Mouli in Hindi Short Stories by DHIRENDRA BISHT DHiR books and stories PDF | मौली ’’मौली’’

Featured Books
Categories
Share

मौली ’’मौली’’

(इस कहानी में मौली एक गाय का नाम है। कहानी में मुख्य भूमिका मौली की है उसके बाद एक नन्हे चार वर्षीय बालक की है। बालक बहुत नटखट और शरारती है।


एक दिन मै खेलते खेलते अचानक गौशाला में चला गया। मौली अपना चारा खा रही थी और पूछ से मख्खी को अपने शरीर में बैठने से भगा रही थी। मै उसकी पूछ को देखने लगा और इतने में मैने उसकी पूछ पकड़ ली और झुलने लगा। तभी अचानक मौली का पैर मेरे पैर के ऊपर आ गया, मै जोर से चिल्लाया और रोने लगा। इतने में मौली ने अपने पैर को उठाया और मेरे पैर को अपनी जीभ से चाटने लगी। इतने में माँ आ गई और माँ ने पैर पर मरहम लगाया और गौशाला में जाने से मना किया। कुछ दिन बाद पैर की चोट सही हो गई।
एक दिन मै फिर से गौशाला की तरफ गया, किन्तु इस बार मै थोड़ा डरा हुआ था फिर भी मै कोशिश करते हुये मौली के पीछे जाने के बजाय आगे की तरफ बढ़ा।
और मौली के सामने खड़ा हो गया।
मैने डरते हुये अपनी अँगुली मौली के नाक पर रखी। मौली मेरी हथेली को अपनी जीभ से चाटने लगी। नटखट तो में था ही, इतने में मुझे एक शरारत सूझी और मै मौली के नाक पर बैठा और उसके सीगों को हाथ से पकड़कर बोला “मौली झूला झूला”। इतने में मौली ने अपना सिर ऊपर किया और गर्दन हिलाई मुझे नीचे गिरा दिया।
तभी आहट सुनकर माँ आ गई पर इस बार मुझे कोई चोट नहीं आयी। माँ कान पकड़कर ले गई।
अगले दिन जैसे ही सवेरा हुआ में पुनः गौशाला गया और वही हरकत फिर दोहराई और बोला “मौली झूला झूला”। किन्तु आज मौली ने मुझे नीचे गिराने के बजाय झूला झुलाया। मै बहुत खुश हुआ। मेरी ये शरारतें रोज होने लगी। मेरा रोज का नियम बन गया, मौली की नाक में बैठकर झूला झूलने का। मौली जानवर होने के बाद भी एक बच्चे (मुझे) को माँ की तरह बहुत प्यार करती थी। मेरा और मौली का साथ इतना ही था।
एक दिन अचानक पापा ने मौली को दूर के सम्बंधियों को शौप दिया। यह सुनकर मुझे बहुत दुःख हुआ। मै मौली के पास रोज की तरह गया और मौली ने मुझे झुलाने के लिए अपना सर नीचे की ओर झुकाया पर उस दिन मै झूलने की बजाय, उसे बिस्किट दिये और उसके कान मै बोला “मौली तू उनके साथ मत जाना”। पर तब में नादान था और वो बेजुबां मौली बेबस थी। जैसी ही वो लोग मौली को ले जा रहे थे तब मौली बार बार अपने कदम पीछे को ओर खींच रही थी। किन्तु वो लोग फिर भी मौली को ले गये। मै देखता रहा और पुरे दिन रोता रहा पर किसी ने मेरी नहीं सुनी।
उस दिन के बाद से मैने मौली को कभी नहीं देखा। आज भी मै उन पलों के बारे मै जब भी सोचता हूँ,
पहले अपनी नटखटपन से मुस्कुराता, फिर आँखों की लहरों को ना रोक पाता।
“मेरी प्यारी मौली”
© धीरेन्द्र सिंह बिष्ट