Adha Mudda-Sabse Bada Mudda - 7 in Hindi Women Focused by DILIP UTTAM books and stories PDF | आधा मुद्दा (सबसे बड़ा मुद्दा) - अध्याय ७

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आधा मुद्दा (सबसे बड़ा मुद्दा) - अध्याय ७

----अध्याय ७."अंश पर ही अधिकार नहीं |"-----

बच्चे कितने पैदा करना है, यह भी ज्यादातर पुरुष ही निर्णय लेता हैं क्यों? या घर वाले निर्णय लेते हैं क्यों? क्या नारी(माँ) की सहमति की जरुरत नहीं है? और आज भी अधिकतर ये चुनना आपसी सहमति से नहीं होता हैं क्यों?

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"जहां नारी-जाति का आदर-सम्मान होता है, वहां ऐसा नहीं हो सकता है |

जहां नारी-जाति का आदर-सम्मान नहीं होता है, वहां ऐसा ही होता है ||"

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जबकि दर्द नारी(माँ) को होता है, शरीर नारी का होता है, सहना नारी को पड़ता है, शरीर कमजोर नारी का होता है परंतु निर्णय पति या घर वाले लेंगे और आदेश सुना दिया जाता है की एक और बच्चा चाहिए, लड़का ही चाहिए| कितने बच्चे पैदा करने है या नहीं करने? ना नारी की सहमति ली जाती है और ना ही उसकी खुशियां देखी जाती और ना ही उसका शरीर देखा जाता है कि वह कितनी कमजोर है, वह कितनी भी कमजोर हो पर पुरुष चाहता है कि उसको एक बेटा हो जाए | पुरुष को अपने वंश से मतलब है, नारी के कमजोर शरीर से कुछ लगाव नहीं रहता उसको, ऐसा महान होता है पुरुष, यही मर्द है पुरुष, यही सच्चाई है पुरुष की और यही हैं पुरुषवाद |

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और इतना ही नहीं, बेटा ही होना चाहिए और यदि बेटा नहीं हुवा तो पूरा दोष नारी को ही दे दिया जाता है, जबकि आज बच्चा-बच्चा जानता है कि बेटा होने के लिए,आपका बेटा ही जिम्मेदार है, न कि आपकी बेटी-बहू |मेहनत वह करें ,दर्द वो सहे पर निर्णय वो नहीं ले सकती, यह कौन सी सोच है भाई?, यह कौन सा नियम है भाई? कौन सी नैतिकता है भाई? कौन सी मानवता है भाई? पालना उसको है, सवांरना उसको हैं, त्याग उसको करना है फिर भी निर्णय केवल पुरुष या पुरुष के घर वाले ही लेंगे क्यों? उसको निर्णय लेने का अधिकार भी क्यों नहीं? अब बात आती है कि लड़का ही होना चाहिए ऐसा घर वाले चाहते हैं, पति चाहता इसके लिए उससे आप कन्या भूण हत्या करवाते हैं, कौन मां चाहती है कि वह अपनी बेटी को मारे? पुरुषों की ही ये सोच हैं और जो महिलाये भी इसके पक्ष में रहती हैं वह भी अपने पति के बहकावे के कारण रहती है तो इसका मूल दोषी है पुरुष या पुरुष सत्ता की मानसिकता वाला समाज और इसमें कोई शक नहीं, कोई भी असमंजस नहीं |

ऐसे पुरुष वास्तव में नीच प्रवृत्ति के होते हैं, समाज में सभ्य होने का/अच्छे होने का चोला ओढ़े घूमते रहते हैं /मौजूद रहते हैं पर उनके मन को देखिए कितनी कुटिलता भरी हुई है, कितनी निर्लज्जता भरी हुई है |अजन्मी बच्चियों को मरवा कर, नवरात्र में देवी पूजा, कन्या पूजा करते हैं| ढोंग का रूप है ऐसे पुरुष जो अपनी बच्ची का सगा न हुआ/ जो अपने अंश का सगा न हुआ वह क्या किसी का सगा होगा? मौका पड़ने पर वह किसी का भी वध कर सकता है, ऐसा होता है, पापी पुरुष और दोष जाता है मां को, कलंकित होती है मां, अपनी बच्ची को मारकर क्या मां जी पाएगी? नहीं, कभी नहीं, कतई नहीं ,जिस दिन से उसे मालूम चलता है कि उसकी बच्ची मार दी जाएगी, वह कुछ न कर पाएगी, वह मां उसी दिन मर जाती| वो माँ का मन उसी दिन मर जाता है उसका शरीर केवल जीवित रहता है उसकी आत्मा मर जाती है और पुरुष को कोई फर्क नहीं पड़ता ऐसा स्वार्थी होता है पुरुष| ऐसा अहंकारी होता है पुरुष| यही सच्चाई है पुरुष की |

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"हे अहंकारी पुरुष, हे अभिमानी पुरुष |

हे स्वार्थी पुरुष, हे पापी पुरुष |

तू बता जरा -

क्यों करवाता पाप तू?

क्यों करता पाप तू?

बिना तेरी मर्जी के कन्या वध, कैसे हो जाता?

बिना तेरी इच्छा के कन्या वध, कैसे हो जाता?

इतना भयंकर पाप करके, कैसे जी पाता तू?

इतना भयंकर पाप करके, खुद को कैसे माफ कर पाता तू?

ये जीवन तो तेरा व्यर्थ हुवा |

ये जीवन तो तेरा नर्क हुवा |

कैसे जी पायेगा तू?

कैसे रह पायेगा तू?

ऐसा भी जीवन क्या, जिसमें तू हत्यारा है?

ऐसा भी जीवन क्या, जिसमें तू इतना स्वार्थी है?

ये जीवन तो तेरा बेकार हुवा |

ये जीवन तो तेरा बेकार हुवा |

क्योंकि इस हत्या का कोई पश्चाताप नहीं?

क्योंकि इस हत्या से कोई मुक्ति नहीं?"

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"नारी में बारे में बातें, नारी के नजरिये से |"
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