शौर्य गाथाएँ
शशि पाधा
(2)
साझा रिश्ता
( लांस नायक रमेश खजुरिया – शौर्य चक्र )
रमेश से मेरी पहचान उस सैनिक छावनी में जाने के एक दो दिन बाद ही हो गयी थी| मेरे पति ने जिस दिन भारतीय सेना की विशिष्ट पलटन 1 पैरा स्पैशल फोर्सेस के कमान अधिकारी का कार्य भार सम्भाला, उसी दिन से वो उनकी सिक्योरिटी गार्ड की टीम में नियुक्त हो गया| दिन भर जब मेरे पति ऑफिस होते तो उसकी ड्यूटी भी वहीं होती और जब वे घर आते तो उनकी गाड़ी में भी उनकी सुरक्षा हेतु वह हमारे घर तक आता था | वैसे शांतिकाल में सैनिक छावनियों में सुरक्षा की कोई आवश्यकता तो नहीं होती लेकिन पुराने नियमों के अनुसार अभी तक ऐसा ही चल रहा था|
रमेश की उम्र कोई २०-२१ वर्ष रही होगी| छह फुट लंबा, इकहरा शरीर और एक गर्व पूर्ण वीर सैनिक के भाव उसके चेहरे पर रहते | प्रति दिन मेरे पति के साथ आने-जाने के कारण इन दोनों की आपस में बात चीत होती रहती थी | एक दिन मेरे पति ने मुझे बताया कि रमेश हमारे शहर से थोड़ी ही दूर पहाड़ों पर बसे एक गाँव का रहने वाला है | अब कभी कभी मैं भी उससे बात चीत करने लगी | क्योंकि वह मेरी मातृ ‘भाषा”डोगरी’ बोलता था, मुझे उससे बात करने में अपनापन सा लगता | कभी मैं उससे उसके माँ–पिता या कभी उसके गाँव आदि के बारे में पूछ लेती थी | एक कमान अधिकारी की पत्नी होने के नाते वैसे तो पूरी यूनिट ही हमारा वृहद् परिवार हो जाता है किन्तु जिन लोगों से रोज़ का मिलना जुलना होता है उनसे एक पारिवारिक रिश्ते से बन जाते हैं|
मेरे जीवन का एक यह पहला अवसर था कि मेरे बेटे मुझसे दूर अपने ननिहाल में पढ़ रहे थे | जिस पहाड़ी छावनी में यह यूनिट थी वहाँ कोई बड़ा स्कूल नहीं था | मेरे लिए बच्चों को अपने नाना-नानी के पास छोड़ने के अलावा और कोई विकल्प नहीं था क्यूंकि बच्चे होस्टल में रह कर पढ़ना नहीं चाहते थे| मैं अपने बच्चों को बहुत याद करती थी| शायद, यह भी एक विशेष कारण था कि रमेश मुझे अपने बेटों के समान ही लगता था |
एक-दो महीनों के बाद ही मेरे दोनों बेटे ग्रीष्मावकाश के होते ही हमारे पास आ गये | आते ही घर की रौनक बढ़ गयी | कई सैनिक उनके मित्र बन गये | किसी के साथ ‘अंडर वाटर डाइविंग’, किसी के साथ पर्वतारोहण, किसी के साथ क्रिकेट आदि खेल में लगे हुए मेरे बेटों की सब से गहरी दोस्ती हो गयी | अब उनका समय घर में कम और अन्य सैनिकों के साथ अधिक बीतता था | ऐसे ही खेल- खेल में रमेश उनका अभिन्न मित्र बन गया | अब तो कहीं पिकनिक पर जाना है तो रमेश भैया भी साथ ही जाता था| हर शाम घर के लान में क्रिकेट की टीम खेलती थी तो बाकी सहायक दूसरी टीम में लेकिन रमेश भैया मेरे बेटों की टीम में होता था | मैं भी कभी-कभी दूर से उनका खेल देखती तो अपने इस सैनिक परिवार को देख कर आनन्दित हो जाती |
बहुत सी सैनिक छावनियाँ किसी बड़े शहर के पास होते हुए भी शहर से अलग -थलग ही होती हैं| रोजमर्रा की आवश्यकतायों के लिए छावनी की परिधि के अन्दर ही कैंटीन, बनिये की दूकान, दर्जी, धोबी, नाई, छोटा सा स्कूल, सर्व धर्म स्थल आदि –आदि सादा जीवन जीने के सभी साधन होते हैं | छावनी के अन्दर एक अपना ही संसार होता है जहां किसी भी चीज़ की कमी नहीं लगती | हर रविवार को सभी सैनिक परिवार सर्व धर्म स्थल में एकत्रित हो कर प्रभु को याद करते हैं | हर
त्योहार एक ही मैदान में एकत्रित हो कर मनाया जाता है | वहाँ की चहल पहल भी बाकी नगरों से अलग ही होती है | सुबह का बिगुल बजते ही अधिकारी, जवान सभी पी:टी के लिए एकत्रित हो जाते हैं | एक ही तरह की हरे रंग की गाड़ियाँ, एक ही तरह की हरे रंग की वर्दियां, एक ही तरह के घर | स्वच्छता इतनी कि स्वयं स्वच्छता हैरान हो जाए | कतार में खड़े पेड़ों के आस पास गेरू – चूना, छोटे- छोटे बाग़ बगीचे, खेल के मैदान, चिकित्सा कक्ष, नर्सरी स्कूल आदि-आदि जीवन जीने के सभी साधन अपने छोटे आकार में हर सैनिक छावनी को एक विशेष रूप देते हैं | हमारे सैनिक भिन्न –भिन्न प्रान्तों से आते हैं किन्तु सैनिक छावनियों में “वसुधैव कुटुम्बकम” का स्नेहिल वातावरण बना रहता है जिसमें पारस्परिक स्नेह और सौहार्द के आजीवन रिश्ते पलते-पनपते हैं |
ऐसे ही स्वर्गिक वातावरण में हम कुछ सैनिक परिवार सुखमय जीवन बिता रहे थे कि भारत के उत्तरी क्षेत्रों में आतंकवादियों की हिंसा की छुटपुट ख़बरें आने लगीं |कहीं आतंक फैलाने के लिए बस में निहत्थों की हत्या, कहीं सैलानियों को डराने के लिए गोलीबारी, कहीं आगजनी, कहीं लूटपाट की घटनायों के कारण गाँधी के भारत में हिंसा, चिंता, भय और अविश्वास का वातावरण छा गया | युद्ध के समय बाहरी शत्रु से देश की रक्षा करने में प्रशिक्षित हमारे सैनिकों को देश के भीतर अलगाववादी तत्वों से लड़ने के लिए, भारतीय जनता की सुरक्षा के लिए और शांति स्थापना के लिए भारतीय सेना की कुछ इकाइयों को ऐसे स्थानों में भेजा जाने लगा जहां नगरों की पुलिस को विशेष सहायता की आवश्यकता थी | आज तक ऐसे समाचार हम टी:वी पर ही सुनते थे या समाचार पत्रों में ही पढ़ते थे कि इजराइल में आतंकवादी हमला हुआ है या फिलिस्तीन में नागरिकों को बंदी बनाया
गया है | भारत के पूर्वी क्षेत्र में भी अलगाववादी तत्वों द्वारा हिंसा की घटनायों के समाचार आते रहते थे किन्तु चिंता की बात यह थी कि देश के उत्तरी –पश्चिमी प्रान्तों में भी अब आतंकवाद का दैत्य घर कर गया था जिससे पूरे भारत की शान्ति भंग हो गयी थी |
मेरे पति की यूनिट को भी चरमपंथियों के ठिकानों को नष्ट करने के लिए विभिन्न प्रान्तों में भेजने का निर्णय भारतीय सरकार ने लिया | निर्धारित दिन आने पर भोर के झुटपुटे में जीप, जोंगा ट्रक आदि की कतारें छावनी के मैदान से अपने लक्ष्यपूर्ति की दिशा में चल पडीं| हम सब परिवारों ने उन्हें बड़े उत्साह के साथ विदा किया | यह कोई सीमा पर युद्ध तो था नहीं | अनुमान यही था कि गुमराह हुए आतंकवादियों के ठिकानों को नष्ट करके, प्रान्तों में शान्ति स्थापित करके हमारी सेनायें शीघ्र ही वापिस लौटेंगी | किन्तु स्थिति ऐसी नहीं थी| जिनका सामना करना था वो सीमा पार से पूरी तरह से प्रशिक्षण लेकर आए थे | सीमा पर होने वाले युद्ध में और घर में घुसे आतंकवादियों के साथ मुठभेड़ में धरती आसमान का अंतर होता है | ऐसी लड़ाई अधिक जोखिम होती है क्योंकि कौन शत्रु है कौन मित्र, इसकी पहचान करना कठिन हो जाता है | जैसे कि अनुमान था कि हमारे सैनिक जल्दी लौट आयेंगे, वैसा नहीं हुआ| इस पूरे अभियान में कई दिन, कई वर्ष लगे और भारतीय सेना के अनगिन शूरवीरों ने अपने प्राण उत्सर्ग किये |
ऐसे ही एक अभियान के लिए मेरे पति की यूनिट की एक टीम के साथ रमेश भी गया | मेरे पति जब घर के गेट के बाहर गाड़ी में बैठने लगे तो मेरे दोनों बेटों ने रमेश को गले लगा लिया | उनका दोस्त पता नहीं कितने दिनों के लिये जा रहा
था | उसने मेरे पाँव छूकर आशीर्वाद लिया | इस तरह वीर सैनिकों का कारवाँ भारत भूमि में शान्ति स्थापना हेतु अपने गंतव्य की ओर चला गया |
भारत की उत्तरी सीमा से सटे पहाड़ों में जिस स्थान पर आतंकवादियों का जमाव था, वहां से कुछ ही दूरी पर हमारी पलटन की इस टीम का कैम्प लग गया| जाते ही सूचना मिली कि सीमा रेखा के पास एक जंगल में आतंकवादियों का गिरोह छिपा हुआ था| वो किसी भी समय शहर के महत्वपूर्ण ठिकानों पर हमला करके या आम जनता पर गोलियां दाग कर शहर में दहशत का वातावरण फैलाने के लिए पूरी तरह तैयार थे |उन दिनों इस क्षेत्र में ऐसी घटनाएं बहुत दिनों से घट रहीं थीं | हमारी सैनिक टीम को आदेश था कि उन आतंकवादियों के ठिकाने को नष्ट कर लिया जाए तथा उन्हें शस्त्र-विहीन कर दिया जाये ताकि उस प्रांत की शान्ति बनी रहे| युद्धस्थल में शत्रु को पकड़ने या उसे परास्त करने के अपने विशेष तरीके होते हैं किन्तु जंगलों में छिपे शत्रु पर वार करने के लिए बहुत हिम्मत, जोश, तथा विशेष ट्रेनिंग की आवश्यकता होती है, जिसमें हमारी पलटन के वीर जवान पूरी तरह से प्रशिक्षित थे|
अत: जैसे ही उन्हें आदेश मिला, रात के अंधियारे में पलटन की एक टीम ने आतंकवादियों के कैम्प के आस पास घेरा डाल दिया और उनके ठिकानों को नष्ट करने के लिए के लिए जंगल में कारवाई शुरू की| वहां छिपे आतंकवादी भी हर समय जवाबी हमले के लिए तैयार बैठे थे | जैसे ही हमारे जवान उन की ओर बढ़ रहे थे, उन्होंने वहां जमा किए घातक हथियारों से हमारे जवानों पर गोलियां दागनी शुरू कर दीं | क्यूंकि यह आतंकवादी बहुत दिनों से वहां रह रहे थे, उन्हें उस स्थान के आस पास का पूरा ज्ञान था | वे घने पेड़ों की आड़ लेकर हमारे जवानों पर घातक प्रहार करने लगे| दोनों ओर से काफी देर तक लड़ाई चलती रही | अंतत: कहीं पर ग्रनेड फ़ेंक कर, कही गोलियां दाग कर, कहीं पिस्तौल के अचूक निशानों से तथा कहीं गुत्थमगुत्था युद्ध में हमारे शूरवीर सैनिकों ने आतंकवादियों को पूरी तरह नष्ट करने में सफलता प्राप्त की | रात के अँधेरे में ही अपने ध्येय की प्राप्ति से पूर्णतय: संतुष्ट होकर हमारे जवान उस स्थान से कुछ दूर जंगल में बनाए पूर्वनिश्चित स्थान पर लौट आए| ऐसे अभियान में कार्यसिद्धि के बाद सैनिकों की गिनती करने का नियम है ताकि पता चले कि इस मिशन में जितने सैनिक गए थे, सभी सकुशल वापिस लौट के आये हैं कि नहीं, तो पता चला कि एक सैनिक नहीं लौटा था| शायद वो अधिक घायल हो गया था और वहां से निकल नहीं पाया, या-- ----पता नहीं|
जैसे ही उसे ढूँढने का आदेश हुआ, शूरवीर रमेश आतंकवादियों के उस गढ़ में अपने पीछे छूटे साथी को ढूँढ लाने के लिए तैयार हो गया | यह बहुत ही बहादुरी और साहस का निर्णय था| एक और जवान भी उसके साथ भेजा गया ताकि दोनों एक–दूसरे की सहायता कर सकें | थोड़ी ही देर पहले जहाँ आतंकवादियों के साथ घमासान युद्ध हुआ था, वहाँ ढूँढते- ढूँढते रमेश ने अपने साथी को पूरी तरह बेहोश अवस्था में पड़े देखा | जैसे ही रमेश ने अपने साथी को उठाया, वहाँ छिपे हुए किसी घायल आतंकवादी ने रमेश पर बन्दूक से गोलियाँ दागनी शुरू कर दीं | रमेश ने बड़े साहस और धैर्य से अपने साथी को बचाते हुए आतंकवादी पर जवाबी कार्यवाई की| वो आतंकवादी पर तब तक वार करता रहा जब तक वो पूरी तरह से नष्ट नहीं हो गया | अपने घायल साथी को कंधे पर उठाये रमेश सुरक्षित स्थान पर लौट आया | इस आमने- सामने की लड़ाई में वो बुरी तरह से घायल हो चुका था तथा उसके शरीर से बहुत मात्रा में रक्त बह गया था | वहाँ बैठे चिकित्सा कर्मियों ने उसे बचाने का भरपूर प्रयत्न किया किन्तु कुछ क्षणों के बाद ही वो शूरवीर अपने साथियों के बीच में पहुँचते ही शहीद हो गया |
मुझे जब यह समाचार मिला तो बहुत गहन कष्ट हुआ| मेरे दोनों बेटे भी सहायक के कमरे में रखी उसकी चीज़ों को देख -देख कर बहुत दुखी रहने लगे | ऐसे समय में प्रभु से प्रार्थना ही एकमात्र संबल रह जाता है| हम सब अब प्रतिदिन भगवान के आगे बैठ कर बाकी सैनिकों के सकुशल लौटने की प्रार्थना करने लगे| यूनिट की ओर से तो रमेश के परिवार को उसके इस महाबलिदान की सूचना पहुँचाई गयी थी, मैंने स्वयं रमेश की माँ को उसके बहादुर बेटे के अदम्य साहस तथा शूरवीरता के लिए अपनी सेना की ओर से धन्यवाद भरा एक पत्र लिखा| उसी वर्ष रमेश को उसकी उत्त्कृष्ट वीरता के लिए भारत के राष्ट्रपति की ओर से शौर्य चक्र से सम्मानित किया गया| यह सम्मान गणतंत्र दिवस पर राजधानी देहली में उसके माता पिता ने ग्रहण किया |
कुछ दिनों बाद मुझे जम्मू जाना था | मैंने रमेश के माता-पिता को सूचित किया कि मैं उनसे मिलना चाहती हूँ| उसका गाँव सुदूर पहाड़ों में था| मैं पूरे रास्ते यही सोचती रही कि कैसे उसके माता पिता का सामना करूँगी ? जैसे ही मैं वहाँ पहुँची, मैंने उसके माता पिता से रमेश की बहादुरी की बातें जो मैंने अपने पति से सुनीं थी, सुनाईं | मैं अपने साथ रमेश की कुछ तस्वीरें ले गयी थी जिसमें वो मेरे बच्चों के साथ खेल रहा था, मेरे पति के आफिस के काम काज में था और कहीं पर पलटन के मनोरंजन के कार्यक्रमों में कुछ प्रस्तुत कर रहा था | उन तस्वीरों को गाँव के लोग बड़े चाव से देखते रहे और उस वीर शहीद की बातें बड़े गर्व से सुन रहे थे |
किन्तु शायद एक माँ का हृदय अपने बच्चे के बारे में कुछ और भी जानना चाहता था| रमेश की माँ अब तक बिना कुछ बोले अपने आंसुओं को चुपचाप अपनी ओढ़नी के छोर से पोंछ कर अपना अथाह दुःख छिपा रही थी| मैं भी बहुत कठिनाई से अपनी रुलाई रोक पा रही थी | आखिर उस सैनिक छावनी में तो मैं उसकी माँ समान ही थी| हम दोनों ही कुछ देर बस चुप सी थीं | अचानक रमेश की माँ ने मेरे पास आकर, धीमे से मेरा हाथ पकड कर मुझसे पूछा, “मेम साब जी, आपने उसे आख़िरी बार कब देखा था?”
मैंने कहा, “ जब वो साहब के साथ गाड़ी में बैठने लगा था| उसने हाथ जोड़ कर मुझे प्रणाम किया था और मेरे दोनों बेटों के गले लग कर हँसते हँसते गया था|” मुझे कुछ सूझ नहीं रहा था| बस यही कहा कि उसका बहादुर बेटा वीरता, त्याग और बलिदान का सर्वोच्च पाठ पढ़ा गया|
मुझे लगा कि वो मुझसे कुछ और पूछना चाहती है | उसकी मन:स्थिति को भाँपते हुए मैंने उसका हाथ थाम लिया और कहा, “ अंतिम समय में हमारे साहब रमेश के पास ही थे |” यह सुन कर वो कुछ देर मेरी ओर यूँ देखती रही मानो मेरी आँखों में अपने बेटे के अंतिम क्षण टटोल रही हो| जैसे ही मैं जाने को मुड़ी, वो कस कर मेरे गले लग गई |
फिर रूँधी आवाज़ में उसने केवल यह कहा, “ मेम साब जी, अज्ज मैं अप्पने बेटे कन्ने मिल ली|” ( आज मैं अपने बेटे से मिल ली)
उसके आँसुओं से मेरा अंतर्मन भीग गया था| हम दोनों देर तक एक दूसरे के गले लगे रहे | पता नहीं कौन किस को सांत्वना दे रहा था | जाने कब तक गहन संवेदना की नदी नि:शब्द बहती रही| रमेश की माँ के साथ मेरा साझा रिश्ता जो था |
***