अमर प्रेम
(10)
अरे अभी तो तुम दादा भी नहीं बने हो।
और तुमने बुड़ापा ओढ़ लिया।
अरे भी तो बच्चों कि बराबरी करनेकि उम्र है
राहुल तुम्हारी वजह से विदेश जाने को तयार नहीं बेचार युगल जोड़ा सिर्फ एक बूढ़े बाप कि वजह से विरह कि अग्नि में जल रहा है क्या तुमको यह सब दिखाई नहीं देता।
अरे अगर वो तुम्हें छोड़कर नहीं जाना चाहता तो तुम तो विदेश जाने कि उत्सुकता दर्शा सकते होना।
मैं यदि जिंदा होती तो मैं तो कब का विदेश चली गयी होती अपने बच्चों के साथ
भूल गए क्या माँ जी क्या कहा करती थी
घर घर में रहने वालों से बंता है नकुल न कि इन ईंट पत्थरों से और मैं यह कभी नहीं चाहूंगी कि तुम मेरे कारण इस घर से बंधे रहो और अपने बच्चों कि ज़िंदगी झंड कर दो
तुम्हें कोई हक नहीं बंता कि तुम अपने मतलब के लिए अपने बच्चों कि ज़िंदगी में विरह गीत बजवाओ। समझ बुढ़ऊ
अब जब कल सुबहा वह लोग आजयेन तब तुम अपनी ओर से अंजलि के साथ विदेश जाने कि बात रखना। फिर देखना उनके चेहरों कि चमक जो ना सिर्फ उनमें बल्कि तुम्हारे अंदर भी जीवन के प्रति एक नया उत्साह जागा देगी।
नकुल यह सब सपने में ही देख-देखकर मुस्कुरा रहा है कि अचानक बिल्ली के रसोई में बर्तन गिराने से उसकी निद्रा टूटती है और वह अपने आस पास सुधा को ढूँढता हुआ उठा है
कुछ ही पलों में वह हकीकत में कदम रखता है जहां वह अकेला है।
लेकिन उसे समझ में आ जाता है कि सुधा उससे क्या करवाना चाहती है और अब उसे समझ आता है कि आखिर उसके दिमाग में यह बात पहेले क्यूँ नहीं आयी।
खैर खुद ही खुद में बातें करते हुए नकुल कहता है देर आए दुरुस्त आए।
ऐसे ही कुछ कुछ सोचते-सोचते उस दिन का समय निकल जाता है और फिर आती है अगली सुबह
जिसके लिए नकुल को बड़ी बेसबरी से इंतज़ार रहता है कि कण राहुल और अंजलि घर आयें और कब वह उनसे अपने मन की बात कहे की वह भी विदेश घूमना चाहता है।
ना जाने क्यूँ उसे मन ही मन ऐसा लग रहा है की यदि वह ऐसा कहेगा और करेगा तो सुधा उसे बहुत शाबाशी देगी और बहुत खुश होगी।
जैसे किसी बच्चे को एमएन हे एमएन लगता है न की यदि वह कक्षा में अच्छे अंको से उत्तीर्ण हुआ तो उसकी माँ बहुत खुश होगी ठीक वैसा ही इस समय नकुल को लग रहा था
आखिरकार उसका इंतज़ार समाप्त होता है
राहुल और अंजलि घर आते है
अंजलि से अपने समधी दीनानाथ जी के स्वस्थ के विषय में पूछता है।
और बेटा कैसे हैं तुम्हारे पापा सब कुशल मंगल तो है।
हाँ पापजी सब ठीक है।
चलो अच्छा है ईश्वर करे सब ठीक ही रहे।
अंजलि मुसकुराते हुए अपने कमरे में जाने लगती है तो नकुल पीछे से आवाज़ देते हुए कहता है
सुनो बेटा मुझे तुम दोनों से कुछ बात करनी है ज़रा यहाँ कुछ देर मेरे पास बैठो न।
दोनों यह सुनकर चौंक से जाते हैं
क्यूंकि इससे पहले कभी नकुल ने दोनों से कभी इस तरह पास बैठकर बात करने लिए कहा नहीं था।
इसलिए दोनों एक दूसरे की शक्ल देखते हुए जरा-जरा घबराये से नकुल के पास बैठे हुए पचते हैं
क्या हुआ पापा जी सब ठीक तो है न
आपकी तबियात ... अरे ना ऐसी कोई बात नहीं है बेटा मैं एक दम ठीक हूँ।
मैं तो बस यह पूछना चाहता था की बेटा क्या तुम्हारी परसों की विदेश जाने की टिकिट बूक हो गई है ?
नहीं पापा जी वह ऑफिस वालों का काम है जाने से एक दिन पहले ही वह सारी टिकटें बूक करते हैं।
मगर आप ऐसा क्यूँ पूछ रहे हैं। अजली थोड़ी फिक्र दिखते हुए बोलती है।
अच्छा और यदि कोई और भी तुम्हारे साथ जाना चाहे तो क्या वह भी उसी दिन का टिकिट बूक कराकर जा सकता है ?
अंजलि आश्चर्य से नकुल की ओर देखकर कहती है
हाँ पापा जी यदि मैं अपने ऑफिस वालों से कह दूँगी तो हो जाएगा किन्तु उस व्यक्ति का टिकिट कंपनी नहीं देगी अपनी जेब से उस व्यक्ति को देना होगा। क्यूंकि कंपनी सिर्फ मेरा टिकिट देती है।
किन्तु आप यह सब क्यूँ पूछ रहे हैं पापा जी राहुल तो मेरे साथ जाने वाला है नहीं।
हाँ वो तो मैं जानता हूँ बेटा।
लेकिन यदि मैं तूहरे साथ विदेश आना चाहूँ तो, तुम्हें कोई इतराज तो नहीं...
सुनकर जैसे अंजलि तो खुशी के मारे उछल ही पड़ी
लेकिन उसे यकीन नहीं हो रहा था की वाकई नकुल उसके साथ जाना चाहता है
राहुल की तो जैसे बोलती ही बंद हो गयी थी
वह क्या कहे क्या ना कहे उसकी समझ में ही नहीं आरहा था।
फिर भी उसने किसी तरह अपने होश संभालते हुए बोला पापा यह आजा अचानक आपको क्या होगया है।
कहाँ तो आपको शाम होते ही हल्की ठंड लगना शुरू हो जाती है
और वहाँ तो आपके हिसाब से बहुत सर्दी होती है।
अरे तो क्या हुआ राहुल अंजलि बीच में से ही बात काटते हुए कहती है ।
अरे सर्दी होती है तो उसके इंतेजाम भी तो होते तुम बिलकुल चिंता न करो मैं सब संभाल लूँगी
तुम मत रोको न पापा जी को बस,
आज उन्होने पहली बार मुझसे कुछ मांगा है। हाँ और क्या मैं तो जाऊंगा अपनी बहू के साथ अरे इतनी भी उम्र नहीं हुई है मेरी अभी तो मैं दादा भी न बना
अभी तो मैं जवान हूँ।
हाँ और क्या सही कह रहें हैं पापा जी आप
मैं अभी अपने ऑफिस से बात करती हूँ। अपनी आँखों मैं खुशी के आँसू लिए अंजलि अपने कमरे में जाकर फोन लगाने लगती है
पापा आपको पता है न आप क्या कह रहे हो।
हाँ राहुल मुझे बहुत अचे से पता है तू चिंता मत कर और हाँ यदि तू छाए तो हमारे साथ आ सकता है
इतने में अंजलि अंदर से ज़ोर ज़ोर से गाना गाती हुई आती है समझो हो ही गया ...इधर न कुल भी जज़्बातों बहकर खुशी से गाता है चलो दिलदार चलो चाँद के पार चलो हम हैं तयार चलो ...नकुल को अब लग रहा है की अंजलि में वाकिन सुधा की झलक है।
इसलिए शायद सुधा अब भी उसके साथ है और कदम कदम पर उसका मार्गदर्शन करती रहती है।
इधर राहुल कहता है क्या पापा मैं आज तक आप की वजह से नहीं गया और अब आप ही जाने को आतुर हो,
यह क्या बात हुई पापा
अरे कोई बात नहीं बेटा तब नहीं गया तो अभी चला चल हमारे साथ
तभी इतने में अंजलि राहुल के करीब आकर फिर एक बार गुन गुनाती है
“यूं ही कट जाएगा सफर साथ चलने से के मंजिल आएगी नज़र साथ चलने से”
अब जाकर सभी को यह मकान घर जैसा लग रहा है, मानो जैसे सूखे पड़े बगीचे में बहार आरही हो।
सब के टिकिट बॉक हो चूकें हैं और सब हवाईअड्डे पर पहुँच कर अपनी फ्लाइट का इंतज़ार कर रहे हैं। नकुल मन ही मन सुधा को ध्न्यवायद दे रहा है की अच्छा हुआ जो उसने समय रहते नकुल को यह समझ देदी की उसके बच्चों की भलाई में ही सबकी भलाई है।
नकुल इस से पहले कभी बाहर नहीं गया अर्थात विदेश नहीं गया यह उसके और राहुल दोनों के लिए विदेश ब्रमण का पहला अवसर है।
राहुल नए जमाने का लड़का है इसलिए उसे कुछ अजीब नहीं लग रहा है।
किन्तु नकुल के लिए यह सब एक दम नया अनुभव है इसलिए उसके मन में एक हल्का सा डर भी है और थोड़ी घबराहट भी की वहाँ जाकर क्या होगा न अपने लोग मिलेंगे न अपनी भाषा।
इतना ही नहीं उसके मन में आप्रवासन (इमिग्रेशन) वालों की भी चिंता है।
न जाने वह क्या और कौन सा सवाल पूछ बैठें ऐसे में यदि हड़बड़ी में उसने कुछ का कुछ उत्तर दे दिया तो, या उसकी अँग्रेजी समझने में वह लोग असमर्थ हुए तो या फिर घबराहट के मारे वह स्वयं उनकी बात का या उनके द्वारा पूछे गए सवालों का सही उत्तर न दे पाया या अपनी बात उन्हें ना समझा पाया तो?
ऐसे न जाने कितने अनगिनत सवाल उसके मन में घूम रहे थे जिन्हें वह आपनी फीकी मुस्कान से छिपाने की न काम कोशिश कर रहा था।
अंजलि उसके मन की दशा भली भांति समझ चुकी थी।
उसने कई बार नकुल से कहा अरे पापा आप इतना क्यूँ डर रहे हैं। ऐसी घबराने वाली कोई बात नहीं है। मैं हूँ न आपके साथ, आप चिंता मत कीजिये धीरज रखिए बस सब ठीक हो जाएगा।
आपको तो बस इतना ही कहना है की आप टुरिस्ट वीसा पर यहाँ आए हैं। एक दो महीने घूमकर चले जाएँ गए और यदि वह पता पूछें तो आप मेरा पता बता दीजिएगा बस...
बेटा तुम को यह सब जितना आसान लग रहा है ना मेरे लिए यह उतना ही कठिन है।
अब समय आगया था उड़ान भरने का,
सब अपनी अपनी जगह पर बैठ चुके हैं।
नकुल को अब भी बहुत घबराहट हो रही है।
राहुल उनके निकट ही बैठा है। किन्तु उन्हें आज राहुल से ज्यादा अंजली के निकट होना अधिक सुरक्षित महसूस हो रहा है।
राहुल ने उन्हें सब समझा दिया है, बता भी दिया है कि आवश्यकता पड़ने पर कैसे आपको अपनी कुर्सी की पेटी बँधनी है, कब खोलनी है और कब कौन सा बटन दबाकर आप आइरहोस्टेज को बुला सकतें हैं।
किस बटन से ठंडक बढ़ा या घटा सकते हैं इत्यादि।
समय पर खाना पीना खाने क बाद जब सोने का समय आया तब सभी यात्री चैन की नींद सो गए। किन्तु राहुल और उसके पिता नकुल को एक पल के लिए भी नींद नहीं आयी।
क्यूंकि दोनों के लिए यह हवाई यात्रा का पहला अवसर जो था।
राहुल रात का नज़र ऊपर से कैसा दिखता है देखने की उत्सुकता में सो नहीं पाया और नकुल को सुबह होने का डर साता रहा था।
यूं भी प्लेन में बैठे-बैठे सोने में नींद कहाँ आती है।
खैर समय गुज़रा और सुबह हो गई
सब के सुप्रभात के स्वर से नकुल की चिंता और बढ़ गयी की अब क्या होगा।
यह सुबहा इतनी जल्दी क्यूँ हो गयी।
अपने भारत में तो पड़े-पड़े रात नहीं कटती, पूरा समय यही सोच सोचकर निकल जाता है कि सुबह कब होगी
और यहाँ देखो कब सुबह हो गयी पता ही नहीं चला।
उतरकर सभी यात्री अपना –अपना समान लेकर आप्रवास की और बढ़े चले जा रहे हैं।
इधर नकुल की धड़कन बढ़ी चली जा रही है।
जैसे ही नकुल का नंबर आया उसके चहरे पर जैसे बारा बज गए।
लेकिन नकुल ने उनके प्रश्नो के सही सही उत्तर दे दिये और बाहर निकल कर नकुल ने चैन की सांस ली और बाहर निकलते ही राहुल को पानी लेने के लिए कहा
नकुल की हालात देखकर अंजलि की हँसी नहीं रुकी और उसने नकुल की तरफ देखते हुए कहा क्या पापा जी आप भी बच्चों की तरह घबरा रहे थे। अब तो सब हो गया और आप अब भी परेशान हैं।
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