Anugunj in Hindi Women Focused by Sudha Om Dhingra books and stories PDF | अनुगूँज

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अनुगूँज

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सुधा ओम ढींगरा

तापमान इतना गिर गया कि बारिश बर्फ़ बन कर बरस रही है। रुई जैसी नहीं, शीशे जैसी। उसके लिए यह सब अचम्भित करने वाला है। कुछ दिन पहले उसने रुई जैसी बर्फ़ गिरते देखी थी और अब शीशे जैसी। गगन की नीलिमा गहरी हो चुकी है। चारों ओर घुसपुस है। घास, पेड़, पौधे और पहाड़ क्रिस्टल के लग रहे हैं, जैसे किसी ने बना कर वहाँ जड़ दिए हों। वह उन्हें छूना चाहती है। उसे डर है कि चप्पल पहन कर घास पर चलेगी तो शीशे की घास टूट जाएगी। नंगे पाँव उसने घास पर क़दम रखा। पाँव की तलियों से ठण्ड की सिहरन शरीर को लहरा गई। वह पेड़ों को, पत्तियों को झिझकते हुए छूने लगी कि कहीं वे टूट न जाएँ। फिर वह पहाड़ की ओर बढ़ी और उस पर चढ़ने का प्रयास करने लगी।

'तड़ाक' की आवाज़ आई। वह घबरा गई…… 'तड़ाक' .... की फिर आवाज़ आई और साथ ही उसे किसी के रोने की आवाज़ सुनाई दी। उसे वह आवाज़ कहीं दूर से आती महसूस हुई। उसे शीशे का रमणीय स्थल मायाजाल लगने लगा। उसे यहाँ से निकलना चाहिए और वह तेज़ी से वापिस मुड़ी। घबराहट में उसके पाँव घास पर टिक नहीं रहे और वह फिसल कर हाँफने लगी; गहरी-गहरी साँसें नींद में वह ले रही है। स्वप्न में पैदा हुए भय से उसके माथे पर पसीने की बूँदे उभर आईं।

'गोरी चमड़ी की तो चूमा- चाटी होती है और मुझे थप्पड़ मारे जाते हैं। अगर मार्था के साथ ही रहना है, तो मुझ से शादी क्यों की? घर की नौकरानी बनकर मैं नहीं रहूँगी। मुझे तलाक चाहिए’- बिलख रही गुरमीत की आवाज़ घर की लॉबी से आ रही है। उसकी नींद टूट गई और साथ ही वह स्वप्न। उसने अपनी छाती पर हाथ रख कर साँसों को सँभाला। घड़ी में समय देखा। रात के तीन बजे हैं। उसने पलंग पर करवट बदली, उसका पति पम्मी वहाँ नहीं है। वह अभी तक घर नहीं आया। उसने अपने माथे का पसीना पोंछा। उसका जेठ सुखबीर ज़ोर-ज़ोर से बोल रहा है-'इस घर में तलाक नहीं होते। तलाक तो तुम्हें कभी नहीं मिलेगा। तुम्हें इसी घर में जीना-मरना होगा। समझीं। किसी ग़लतफ़हमी में न रहना।'

उसकी जेठानी गुरमीत उग्र हो गई-'तलाक तो तेरा बाऊ भी देगा। मार्था ही तुम्हारे लिए सब कुछ है तो मेरा जीवन क्यों बर्बाद किया। पाँच सालों के एक-एक पल का हिसाब कोर्ट में लूँगी।' उसका कहना बीच ही में रह गया; ताबड़ तोड़ लातें घूँसे उसे पड़ने लगे -'हराम दी जनी बाऊ जी को बीच में क्यों घसीटती हो।'

'मैं तो तेरे बीजी को भी कोर्ट में घसीटूँगी। आप सब लोग मिले हुए हो। कोई मेरा दर्द नहीं समझता।' वह ज़मीन पर बैठी बेतहाशा रोते हुए और दुप्पटे से आँखें नाक पोंछते हुए तड़प कर बोली -' पीट ले नमर्दा जितना पीटना है। एक फ़ोन कर दूँ तो हथकड़ियाँ लग जाएँ। यह मत भूल कि तूँ अमरीका में है, यहाँ तलाक तो तेरे पुरखे भी देंगे।'

बीजी, बाऊजी अपने कमरे से निकल कर लॉबी में आ गए। बाऊ जी की बुलन्द आवाज़ गूँजी- 'सुखबीरे इसने 911 को फ़ोन कर दिया तो पुलिस आ जाएगी। ख़ामख़ाह के झंझटों में पड़ जाएँगे। चुप करा भैण दी टकी नूँ। बहुत गर्मीं चढ़ी हुई है, कर ठंडी इसको। हर दूसरे दिन तमाशा खड़ा करती है। सोने भी नहीं देती।'

'बाऊ जी, आप जाकर सो जाएँ। करता हूँ इसे मैं हमेशा के लिए ठंडा।'

'गुरमीत पुत्र चुप हो जा.… इस समय बाप -बेटे पर शराब हावी है; क्यों तुम अपनी हड्डियाँ तुड़वाती हो। मार्था से सुखबीरे का पल्ला मैं झुड़वाऊँगी। बस तुम थोड़ा सब्र रखो।'' बीजी ने मधुर और धीमी आवाज़ में कहा।

''पाँच सालों से आपसे यही सुनती आ रही हूँ; मेरे सब्र का बाँध टूट चुका है। अब आप गिनवाएँगी, बेटी यह महलनुमा घर तेरा है, कार तेरे पास है, क्रेडिट कार्ड्स तेरे पास हैं। दिन भर कहाँ जाती हो, कहाँ से आती हो, कोई नहीं पूछता। जो खिला देती हो खा लेते हैं; जब नहीं खिलाती तब भी कोई कुछ नहीं कहता। बीजी मुझे यह सब कुछ नहीं, पति चाहिए; जो पाँच सालों में आप मुझे नहीं दे पाईं। अब तो मैं तलाक ही चाहती हूँ। तोड़ ले जितनी हड्डियाँ तोड़नी हैं।''

मनप्रीत परिवार के झगड़े को सुन रही है। रात में अक्सर उसकी नींद खुल जाती तो वह दिल्ली पहुँच जाती, शायद दिल्ली की यादें उसे कछुए के खोल सी अपने भीतर समेट लेती हैं और वह स्वयं को इस असुरक्षित माहौल में सुरक्षित महसूस करती। शादी की चहल-पहल, धूम-धड़ाका और उसके पापा के चेहरे की ख़ुशी की सुधि उसके चेहरे पर प्रसन्नता ले आती। सरकारी नौकर उसके पापा और तिस पर तीन बेटियाँ। उसकी शादी का सारा खर्चा उसके सुसराल वालों ने किया था और दहेज भी नहीं लिया। उसके पापा कैसे खुश न होते! .... उसके मम्मी अपने भाव छिपा नहीं पाए थे; जब किसी रिश्तेदार ने कहा-- 'मनप्रीत की मम्मी कम से कम एक बेटी की शादी का खर्च तो बच गया।' वे रो पड़ी थीं, उसे पता है वे सुख के आँसू थे। उसे अपने पापा से नाराज़गी भी है; उनके जिस दोस्त ने यह रिश्ता करवाया, उसके सुसराल के बारे में उसने पूरा सच नहीं बताया और उसके पापा ने अपने दोस्त पर आँख मूँद कर विश्वास कर लिया। बेटी का जीवन जिस परिवार से जुड़ा है, उनके बारे में गहरी छानबीन करनी चाहिए थी। शादी में सुसराल वाले कितने सभ्य और सुसंस्कृत लगे थे पर यहाँ आकर उनका घटिया आचरण उसके सामने आया। उसके भीतर उनका डर बैठ गया है। बात-बात पर वह घबराने लगी है।

अपनी माँ को वह कुछ बताना नहीं चाहती। वहाँ सब इसी बात से खुश हैं कि बेटी विदेश में ब्याही गई, हींग लगी न फिटकरी रंग चोखा हुआ। वह घर फ़ोन करने से कतराने लगी है, मम्मी-पापा एक ही बात कहते हैं--'मन, तुम वहाँ सेट हो जाओ, फिर हमें भी बुलाना।' वह झुँझला जाती है-' कोई उसे यह नहीं पूछता, मन तुम वहाँ कैसे रह रही हो?' उसके भीतर प्रश्न कौंधते रहते हैं। विदेश जाने की इतनी ललक क्यों है देशवासियों को? विदेश जाना एक स्टेट्स सिम्बल सा बन गया है। यहाँ पढ़ाई के लिए आना और बात है पर बेटियों को कैसे उस परिवार में भेज दिया जाता हैं, जिसके बारे में स्वयं माँ -बाप कुछ भी नहीं जानते होते। बस किसी एक की राय पर अपने जिगर का टुकड़ा अजनबियों को सौंप देते हैं। फिर वे जैसे चाहें उनके साथ व्यवहार करें। यह त्रासदी लड़कियाँ कब तक झेलेंगी ? खरपतवार से उभरते प्रश्नों के उत्तर ढूँढ़ती वह हर समय बेचैन रहती है और उसे नींद भी ढंग से नहीं आती…

तिस पर जेठ-जेठानी का झगड़ा भी हर दूसरी- तीसरी रात उसकी नींद तोड़ देता। वह बड़ी हैरान है कि ज़िंदादिल जेठानी गुरमीत दिन भर घर के वातवरण को बहुत ख़ुशनुमा रखती और उसे छोटी बहनों की तरह प्यार करती पर रात को पता नहीं उसे क्या हो जाता है ; पति की बेरुख़ी वह सह नहीं सकती।

उसकी रातें भी तो गुरमीत की तरह ही बीतती हैं। वह अपने बारे में बहुत सोचने लगी है। उसका पति पम्मी शराब में बेसुध सुबह चार बजे से पहले कभी घर नहीं आता और आते ही शेखी बघारने लगता है - ''मनप्रीत यार, बीस गैस स्टेशन, चालीस सबवे, पचास टैक्सियाँ; इतना बड़ा व्यापार सँभालते-सँभालते सुबह हो जाती है। आई होप यू अंडरस्टैंड.…'' और बिस्तर पर लुढ़कते ही शुरू हो जाते हैं उसके ख़र्राटे; उसकी साँस के उतार-चढ़ाव के साथ शराब की बदबू के उठते भभकों से मनप्रीत को कई बार मतली आई। विदेश में रहने वालों की वह जो कल्पना करती थी, इस घर में आने के बाद, टूटकर किरचों में बिखर गई। अंदर तक वह गहरे ज़ख्मीं हुई है। अमीर गँवारू उसने अपने देश में तो कई देखे थे। यहाँ इस देश में भी…।

विचारों में उलझी मनप्रीत ने लाइट जलाई और कमरे से बाहर आ गई। उसका कमरा घर के निचले हिस्से में है, उसकी जेठानी का तीसरी मंज़िल पर और बीच में पड़ती गोल सीढ़ियाँ; जो इस तरह से बनाई गई हैं कि तीनों मंज़िलों पर रहने वाले एक दूसरे को देख सकें। तीसरी मंज़िल की लॉबी में बीजी, बाऊजी, जेठ और जेठानी खड़े झगड़ रहे हैं। गुरमीत उसे देखते ही लॉबी की रेलिंग पकड़ कर ज्वालामुखी-सी फट पड़ी- 'मनप्रीत तुम्हारा हाल भी मेरे जैसा होने वाला है। पम्मी इस समय सोफ़ी के घर पर है। इन्हें बहुएँ नहीं, नौकरानियाँ चाहिए। बहुएँ तो इनकी गोरियाँ हैं। नौकरानियाँ यहाँ मँहगी पड़ती हैं। ये शादी की आड़ में हमें नौकरानियाँ बना कर लाएँ हैं।'

बीजी ने पीछे से उस पर धौल जमाई - 'चुपकर मरजानिये।' गुरमीत ने बड़ी मुश्किल से अपना संतुलन ठीक किया। इससे पहले कि वह बीजी की तरफ मुड़ती, हट्टे-कट्टे सुखबीर ने, छरहरी गुरमीत को अपनी बाँहों में ऊपर उठाया और उसके देखते ही देखते तीसरी मंज़िल की लॉबी से नीचे फैंक दिया। लकड़ी के फ़र्श पर 'घड़ाम' की आवाज़ के साथ गुरमीत की दिल चीरती चीख निकली और पूरा घर काँप गया। मनप्रीत जड़वत् हो गई।

बीजी ने दहाड़ मार कर कहा -''हाय, सुखबीरे यह क्या किया।'' और तेज़ी से नीचे की ओर भागती हुई उसकी ओर देख इशारा कर कहने लगीं-' मनप्रीत जा अपने कमरे में, तुमने कुछ नहीं देखा, कुछ नहीं सुना।' बाऊजी ने पहला फ़ोन पम्मी को किया कि वह वकील को लेकर आए और दूसरा एम्बुलेंस के लिए।

मनप्रीत वहीं अपने कमरे के सामने बेसुध सी खड़ी रही। वह अपने शरीर को हिला ही नहीं सकी।

बाऊजी अभी फ़ोन पर बात कर ही रहे थे कि पुलिस के सायरन की आवाज़ आने लगी। पड़ोसन जिल वुलेन ने लड़ाई की आवाज़ें, चीख और 'घड़ाम' की आवाज़ सुन कर पुलिस को फ़ोन कर दिया था। पुलिस के पहुँचने में तीन-चार मिनट भी नहीं लगे। आस-पास के घरों की बत्तियाँ जल गईं। लोग घरों से बाहर आ गए।

'गुरमीत तूने आत्महत्या क्यों की? मैंने तुम्हें कितना समझाया कि सब कुछ ठीक हो जाएगा। मैं सो रही थी.....और तुमने छलाँग लगा दी।' बीजी ने छाती पीट-पीट कर रोना शुरू कर दिया। 'हे रब्बा, मैं क्यों सो गई..... जागती रहती तो यह कभी न होता ....।'

सुखबीर सीढ़ियों पर बैठकर रोने लगा। बाऊजी बीजी के साथ खड़े होकर रोने लगे।

गुरमीत सिर के बल गिरी और उसका सिर फट गया। उसी पल उसके प्राण-पखेरू उड़ गए। एम्बुलेंस के साथ आई टीम ने उसे मृतक घोषित कर दिया। एम्बुलेंस ऑटोप्सी करने के लिए उसे लेकर चली गई और पुलिस अपनी कार्यवाही करने लगी।

डरी, सहमी मनप्रीत की सोचने समझने की शक्ति ही नहीं रही। वह बस आवाज़ें सुन रही है। तभी पम्मी पहुँच गया। उसके कान में उनके वकील ने कुछ कहा और उसने मनप्रीत को बाँहों में लेकर सीने से लगा लिया। पुलिस सार्जेंट ने जब उससे कुछ पूछना चाहा तो पम्मी ने निवेदन किया कि इस समय उसकी पत्नी सकते में है, उसकी मानसिक स्थिति बहुत नाज़ुक है, कृपया उसे सँभलने का समय दीजिए। वह अपना बयान ज़रूर देगी।

अंत्येष्टि गृह में बैठी मनप्रीत को सिर्फ इतना याद है कि एक डॉक्टर आई थी और उसकी हालत देख कर उसे नींद की गोलियाँ दे गई थी। वह कब तक सोई रही, उसे कुछ याद नहीं। पम्मी उसे तैयार करके यहाँ ले आया। कर्मकाण्डों के दौरान गुरमीत के लिए बीजी, बाऊजी और सुखबीर का ज़ार-ज़ार रोना मनप्रीत को बहुत चुभा। उसे यह सब पाखंड और दिखावा लगा। सुसराल वालों के प्रति उसके मन में वितृष्णा पैदा हो चुकी है। सुरक्षा कवच बना पम्मी हर समय उसके साथ रहता है। गुरमीत को वह बड़ी बहन के रूप में चाहने लगी थी। अपनी आँखों के सामने उसे इस तरह जाता देख, भयंकर तूफ़ान में उखड़े, टूटे वृक्ष सा वह स्वयं को महसूस कर रही है।

वहीं खड़ी पड़ोसन जिल वुलेन का रोना रुक नहीं रहा। उसे बीजी, बाऊजी और सुखबीर का नाटक सुहाया नहीं। वह गुरमीत की पक्की सहेली थी। दोनों एक दूसरे के दुःख-सुख की साथी थीं। उसने पुलिस को अंत्येष्टि गृह से बाहर ले जाकर वह हर बात बता दी ; जो गुरमीत ने उसके साथ साझी की थी और साथ ही अपनी शंका भी जताई कि यह आत्महत्या नहीं, हत्या है। यहाँ की पुलिस बहुत सतर्क और गति में तेज़ होती है। जिल वुलेन के शक पर गहरी छानबीन की गई। ऑटोप्सी रिपोर्ट ने भी आत्महत्या नहीं बताया; स्वयं गिरना और उठाकर गिराए जाने में चोटों के अन्तर को उन्होंने स्पष्ट किया। ऑटोप्सी में उसके शरीर पर मार-पीट के निशान भी उन्हें मिले। जिससे पुलिस के निर्णय को पुष्टि मिली। सुखबीर और उसके माँ-बाप को हिरासत में ले कर पुलिस ने मुक़दमा दायर कर दिया।

सदमे से मनप्रीत ख़ामोश हो गई। अब बस उसकी गवाही ही सुसराल वालों को बचा सकती है पर वह चुप है। उसके सामने जब भी कोई अकस्मात् घटना घटती है, बचपन से ही उसकी जीभ तालू के साथ चिपक जाती है। घटना की प्रत्यक्षदर्शी होते हुए भी वह बोल नहीं पाती और सही समय पर सच न बोल पाने के कारण बाद में वह स्वयं को कोसती रहती है। कई सच वह कह नहीं पाई और झूठ जीतता रहा, उसका मलाल उसे अब तक है। बचपन की बातें तो बचपन के साथ ही चली गईं। आज जिस दुर्घटना की वह प्रत्यक्षदर्शी गवाह है; उससे पैदा हुए अंतर्द्वंद्व में घिरी हुई वह निढाल और परेशान है। उसकी मानसिक यातना दुर्घटना में जुड़े अपनों और रिश्तों को लेकर है। उसकी ज़ुबान खुल गई तो उसे इसकी बहुत बड़ी कीमत चुकानी पड़ेगी, परदेश में उसका घर छूट जाएगा और अगर नहीं बोली तो भी वह उस घर में जी नहीं पाएगी। दुर्घटना उसकी आँखों के सामने हुई है। वह क्या करे…इन परिस्थितियों में इस देश में कोई उसका मार्गदर्शन करने वाला नहीं। मार्गदर्शन करने वाली जेठानी तो यह दुनिया छोड़ कर जा चुकी है। वह उसकी बहुत अच्छी सहेली भी थी। उसी ने मनप्रीत को अनजाने देश को अपनाना सिखाया। वह अपने घर में भी किसी को फ़ोन नहीं कर सकती। उससे मोबाइल फ़ोन ले लिए गया है। जिल उसे बार-बार कह चुकी है-''मन, टेल्ल द ट्रुथ। गॉड विल हेल्प यू।'' वह जिल को कैसे समझाए कि सच बोल दिया तो देश लौटने के लिए पासपोर्ट कहाँ से लाएगी, वह भी सुसराल वालों के पास है। वापिस जाने के लिए टिकट कहाँ से खरीदेगी? उसे एहसास हो गया है कि वह एक मकड़जाल में फँस चुकी है। लगता है उसे सुसराल वालों की बात माननी पड़ेगी, वही कहना पड़ेगा; जो उसके सुसराल वालों का वकील चाहता है।

कोर्ट में मुक़दमा शुरू हो चुका है। उसे एक प्रत्यक्षदर्शी गवाह के रूप में पेश किया जाएगा। पम्मी के साथ वह कचहरी के कॉरिडोर में बैठी है। जज अपनी कुर्सी पर आकर बैठ गया है और ज्यूरी ने भी अपनी-अपनी सीटें सँभाल ली हैं। पुलिस और डॉक्टर की गवाही और उनके साथ वकीलों की प्रश्नोत्तरी शुरू हुई। उसकी बारी आने वाली है, बचाव पक्ष के लिए उसकी गवाही बहुत महत्त्वपूर्ण है। वह बहुत नर्वस है। जब तक कोर्ट की कार्यवाही चल रही है, कॉरिडोर में बैठी वह स्वयं को मज़बूत कर रही है। उसके भीतर लगातार संवाद चल रहा है। विवेक रिश्तों को किनारे रख सच बोलने के लिए कह रहा है। उसका मन रिश्तों को प्राथमिकता दे रहा है। रिश्तों के टूटने से डर रहा है। ऊहापोह की स्थिति में उसका सिर दुखने लगा है। पिछली कई रातों से वह सो नहीं पाई। पम्मी आजकल हर समय उसके साथ रहता है और बार-बार उसे वे वाक्य याद करवाता है ; जो वकील उससे कोर्ट में कहलवाना चाहता है। पर उसे वही याद है; जो उसने देखा है। वह क्या करे एक -एक क्षण चलचित्र सा उसकी आँखों के सामने घूमता रहता है। गुरमीत के साथ बिताया एक -एक पल याद आता है…

इस देश की भाषा बोलने में वह असमर्थ थी। गुरमीत ने हँसते हुए कहा था- ''मन (मनप्रीत से वह सबकी मन हो गई थी) मुझे भी पहले-पहल यहाँ की अंग्रेज़ी समझने में परेशानी हुई थी। मैंने तो खूब टीवी प्रोग्राम देखे और पड़ोसन जिल से बातें की, बस भाषा को बोलने की झिझक निकल गई तो भाषा पकड़नी आसान हो गई।'' गुरमीत ने उसे जिल से मिलवाया था।

पहली मुलकात में ही जिल ने उसके हाथों को पकड़ कर कहा था-''मन, यू आर एन इनोसेंट नेचुरल ब्यूटी।'' और उस दिन के बाद वह उससे बतियाने लगी थी। जिल ने उसे और उसकी जेठानी को अंग्रेज़ी बोलने में सशक्त किया था।

परिकल्पना की ओढ़नी ओढ़कर वह उन नायिकाओं के देश में आई थी; जो छुटपन से सुनी कहानियों में होती थीं। गोरी-चिट्टी, लम्बे सुनहरे बालों वालीं, नखरा करतीं सलोनी हूरें। पर जिल नखरे वाली बिलकुल नहीं थी। गुरमीत के लिए वह उतनी ही दुःखी थी; जितना स्वदेश में उसका परिवार। जिल ने तो गुरमीत के परिवार को फ़ोन करके कहा था कि वह गुरमीत के लिए लड़ेगी।

जज ने उनके वकील यानी बचाव पक्ष के वकील को अगली गवाह लाने के लिए कहा। वकील की असिस्टेंट पैटी कचहरी के कमरे से बाहर कॉरिडोर में उसे लेने आई। उसका दिल ज़ोरों से धड़कने लगा। उसे लगा कि उससे खड़ा भी नहीं हुआ जा रहा, पैटी ने उसे पकड़ा और कोर्ट के कटघरे तक ले आई। वहाँ उसे एक कुर्सी पर बिठा दिया गया; जहाँ उसके सामने माइक था।

जज ने उसे बड़े प्यार से पूछा -''आर यू कम्फर्टेबल।''

उसने 'हाँ' में सिर हिला दिया।

जज ने वकील की ओर देख कर कहा-''यू मे प्रोसीड।''

बाइबल पर हाथ रख कर सच बोलने की कसम दिलवाई गई। वकील ने मनप्रीत को देखकर कहा- ''नाओ टेल देम व्हाट हैपन्ड दैट नाइट।''

मनप्रीत को लगा, उसकी सब इन्द्रियों ने काम करना बंद कर दिया है, बस उसका दिल धड़क रहा है; जिसकी आवाज़ वह सुन रही है और उसकी जीभ तालू के साथ चिपक गई है। उसका पति, सास, ससुर और जेठ सामने बैठे उसे घूर रहे हैं। उसका शरीर पसीने से भीग गया। उन सबके ठीक सामने, कोर्ट की ज़मीन पर उसे गुरमीत की लाश पड़ी दिखाई दे रही है और उसकी बेबस खुली आँखें, जो उसने उस रात देखी थीं; उसी की ओर देख कर सच बोलने की गुहार लगा रही हैं। वह ज़मीन की ओर देख रही है। खून से लथपथ उसे अपनी लाश भी वहाँ नज़र आ रही है। दुर्घटना वाले दिन से लेकर आज तक उसे कई बार महसूस हुआ है कि वह ज़िंदा नहीं। वह अपनी आत्मा है; जो पम्मी के साथ खुद को घसीट रही है।

वकील ने उसे इशारा किया। पर वह वकील द्वारा पढ़ाए गए सब वाक्य भूल चुकी है। पूरे कोर्ट में सन्नाटा है और उसके बोलने का इंतज़ार हो रहा है। कई पलों तक वह ज़मीन की ओर ही फटी, डरी और सहमी आँखों से तकती रही। लोगों की स्थिरता टूटने लगी। ज्यूरी के सदस्यों ने पहलू बदलना शुरू कर दिया। जज ने स्थिति भाँप ली। उसने बड़ी नम्रता से पूछा -''ऑर यू ओके मैम।'' उसे कुछ सुनाई नहीं दिया। उसे तो बस गुरमीत की आँखें ही दिखाई दे रही हैं; जिन्होंने उसके भीतर कुछ फूँक दिया कि उसकी तालु से चिपकी जीभ छूट गई और वह बोलने लगी और बोलती गई.…सही और सच्ची घटना वर्णित करके ही रुकी और अंत में उसकी आँखें उससे भी अधिक कह गईं। पम्मी की आँखों में क्रोध की अग्नि जल उठी और तपश उस तक पहुँच गई। अपने आपको सँभालते हुए उसने एक निवेदन पत्र जज साहब को आदर सहित प्रस्तुत किया; जो उसने हाथ से लिखा था कि सच बताने के बाद इस देश में अब उसके पास कोई घर नहीं रहेगा और वह अपने देश भी नहीं लौट सकती; क्योंकि उसका पासपोर्ट सुसराल वालों के पास है। उसकी मदद की जाए।

गवाही के बाद उसके शरीर में सरसराहट हुई, संवेगों और भावनाओं का उछाल आया। वह अपनी आत्मा नहीं… जीती-जागती मनप्रीत है, महसूस कर खुश हो गई। दुर्घटना के बाद पम्मी ने उसके कन्धों पर झूठ का बोझा लाद दिया था। उसके नीचे वह दब-घुट गई थी। उसे उतार कर वह बहुत हल्का-फुल्का महसूस कर रही है।

जिल ने उसे बाहों में भर लिया और उन दोनों को आभास हुआ कि गुरमीत भी उनसे लिपट गई है …

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