Dushkarm ke liye badla ya insaaf in Hindi Human Science by Ajay Kumar Awasthi books and stories PDF | दुष्कर्म के लिए बदला या इंसाफ

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दुष्कर्म के लिए बदला या इंसाफ


मारियो फुजो का सुप्रसिद्ध उपन्यास गाडफादर पर हालीवुड में सन 72 में गाडफादर के नाम से फिल्म बनी, जो सुपर डुपर हिट हुई . इस फिल्म के बाद इसके दो पार्ट और बने . पर पहली फिल्म जबरदस्त प्रभावशाली बनी . इस फिल्म की शुरुआत में डॉन कर्लिओनि से एक आदमी गुहार लगाता है कि उसकी बेटी से एक लड़के ने पहले दोस्ती की, फिर अपने किसी लम्पट दोस्त के साथ वो उसे कहीं घुमाने ले गया, जहां उसके साथ उन दोनों ने जबरदस्ती करने की कोशिश की. जब लड़की ने विरोध किया तो उन्होंने उसे बुरी तरह पीटा . वो मरने की हालत में पहूँच गयी. जब उसने यानि कि लड़की के बाप ने पुलिस में रिपोर्ट लिखाई तो अदालत में किसी किसी नियमो के हवाले से वे बच निकले. यानिकि बाइज्जत बरी हो गये . इस फैसले से दुखी होकर वो गाडफादर के पास इंसाफ मांगने आया है, इस पर डॉन कहता है कि तुम पुलिस के पास गए ही क्यों, सीधे मेरे पास क्यों नहीं चले आये ? वो कहता है कि उसे किसी तरह का लफड़ा नहीं चाहिए. फिर डॉन उससे पूछता है कि उसे कैसा इंसाफ चाहिए ? तो वो कहता है कि उन्हें जान से मार दिया जाय, इस पर गाडफादर कहता है कि वो ऐसा नहीं कर सकता ,क्योकि उसकी लड़की अभी जिन्दा है . तब उस लड़की का बाप कहता है कि फिर उन्हें तड़फाइये, जैसे उन्होंने उसकी लड़की को तडफाया, और इस काम के लिए जितने पैस चाहिए वो देगा . फिर डॉन कर्लिओनि ऐसा करने के लिए तैयार हो जाता है और अपने कुछ खूंखार सदस्यों को इस काम में लगा देता है.

इस कहानी से आखिर क्या स्पष्ट होता है . लडकी का बाप उन दरिंदो से बदला लेना चाहता है या इंसाफ मांग रहा है . इंसाफ तो न्यायालय ने कर दिया था, नियमो के तहत ,पर क्या इससे उन्हें किये की सजा मिली ? नही ! वे चालाकी से बच निकले .और यह बात लड़की के बाप को व्याकुल कर देती है . जिसके साथ यह घटना होती है वो यही चाहेगा जो उसके साथ हुआ उसका हिसाब बराबर होना चाहिए, और यह बदले की कार्यवाही से तृप्त किया जा सकता है .

बदला लेना ,इंसाफ और ईश्वरीय न्याय ये तीनो समय के अनुसार निर्धारित हैं . एक सीधे हस्तक्षेप है, एक नियम है और एक भरोसा है कि उसे उसके किये कि सजा जरुर मिलेगी . पर इन तीनो में ज्यादा सुकून देने वाला बदल लेने के लिए तात्कालिक उठाया गया कदम होता है ,जो भयावह और विनाशकारी भी हो सकता है .

इन सारी बातों का उल्लेख मै आपके सोचने और मंथन करने के लिए कर रहा हूँ , क्योकि इसका सर्वमान्य हल मेरे पास नही है ..

ये बातें तब से आ रही हैं, जबसे हैदराबाद की डॉ प्रियंका के बलात्कारी हत्यारों का पुलिस एनकाउंटर हुआ है , इसमें दो बातें सामने आ रही है एक बदले की कार्यवाही की गई या इस कार्यवाही से प्रियंका और उसके परिवार वालों के साथ इंसाफ़ हुआ. इस घटना से लोग काफी खुश हुए जगह जगह पुलिस अफसरों का अभिनन्दन किया गया .

सोचने वाली बात है कि बदले की कार्यवाही और इंसाफ़ में आखिर अंतर क्या हो सकता है ? सामान्यतः कहा तो यही जा रहा है कि इंसाफ के लिए इन्तजार करना होता है. एक प्रक्रिया से गुजरना पड़ता है और आखिर में जुर्मियो को सजा मिलती है . बदला अपने तरीके से कभी भी, कहीं भी, किसी भी तरह से लिया जा सकता है और इसमें भी जुर्मियो को सजा ही दी जाती है,इसमे जैसे को तैसा वाला नियम लागु होता है फिर दोनों में अंतर क्या है ?
माननीय मुख्य न्यायाधीश ने गत दिनों इस घटना के बाद एक बात कही कि यदि बदले की भावना से कार्यवाही की गई तो इंसाफ़ का चरित्र बदल जाएगा . ये बात बड़ी गंभीर है और इसे समझना आसान नही . इसकी व्याख्या करना भी मुश्किल है. पर कुछ पूर्व की कथाओं और घटना से इसे कुछ कुछ समझा जा सकता है . रामायण की कथा में लंकापति रावण ने माँ सीता का जब हरण किया तो भगवान श्री राम उससे बदला लेते हैं या उसे अनीति अधर्म के कृत्यों की सजा देते है ? यानि कि सीता जी को न्याय दिलाते हैं . यहाँ पर न्याय का सिद्धांत कुछ कुछ समझ आता है . उन्होंने रावण से सीधे युद्ध कर उसका वध नहीं किया .उन्होंने उसे सुधरने का, इस अपराध से मुक्त होने का अवसर दिया. वे अनके बार उसे समझाने की कोशिश करते हैं ,अपने साथियों को भेजते हैं . वे अपने साथ हुए इस अपमानजनक,पीडादायी व्यवहार से आक्रोशित हो अपमी मर्यादा भंग नहीं करते ,वे चेष्टा करते हैं कि रावण इस गलती के लिए क्षमा मांग ले तो वे इसे भुला देंगे और विनाशकारी युद्ध टल जाएगा . पर कई बार की कोशिशो के बावजूद जब रावण अपनी ताकत का अहंकार लिए अपनी हरकतों से बाज नहीं आता तब उसे युद्ध में मार दिया जाता है . रामायण में भगवान राम का चरित्र न्याय के सिद्दांत पर चलता है, पर महाभारत में भगवान श्री कृष्ण अलग अलग प्रसंगो में साफ साफ बदले की भावना से काम करने की प्रेरणा पांडवों को देते हैं . वे उस वक्त युद्ध के नियम और मर्यादा का पालन नहीं करते. जैसे कर्ण जब अपना फंसा हुआ रथ निकाल रहे होते हैं ,तब उसकी असहाय अवस्था में वे अर्जुन को उसे मारने को कहते हैं ,कर्ण के द्वारा जब इसे गलत कहा जाता है तब वे उसे अभिमन्यु को अनीति पूर्वक घेर कर मारने की घटना की याद दिलाते हैं . और भी ऐसे कई उदहारण हैं ,जैसे जयद्रथ का वध,दुर्योधन का वध, दुशासन का वध ये सब इंसाफ़ के लिए किया गया या बदला लिया गया ?
बदला और इंसाफ इन दोनों को समझने की जरूरत हैंऔर तभी हमारे समाज का ताना बाना संतुलित हो सकेगा,,,अपराध,दुष्कर्म के प्रति भय होना बहुत आवश्यक है,,इसके लिए सजा कैसी हो ,कितनी जल्दी हो,,,इसे नए सिरे से तय करने का वक्त आ गया है,,,,,