अजीब औरत
बिल्डिंग के सामने उर्षिला ने अपनी लंबी गाड़ी पार्क की ही थी कि सीढिय़ों के पीछे खंभे से सटकर खड़ी वह दिख गई। उर्षिला उसकी निगाहों से नहीं बच सकती थी। चार घंटे पहले वह यहां आ चुकी थी, वॉचमैन को ठीक से पट्टी पढ़ा के, लिफ्ट से ना जा कर दस मंजिल चढ़ कर ऊपर गई, घर में ताला देखा, तो नीचे उतर कर यहां इंतजार करने लगी। लौट कर तो यहीं आएगी पट्टी।
उर्षिला बच कर निकल नहीं पाई। ठीक सामने टपक पड़ी माया। भारी कद, अधपके बालों का बना भुस्स जूड़ा, गहरे नीले रंग की साटिन की सलवार-कमीज। चेहरा ठीकठाक था उसका, पर कोई तो बात थी, जो सही नहीं थी।
उर्षिला ने हलके से मुस्कराने की कोशिश की।
माया ने कुछ रुखाई से पूछा, ‘तो मायडम, कब खाली कर रही हो फ्लैट? कब्जा करना चाह रही हो क्या?’
उर्षिला भन्ना गई। आग सी लग गई उसे। मन हुआ कह दे, हां, कब्जाने का इरादा है, कर लो जो करना है। पर वह कुछ सेकेंड चुप रही, फिर लंबी सांस ले कर बोली,‘तुम्हें बताया था ना। कुछ दिन लगेंगे।’
‘मायडम, तुम तो पिछले एक महीने से यही आलापे जा रही हो कि कुछ दिनों में घर खाली कर दोगी। बहुत हो गया। तुम्हारी सुनूंगी तो उम्र निकल जाएगी। एेसे थोड़े ही ना चलेगा?’
बिल्डिंग के बाहर शाम को टहलते बुजुर्ग रुक कर उनकी बातें सुनने लगे। खेलते हुए बच्चे ठहर गए। चबूतरे पर बैठ कर गपियाती छोटी-बड़ी औरतें अपनी बातों का क्रम तोड़ कर उनकी तरफ ताकने लगीं। उर्षिला को गुस्सा आ गया। उसने तेज आवाज में कहा, ‘तुमको जो करना हो कर लो। वैसे भी मैं तुमसे बात क्यों करूं? जिसने किराए पर फ्लैट दिया है, उसे बुलाओ... मुझसे कहा गया था कि साल भर से पहले खाली करने को नहीं कहेंगे, अभी साल होने में चार महीने हैं। मैं नहीं खाली करती घर।’
उर्षिला का चेहरा सुलगने लगा। अचानक माया ने अपनी मोटी हथेली से एक झन्नाटेदार झापड़ उर्षिला के चेहरे पर जमा दिया। इतनी जोर से कि उर्षिला चार कदम पीछे छिटक गई। माया ने अपनी दबंग अवाज में भर्राते हुए गुर्राना शुरू किया, ‘कमीनी, मरे हुए को बीच में लाती है? कहां से लाऊं मैं अपना आदमी? साली, कुत्ती, ये मेरा फ्लैट है। मैं दूसरे रास्ते से भी घर खाली करवाना जानती हूं। मेरा आदमी सीधा था, मुझे मत समझना उसके जैसा।’
एक पल को उर्षिला को विश्वास नहीं हुआ कि जो हो रहा है, उसके साथ ही हो रहा है। इस औरत ने ना सिर्फ उसे गाली दी है, बल्कि उसे चपाट मारा है। उसे, एक सीनियर मैनेजर को। बत्तीस साल की एक वयस्क महिला को, जो अपने स्कूल और कॉलेज में टॉपर रही है। जिसे उसकी मल्टी नेशनल कंपनी में बड़े सम्मान से देखा जाता है, जिससे बात करते उसके जूनियर घबराते हैं।
उर्षिला ने अपना हाथ उठा कर कुछ कहना चाहा, पर उसे सही शब्द नहीं मिले। चेहरा जल रहा था, दिमाग कुंद पड़ रहा था। वह तुरंत लिफ्ट की तरफ बढ़ गई। पीछे से माया की आवाज आई, ‘दो दिन का टाइम है मायडम, घर खाली करो दो। ट्रेलर तो तुमने देख ही लिया, वाह क्या सही चमाटा पड़ा है गाल पर। पूरी फिल्म देखने का शौक हो तो वो भी दिखा दूंगी। ’
उर्षिला ने पलट कर देखा नहीं। हाई डिजाइन के काले हैंड बैग में हाथ डाल कांपते हुए टटोल कर घर की चाबियां निकालीं। समझ नहीं आ रहा था कि क्या करें। ठंडा पानी पी कर उसने मोहित को फोन लगाया। दफ्तर में ही था। उसने शांत आवाज में कहा, ‘तुम घर खाली क्यों नहीं कर देती उर्ष? पंगा क्यों ले रही हो? शी इज अ डेंजरस वूमन।’
उर्षिला की आवाज कांप रही थी, ‘तुम्हें पता है ना मैं अगले वीक महीने भर के लिए यूएस जा रही हूं। उससे पहले घर ढूंढऩा, शिफ्ट करना मेरे बस की बात नहीं है। तुम्हें बताया तो था। मैं लीगली भी इस घर में रह सकती हूं और कुछ महीने। कान्ट्रैक्ट तो साल भर का हुआ था। बीच में वह जुगल किशोर ऊपर टपक गया, तो मैं क्या करूं? ’
‘उसकी वाइफ घर वापस चाहती है तो गलत क्या है?भई उसका घर है। हो सकता है, किसी फाइनेंशियल प्रॉब्लम में हो। लिसन उर्ष, तुम कल ही अपना सामान ऑफिस के गेस्ट हाउस में शिफ्ट कर दो। तुम .. चाहो तो मेरे घर आ जाओ। ’
उर्षिला भडक़ गई,‘तुम्हारे घर आ कर क्या करूं? तुम्हारी वाइफ है कि कहीं गई हुई है? जरा उससे कहो कि फोन करे मुझे। बोलना आसान है मोहित। मैं बहुत टेंशन में हूं। उस औरत ने मुझ पर हाथ उठाया है। मैं उसे जेल भिजवा दूंगी...’
‘तो फिर पुलिस में कंपलेन क्यों नहीं करती? यू शुड डू देट। चाहो तो मैं तुम्हारे साथ पुलिस स्टेशन चल सकता हूं। यहां का एसएचओ जानकार है। राघव...’
उर्षिला चुप रही। कहना चाहती थी कि तुमसे ज्यादा जानती हूं उसे। राघव सिंह राठौर। लंबा कंद, बलिष्ठ देहयष्टि, आबनूसी रंग और घनी मूंछें। जिस चक्कर में मोहित की राघव से पहचान हुई थी, उसमें वह भी तो शामिल थी।
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दिल्ली-जयपुर हाइवे पर उस रेजॉर्ट में अकसर मोहित और उर्षिला वीकएंड बिताते थे। कम से कम दो साल से। मोहित, उर्षिला का बॉस, मैन फें्रड (चालीस साला आदमी बॉय तो नहीं हो सकता ना), उर्षिला उसके आकर्षण में गले-गले तक डूबी थी। मोहित शादीशुदा था, दो बच्चों का पिता। उन दोनों के बीच कभी शादी की बात नहीं हुई। उर्षिला चाहती भी नहीं थी शादी करना। इतना आगे बढ़ रही है करियर में, आराम से अपनी शर्तों पर रहती है। वैसे भी मोहित एक अच्छा प्रेमी है और प्रेमी होने की वजह से सही बॉस है। शादी के लायक नहीं। अपने पूरे कुनबे को साथ रखता है और अपनी पत्नी से उम्मीद करता है कि अपने बीमार पिता को सप्ताह में दो दिन अस्पताल ले कर जाए।
उस दिन रात को लगभग तीनेक बजे होटल में रेड पड़ गई। राघव रेड का इनचार्ज था। वह उनको अलग कमरे में ले गया। मोहित बेहद परेशान था। तनाव में तो वह भी थी। मोहित ने शायद कुछ देने-दिलाने की भी पेशकश कर रखी थी, पर राघव ने मना कर दिया। बड़ी इज्जत से पेश आया उन दोनों के साथ। यह जानते हुए भी कि उन दोनों के बीच क्या रिश्ता (नहीं) था। राघव की ही वजह से उस दिन दोनों बिना मीडिया के सामने आए पिछले रास्ते से निकल पाए। उर्षिला ने जब गाड़ी में बैठते समय उसे थैंक्यू कहा तो राघव ने उसके उठे हाथ पर अपना हाथ रख कर बेतकल्लुफी से कहा,‘नॉट टु बी मेनशंड मैम... मैं आप जैसे पढ़े-लिखे लोगों की बहुत इज्जत करता हूं। कंप्यूटर-शंप्यूटर यू नो।.. आप जरा अपना विजिटिंग कार्ड देंगी.. वैसे मैं बॉदर नहीं करूंगा आपको। वैसे ही कभी..।’
तीसरे ही दिन राघव का फोन आ गया उसके पास, ‘मैम, आपकी हैल्प चाहिए। बेटे को कंप्यूटर दिलवाना है। आप जरा गाइड कर देंगी? आप सही समझें तो शाम को घर आ कर बेटे से मिल लीजिए। आपसे मिलेगा तो कुछ सीख लेगा। .. पता नोट करेंगी? या पिकअप कर लूं? डरिए मत मैडम। पुलिस जीप में नहीं आऊंगा। वैगन आर है, ठीक है, मैं यूनिफॉर्म में नहीं रहूंगा।’
उर्षिला तैयार हो गई। राघव की मदद तो करनी ही पड़ेगी। बिना मोहित को बताए वह राघव के घर गई। एक सामान्य मध्यवर्गीय परिवार। सोलह साल का बेटा। उर्षिला ने अपने क्लायंट से कह कर सही दाम में अच्छा कंप्यूटर दिलवा दिया। दो दिन बेटे को एक ट्यूटर से लेसन भी दिलवा दिया। राघव इंप्रेस्ड हो गया।। इसके बात तीन-चार बार बात और एकाध बार मुलाकात हुई। अपनी अंतिम मुलाकात में राघव ने अजीब सी बात कह दी, ‘आप दूसरी औरतों से बहुत अलग हैं। कई औरतें पैसे के लिए रिश्ता बनाती हैं। आप अपनी खुशी के लिए बनाती हैं। कभी हमें भी चांस दीजिए मैडम।’
उर्षिला हक्की-बक्की रह गई। पहले तो उसकी समझ में नहीं आया कि राघव कह क्या रहा है? जब समझ आया तो तलुवे सहित पूरा बदल सुलग उठा। उसे क्या समझा है राघव ने? कि सोती-फिरती है हर किसी के साथ?
बहुत सोचने के बाद उसने राघव को फोन मिलाया। उसने तुरंत मोबाइल उठाया,‘अरे मैडम, कैसे याद किया? सब खैरियत?’
उर्षिला ने उसे लगभग पूरी बात बताई, अपनी प्रॉब्लम भी कि वह इस समय घर बदलने की हालत में नहीं है।
‘जुगल किशोर का एड्रैस? कभी गई तो नहीं, पर घर के कॉन्ट्रेक्ट पेपर्स में लिखा है।’
‘बस, इतनी सी बात, हो जाएगा। आप कहां हैं? अपने घर का एड्रेस तो दीजिए। मैं अभी काम करवाता हूं आपका।’
तीन घंटे बाद राघव का फोन आ गया। चहक रहा था, ‘गुड न्यूज मैडम जी। आपका काम हो गया। मैं आ रहा हूं आपके घर। वहीं बताऊंगा। अच्छी सी कॉफी बना कर रखिए।’
ठीक आधे घंटे में राघव घर पहुंच गया। सिविलियन कपड़ों में। उर्षिला से हाथ मिलाते हुए बोला, ‘सब फिट। आप तो बेकार में डर गईं। वो औरत.. हंप्टी-डंप्टी, नाम क्या है, माया, वो जुगल किशोर की बीवी नहीं है। वो तो साइड वाली है। चक्कर था जुगल साब का, रखा हुआ था उसे। अब वो ऊपर चला गया है, तो इसके रहने-खाने की मुसीबत आ गई है। बस यही आपका वाला फ्लैट है, जिसके बारे में जुगल की बीवी-बच्चों को नहीं पता। सो वो औरत कब्जाना चाहती है।’
उर्षिला सकते में आ गई। माया का झन्नाटेदार झापड अब भी उसके दाहिने गाल में टीस बन कर दुख रहा था। राघव का बोलना खत्म हुआ तो उर्षिला ने धीरे से पूछ लिया, ‘अब वो औरत परेशान तो नहीं करेगी ना मुझे? यहां तो नहीं आएगी?’
‘अरे नहीं, अच्छे से समझा दिया है पठ्ठी को। जिस भाषा में समझती है, उसी भाषा में। वैसे भी उसे तलाश है एक मर्द की। हमारे एक सिपाही ने कहा कि वह रख लेगा। दोनों का काम हो जाएगा। आप बेफिक्र रहो।’
उर्षिला कॉफी बनाने उठ गई। राघव पांव फैला कर आराम कुर्सी पर टिक गया। उर्षिला को ना जाने क्यों डर सा लगने लगा। अगर राघव काम के बदले में वही प्रस्ताव रखे तो? गरम पानी और दूध में कॉफी पाउडर घोलने में उसने दस मिनट लगा दिए। इस बीच जो सोचना था, सोच लिया। क्षण भर को उसने आईने में अपने को निहारा। बालों को हाथ से पफ किया, टॉप के ऊपर का बटन खोला और बाहर आ गई।
राघव को कॉफी पकड़ा कर उसके पास बैठ गई। राघव की आंखें बंद थीं। कॉफी की सुगंध आते ही वह चौंक कर उठ बैठा। एक घूंट भर कर बोला, ‘वाह मैडम, कॉफी तो एवन बनी है। टू गुड। मैडम, एक बात कहनी है। आप गलत तो नहीं लेंगी?’
उर्मिला के दिल की धडक़न बढ़ गई। क्या वह तैयार है?
‘आपको इस तरह देख कर अच्छा नहीं लग रहा। उस औरत को देखने के बाद तो और भी नहीं। आपकी और उसकी हालत में बहुत अंतर नहीं है मैडम। मोहिर सर सही नहीं हैं आपके लिए। आपसे पहले और बाद में भी कई बार उनको वहीं देखा.. समझ गई ना? आप सेटल हो जाइए, मैरिज कर लीजिए। पेपर में एड दीजिए। अपने कंप्यूटर में दीजिए।’
लंबी घूंट भर कर कॉफी खत्म की राघव ने और उठ खड़ा हुआ, ‘एनी थिंग एल्स? तो मैं जाऊं? कोई प्रॉब्लम हो तो फोन कर लीजिए। बाइ द वे, मैं बताना भूल गया। मेरा बेटा आपका पक्का फैन हो गया है। कभी घर आइए, उसको कुछ सिखाइए। अच्छा लगेगा।’
उर्षिला कुछ नहीं बोली। बोलने को कुछ था ही नहीं। इस वक्त यह भी नहीं सूझ रहा था कि वह मुसीबत से निकल गई है। अपने आप उसका हाथ टॉप का खुला बटन बंद करने लगा।
जयंती रंगनाथन