Amar Prem - 13 in Hindi Love Stories by Pallavi Saxena books and stories PDF | अमर प्रेम - 13

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अमर प्रेम - 13

अमर प्रेम

(13)

इतने में अंजलि दूध का गिलास लिए कमरे में आती है और राहुल को देते हुए कहती है

क्या हुआ तुम अब भी वही सोच रहे हो ? चिंता मत करो राहुल मैं कोई बच्ची नहीं हूँ।

मैं अपना खयाल खुद रख सकती हूँ, तुम्हें मेरी चिंता करने की कोई जरूरत नहीं

इसलिए अब तुम दूध पियो और शांति से सो जाओ

बहुत रात हो चुकी है फिर कल सुबह मुझे ऑफिस भी जाना है।

कहते हुए वह सो जाती है। उस रात की घटना ने अंजलि के मन पर कोई असर नहीं डाला था।

उसके के लिए अगली सुबहा बिलकुल वैसी ही थी जैसी रोज़ होती है।

एकदम समान्य लेकिन राहुल कुछ उदास सा खोया खोया सा था।

उधर उसने अपना मेल चेक किया तो उसे पता चला वह जो काम छोड़कर आया था उसमें कुछ ऐसी अडचन आगयी थी जो राहुल के जाए बगैर सुलझ नहीं सकती थी।

अब तो और राहुल को कुछ समझ नहीं अरहा था कि वह क्या करे

एक तरफ नौकरी और दुजी तरफ अंजलि

दोनों में से यदि वह किसी एक को भी चुनता है तो दूसरे की परेशानी उसे शांति से जीने नहीं देगी।

इसी ओह पोह में उसे ख्याल आता है नकुल का ! क्यूँ न इस विषय में पापा से बात की जाये।

ऐसा सोचते हुए वह नकुल के कमरे में जाता है। नकुल किताब पढ़ रहा होता है कि तभी उसका ध्यान राहुल की तरफ जाता है

अरे राहुल आओ क्या बात है कुछ परेशान लग रहे हो, हाँ पापा एक परेशानी तो है सोचा आप से सलाह लेना उचित होगा इसलिए यहाँ चला आया।

हाँ हाँ बेटा बताओ क्या बात है राहुल विस्तार से नकुल को सारी घटना और अपनी चिंता के बारे में बता देता है।

हाँ बात तो चिंता जनक है लेकिन तुम चिंता मत करो ऐसा करो तुम अभी फिलहाल भारत लौट जाओ और जो काम तुम्हारे लिए लटका है उसे पूरा कर आओ तब तक मैं यहाँ हूँ ही अंजलि के साथ बाकी तो वह खुद ही बहुत समझदार है समय से आती जाती है। और फिर तने समय यहाँ रही भी है अकेली तो इतनी परेशानी की भी कोई बात नहीं है बेटा हो सकता है हम और तुम इस विषय में कुछ ज्यादा ही सोच रहे हों क्या करें आखिर हैं तो हिंदुस्तानी मर्द ही न कहते हुए नकुल हंस देता है ताकि राहुल की परेशानी कुछ कम हो सके।

राहुल को भी नकुल की बात कुछ हद तक ठीक ही लगती है। और वह जाने की तयारी शुरू कर देता है। किन्तु मन ही मन उसके मन में अब भी अंजलि की चिंता व्याप्त है।

साथ- साथ वह यह भी सोच रहा है की यही उसकी कंपनी उसे भी विदेश का का प्रोजेक्ट दे सके तो शायद उसकी समस्या का समाधान हो सकता है।

लेकिन फिर पापा का क्या होगा वह यहाँ अकेले कैसे रहेंगे अब तो तो उन्हें हमारी जरूरत है ऐसे कैसे हम उनको यूं अपने मातल के लिए नौकरों और भगवान के भरोसे छोड़ सकते हैं।

ऐसे अनगिनत प्रश्न राहुल के दिमाग में लगातार घूम रहे हैं।

परंतु वह किसी से कुछ नहीं कह रहा अपनी उलझन को अपने मन में लिए खुद ही समस्या का समाधान ढूँढने का प्रयास किए जा रहा है।

अंजलि को इस बात का एहसास है की राहुल उसके के कारण अर्थात उस दिन हुई घटना को लेकर अब भी परेशान है,

वह राहुल को बहुत समझने का प्रयास करती है उसे हौंसला देती है की सब ठीक है ऐसी छोटी-मोटी घटनाएँ तो जीवन में घटती रहती है

यदि हम उनसे इस कदर परेशान होने लगे तब तो जीना ही मुश्किल हो जाएगा।

अंजलि की बातों को समझते हुए और उस पर विश्वास दिखते हुए राहुल भारत के लिए निकल जाता है।

फिर दोनों की आग अलग ज़िंदगी किसी उजड़े चमन की तरह हो जाती हा जैसे पतझड़ में उपवन मूरझा जाता है वैसे ही इन दो प्रेमियों की दुनिया भी एक दूजे के बिना मुरझा सी जाती है।

जीते तो हैं दोनों एक दूजे के बिना लेकिन बस जान ही नहीं होती। क्या करें, प्यार होता ही ऐसा है

इस बात पर तो मुझे भी सुधा कि तरह एक फिल्मी गीत कि चंद पंक्तियाँ याद आरही है।

आरे प्यार करने वाले प्यार ही करेंगे

प्यार इन्हे भी सिखला देगा गर्दिश में संभालना

यदि पूछे कि प्यार क्या है तो शायद इससे आसान या फिर इससे मुश्किल कोई प्रशन नहीं होगा।

कहते हैं प्यार दोस्ती है, तो कोई कहता है, प्यार पूजा है, तो कोई-कोई यह भी कहता है कि प्यार समर्पण है त्याग है कोई कहता है प्यार आत्मा है जिसे शब्दों में ब्यान नहीं किया जा सकता एक भाव है जिसे सिर्फ महसूस किया जा सकता है लेकिन इन सब बातों के बावजूद प्यार में कोई शर्त नहीं होती कि यदि आपने किसी को चाहा है तो वह व्यक्ति भी आपको चाहे ही सही यह कोई ज़रूरी नहीं कुछ लोग मानते हैं जो एक तरफा होता है वास्तव में वह प्यार ही नहीं होता। प्यार वही होता है जो दोनों तरफ से हो लेकिन मैं ऐसा नहीं मानती खैर यहाँ बात मेरी नहीं प्यार कि हो रही है प्यार तो एक खुशबू कि तरह होता है। जो अपनी खुशबू से लगभग हर उम्र के व्यक्ति को या यूं कहा जाये कि हर व्यक्ति को महकता है अर्थात प्यार हर कोई करता है फर्क होता है तो बस इतना कि कोई मान लेता है कि हाँ उसने भी कभी किसी से प्यार किया था तो कोई चाह कर भी कभी यह कुबूल नहीं पता कि उसने भी कभी न कभी कहीं न कहीं किसी से प्यार किया था। प्यार करने वालों का रिश्ता कुछ वैसा ही होता है जैसे खुशबू और हवा का जैसे प्यास और पानी का जैसे समंदर और लहरों का जैसे मिट्टी और पौधों का, जैसे फूल और खूबसूरती का क्यूंकि जंगली फूल भी उतने ही खूबसूरत होते है जीतने कि घर कि क्यारियों में सलीके से लगाये गए फूल जिस तरह फूल अपनी सुंदरता बिखेरते वक़्त यह नहीं देखते कि वह किस पेड़ पर कहाँ उगेंगे, जिस तरह खुसबु यह नहीं देखती कि वह कहाँ कहाँ बिखरेगी उसे तो बस अपनी हमसफर हवा के साथ उड़ना होता है बहाना होता है ठीक उसी तरह प्यार भी यह नहीं देखता कि उम्र कि सीमा क्या रिश्तों का बंधन क्या है जात पात उंच नीच सब से परे बस प्यार प्यार होता है प्यार उस शक्ति का नाम है जो मरे हुए इंसान में भी जान फूँक देता है। प्यार के सही मायने क्या होने चाहिए यह कहना तो मुश्किल है लेकिन शायद प्यार का दूसरा नाम परवाह चिंता फिक्र होना चाहिए सही मायने में तो वही प्यार है कहने वाले कहते हैं जहां प्यार होता है वहाँ यह तीनों चीज़ें स्व्भाविक ही होती हैं। लेकिन मैं ऐसा मानती हूँ कि जहां यह तीनों चीज़ें होती है वास्तव में प्यार भी वहीं होता है। इनके बिना प्यार संभव ही नहीं चाहे वह किसी भी रिश्ते का प्यार क्यूँ न हो जैसे माँ बेटे का प्यार भाई बहन का प्यार, माता –पिता का प्यार, या फिर पति पत्नी का प्यार यह सभी रिश्ते इस तीनों चीजों के बिना उतने ही अधूरे हैं जैसे रात और दिन ईश्वर और शैतान। है न !

प्यार में शर्त कहकर नहीं होती लेकिन फिर भी एक दूसरे से वफादारी कि चाहता दोन पक्षों को होती है, इसलिए शायद प्रेम विवाह में लोग अपने जीवन साथी के प्रति अपने और उसके रिश्ते को लेकर ज्यादा असुरक्षित महसूस करते है कहीं उसे कोई और पसंद न आ जाये कोई और उसे फंसा न ले वगैरा –वगैरा क्यूँ सही कहा न मैंने!!!! होती है आपको भी अपने साथी को लेकर ऐसी ही शंका अब झूठ मत बोलना अपने दिल पर हाथ रखकर कहो कि नहीं होती। हुम्म...!

लेकिन क्या करें प्यार में यदि जलन न हो तो प्यार कि परिभाषा सही नहीं मानी जाती इसलिए कभी कभी चाहते हुए और कभ कभी ना चाहते हुए भी प्रेमी जोड़े में शक शुबा हो ही जाता है जैसे शुरूआत में राहुल को अंजलि के ऊपर हो रहा था कि उससे दूर रहकर कहीं अंजलि को कोई दूसरा व्यक्ति पसंद न आजाए कोई उसे बहला फूलसला न ले इत्यादि इत्यादि।

लेकिन जहां एक ओर प्यार में शक शुबा शंका समाधान है तो वहीं प्यार का दूसरा नाम विश्वास भी तो है जिसकी नीव पर यह प्यार का पौधा फलता फूलता है। यदि विश्वास ही नहीं तो प्यार कैसा इसलिए तो प्यार अनमोल होता है जिस्मानी रिश्तो से परे रूह से किय जाने वाला प्यार जिसे दो दिल महसूस करते हैं। एक दूजे के लिए धड़कते हैं। जो मरने के बाद भी एक दूजे से जुड़ा नहीं होते जैसे नकुल और सुधा का प्यार जो प्यार ईश्वर तक पहुंचता है वह “अमर प्रेम” बन जाता है। यूं भी प्रेम तो अमर ही होता है। तभी तो ज़िंदगी का पहला प्यार ज़िंदगी भर याद रहता है। मैं तो बस इतना कह सकती हूँ कि प्यार ज़िंदगी है। जिस ज़िंदगी में प्यार नहीं वो ज़िंदगी ज़िंदगी नहीं। यह ज़रूरी नहीं कि हर किसी इंसान का प्रेम अमर ही हो, बात तो बस इतनी सी है प्रेम जितना भी हो भरपूर हो। अगला पिछला जन्म तो आज तक किसी ने देखा नहीं न स्वर्ग नर्क ही देखा है जो भी यही है इसी धरती पर है, तो दोस्तों बस प्यार बाँटते चलो....प्यार बाँटना इतना मुश्किल भी नहीं होता जितना प्रतीत होता है कई ऐसे भी लोग होते हैं जिन्हें प्यार बंधन लगने लगता है यही वही लोग होते हैं जो प्यार बाँट नहीं पाते इनके लिए प्यार कि हमेशा एक ही परिभाषा होती है जीवन साथी वाला प्यार जबकि प्यार के इतने रूप होते हैं कि लिखने बैठो तो शाद शब्द कम पड़ जाएँ लिकिन प्यार खत्म न होगा। हाँ यह बात अलग है कुछ लोग प्यार को समझ ही नहीं पाते और कुछ लोग इतनी गहराई से समझ लेते हैं कि उनका प्रेम अमर हो जाता है और ऐसे प्रेमियों का इतिहास गवाह है।

इस सब के बावजूद यह ज़रूरी नहीं कि यदि प्यार में आपका नाम न हुआ या प्यार में आप बदनाम न हुए तो आपका प्यार सच्चा नहीं।

कई लोग ऐसे भी होते हैं जिन्हें शादी के बंधन में बधने के बाद प्यार होता है तो वहीं कुछ लोग ऐसे भी होते हैं जिन्हें शादी के पहले ही प्यार हो चुका होता है।

किन्तु प्यार सभी को होता है।

खैर जैसा का मैंने पहले भी कहा कि प्रेम एक ऐसा विषय है जिस पर जितनी भी बात कि जाए कम है। इसलिए मैं इस विषय पर से हटती हुई वापस कहानी पर आती हूँ।

अंजलि और राहुल दोनों एक दूसरे से अलग किसी तरह अपनी ज़िंदगी बिता रहे है|

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