life story - mere aaz me hai bite kal ka hath in Hindi Biography by Anjali Dasuni books and stories PDF | जीवन गाथा - मेरे आज मे है बीते कल का हाथ

Featured Books
  • जंगल - भाग 12

                                   ( 12)                       ...

  • इश्क दा मारा - 26

    MLA साहब की बाते सुन कर गीतिका के घर वालों को बहुत ही गुस्सा...

  • दरिंदा - भाग - 13

    अल्पा अपने भाई मौलिक को बुलाने का सुनकर डर रही थी। तब विनोद...

  • आखेट महल - 8

    आठ घण्टा भर बीतते-बीतते फिर गौरांबर की जेब में पच्चीस रुपये...

  • द्वारावती - 75

    75                                    “मैं मेरी पुस्तकें अभी...

Categories
Share

जीवन गाथा - मेरे आज मे है बीते कल का हाथ

अंधेरे से दूर भागते भागते आज अंधेरा ही मेरा साथी बन गया।।
यू तो रंगो से कोई शिकायत नहीं मुझको ,पर वर्तमान में चल रहे रंंगो के इस भेदभाव से बेहतर मुझे अंधेेेरा( काला रंग) ही भाया है।।
विश्ववास मेरी कमजोरी और सर्ब मेरी ताकत हुआ करती थी।
आज ना जाने क्यो ना ताकत रही भरोसा करने की ना हिम्मत सर्ब रखने की।।

हर मोड़ पेें खुद को बस अकेेेला ही पाया,
साथ देने के उन वादो मे से कोई साथ ही ना आया।।
अपनी जिंदगी के कुछ अधूरे पन्ने समेट कर एक पुस्तक में तबदील करने के मेरे इस प्रयास को आपके समर्थन की आवश्यकता है।।

ये कहानी नहीं हकीकत है मेरी और हकीकत जरूरी नहीं रोमाचित ही हो।। इस कहानी के किरदार सत्य पे आधारित है और उनसे जुड़ी कुछ बाते (काल्पनिक) गोपनिय रखी गई है।

मैं अंजलि ,उम्र -19 वर्ष ,कद-5'4",
मेरे मित्रों की टोली मुझे मोटा कहती है ,पर मेरे अनुसार मे स्वस्थ हू ना ही ज्यादा मोटी ना ही ज्यादा पतली।।
मेरे जैसे लोगों को में फुलफूले (fluffy) कहना पसंद करती हूँ इसके पीछे कोई विशेष कारण तो नहीं बस बूरा कम लगता है??।।

12वी के बाद एक वर्ष JEE (engineering ) के एक्साम की तैयारी कर के असफल होने पर अपनी सारी हिम्मत हारी हुई मैं, निराशा से भरपूर मेरी इस कलम से अपनी भावनाए मटूरभारती द्वारा व्यक्त करने का प्रयास कर रही हू।

अपनी भावनाओ को व्यक्त करने की चाह होते हुए भी किसी को अपने आस -पास ना पाने के कारण इस कलम और कागज को मैने अपना साथी बना लिया।।
लिखने की इतनी आदत हो गई की अब हर भाव के साथ एक पंक्ति खुद बाहार आ जाती है।।.
आपका समय व्यर्थ ना गवा के मैं अपनी कहानी शुरु करती हूँ।।

मेरा नाम तो आप जान ही चुके है,
बचपन में ही मुझे अपने रिश्तेदारों के वहा पढने के लिए भेज दिया गया।।
एक पिद्दडे गाँव के निवासी होने के कारण , मेरे भाविष्य को उज्जवल करने की चाह में मुझे पढने भेज दिया गया ।।
ऐसा मुझसे कहा गया है।।
मेरा मानना कुछ और ही है।।
मैं उतराखंड राज्य के जिला पिथोंरागड के एक छोटे से गाव गनौरा की रहने वाली हूँ।।
शायद आप में से कुछ लोग जानते हो की पाताल भुवनेश्वर नामक एक जगह है जहाँ प्रसिद्ध गुफा मंदीर स्थित है, मेरा गाँव इसी गुफा मंदीर के पास स्थित है।।
आश्चचर्यजनक बात यह हेै की दूसरे राज्य के लोग इसके बारे में नहीं जानते जो मैं समझ सकती हू, परन्तु इस राज्य में भी ऐसे लोग है जिन्होने इसका नाम तक नहीं सुना।।
आप सभी से निवेदन है की ये पढने के बाद आप अवश्य इस जगह को गुगल करे।
https://en.m.wikipedia.org/wiki/Patal_Bhuvaneshwar
और भी कई चीजे है जो मैं सब तक पहुचाना चाहूगी ।।
अपने पारिवार की बात करु तो तब मेरे परिवार में 6 सदस्य थे।।
मैं ,मेरे दों भाई (जिनको मैंने हर बार भगवान से मागा ,जी सच में ऐसा मेरी मम्मी का कहना ना की बचपन से ही मुझे दों भाई चाहिए थे),मम्मी ,पापा और मेरे दादाजी।।
इनके अलावा मेरी 2 बुआ (पापा की बहने) जिनकी शादी हो चूकि थी।।





.