Ek pyali chay aur shoukilal ji - 2 in Hindi Comedy stories by Krishna manu books and stories PDF | एक प्याली चाय और शौकीलाल जी - भाग-2

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एक प्याली चाय और शौकीलाल जी - भाग-2




-' संबंध है। इसलिए तो मैं कह रही हूं कि यदि आप टीवी,रेडियो, अखबार आदि से नाता रखते तो चाय जैसी बेकार चीज के लिए फिजूलखर्ची करने के बारे में सोचते तक नहीं बल्कि प्रधान मंत्री राहत कोष में अपने वेतन का दस प्रतिशत रकम कटवाकर भेज चुके होते।'

-' ऐसा क्यों?' आश्चर्यचकित हो शौकीलाल जी ने पूछा।
-' क्योंकि आप को देश के नाजुक आर्थिक स्थिति का पता होता। एक सच्चे नागरिक की तरह आप देश की समस्याओं के प्रति जागरूक होते। देश की आर्थिक हालत में सुधार के लिए आप सारी फिजूलखर्ची बंद कर देते। पैसे बचाकर आप बचत खाते में जमा करते। आप के जमा पैसे का इस्तेमाल देश के विकास के लिए किया जाता। आप देश के आर्थिक सुदृढ़ीकरण में सहायक बनते।'

श्रीमती किसी रटे रटाये फिल्मी डायलॉग की तरह बोलती चली गईं। शौकीलाल जी का माथा ठनका। कहीं उनकी सीधी साधी गाय सरीखी पत्नी किसी नारी शक्ति केन्द्र की सदस्यता तो स्वीकार नहीं कर लीं। सोचते ही शौकीलाल जी के चेहरे पर सर्द वातावरण में भी पसीना निकल आया। ऐसी वजनदार बातें श्रीमती जी के मस्तिष्क में स्वतः आने से तो रही। आशंका समाधान के लिए शौकीलाल जी ने पूछ ही लिया-' आज आप कहीं गई थीं क्या?'

-" नहीं तो।' शौकीलाल जी द्वारा अचानक किए गए प्रश्नाघात से घबराकर श्रीमती ने झट उत्तर दिया।
-' तो फिर कोई आया होगा?'
-' हां। लेकिन आप इतना पूछताछ क्यों कर रहे हैं?'
-' बस, ऐसे ही। कौन आया था?'
शौकीलाल जी के पूछने पर पत्नी थोड़ा हिचकिचाते हुए बोली-' वो...वो सरिता देवी हैं न, नारी उथ्थान समिति वाली, वो आई थीं।'

सरिता देवी का नाम आते ही शौकीलाल जी का सस्पेंस जाता रहा। सरिता देवी समाज सेविका हैं। उन्होंने ही कालोनी की सारी महिलाओं को इकट्ठा कर देश की आर्थिक सुदृढ़ीकरण में महिलाओं का योगदान विषय पर लेक्चर दिया होगा। नतीजा आज कितने घरों में चाय नहीं बनी होगी। शौकीलाल जी की तरह आज कितने पति चाय की तलब में तिलमिला रहे होंगे।

शौकीलाल जी ने ठण्डी सांस ली। चाय पीने की इच्छा का गला घोंटा और चादर ओढ़कर शोफे पर पसर गए। पत्नी विजयी मुस्कान होंठों में छिपाये रोटियां सेंकने किचेन की ओर चल दी।

सुबह शौकीलाल जी की नींद देर से खुली। घबराकर कलाई घड़ी देखी। सुबह के आठ बज चुके थे। वे हड़बड़ा कर उठने ही वाले थे कि याद आया आज रविवार है । अवकाश का दिन। बड़ा सुकून मिला उन्हें। वे करवट बदलकर चैन की नींद लेने लगे। उनका इरादा आज पूरी तरह आराम करने का था।

अभी वे दोबारा ठीक से सो भी नहीं पाये थे कि पता नहीं कहां से श्रीमती तेज चलती हुई आ धमकी। आते ही शौकीलाल जी पर बरस पड़ी-' अजी उठिए भी। जानते हैं नौ बज गया। सारी दुनिया जाग गई और आप हैं कि अभी तक सोए पड़े हैं।'
शौकीलाल जी ने जोर से अगड़ाई ली और भर्राए गले से बोले-' उठता हूं भाई, आज अवकाश है। आज तो जीभर के सोने दीजिए जाइए तबतक आप एक कप चाय.....।' शौकीलाल जी आदतन चाय की फरमाईस करने ही वाले थे कि देश की आर्थिक स्थिति पर श्रीमती की नसीहत का ख्याल आ गया। तत्काल उन्होंने अपना मुंह बंद कर लिया।

-' अच्छा अब बहुत सो लिए। अब उठ भी जाइए। अपना न सही बच्चों का ख्याल कीजिए। आप के कारण इनकी आदतें भी खराब हो रही हैं।' श्रीमती शौकीलाल जी पर पड़ी चादर खींचती हुई बोली।
शौकीलाल जी पत्नी के मिजाज से पूरी तरह वाकिफ थे। वह जिस बात पे अड़ जाती थी, पूरा करके ही दम लेती थी। पत्नी से एक बार उठ शब्द निकल गया तो निकल गया। अब तो शौकीलाल जी को उठना ही था। उनके बिछावन छोड़ते ही अपना वजनी शरीर पलंग पर गिराती हुई श्रीमती जी ठीक बगल में सटकर बैठ गईं। हमेशा कमान की तरह तनी रहनेवाली बीवी की भृकुटी आज नॉर्मल देख शौकीलाल जी शंका ग्रस्त हो गए। वे समझ चुके थे कि उनकी जेब अब कटने वाली है क्योंकि जब जब उनकी भृकुटी नॉर्मल हुई है, उनकी जेब हल्की हुई है।

-' सुनते हैं जी!' श्रीमती मोटी खुरदरी आवाज में शहद घोलती हुई बोली-' कल सेन बाबू बैंक मोड़ गए थे शॉपिंग करने। अपनी बीवी के लिए उन्होंने दो दो साड़ियां खरीदी हैं। मुझे उनकी बीवी सुनीता ने बुलाया था साड़ी देखने के लिए। मैं वहीं से आ रही हूं। ओहो! कितनी सुंदर बेशकीमती साड़ियां हैं। देखते ही दिल लोट पोट होने लगा जी। खासकर ऑरेंज कलर की मैटल सिल्क वाली साड़ी तो गजब सुंदर है। मेरी आंख में गड़ गई जी वो साड़ी। सच कहती हूं।'

श्रीमती की आवाज आश्चर्यजनक रूप से किसी भोले बच्चे की ठुनक में बदल गई। वे नई नवेली सी मचलती हुई बोली मानो प्रथम मिलन पर मनुहार कर रही हो-' जाइए, मैं आप से बात नहीं करती। आप को जरा भी मेरा ख्याल नहीं। आप ने आजतक ऑरेंज कलर की एक भी साड़ी नहीं दी। चलिए न, आज छुट्टी है। आज ही शॉपिंग कर ली जाए।'

बीवी का प्रस्ताव सुन शौकीलाल जी भीतर तक कांप उठे।

✍कृष्ण मनु
9939315925