोल कर पढ़ा।उस पर सबसे नीचे कोने में एक छोटा सा फोटो प्रिंट था।उसके नीचे लिखा था,'KILMA'
उसने कागज का उतना ही हिस्सा फाड़ा और जेब में डाल लिया।फिर हज्जाम की तरफ देखा वह अपने काम में तल्लीन था।फिर वह खड़ा हो गया और पूछा,टाइम लगेगा क्या?
जी भाई जान!
वह हज्जाम की दुकान से बाहर निकल गया।अभी दो कदम ही चला था कि एक लड़का जो उसने अभी दुकान में देखा था दौड़ता हुआ आया और उसे आवाज लगाई, "भाई जान!आपका असलहा गिर गया।"
उसके हाथ में उसकी पिस्टल थी।वह काँप गया था लेकिन ऊपर से सामान्य बना रहा।
उसने पिस्टल लेकर शलवार में खोंस ली।पिस्टल का ठंडा बट उसे चुभ रहा था लेकिन उसके लिए यही बेहतर था।उसे चलते हूए ध्यान आया कि लड़के की आंखों में उसके लिए प्रशंसा के भाव थे।जरूर सलमान की फिल्मों का दीवाना होगा।
बाहर सड़क पर पहुंच कर एक बन मक्खन और अंडे की दुकान थी।साथ में गरमा गरम मलाई वाली चाय भी मिल रही थी।उसने तसल्ली से नाश्ता किया।सामने से मिल्ट्री की डिस्पोजल जीप में कोई स्पीकर पर गर्मजोशी से बोलता हुआ गुजरा।उसने साथ बैठे व्यक्ति को प्रश्नवाचक नजरों से देखा।
वह तो जैसे बताने को उतावला बैठा था,"आज मौलाना साहब आ रहे हैं तकरीर करने।कौम और मुल्क की भारी खिदमत कर रहे हैं मौलाना साहब!जो काम हुक्मरानों को करना चाहिए वो मौलाना साहब कर रहे हैं।और हुक्मरान क्या कर रहे हैं।काफिरों के गले मिल रहे हैं।और फिर हिमाकत तो देखो अपने आप को आका का ग़ुलाम और खिदमतगार समझते हैं।
: उसकी बोली में माझी का गहरा पुट था।उसने उससे प्रभावित होने का अभिनय किया।उसने उससे पूछा,आप माझा से हो भाईजान!
हाँ, वह खुश होते हूए बोला,और आप?
मैं बागड़ का हूँ।"
बागड़ के!वह और ज्यादा खुश हुआ।मेरी अम्मी बागड़ की है।इस लिहाज से तुम मेरे मामाजाद भाई हुए।"
वह जितना रिश्ता जोड़ने को उतावला था उससे ज्यादा यह जानकर उत्साहित हुआ कि उसे जे ई एम के हेडक्वार्टर जाना है।जे ई एम को जबसे अमरीका ने दहशतगर्द करार दिया था,मौलाना मसूद अख्तर इस इलाके में सेलेब्रिटी बन गए थे।वो जब इस शहर में आते थे उन्हें सुनने हजारों लोग आते थे।उन्होने लड़कों को ट्रेन करने के लिए यहाँ सेंटर बनाया था तबसे पाकिस्तान,अफ़ग़ान, कश्मीर और यहाँ तक यमन से भी लड़के ट्रेनिंग लेने आते रहते थे।उसे इंडियन आर्मी से इस मौलाना की हत्या करने का आदेश मिला था क्योंकि वह भारत के लिये बहुत बड़ा खतरा बनकर उभरा था।
: सुबह जो फोटो उस कागज़ में उसने देखा था वह इसी मौलाना का था ।नीचे लिखे संदेश KILMA का यही मतलब था किल मौलाना अख़्तर!
लेकिन कैसे?न कोई प्लान थी, न कोई एस्केप रुट!अगर वह बच गया तो दुगना खतरनाक और चौगुना सावधान हो जाएगा।
: दूसरे पाक आर्मी ने उसे मौलाना अख्तर के पास ट्रैन करके एक जिहादी बनाकर भेजा था किसी खतरनाक मिशन को सरअंजाम देने के लिए।इस बीच मौका लगा तो वह मौलाना को खत्म कर देगा।लेकिन उसे नहीं लगता था कि इससे इनको कोई फ़र्क पड़ेगा।इस मौलाना की जगह कोई और मौलाना ले लेगा।इससे बढ़िया तो अमेरिका करता है ड्रोन हमले करके ट्रेनिंग सेन्टर को नष्ट करता है ताकि जिहादियों की ट्रेनिंग पर फर्क पड़े।
: लेकिन वह तो अदना सा सैनिक है,फुट सोल्जर!उसका काम तो हुक्म बजा लाना है।
"अभी तो मौलाना साहब की तकरीर में वक़्त है।मेरे घर चलो और ग़ुस्ल वगैरह ले लो।"वह भी ज्यादा कुछ सोचे बगैर उसके साथ चल दिया।उसका घर आम देहाती घरों जैसा था।तबीयत से नहा कर वह बाहर निकला।उसने काला कुर्ता सलवार पहन लिया था।उसकी अम्मी ने उसके मैले कपड़े धुलने डाल दिये थे।उसकी पिस्टल उसके बैग के ऊपर रखी थी।
वह शख्स जिसका नाम अनवर था उसे देखते हुए बोला,पिस्टल तो इंडिया की लगती है।कहाँ से ली।"
"पाक आर्मी हेडक्वार्टर से!किसी इंडियन आर्मी मेन की डेड बॉडी से उतरी हुई।"
"बेहतर!"
"ख़ाक बेहतर!पाक आर्मी की पिस्टल देखो।उसके सामने तो कबाड़ा है।"
अनवर की आँखे चमक उठी।
"तुमने देखी है पाक फ़ौज की पिस्टल!"
"देखी!कमाल करते हो एक हफ्ता की ट्रेनिंग हासिल की है हर बेहतरीन वेपन पर!"
"भाई जान!मैं इसे हाथ में ले लूँ।"
जरूर!शौक से!!
अनवर ने काँपते हाथों से पिस्टल उठाईं।एक किलो वजन की पिस्टल उसके हाथ से फिसलते फिसलते बची।
"अरे अरे ध्यान से!"वह तेजी से बोला।
अनवर शर्मिंदा हो गया।
फिर वह अपना सेमसंग का मोबाइल देते हुए बोला,"भाई जान!मेरी एक तस्वीर निकालना!!"
"जरूर!जरूर!!"
उसने उसके दो तीन शॉट लिए।बेहतरीन शॉट उसे दिखाया और पूछा,"तुम भी जिहादी बनना चाहोगे।"
"मैं तो कबसे बनना चाहता हूँ लेकिन अम्मी कहती है तू अकेला बेटा है।तेरे और भाई होते तो जाने देती।"
"उनकी बात भी ठीक है!"
दोनों नए बने दोस्तों ने मिलकर बिरयानी खाई।दोपहर बाद वे एक मोटरसाइकिल परबैठ कर चल दिये।
हेडक्वार्टर पहुंचकर उसने मोटरसाइकिल बाहर खड़ी करवा दी।फिर वे दोनों गेट पर पहुंचे।उसका पाक आर्मी का दिया शिनाख्ती कार्ड देखकर हथियारबंद गार्ड ने खड़े होकर सलाम किया।उसकी कोई तलाशी न हुई।
अनवर को भी उन्होंने अंदर आने दिया।अवसर वी आई पी ट्रीटमेन्ट मिलने पर प्रभावित था।उसने बैग से लेकर आती बार एक साफा लपेट लिया था जैसा अक्सर हाफिज और कारी लपेटे रहते हैं।
: सब जगह अनवर को ले जाना ठीक नहीं था।इसलिए वह अकेला अंदर गया।उसका मिल्ट्री शिनाख्ती कार्ड हर जगह काम आया।एक कमरे में मौलाना अख़्तर जमीन पर चटाई बिछाकर बैठा था।दो तीन योग उसकी बातें ध्यान से सुन रहे थे।उसने जाकर अपना परिचय दिया।मौलाना ने पास बुलाकर उसके माथे का चुम्बन लिया।फिर सामने बैठे लोगों से परिचय कराया।एक आदमी उठा।उसने दीवार में बनी अलमारी खोली औऱ एक बन्दूक उसे दे दी।उसने बंदूक को लेकर कंधे पर टांग लिया और बाहर आ गया।उसका दिमाग़ शातिराना तरीके से सोच रहा था।सामने बैठे लोग उठकर चले गए।दस पंद्रह मिनट तक अंदर कुछ हलचल नहीं हुईं।उसने बड़ा जज्ब करके खुद को अंदर झांकने से रोका।शायद बाथरूम गए हों।मौलाना अंदर से बाहर आये।उन्होंने अपने हाथ में 56 राइफल पकड़ी हुई थी।उसने हाथ आगे बढ़ाकर 56 उनके हाथ से लेकर दूसरे कंधे पर टाँग ली।मौलाना उससे बोले ,"आओ,बरखुरदार!"
बग़ैर पीछे मुड़े वह चलते चलते बोले,"क्या नाम बताया तुमने अपना!"
सुगनाराम ने देखा दूर तक कोई नहीं था।उसने पिस्टल निकाली।
कोई जवाब न मिलने पर मौलाना ने मुड़ कर देखा।सुगनाराम ने ताबड़तोड़ तीन गोलियां मारी।मौलाना हकबका कर पथरा कर गिरे।
सुगनाराम चिल्लाया और भागा,"गोली मार दी!मौलाना साहब को गोली मार दी।"
अनवर रास्ते में खड़ा था।सुगनाराम ने अपनी पिस्टल उसको पकड़ाई और बोला,भागो!
अनवर पिस्टल हाथ में लिए लिए बाहर भागा।गेट पर खड़े लोगों को कुछ समझ न आया।सुगनाराम दोनों बंदूकें कंधे पर लादे लादे उसके पीछे भागा।दोनों सड़क पर आ गए।सुगनाराम ने 56 कंधे से उतारी और भागते हूए अनवर की पीठ में चार पाँच गोलियां उतार दी।अनवर को रियेक्ट करने का मौका भी न मिला।वह पिस्टल पकड़े पकड़े सड़क पर ढेर हो गया।
सुगनाराम उसके पास पहुंचा और दो लातें उसके जमाई।
पीछे से दौड़ कर आते लोग उसके पास आकर रुकने लगे!उन्हें देखे बगैर वह जमीन पर बैठ गया और रोने लगा,"मौलाना साहब!मौलाना साहब!!"
लोग इकट्ठा होते गए और एक बड़ा सा मजमा वहाँ लग गया।
मौलाना की हत्या करने के बाद सुगनाराम वहाँ दो दिन रहा।मीडिया की मार्फत इंडिया में बैठे अफसरों को उसकी कामयाबी की ख़बर मिल गई होगी।उसने जो सोचा था वही हुआ।मौलाना को दफनाने की रस्म में छोटे बड़े कई सियासतदां और दहशतगर्द आए।मौलाना के कथित हत्यारे को तुरंत मार डालने के लिए उसे सम्मानित किया गया।मौलाना का छोटा भाई रउफ अब ऑर्गनाइजेशन का चीफ था।रउफ मौलाना के मुकाबले ज्यादा खतरनाक और सिज्ण्ड लड़ाका था।सुगनाराम उर्फ शान को ऑर्गनाइजेशन में एक बड़ा पद मिला।उसे पता था कि इस पद मिलने के पीछे आई एस आई है।
दो दिन बाद उसे कश्मीर में मुजफ्फराबाद जाने का आदेश मिला।
इन दिनों हर साल वह अपने गाँव चला जाता था।अफसर भी नर्म पड़ जाते थे क्योंकि यह त्योहारों का महीना है।लेकिन इस मुस्लिम देश मे न तो नवरात्र ही दिखते हैं न दशहरा का पता पड़ता है । दीवाली कब निकली उसे पता ही नहीं चला।उसके घर इस साल दीवाली नहीं मनी होगी।क्योंकि उसके घर में मौत हुई है।मौत के बाद आने वाला पहला त्यौहार नहीं मनाते हैं हिंदू।उसके पत्नी बच्चे उदास बैठे रहे होंगे घर पर।एकदम उसका जी करने लगा कि वह फोन मिलाए घर पर।भाई और पत्नी का नंबर उसे याद था लेकिन उसके पास मोबाइल नहीं था।बहुरूपिया भेस में मोबाईल रखने की मनाही है।मूवमेंट ट्रेस किया जा सकता है या पहचान का कोई आदमी फोन कर भेस को तोड़ सकता है।हालांकि उसके पास जाहिदा का फोन था लेकिन उसने जाहिदा की मौत के बाद उसे बंद रखा हुआ था।
मुजफ्फराबाद पहुँच कर उसके पास इंतजार करने के सिवा कोई काम न था।कोई एक्शन करने का आदेश जाने कितने दिन बाद मिले।पीर चनासी के इस कैम्प में उसके जैसे कई लड़ाके थे।सोलह सत्रह साल के नौजवान से लेकर साठ साल के मुजाहिद।इस्लाम की राह में शहीद होने को उतावले लेकिन इन्हें दो राष्ट्रों की लड़ाई में शतरंज के प्यादों की तरह इस्तेमाल किया जा रहा था।क्योंकि न तो निज़ामे मुस्तफ़ा आना था न हिंदू राष्ट्र ही बनना था।इधर और उधर के चंद सरमायेदारों की जेबें भरनी थी।जिन महान हस्तियों का उदाहरण देकर यह काम कराया जाता है उनके किरदार को ये लोग कहाँ फॉलो करते हैं।करप्ट पॉलिटिशियन्स की दौलत दोनों मुल्कों में ही बढ़ी है।और गरीब आदमी को दो जून की रोटी जुटाना और अधिक मुश्किल हो गया है।
और आखिर वह दिन आ गया जब उसे उस पार जाना था।तीन लड़ाके उसके साथ किये गए।उनका सरदार बन कर वह उनके साथ नीलम दरिया के किनारे पर पहुंचा।बर्फ गिरनी शुरू हो गई थी।उस साइड भारतीय कश्मीर था।दूरबीन से देखने पर सड़क पर चलती औरतें,भारतीय सैनिक और इंडियन फ्लैग तिरंगा दिखाई दे रहा था।हालांकि नदी पर एक पुल बना हुआ था जो दोनों कश्मीरों को जोड़ता है लेकिन उसे पार करके उन्हें नहीं जाना था। वह रास्ता लीगल एंट्री के लिए था।उन्हें एक बकरवाल गुज्जर चोर रास्ते से ले जाने वाला था।रात होने के बाद वे सब चलते चलते ऐसी जगह पहुंचे जहां नीलम नदी छोटी पतली सी धार ही रह गई थी।उन्होंने वहाँ पहुंच कर खजूरों का नाश्ता किया।फ्लास्क से गर्म पानी लेकर मुँह हाथ धोए।सैटेलाइट फोन से बहावलपुर बात की,रउफ भाई थे। उन्होंने कुरान से कुछ उद्धरण देकर उन्हें जोश दिलाया।उसने भी इंशाल्लाह उन्हें भरोसा दिलाया कि वे उन्हें निराश नहीं करेंगे।
उनके ग्रुप में सबसे छोटे हम्जा के पास पॉकेट ट्रांजिस्टर था।वह अपने माँ बाप का इकलौता लड़का था।उसमें शहीद होने का जज़्बा सबसे ज्यादा था।वह सोचने लगा,"कैसे होते होंगे वे माता पिता जो मजहब कर नाम पर,मुल्क के नाम पर अपने इकलौते बच्चे को मौत के मुंह मे धकेल देते हैं।"
हम्जा ने पॉकेट ट्रांजिस्टर पर,"ए राहे हक़ के शहीदों"गाना लगा रखा था।उसे याद आया जब वे लोग भारत में फ़ौजी ड्यूटी पर चलते थे तो अक्सर,"ए मेरे वतन के लोगो"जैसे गाने सुना करते थे।उसे आज ये दोनों गाने और उनके पीछे शहीद होने की अदम्य भावना खोखले लग रहे थे।उसे दिख रहे थे, मोटे मोटे तंदरुस्त पॉलिटिशियन्स और उनकी तेजी से बढ़ती दौलत।उसका दिल कर रहा था कि वह सब कुछ छोड़कर भाग जाए लेकिन किधर!भारत सामने था या पाकिस्तान पीछे।इधर कुआँ उधर खाई!उसके पास बचाव का कोई रास्ता न था।उसे आज मेजर शकूर बहुत याद आ रहे थे।
सुबह के चार बजे उन्होंने नीलम दरिया पार किया।जब वे नीलम दरिया पार कर रहे थे दोनों तरफ से गोलियाँ चल रही थी।पाक फौजी उन्हें गोलियों के साये में सरहद पार करवा रहे थे यह बात भारतीय फौजों को भी मालूम होगी।सुबह होते ही उनकी तलाश शुरू हो जाएगी।
तड़के फौ फटते ही वे हाईवे पर थे।प्लान के मुताबिक उन्होंने एक सिविलियन का कत्ल करके उसकी गाड़ी हथिया ली थी।जे के नम्बर प्लेट की टवेरा गाड़ी थी। पुरानी होने के बावजूद अच्छी हालत में थी।गाड़ी में बैठकर सबने अपने हथियार छुपा दिए थे।लेटेस्ट डिज़ाइन के ब्रांडेड कपड़े पहनकर वे कॉलेज के स्टूडेंट्स के भेष में सी एम हाउस के पास आकर रुके।रास्ते मे उन्होंने नम्बर प्लेट बदल कर गवर्नमेंट ऑफ जे एंड के की नम्बर प्लेट लगा ली थी।इसलिए उन्हें पहुंचने में कोई दिक्कत न हुई।
हम्जा गाड़ी से उतरा और सिक्युरिटी चेक पोस्ट पर जम्मू के किसी इंजीनियरिंग कॉलेज का आई कार्ड दिखाकर अंदर जाने की रिक्वेस्ट करने लगा।सिक्योरिटी गार्ड मना कर रहा था।इतने में दो लड़ाके टवेरा की सड़क के दूसरे तरफ वाली खिड़की जो दीवार के साथ साथ लगे पेड़ पौधों की वजह से ओट में थी,से उतरे और दीवार फांदने की तैयारी में लग गये।कमन्द डाल दी गई थी।एक लड़ाका ऊपर चढ़ चुका था।हम्जा को और अधिक वहाँ ठहरना नहीं था।इसलिए वह वापिस आने लगा।सुगनाराम को अभी कुछ करना था।वह ड्राइवर सीट से नीचे उतरा।उसके हाथ में
जी 3 ए 3 असाल्ट राइफल थी और उसने ऊपर चढ़े जवान को निशाना लगाकर तीन गोलियां चलाई और टवेरा के पास सड़क पर लेट गया।साफ सुबह में ऊपर चढ़ा लड़ाका इजी टारगेट साबित हुआ और सड़क पर आ गिरा।दूसरा लड़ाका कुछ समझ पाता इससे पहले ही गेट पर खड़े सैनिकों की गोलियों का शिकार बन गया।हम्जा हक्का बक्का सड़क के बीच पहुँच चुका था।लेकिन न तो सुगनाराम ने न सैनिकों ने ही उस पर गोली चलाई।सुगनाराम ने अपनी राइफल वहीं फेंकी और हाथ ऊपर करके सरेंडर की मुद्रा में सड़क के बीच खड़ा हो गया।हम्जा उसे देखता रहा,उसकी आँखों में नफरत की वह लहर थी जिसे सुगनाराम देख न पाया और नजरें फिरा ली।