Chhalava in Hindi Short Stories by Niyati Kapadia books and stories PDF | छलावा

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छलावा

एक हट्टा कट्टा सुंदरसा नौ जवान शाम के वक्त झाड़ियो के बीच से गुजर रहा था। उसका नाम वीर है।
वीर: ये लोग भी कमाल के है सारा शहर छोडकर यहा जंगल में शूटिंग रखने की क्या जरूरत! रुपयो की जरूरत न होती तो में कभी यहा न आता। सुनीलने बताया था की यहा लोगो के साथ अजीब अजीब से हादसे होते है। यह एक शापित जगह है।

अपने आप बोलता हुआ वह चला जा रहा था। तभी उसकी नजर के सामने एक बड़ा मकान दिखाई दिया। पुरानी हवेली या किल्ले के जैसा था कुछ।

वीर: लगता है यही पर शूटिंग होनेवाली है। पर यहा इतना अंधेरा क्यों है? कोई दिखाई भी नहीं दे रहा।

सूखे हुए पत्तों को अपने पैरो के नीचे कुचलता हुआ वह दरवाजे तक पहुँच गया। उन पत्तों की आवाज इस नीरव वातावरण में कुछ ज्यादा ही शोर मचा रही हों एसा उसे लगा पर वो जलदी से आगे बढ़ गया। दरवाजे पर जाकर उसने चील्ला कर कहा, "कोई है?" और अनायास ही उसका हाथ दरवाजे पर लग गया। पुराने जमाने का बड़ा सा लकड़ी का बना हुआ दरवाजा मानो उस के छूने की ही प्रतीक्षा कर रहा हों वैसे धीरे से आवाज करते हुए खुल गया। उसकी आवाज सुन कर वीर को थोड़ा सा डर लगा पर अंदर से आ रही हलकी रोशनी देखकर उसकी हिंमत बढ़ी और वो अंदर चला गया।

अंदर काफी अंधेरा था साफ साफ कुछ दिखाई नहीं दे रहा था सिवाय एक लालटेनकी रोशनी के। वीर उस लालटेन के पास गया उसकी रोशनी में वहा एक सोफा दिखाई दिया। सामने रखी हुई टीपोय भी दिखाई दी। वीरने चारो तरफ नजर घुमाई सामने की दीवार पर एक हिरन का शीर लटक रहा था। उस हिरण की आंखे चमक रही थी और वीर को लगा जैसे वो उसके सामने ही देख रही थी। वीर को लगा की यहा आना ही नहीं चाहिए था। उसने अपनी जेब से रुमाल निकाला और अपने चहेरे पर से पसीना पोंछा।

"कॉफी रखी है पी लो।"

सन्नाटे को चीरती हुई एक लड़की की आवाज आई और वह डर गया पर फिर उसके सामने एक लड़कीको उलटा गुमा हुए देख उसे राहत हुई। टीपोय के ऊपर कॉफी का कप पड़ा हुआ था। उसने उसे उठा लिया और एक घूंट भरते हीं फिर से उस लड़की की आवाज आई,

"कैसी बनी है?"

अब वह लड़की वीर के सामने खड़ी थी। कॉफी के साथ वीर उस लड़की की खूबसूरती भी पी ने लगा। पुराने जमाने के किसी शील्प से निकल आई हों वैसी थी वह लड़की। उसने सिर्फ एक सफ़ेद साड़ी अपने बदन पर लपेट रखी थी। इतने अंधेरे में भी उसकी काँच जैसी चमकती काजल गिरि आंखे और लाल होठ कमाल के लग रहे थे। उसकी छाती से लिपटा हुआ कपड़ा एक कंधे के ऊपर से जाकर कमर पर बंधा हुआ था। घुटनो से नीचे के उसके गौरे पाँव पर जाकर वीर की नजर अटकी हुई थी तभी वह लड़की ने कहा,

"यहा आते हुए परेशानी तो नहीं हुई?"

"नहीं बिलकुल नहीं।" वीरने जूठ कहा और अपने जूठ को छिपाने उसने बड़ी सी स्माइल दी।

"इस सीरियल में तुम्हें मेरे साथ काम करना है। मेरे प्रेमी के रोल में। शूटिंग तो कल से शुरू होंगी पर हमारी केमेस्ट्री स्क्रीन पर अच्छी दिखे इसी लिए मैंने रिहर्सल के लिए अभी तुम्हें बुलाया है। तुम्हें कोई ऐतराज तो नहीं?" उस ने सोफा पर बेठते हुए अपनी नशीली आवाज में कहा।
"मुजे भला क्या एतराज हों शकता है जैसा अप ठीक समजे! पर चोपराजी ने इस बारे में कुछ बताया नहीं।" वीर भी अब कुछ दूरी बनाकर सोफा पर बेठ गया।

यहा से उस लड़की के अंग उपांग कीसी भी मर्द को पागल कर दे इतने हसीन लग रहे थे। वीर अपने अप को संभालता हुआ उसे देख रहा था।

"एक्च्युली मैंने ही उनको मना किया था, कीसी को भी इस बारे में पता नहीं है। हमारा यह सीरियल मेनका के ऊपर बनाया जाएगा और में नहीं चाहती की सीरियल आने से पहले कोई भी मेरे इस लुक को देख ले। आजकल तो एक पल में एसी खबरे न्यूज़ बनकर वाइरल हों जाती है। में इस सीरियल में मेनका बनी हूँ इसकी कानो कान किसिकों खबर नहीं है। कल सुबह जब शूटिंग स्टार्ट होंगी तब भी सीरियल की हमारी टिम के सिवाय और कोई नहीं होंगा। सब कुछ रेडी है सुबह से सब काम जल्दी स्टार्ट हों जाएगा। अभी हम कल के सीन की थोड़ी प्रेक्टिस कर लेते है जिस से कल हमे कोई परेशानी न हों।"

"ठीक है पर मुजे मेरे रोल के बारे में कुछ नहीं पता। मुजे तो आज सुबह ही एक लेटर मिला जिसमें लिखा था की, तुम्हें इस फिल्म के लिए सिलेक्ट कर लिया गया है और शाम सात बजे तक यहा पहोंचना है। यहा के एड्रेस के अलावा में और कुछ नहीं जानता।" वीरने अपनी बात कही। उसे अभी भी ये सब एक सपने की तरह लगा रहा था।

"कोई बात नहीं मैं तुम्हें सब कुछ समजा दूँगी।" उस लड़कीने वीर के करीब आकार उसके गाल पर अपनी उंगली फेरते हुए धीरे से कहा। वीर के पूरे बदन में मानो एक बिजली सी दौड़ गई।

"में मेनका हूँ और तुम ऋषि विश्वामित्र, में तुम्हें मुज से प्रेम करने के लिए उकसाउंगी पर तुम अपनी तपस्या में लीन रहोंगे। जरा भी पिगले तो में गायब हों जाऊँगी याद रखना।"
वीर मुश्कुराया। उसके मन में लड्डू फुट रहे थे इतनी सुंदर लड़की उस पर मरने की एक्टिंग करेगी पर उसे भी अपना रोल नहीं भूलना है..! चाहे कुछ भी हों जाए वह इस लड़की के प्यार के चक्कर में नहीं फसेंगा।

वह लड़की वीर का हाथ पकड़ कर उसे कमरे के बीच ले गई और वहा कार्पेट पर उसे बेठने के लिए कहा। वीरने ऋषि की तरह बेठते हुए पूछा, "यहा इतना अंधेरा क्यो है? हमारे इलवा और कोई नहीं है?"

"अकेली लड़की को देख कर नियत खराब हों रही है, हम्म?" उसने हँसते हुए कहा, और फिर वह वीर के सामने खड़ी रह कर बोली, "सीन में रियालिटि लाने के लिए सारी बत्तिया बूज़ा दी गई है।" और फिर उसने नाचना शुरू किया। इधर उधर घूमती हुई वो वीर को छु कर जाने लगी। वह बला की खूबसूरत लग रही थी पर वीर को पता था की ये सब एक नाटक है, तभी वह आकर वीर की गोदी में बेठ गई और उसके सिने पर हाथ फिराती उसकी गरदन पर जुकी, वीर की गरदन पर उसके होंठ छु रहे थे और वीर ने एक पल के लिए होश खो दिये, उसने अपने दोनों हाथो से मेनका को पकड़ लिया और उसके होठो को चूमना चाहा..."

"रुक जाओ..." एक चिल्लाने की आवाज आई, "कहा था न अपनी तपस्या में लीन रहना वरना में गायब हों जाऊँगी!
वीर वापस होश में आ गया। उयसने मेनका की कमर से अपने हाथ हटा लिए, उसी वक्त लालटेन की लाइट बुज गई, मेनका उसकी गोद में से उठ गई और वहा सन्नाटा छा गया!
वीर: मुज से गलती हों गई। दुबारा एसा कभी नहीं होंगा। प्लीज मुजे माफ करदों। मेनका... मेनका...

वीर चिल्लाता रहा पर कोई जवाब नहीं मिला। उसे अचानक चक्कर सा आया और वह वही बेहोश हो कर गिर गया।

दूसरे दिन सुबह एक आदमी उसे उठा रहा था। वह एक बंगले में था जहा फिल्म की शूटिंग चल रही हों एसा महोल था। वीर कल रात जो हुआ उसके बारे में सोच रहा था,
"वीर तुम कल रात को यहा क्या करने आए थे? तुम्हें तो आज शाम को बुलाया था।" फिल्म के प्र्द्युसर चोपरा ने कहा।

वीरने अपनी जेब में से उसे मिला हुआ लेटर निकाला उस पर आज की तारीख थी, तो? उसकी कुछ समज में नहीं आया।

"सर मुजसे गलती हों गई मेनका गायब हो गई! उसे वापस कैसे बुलाए?"

"कौन मेनका?" प्र्द्युसरने पूछा।

"हमारी सीरियल की हीरोइन जिससे में कल रात यहा मिला था।"

"देखिये चोपराजी इन जनाब पर भी भूत का साया पड गया लगता है। मुजे नहीं लगता ये एक्टिंग कर पाएगा।" पिंछे से आती हुई एक लड़कीने कहा।

"ये ही तो मेनका है।" विर उस लड़की को देखते ही बोल पड़ा।

"और तुम विश्वामित्र, राइट?" उस लड़की ने वीर के सामने देख हँसते हुए कहा।

"हाँ, में में विश्वामित्र। तुम कहा चली गई थी?"

"देखिए चोपराजी में कीसी मेंटल के साथ काम नहीं कर पाऊँगी। में कह रही हूँ आगे से रवि कोई बद्दतमीजी नहीं करेंगा, टाइम से शूटिंग पर भी आ जाएंगा, शराब भी नहीं पीएगा, प्लीज आप उसे ही हीरो रखे।"

वीर की समज में कुछ नहीं आ रहा था उसका शीर फटा जा रहा था और मेनका अभी जीन्स टीशर्त पहने खड़े हुई थी। रात को वीर ने जो कॉफी पी थी वह कप डस्टबिन में पड़ा हुआ शायद कुछ कहना चाह रहा था, उस कप के नीचे पड़े लेटर में कल की तारीख और यहा का पता लिखा दिखाई पड रहा था।

नियती कापड़िया।